Wednesday, September 30, 2020

श्रद्धांजलि ...

।।श्रद्धांजलि ।।

मारकर निर्भया को 
नर पिशाच
घुम रहे निर्भय 
देख दारुण दु:ख
मनीषा का 
द्रवित मन हृदय 
ऐसा कैसा साहस 
पाते यह लोग 
आओ करे 
गहराई से खोज 
जड़ कहां हैं 
या है यह अमरबेल 
दलन करने का तरकीब 
सदियों की सोची -समझी खेल 
नोचों उन मुखौटों को 
करों पर्दाफाश 
कही ऐसा न हो कि 
आस ही बन जाए लाश 
उठो जगों करो प्रयाण 
तब तक हो संधर्ष 
जब तक न मिले समाधान 
काटो जड़ मूल सहित 
उखडों वो दरख्त 
जिसके बनिस्पत 
पनपते ये कम्बख्त 
होगी सच्ची श्रद्धांजलि 
मुरझाएं न कोई कली 
विकसित हो ऐसी प्रणाली 
हो देश समाज गौरवशाली 

-डाॅ.अनिल भतपहरी

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