।।श्रद्धांजलि ।।
मारकर निर्भया को
नर पिशाच
घुम रहे निर्भय
देख दारुण दु:ख
मनीषा का
द्रवित मन हृदय
ऐसा कैसा साहस
पाते यह लोग
आओ करे
गहराई से खोज
जड़ कहां हैं
या है यह अमरबेल
दलन करने का तरकीब
सदियों की सोची -समझी खेल
नोचों उन मुखौटों को
करों पर्दाफाश
कही ऐसा न हो कि
आस ही बन जाए लाश
उठो जगों करो प्रयाण
तब तक हो संधर्ष
जब तक न मिले समाधान
काटो जड़ मूल सहित
उखडों वो दरख्त
जिसके बनिस्पत
पनपते ये कम्बख्त
होगी सच्ची श्रद्धांजलि
मुरझाएं न कोई कली
विकसित हो ऐसी प्रणाली
हो देश समाज गौरवशाली
-डाॅ.अनिल भतपहरी
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