Wednesday, September 16, 2020

छत्तीसगढ़ी पाठ्यक्रम - सत्यभामा आडिल के व्यक्त्व पर लेख

[9/16, 20:31] anilbhatpahari: प्रेरक अउ महत्वपूर्ण आंतरिक गोठ।
विरोधी मन बड़  नामधारी अउ बडे बडे सम्मान ले  सम्मानीय हवे । 
    यहां तक के  पद्म सम्मान तको  गैर छत्तीसगढ़िया मन छत्तीसगढ़ी ल प्रदर्शित करके झटक लिए हवे अउ ओकर हकदार मन कलेचुप सन्न खाय बोकबाय परे हवे।
भाषाई अउ बौद्धिक उपनिवेश से छत्तीसगढ़ आजादी के बाद से अबतक रौंदात चले आत हवय।
जोन थोर थिर लिख पढ़ गुन सकथे उहुमन उनकर मन के परभाव म मोकाय कोंदा ब उला हवे।
   आपमन के छत्तीसगढ़ी के ऊपर  अधातेच मया अउ मिहनत बड़ सेहरौनिक हवय  दीदी जी।
     यदि अध्ययन शाला अउ पाठ्यक्रम म आप ल संधरे के मौका  नइ मिलतिस त अउ जोगी जी दृढ इच्छा शक्ति न ई रहितिस  छत्तीसगढ़ी  अउ छत्तीसगढ़िया मन के बड़ दुरदसा हो जतिस ।

 इनकर मन के उलाहना महु ल सुने अउ सहे बर परे हवय।
भले उनमन पंडित जी कहय फेर मोर छत्तीसगढी पना हिन्दी अउ एक अलग तरह के चिन्तनधारा वाले प्रस्तुति म बड़ रोक छोक करय ।
     महाविद्यालीन प्रोफेसर संगी मन ये मन जानथे तको।  छत्तीसगढी म एम ए अउ छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण कार्यशाला भाषा अउ साहित्य विभाग र वि वि करा के बनेच बुता करे के उदीम मढाय रहिस आज ओहर बने सिधीयाय ल घर ले हवय ... आधु चलके अब सब कुछ बढिया होही मोकाय सोकाय भकवाय मन के चेत लहुटही हम ल आस बिसवास हवय ।
आप दुनो बहिनी मन के छत्तीसगढ़ी प्रेम अउ समरपन भाव अधातेच सेहरौनिक हवय ।
महत्वपूर्ण जगा मं सही मनखे मन के रहे से ही विकास के नवा रद्दा खुलथे नहीं त यथास्थिति वाद के चलागन म नव प्रवर्तन के सुर ह दबक छपक जाथे ।
         सुखी स्वस्थ रहत सिरजन रत रहव ।
पैलगी

आपके सहयोगी धमतरी निवासी डॉ. तेजराम दिल्लीवार जी  संग काशी विश्वविद्यालय मं रिफ्रेशर कोर्स  मं संग रहेव। पाठ्यक्रम निर्माण प्रक्रिया के  बने संस्मरण सुनावय  ।सविता मिश्रा जी संग तको काम करे हव आप के दरस  संभाषण अउ असीस तको मिले हे समे समे में असीस मिलतेच रथे ।आप कहेव कि मोर पीएचडी थीसीस के अ मूल्यांकन आपमन करा आय रहिस जान के बड़ श्रदाभाव मन मं जागिस ।
      कहे के मतलब जनपदीय भाषा छत्तीसगढ़ी पाठ्यक्रम के निर्माण म लगे  डाॅ, सत्यभामा आडिल डॉ, तेजराम  दिल्लीवार अउ डाॅ सविता मिश्रा तीनो के सांधरों पाय के धन भाग हमला मिले हवय। ओमा संधरे रचनाकार मे आद डॉ विनय पाठक पहली तो ओकर रचना मं एक टिप्पणी देय कि "  जेन रद्दा मं  रेंगे ओ हो जथे मेड़ रे " क इसे होही काबर खेत के मेड़ किसान के रेंगे के नोहय भलुक पानी रोके अउ नीदा खरपतवार मोखला काटा करगा मन राखे के आय।अउ साफ सुथरा खेत हे त मेड़ में तिली राहेर बोय के जगा ये। किसान तो खेत भीतर ले रेंग के परखथे कि कहा क इसे धान के स्थिति हे। ये असंगत प्रयोग हवे । तब से उकर संग मोर बनेच जमथे  अउ मान तको  देथे  अउ एक संग बहुत कन जगा मं काम करे के मौका मिले हवय ।

  आद मुकु्द कौशल जी गजल के तो मय दिवानाच रहेव ओमन सो भी मिलन भेटन गोठ बात होथेच । मोला  उनमन पं. दानेश्वर के कार्यकाल म राजभाषा आयोग के डहन ले  बलौदाबाजार मं सम्मान करे हवे। उन सब झन  साधक मन के मय मया दुलार पाय हव।परसंग वश  सुरता करथव त अपन आप ल  बड़ भागी हव कस लगथे ।
   डॉ. अनिल भतपहरी 
   पैलगी जय छत्तीसगढ़
[9/16, 20:38] anilbhatpahari: 👆🏼हां, सरला बहन,
डॉ, पालेश्वर शर्मा के ललित निबन्ध--छत्तीसगढ़ी मं!
जब  2001 म जब मैं

 छत्तीसगढ़ी साहित्य  के पाठ्यक्रम तैयार कराएंव एम,ए, हिंदी साहित्य के एक प्रश्नपत्र बनाये बर, तब संस्कृति विभाग के बैठक म आवाहन करेंव सबो लेखक मन ल कि, अपन किताब दव,रचना के चुनाव करना हे, तब मंत्री धनेंद्र साहू कहिन--" छत्तीसढ़ी म कोर्स बहिनी?"
त स्कूली शिक्षामंत्री    ताम्रध्वज  साहू कहिन-"हहो कोर्स बनावत है दीदी ह!अब कालेज म घलो पढ़हीं लइका मन गा!"
डॉ,  राजेन्द्र मिश्र बोले---
"सत्यभामा,  दिमाग खराब हो गया है?"
मैंने कहा--"हां भैयाजी ,खराब हो गया है। छत्तीसगढ़ के विद्यार्थी एक पेपर छत्तीसगढ़ी पढ़ेंगे और अच्छा अंक हासिल करेंगे"।
"पर किताबें कहां हैं?
फिर यह भाषा भी नहीं है।"
विनोदशंकर शुक्ल ने कहा--"ये तो नोकर चाकर की भाषा है?हमारी नहीं!"
पहली बार मेरा दिमाग गरम हो गया!
मैंने कहा"--छत्तीसगढ़ में रहना है,तो अब,यू,जी,सी,के अनुसार क्षेत्रय भाषा पढ़नी होगी---यदि छत्तीसगढ़ में नोकरी करनी है तो?"
में और ताम्रध्वज साहू खड़े हो गए।राजेन्द्र मिश्र व विनोदशंकर शक्ल चुप हो गए।हम मीटिंग से बाहर आ गए।राहुलसिंह ने मीटिंग खत्म होने की घोषणा की!
छत्तीसगफही लोकाक्षर ग्रुप के भाइयों और बहनों,कलमकारों--छत्तीसगढ़ी  को आज इस विकास की स्थिति में लाने के लिए,बहुत विरोध झेला हमने बहुत संघर्ष किया।2001 से 2005 का काल मेरे लिए बहुत कठिन काल था--छत्तीसगढ़ी को स्थापित करने के लिए।
पी,एस,सी में लाने के लिए भी 2008 की बैठक में अड़ी रही।
यह किस्सा अपने नए लेखकों को बताना जरूरी था। मैं, श्यामलाल चतुर्वेदी व नन्दकिशोर तिवारी ने राज्यपाल को लिखा व उनसे भेंट कर विरोध की स्थिति भी बतलाई।
मित्रो,
अब आपका रास्ता आसान हो गया।आप लिखें, कसकर लिखें, अब कोई आपका विरोधी नहीं।
तुमन सुगम रददा म चलत हव।
मोर असीस बने रइही!!
मोर गिरफ्तारी वारंट घलो निकलगे रिहिस है2002 में। रातभर मुख्यमंत्री निवास म आपात बैठक चलिस। आई, जी, अवस्थी फोन करिस--"सॉरी मैडम,आपकी गिरफ्तारी वारंट है।मुख्यमंत्री निवास में आपात बैठक चल रही है।"आप सरेंडर करेंगी?आपकी छत्तीसगढ़ी बुक पर?"
मोर कडक जवाब--"क्यों सरेंडर?"आप गिरफ्तार कर लें।"
इहु किस्सा बनगे!
🌹त आज मै हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म मिंझरा लिखेंव।आनन्द लव नवा पीढ़ी के मन!इहु
अन्तर्सम्बन्ध आय!
,   सत्यभामा आडिल

👆🏼अनिल भाई ,
जनपदीय भाषा  साहित्य के पाठ्यक्रम निर्माण में , डॉ, तेजराम दिल्लीवार, अउ डॉ, सविता मिश्रा के कोई योगदान नई ये। काबर कि ये दूनों पाठ्यक्रम समिति के सदस्य नई रहिंन।
जब विश्वविद्यालय अउ शिक्षा विभाग--दूनों मन पुस्तक प्रकाशित करेबर तैयार नई होइन ,त परेशान हो गेंव ,--काबर कि नवा पाठ्यक्रम बने हे, त बिन पुस्तक के अध्यापक कइसे पढाही अउ विद्यार्थी मन कइसे पढ़हीं?--सोच के में स्वयम अपन "विकल्प प्रकाशन"खोल के,बैंक से लोन लेके,खर्चा करके एम,ए, अउ बी,ए, भाग-एक,दो,तीन के हिंदी साहित्य के पाठ्य पुस्तक  प्रकाषित करेंव। सत्ती बाजार रायपुर के सब--पुस्तक दुकान म सप्लाई करेंव।
तेजराम दिल्लीवार ,सविता मिश्र मन सहयोग करेके  इच्छा जाहिर करिन।
मैं  उंखर सहयोग लेंव।
शिक्षा विभाग अउ विश्वविद्यालय  हाथ झाड़ दिन--"हम क्यों प्रकाशित करें? हमारी जिम्मेदारी नहीं!"
अजीब रवैया।
शिक्षा के दुर्गति!!
अपन बलबूता म 4 साल के कार्यकाल ल निपटाय हंव।
एक साथ तीन पद म रेहेंव--विश्वविद्यालय में---तेखर सेती दबंगता से काम करेंव।
3 पद-----
अध्यक्ष-हिंदी अध्ययन मंडल,
डीन--कला व विधि संकाय,
कार्यपरिषद सदस्य
फेर पी,एस, सी, म घलो
परीक्षक के जिम्मेदारी।

त अनिल भाई बहुत संघर्ष करेंव।
मैंअपन आप ल ये बात के धन्य मानथव--कि सबो जीवित वरिष्ठ साहित्यकार मन मोर घर आके,अपन किताब दीन।जइसे--श्यामलाल चतुर्वेदी जी,नारायणलाल परमार जी।हृरि ठाकुरजी, लक्ष्मण मस्तूरिहा, डॉ, बघेल के नतनिन, टिकेंद्र टिकरिहा के बेटा,  आदि।
अन्य मन के जुगाड़ करेंव।
नन्दकिशोर तिवारी जी ह जुगाड़ करे म कछु मदद करिस।
पवन दीवानजी ल खबर करेंव, त हांसत हांसत कठल गए।
ओ मोला दीदी कहय, मोर ले एक साल जूनियर रिहिन,तेकर सेती।उंखर संग तो बहुत रोचक प्रसंग जुरे हे। घर आवय त"भांटो--भांटो"चिल्लावत आंवय,अउ आडिल साहब के गला लग जाय।तीन बेर घर आय  रिहिन दीवान जी।हमर दूनोंके जन्मदिन एक जनवरी आय।मोर ले एक साल छोटे रहिंन दीवान जी।
अनिल भाई क़िस्साच किस्सा हे मोर करा।
अब भईगे। रात बहुत होंगे।
सुते के बेरा होंगे।तुंहर रात बने बीतय भाई।।
--दीदी सत्यभामा आडिल

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