लघुकथा 15
ऐसा भी ...
सड़क पार करते वह बाल-बाल बचीं। भय मिश्रित विह्वल हो कह उठी -"आज तो हो गया रहता!भगवान का लख -लख शुक्र हैं कि बची" रंगीन तबीयत वाले बेपरवाह ड्राइवर अक्सर खुबसूरत युवा महिलाओं को देख उनके समीप से कट मारते सर्र से गाड़ी मोड़ते हैं। बेचारियों की कलेजे मुँह में आ जाया करती हैं। और वे सिगरेट की कश़ से छल्ले बनाते भोजपुरियां धुन में गाड़ी को नचनिया की कमर की तरह नचाते फूर्र हो जाते ...
इस बड़ी बिल्डिंग के चौथें माले पर लिफ्ट से चढ़ने के बाद भी वे भय से हांफ रही थीं। भला ऐसा कोई करता हैं, तमीज नहीं इन मुस्टंडों को क्या उनके घर बहन- बेटी नहीं ? वे लगातार बड़बड़ाई जा रही थीं।
तभी दनदनाते वह नये वर्जन के हिप्पी नुमा छोकरा चायनिज़ कट खड़ी बाल, दाढ़ी -मूँछ बढाए ,बिना नहाए इत्र लगाए , फटी जिंस और मोबाईल पैंट के जेब में खोसें, कानों में ईयर फोन ठूंसे, ठुमकते हुए सा सामने आ खड़ा हुआ। उनकी इस तरह धमकने से पल भर स्तब्ध हो चौंकी ! फिर बिना पहचाने वह अनजान बन मुँह फेर ली।
वह जिस हुलियां का था और लोग देख उसे जो समझते ठीक उससे उलट बड़ी विनम्रता से कहे- "मैम ! सारी एक छिपकली को बचाने हमसे हमारी गाड़ी मुव हुई और इस तरह आपको हर्ट हुआ। म YouTube mein dalo
सच कहते गलें की टोढ़ी पकड़ -"गाड़ी पार्क कर सारी कहनें दौड़ते सीढ़ी चढ़ना हुआ।" वे उसे हतप्रभ सी देखती ही रह गई ...
पास ही लिफ्ट के इंतजार में खड़े ,नये पीढ़ी के इस छोकरे के व्यवहार देख ,लेखक को भी सुकून मिला।
-डा.अनिल भतपहरी, ९६१७७७७५१४
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