Saturday, September 19, 2020

भाषा सरलता से जटिलता की ओर प्रयाण करते हैं।

[9/19, 18:07] anilbhatpahari: भाषा सदा सरलता से जटिलता के ओर जात्रा करथे। कत्कोन गुणवंता मन नदिया कस उद्गम ले समंदर तक जाय के रुपक बांधथे त कत्कोन मन नदियाँ के उलट बहुत कन मिंझरे संधरे  हर धीरे- धीरे छनत- छुनात विशुद्ध रुप में उद्गम कस फरिल हो जथे कथे । इही मान्यता मं दु विचार धारा हवे 
एक जो दैवी कृपा जोन ईश्वरीय विधान मान ले गय हे।
दूसर जोन विकासवादी सिद्धांत हवय ।
 
छत्तीसगढ़ी सहित तमाम लोक भाषा हर  सहज सरल रुप‌ म ही रहिथे 
     धीरे -धीरे उनमन परमारजित परवर्धित  होत सुघ्घर रुप घर लेथय।  बोली से विभाषा से भाषा के रुप मे विकसित होथे।
ज्ञानी गुणी मन उन ल अउ बने सजा धजा के  प्रसंस्करन कर लेथय संस्कृत ओइसने विकसित होय हवय जोन सामंत वर्ग के भाषा के रुप मं प्रतिष्ठित हवे।
   विकासवाद सिद्धान्त म धीरे धीरे ही अगढता ह सुगढता म बदलथे । पहिलीच ल कोनो समरथ अउ सुघर न इ सिरजे रहय।एक प्रक्रिया के तहत होथे।
    हमर देश धार्मिक देश आय अउ आजतक ये दृढ मान्यता हवय कि ये जगत के संचालन सर्व शक्तिमान ईश्वर  करत हे उन ईश्वर  के तको घर परिवार स्वजन हव अउ उनकर बोली भाषा हे जेन संस्कृत के नाव ले जाने जाथे  । 
ते पाय के संस्कृत ल देववाणी कहिथे अउ ओकर ग्रंथ या शास्त्र ल वेद कहे माने गे हवय। ओला एकरे सेती अपौरुषेय कहे जाथे।
उहीच रकम के कुरान शरीफ अउ ओल्ड टेस्टामेंट बाइबिल के तको मान्यता हवे। इन मन ल राजतंत्र के मान्यता हवे अउ ओकरे सेती सदियों से ओकर संरक्षण संवर्धन चले आत हवय। ये लोक मान्यताएँ और ईश्वरीय विधान मं आबद्ध हवय ।
      त दुसर डहन विकासवाद के अवधारणा ले आधुनिकतम विचारधारा हवय जोन वैज्ञानिक चिन्तन धारा ये येमा जो ही संप्रभुता या ऐश्वर्य विभिन्न क्षेत्र म दिखथय ओ हर एक सतत प्रक्रिया से होत चले आत हे अउ जो हो चूके हे उही अंतिम श्रेष्ठतम न इ ये भलुक आगे अउ बेहतर अउ श्रेष्ठतम हो सकते ऐसे संभावना विद्यमान हे ...
     ये लोगन अपन अपन स्वभाव रुचि अउ विवेक अनुसार ग्रहन या मान समझ सकथे।
   जय छत्तीसगढ़

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