Friday, September 18, 2020

गुरुगद्दी पूजा महोत्सव व गुरुदर्शन मेला

सतनाम धर्म संस्कृति का मांगलिक अनुष्ठान
 
             *गुरुगद्दी पूजा व गुरुदर्शन शोभायात्रा महोत्सव*
   
            सतनाम धर्म -संस्कृति में  क्वारं शुक्ल एकम से दसमी तक आयोजित "गुरुगद्दी पूजा महोत्सव और उनके समापन में भव्य शोभायत्रा जुलूस का आयोजन गुरुघासीदास के पुत्र  "राजा गुरु बालकदास " का राज्याभिषेक और उनकी शान में किए जाने वाले राज दशहरा पर्व की शोभायात्रा की मांगलिक अनुष्ठान हैं। 
       क्वार शुक्ल  एकम से दसमी  तक यह आयोजन होते हैं। दसमी को सतघरा स्नान कर गुरुगद्दी व सतनाम ज्योत कलश को शोभायात्रा द्वारा  सतनाम भवन में स्थापित जोत में समाहित कर देते हैं। 
   दूसरे दिन पंथी नर्तक दल और आखाड़ा वाले क्वार एकादसी को  गुरु दर्शन मेला भंडारपुरी जाते हैं। वहाँ भव्यतम हाथी घोडे के जुलूस  निकाल अनेक करतब पंथी नृत्य ,अखाडा साजते हैं।
   कुछ विद्वान कहते हैं कि  यह परंपरा आशोक दशहरा हैं ।जो सतनाम संस्कृति में आंशिक संशोधन के बाद  १८२० के बाद प्रचलित हुआ।  तब साक्षात् गुरुघासीदास इस आयोजन के सूत्रधार थे।
         सन १८६० में राजा गुरु बालकदास की हत्या और उनके बाद समाज में नेतृत्व शून्यता भीषण अकाल एंव उनके गिरफ्त में जनमानस , बोड़सरा बाड़ा व तेलासी बाड़ा के महाजनों व अन्य के पास  हस्तगत हो जाने और अनेक सामाजिक उथल- पुथल से यह आयोजन स्थगित हो गया।
  केवल  राज दसहरा  गुरुदर्शन मेला के नाम पर भंडारपुरी में एक दिवसीय होते रहे। आसपास के लोग सम्मलित होते और यथा संभव पंथी ,अखाडा  आदि प्रदर्शन करते उसे पूर्ववत तेजस्वी स्वरुप देते नव कलेवर के साथ भंडारपुरी के समीपस्थ ग्राम जुनवानी में शिक्षक सुकालदास भतपहरी एंव मध्य बाल समाज व युवा जागृति मंच के संयुक्त तत्वावधान से १९८५ में दस दिवसीय आयोजन  किए गये‌ ।उसके बाद व्यवस्थित ढंग से गांव -गांव दसदिवसीय गुरुगद्दी पूजा महोत्सव आयोजन कर शौर्य -पराक्रम अर्जित करने  वाली उक्त महाआयोजन का पुनश्च आरंभ हुआ।यह सैकड़ों  ग्रामों /कस्बो में उत्साह पूर्वक मनाए जा रहे हैं।
   गुरुगद्दी पूजा महोत्सव ३५वां वर्ष का आयोजन  तो हमारे ग्राम जुनवानी में  इस वर्ष हो रहा हैं। 

" गुरुगद्दी पूजा समोखन "
   और दु:ख-दंश हरा परब

सतनाम धर्म के चारों शाखाओं और देश विदेश में निवासरत सतनामियों मे गुरुगद्दी पूजा विधान प्रचलित है।
  गुरुगद्दी सद्गुरु के आसन है जिसपर  आसनगत  होकर अपने सम्मुख उपस्थित अनुयायियों को धर्मोपदेश देते और उनके तमाम उलझनो परेशानियों और दसो तरह  दु:ख व्याधि के हरन का उपाय बताते इसलिए भी यह दु:ख दंशहरा परब है।
   क्वार शुक्ल एकम से  दशमी तक दस दिवसीय इस महापर्व का आयोजन होते है नित्य प्रात: शाम आरती पूजा के साथ साथ संत महंत गुरुओ द्वारा  ग्यान वर्धक व्यख्यान्न सत्संग प्रवचन गुरु ग्रंथ व चरित का पाठ एंव लोक कलाकारों द्वारा प्रेरक व मनोरंजक नाट्य मंचन गायन व नर्तन होते है।कही कही हर शाम सामूहिक भोग भंडारा होते है जिससे इस विकट समय टुटवारो के दिन में परस्पर मिलजुल कर सहभोज कर आत्मिक आनंदोत्सव मनाते है ।यह सब सद्गुरु के समछ  होते है।ताकि पुरी पवित्रता और महत्ता कायम रहे उनका सदैव आशीष मिलता रहे।इस कठिन वक्त जब फसलें खेत मे है और लगभग जन साधारण के अन्नागार कोठी खाली हो उस समय साधन सछम लोग जन कल्याणार्थ इस महा पर्व मे अन्नदान कर सामूहिक भोग भंडारा चलाते है ताकि गरीब गुरबा बडे बुजुर्ग महिलाओं  व बच्चो  को  गुरुप्रसादी के रुप मे भोजन मिल सके।और रात्रिकालीन होने वाले ग्यान वर्धक व मनोरंजक कार्यक्रमों का लाभ उठाकर सुखमय जीवन निर्वाहन कर सके।इसी  प्रयोजनार्थ  सतनाम संस्कृति मे यह महत्वपूर्ण आयोजन है।
    दसवें दिन "सदगुरुआसन" का  प्रात: शोभायात्रा निकाल ग्राम गलियों की परिक्रमा कराते है।और सदानीरा नदी सरोवर के समीप जल परछन कराकर वापस गुरुद्वारा या कोई श्रद्धालु अपने घर नित्य आगामी उत्सव तक पूजा अर्चन करने स्थापित करते है।
   शाम को तेलासी अमसेना खपरी बोडसरा ( वर्तमान मे स्थगित) खडुआ गुरु वंशजो के दर्शनार्थ जाते है शोभायात्रा और उनके सम्मुख श्री मुख से सद्गुरु की अमृतवाणी श्रवण करते कृतार्थ होते है।गुरु उपदेश सिद्धान्त रावटी महात्म से परिपूर्ण संत महंत की उपदेशना चौका आरती भजन पंथी एव ग्यान व मनोरंजन पूर्ण कार्यक्रम देख सुन कृतार्थ होते है।
    दूसरे दिन जग प्रसिद्ध भंडारपुरी गुरुदर्शन दशहरा पर्व का आयोजन हर्षोल्लास पूर्वक होते है।इस दिन हाथी घोडे ऊट पैदल चतुरंगी शोभायात्रा गुरु वंशजो व गुरुगद्दी नशीन धर्मगुरु का उपदेश व प्रवचन होते है।
   सतनामियो का यह सबसे बडा और प्राचीन महोत्सव है। जहां गुरुवंशज के घर से गुरु प्रसादी भोग भंडारा पाकर श्रद्धालु गण लोग धन्य-धन्य हो जाते है।
     छग मे स्थापित सतनामधर्म का यह उत्सव १८३०-४० जब मोती महल गुरुद्वारा का उद्धाटन हुआ और राजा धोषित होने बाद चतुरंगी सेना साजकर आम‌जन मानस को दर्शनार्थ सद्गुरु घासीदास के मंझले पूत्र राजा गुरु बालकदास  भाई आगरदास पुत्र साहेब दास हाथी मे संवार आमजनमानस के बीच आकर गुरु उपदेशना व पंथ संचालन हेतु आवश्यक दिशा निर्देशन किए।
  तब से यह विशिष्ट आयोजन परंपरागत आन बान से आयोजित किए जा रहे हैं। देश भर के लाखों श्रद्धालु गण एकत्र होते हैं जिसे गुरुगद्दी नशीन धर्म गुरु एंव अन्य  गुरु वंशज वर्ष भर के धार्मिक क्रिया कलापों की जानकारियों के साथ- साथ देते हुए सुखमय जीवन हेतु धार्मिक उपदेशना प्रदान करते हैं। संत महंत भी इस अवसर पर उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हैं। 
      इस महाआयोजन से समाज सुसंगठित होते हैं। और उपस्थित गांवो के मुखिया /प्रतिनिधि गण  यहाँ से सीखे समझे बातों को अपने अपने ग्रामों जगहों पर संचालित करते हैं। इसलिए  सतनाम संस्कृति में "गुरु दर्शन मेला"  का अतिशय महत्व हैं। 

   गुरुगद्दी पूजा महोत्सव का आयोजन प्रत्येक सतनामी ग्रामों में होना चाहिए दस दिनो तक सामूहिक आयोजन होने से परस्पर लोग सामाजिक व धार्मिक कार्यों में प्रवृत्त होते हैं संगठित होते हैं और वर्ष भर की जाने अनजाने कटुताओं का समापन होते हैं। साथ ही न ई पीढ़ी के लोगों को अपनी समृद्धशाली संस्कृति का हस्तांतरण होते हैं। इस आयोजन का यही प्रमुख उद्देश्य हैं। 

     ।।जय सतनाम ।।

-डॉ. अनिल भतपहरी, 
    9617777514 
सतश्री ऊंजियार- सदन अमलीडीह रायपुर छग

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