संपादकीय ...
"कोरोनाकाल में सामाजिक / धार्मिक गतिविधियां"
प्रिय संत समाज
जय सतनाम
दुनियां कोविड 19 वायरस जनित महामारी कोरोना से आक्रांत है । डब्लू एच ओ के निर्देशानुसार सभी को सावधानीपूर्वक रहन -सहन करना हैं। इनके लिए मुखटोप (माक्स) लगाकर सामाजिक दूरियां बनाकर हाथों को सेनेटाइज करते रहना है। साथ स्वयं व परिवार की इम्युनिटी सिस्टम को बढाकर या मेंनेट कर इस से बचा जा सकते हैं। इनके लिए घरेलू नुस्खे जिसमे अदरक, सोठ ,काली मिर्च अजवाइन कर्णफूल, मेथी ,सौप ,दालचीनी का काढा उपयोगी हैं। जो प्रायः किचन में ही सहज उपलब्ध रहते हैं। इसे बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर प्रति गिलास एक चम्मच की मात्रा लेकर आधे तक उबालकर काढा सपरिवार पीते रहे । आयुर्वेदिक /एली पैथी/ होम्योपैथी मेडीसिन एडवाइज किए जा रहे हैं।
फिलहाल बचाव ही इनका निदान हैं।
अभी तक कोई वैक्सीन, व दवाई ईजाद नही हुआ है और यदि बन भी जाय तो भी आम लोगों को उपलब्ध होने में ४-५ साल लगने की संभावनाएँ जानकार लोगों द्वारा व्यक्त किए जा रहे हैं।
ऐसे में हमारा सामाजिक व धार्मिक गतिविधियां कैसी होगी इन पर संक्षिप्त विचार करना प्रासंगिक हैं। क्योंकि बिना कोई आयोजन सलाह मशविरा के समाज में ,अराजकताएं फैलने की संभावनाएँ हैं। इसलिए यदा कदा नियमों के अधीन आयोजन करने होन्गे या वर्तमान में उपलब्ध तकनीक के माध्यम वर्च्युवल कार्यक्रम संपादित करने होन्गे ताकि आयोजनों द्वारा लोगों को जोडे रखे।
यह सच हैं कि "जान है तो जहान है" यह प्रथम ग्राह्य पंक्ति है ।पर जहान है तभी जान संरक्षित है यह उनसे संबंध द्वितीय पंक्ति है जो व्यवहारिक है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अलग थलग नहीं रह सकता अन्यथा उनमें अनेक तरह के असामाजिक गतिविधियों और अवसाद व्यसन आदि लग सकते हैं।
इसलिए भी आयोजन आवश्यक है।इस कोरोना काल में हालात इतने भयावह होते जा रहा है कि हमे बेहद सावधानीपूर्वक जीवन निर्वाह करने ही होन्गे।
हमारा सतनामी समुदाय ग्रामीण पृष्ठभूमि के मेहनत कश कृषक समुदाय है। उनका वार्षिक अनिश्चित आय है जिसे वह सोच समझकर वर्ष भर अपनी जरुरतों की प्रतिपूर्ति हेतु व्यय करते हैं। अधिकतर जनसंख्या मध्यम लधु कृषक है और वे कृषि उत्पाद पर ही निर्भर हैं। जो कृषि मजदूर या अल्प कृषि जोत वाले हैं वे प्रायः परिश्रम हेतु देश के विभिन्न शहरों में रोजी- रोजगार हेतु पलायन करते हैं। केवल १० % ही शासकीय सेवा और स्व व्यवसाय व बडी कृषि जोत वाले संपन्न वर्ग में है जिनके पास निश्चित आमदनी हैं। इनमें भी चंद गिने- चुने लोग ही विचारक और योजनाकार है जो समाज को व्यवस्थित करने और प्रभावशाली बनाने में लगे होते हैं।
इनके साथ - साथ धार्मिक क्षेत्र में
गुरु, संत, महंत, पंडित- पुजारी भी है जो यथा- योग्य अपना उत्तरदायित्व का निर्वहन करते आ रहे हैं। यह लोग केवल पूजा -पाठ ही नहीं बल्कि सामाजिक संगठन में प्रभावशाली भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।
अब सवाल यह होता है कि ऐसे वैश्विक महामारी वाली विषम परिस्थिति सामाजिक व धार्मिक कार्यों का निष्पादन कैसे करे? ताकि हमारी धार्मिक भावनाओं की प्रतिपूर्ति भी हो और हम संक्रमण आदि से बचे।
वर्तमान में आधुनिक शिक्षा व वैज्ञानिक सोच के चलते ऊपर से रोजी- रोजगार से जुझते युवा वर्गों में, धार्मिक कार्य व आयोजन के प्रति उदासीनता देखे जा सकते हैं। वे लोग जाने -अनजाने आलोचनाएँ तक कर बैठते हैं पर यही क्रिया- कलाप ही हमारे समाज को अन्य समाज के समक्ष खड़ा होने और उनकी प्रतिरोधी शक्ति से जुझने व निपटने की शक्ति प्रदान करते हैं।
व्यक्ति का व्यैक्तिक सोच और समाज का सामूहिक सोच में सदैव अन्तर रहते हैं। जहां समाज हित हो वहाँ व्यक्तिगत हित या सोच का स्तर गौण हो जाया करते हैं। इसलिए भी कुछेक युवा साथी शीध्र मोहभंग की अवस्था में आ जाते हैं और इस तरह बिखराव होने लगता हैं। ऐसा हर मत पंथ जाति समुदाय में द्रष्टव्य हैं। उनमें युक्तियुक्त सामंजस्य ही इनका एक मात्र हल है वह समाज सुसंगठित व संस्कारित है जहां समाज हित सर्वोपरि है हमें इस स्थिति को सुदृढ़ रुप में प्रतिष्ठित करना हैं।
बहरहाल यह माह सतनाम धर्म- संस्कृति में दस गुरुगद्दी पूजा महोत्सव एंव गुरुदर्शन दंशहरा मेला का हैं।
भारतीय कलेण्डर के अनुसार इस वर्ष अधिमास होने से क्वार एकम दिनांक 17 अक्टूबर को गुरुगद्दी की स्थापना होगी और 25 को शोभायात्रा जुलूस के साथ समोखन ( समापन) किए जाएन्गे।
दस दिवसीय यह आयोजन आजकल सुविधा अनुसार सप्त दिवसीय भी होने लगे हैं। सतनाम संस्कृति में गुरु दर्शन मेला को दंश हरा परब भी कहे जाते हैं। क्योंकि क्वार का महिना कृषि संस्कृति में टूटवारों का माह होते हैं। फलस्वरुप तंगी के चलते अनेक तरह के दंश व तकलीफ से गुजरते है। ऐसे में सार्वजनिक रुप से दस दिनों तक का धार्मिक व सामाजिक आयोजन हमारे दु:ख दंश को हर लेने का नायाब आयोजन हैं। इनका शुरुआत राजा गुरु बालकदास के राज्याभिषेक के उपरान्त प्रतिवर्ष विजया दसमी को दंशहरा यानि दसहरा मेला के रुप में तेलासी व भंडारपुरी में मनाने की प्रथा गुरु घासीदास बाबा के निर्देशन में राजा गुरु बालकदास के राजाज्ञा से 1820-25 के आसपास शुभारंभ हुआ । क्योंकि यह दोनो जगह सतनाम धर्म नगरी के रुप में विख्यात हैं।
तेलासी - भंडारपुरी के आसपास के ग्रामों के अनुयायियों ने गुरुदर्शन दशहरा मेला में शोभायात्रा करने पंथी व अखाड़ा सजाते हैं। उनकी तैयारी हेतु क्वार शुक्ल एकम से अपने अपने ग्रामों में गुरुगद्दी स्थापित कर या निशाना में पूजा पाठ कर पंथी नृत्य और अखाड़ा का प्रदर्शन हेतु अभ्यास करने लग जाते हैं। इसमें खासकर युवा लोग बड़े उत्साह से भाग लेते रहे हैं। आज तक यह प्रथा आबाद रुप से चला आ रहा है।
दरअसल गुरुगद्दी पूजा महोत्सव शीत काल में शारीरिक शौष्ठव बढाने, योग कसरत करने तथा पंथी नृत्य अभ्यास करने का आयोजन है इनके निरंतर दस दिनों तक अभ्यास करने से स्वयं की भीतरी शक्ति, वील पावर या आत्मबल का विकास होता है । एक तरह से यह स्कील डेवलप करने का अनुष्ठान है। यही आज के लिए इम्युनिटी पावर है। अत: आयोजन प्रासंगिक हैं। और इसे ज्ञान भक्ति मनोरंजन आदि के निमित्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इससे मानव के नैराश्य भाव में आशा का संचार होगा।
क्योंकि जब किसी गांव में गुरुगद्दी स्थापित होते हैं तो प्रात: सांझ नित्य आरती होते हैं। लोग स्नान ध्यान कर गुरुगद्दी के समक्ष उपस्थित होते हैं। तत्पश्चात् युवा वर्ग पंथी व अखाडा अभ्यास में लग जाते हैं। बच्चे विभिन्न क्वीज , कब्बडी आदि प्रतियोगिताओं में लग जाते हैं। और वृद्ध जन भोग भंडारा पूजा पाठ में रम जाते हैं। महिलाएँ धर सज्जा द्वाराचार रंगोली दीपक जलाने और आरती में सम्मलित हो जाते हैं। गांव आयोजन में खुशहाल हो जाते हैं। बेटियाँ लिवा लिए जाते हैं और उनके आने से घरों खुशियाँ बिखरने लगने लगते हैं। इस तरह दस दिन दंशहरा परब होते हैं आखिरी दिन दसमी को गुरुगद्दी को शोभायात्रा निकाल सामुदायिक भवन गुरुद्वारा में प्रतिष्ठापित कर दुसरे दिन भंडारपुरी में जगत प्रसिद्ध गुरुदर्शन परब हेतु पंथी आखाडा लेकर सामूहिक रुप से सम्मलित होकर धन्य धन्य होते हैं।
तो इस तरह के आयोजन इस कोरोना काल मे सावधानीपूर्वक सोशल डिस्टेंसिंग को पालन करते सामाजिक/ धार्मिक भूमिका का निर्वहन करें।
स्वयं, घर -,परिवार सहित समाज ,प्रदेश व देश का भला करे अवसाद आदि से बचने धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रम को शासन- प्रशासन के निर्देशानुसार आयोजित करे ।
सभी की सुखमय व स्वस्थ जीवन की मंगलकामनाओं सहित ...
।।जय सतनाम ।।
डाॅ. अनिल भतपहरी
अमलीडीह , रायपुर छग
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To: lakhanlal koshley <llkoshley@rediffmail.com>
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Date: Sun, 20 Sep 2020 09:13:56 +0530
Subject: सतनाम संदेश के लिए संपादकीय ...
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