Thursday, September 24, 2020

खाली दिमाग शैतान का घर

वक्त निकाल कर पढें- 

खाली दिमाग...( शैतान घर )

       मोबाईल है तो भले आदमी जो हो जाय पर खाली न होने से  शैतान हो ही नहीं सकते !अत: अब यह पारंपरिक मुहावरे तेजी से  अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। किसी से पुछ लो खाली हो क्या ? तो बोलेन्गे मरने तक का समय नहीं है। तो मित्रों  ऐसे  बखत इस महादेश में  आ गये हैं। पता नहीं बिना काम सब व्यस्त हैं। और ऐसा लगता है कि कुछ चीज पाना नहीं हैं। बस डेटा और बैट्री चाहिए।  
     सच कहे   गांवों में हरियाणा पंजाब के ट्रेक्टर- हार्वेस्टर नहीं आएन्गे तो बिना बनिहार धान खेत में  नष्ट हो झड़ -सड़ जाएन्गे ! मजदूर ही नहीं है मानो सभी मंडल गौटिया हो गये हैं। अधिकतर शहरों में चौड़ी मजदूर या बिल्डरों के यहां दहाड़ी कुली कबाड़ी हो गये हैं। कोई -कोई सीखकर मिस्त्री बन गये तो बाकी रेजा कुली करके शाम को पौव्वा अधपौव्वा पी  मजे कर रहे हैं।
    नई पीढ़ी मोबाईल कुपोषित अस्थिबाधाग्रसित और तंत्रिकातंत्र व्याधिक हो रहे हैं। मनोरोग व नेत्ररोग तो इनके सहचरी हैं बावजूद दो दो सिम और अनलिमीटेड रिचार्ज लोगो के लिए कम पड़ रहे हैं। पुरा युथ वर्ल्ड  राइट -रांग चलते -चलते बीच में ही ठिठका हुआ  पोर्नोग्राफी में अटके भटके हुए लगते हैं। या  यौवनिक मजे में डूबे हुए  ।  सबसे अधिक व्यापार शौक खासकर फैशन कास्मेटिक और मोबाईल का ही हैं। गोया यही जिन्दगी हैं। कपडे ऐसे फटे सटे पहने मिलेन्गे कि कोई बलात् संगत से भगते भगाते लूटते पिटते फटते सटते बचे खुचे आए हुए हैं।

  बहरहाल पुरे एक सप्ताह बाद आवश्यक कार्यवश आज ऑफिस आना हुआ पर सर्वर डाऊन होने से काम- काज हो नहीं पा रहे हैं। मेन्यूअल होना नहीं और आन लाइन काम ठप्प हैं। और चंद दो चार लोगों को छोड़कर पुरा परिसर में भूतिया सन्नाटा छाया हुआ हैं। हमी दो चार सरकटा भूत टाईप लिंक के प्रतीक्षा में बैठे हैं। 
 अत: युं ही  पेन दिल दिमसग रखकर भी पेपर लेस ठप्पा टाईप क्यु में एम. फिल. पीएच-डी. डिग्रियाँ के बाद भी आजकल अपना वही पुरातन अंगुठे काम आ रहे हैं। चाहे मोबाईल चलाओं लेपटाप या आफिस में सिस्टम चलाओ । 
 
  तो भैय्ये !बात यह कि अब कैसे वक्त जाया करे ? कोई ग्रुप स्रुप तो है कि समाज देश सुधार हेतु लफ्फाजियां करे या खाये -पीये लोगों जैसे जुगाली करे या माफ किजिए अधिकतर  महिलाओं और कमतर पुरुषों जैसे चुगली करे। कोई मित्ता- सित्ता भी नहीं  आटसाप -वाटसाप खेले या टिकटाक - लुडो पब्जी खेले । 
या फिर खोजी पत्रकारिता सरीख इधर -ऊधर की गंध सुंधते फिरे । इसलिये अपने ही वाट्साप में कुछ लिखने लगा क्योंकि लिखने से सोच और परिश्रम दोनो साथ- साथ चलते हैं और वक्त युं निकल जाते हैं। खाली समय में व्यर्थ चिंता भय से बोनस स्वरुप अलग मुक्त रहते हैं। और न ही बुरे ख्याल या व्यसन की तलब जगते हैं। हां भई अब इसे ही व्यसन बना लिए समझो पर   यह अलग बात है ।कुछ लिखकर यश -अपयश तक कमा लेते हैं,तो कुछ युं ही जमींदोंज हो जाते हैं।  मजा और सजा इन दोनो अवस्था में हैं। इसलिए कम से कम जो‌ जान रहे हैं  वही खाली समय में करना चाहिए। हमारे छत्तीसगढ़ में ज्ञानी गुनी पेड़  के नीचे या चौरा पर बैठ कथा कहनी ,गीत भजन में रम जाते थे तो वही कही ढ़ेरा लेकर रस्सी आटने लग जाते थे।यह बैठागुरों का हैं। और सच कहे तो इनके अनुभव बेहतर करने में अपूर्व सहयोग करते आ रहे हैं। भले वह महत्वपूर्ण कार्य हो न हो ।प्रत्यक्ष लाभ मिले न मिले। पूंजीवादी व्यवस्था में यह वेस्ट हैं। और केवल डस्टबीन के लायक हैं। अब इस तरह के बहुत तेजी से अपनी शाश्वत मूल्यों को खारिज करती हुई शीध्रता से   पांव पसारते सुरसा को कैसे नियंत्रित करें। यह भी यक्ष प्रश्न हैं लोकतंत्र को  प्रभावित कर सीधे  सत्ता में हस्तक्षेप के कारण सक्षम नेतृत्व भी किंमकर्तव्यविमूंढम होते जा रहे हैं। जबकि सच तो यह है कि 
कोरोना के देश लाकडाउन हैं । महत्वपूर्ण केन्द्रीय कार्यालय और राजकीय कार्यालय खुले हुए हैं। इस महामारी से पुरा तंत्र सहित आम‌ जन भी बराबर संधर्षरत हैं।ऐसे में अति आवश्यक सेवाओं सहित महत्वपूर्ण शासकीय दायित्वों का निर्वहन जारी हैं। हमारे सरकारी अधिकारी - कर्मचारी चिकित्सीय अमले नगरी प्रशासन ,सफाई कर्मचारी सहित पुलिस प्रशासन प्रभावी व्यवस्था बनाने में सक्रिय हैं। पुरे परिदृश्य से गैर सरकारी महकमे व नीजिकरण को बढावा देने वालें लोग गायब हैं। जबकि यही लोग सरकारी दफ्तर और कर्मचारियों को हिकारत या द्वेष भाव से देखते आ रहे थे। 
         हमारे देश में शासकीय तंत्र नार्थ साउथ ब्लाक न ई दिल्ली से लेकर महानदी इंद्रावती होते    सुदूर गांव तक फैली हुई हैं। फलस्वरुप  यहां की हालात मूलभूत सुविधाएं अपेक्षाकृत न्युनतम होने के बावजूद विकसित व पूंजीवादी देश में इस समय फिलहाल बेहतर हैं।
               आज हमे तेजी बढ़ते यांत्रिक  दैत्याकार पूंजीवाद नहीं चाहिए जो एक नट बोल्ट के घिस जाने या कमजोर हो जाने पर भभाकर  कर ताश के पत्ते सरीख ढ़ह जाय । 
    बल्कि हमें संतुलित विकास हेतु जैव विविधताओं को कायम रखते समृद्धशाली भारत गढने होन्गे जो कि हमारे वर्तमान संवैधानिक तंत्र से ही यहाँ के लिए संभव हैं। बल्कि अन्य के लिए भी यह मार्गदर्शक है।  विश्व पृथ्वी दिवस पर हमें पृथ्वी का संरक्षण उसी तरह करना है। जैसे  अट्ठारहवीं सदीं में औद्योगीकरण के पूर्व थे। अपनी विलासिता के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और भावी पीढ़ियों के लिए कुड़ा कर्कट प्रदूषण व बिमारी छोड़कर जाना नहीं हैं। जैसै कुंभ मेले के बाद स्थानीय नागरिकों के लिए  दुर्गंध प्रदूषण और बिमारी छोड  दिए जाते हैं। 
    समय है अब नीजिकरण को रोक कर सरकारी व सहकारिता को बढावा देने होन्गे।ताकि तेजी से देश में बढ़ रहे अमीरी -गरीबी के खाई को पाटा जा सके। जिससे सबका विकास सब तरफ विकास का नव प्रभात आ सकें।
                कम को जादा समझना 

       -डा.अनिल भतपहरी

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