Sunday, September 6, 2020

सत्य दर्शन

रविवारीय चिंतन  

    ।।सत्यदर्शन ।।
        
   प्राण तत्व को आत्मा और उसे परमात्मा का अंश तथा वे  जहाँ से वह आते हैं उसे परलोक कहे गये हैं। इस हिसाब से जहां आत्मा की बात हुई कि वह आत्मवादी दर्शन में यानि कि ईश्वरवाद के अन्तर्गत हो जाते हैं।
       अनात्मवाद में आत्मा जैसी किसी चीज पर यकीन नहीं करते और वे अनीश्वरवाद में आते हैं।
मनुष्य या प्राणियों में जीवन होते हैं। ये जीव या प्राण हैं ,इसे ही आत्मवादी आत्मा कहकर तमाम मायाजाल फैलाए हुए है। इसी में प्राय: लोग उलझे हुए है जबकि वह ऐसा है नही, यह सब कल्पना मात्र है । यह प्राण या जीव  संयोग से उत्पन्न व क्षय होते हैं। इनका अस्तित्व देह से है ,इनसे परे इनका कोई अस्तित्व नहीं  है। 
      धर्म, मत ,पंथ, मान्यताएँ प्राणियों अर्थात् जीव धारी देह के लिए हैं ।जिनके मन और मस्तिष्क होते हैं न कि‌ निर्जीव या विदेह के लिए । न ही जीव या प्राण के लिए, क्योंकि यह तो एक तरह से  ऊर्जा या  अदृश्य यौगिक तत्व है। जो अदृश्य अकर्ता व निरपेक्ष या तटस्थ पदार्थ की तरह है। पर इसी के नाम पर अनेक तरह के भ्रम फैला हुआ। व्यक्ति कितने भ्रमित है देह की जतन चिंता छोड़ प्राण जीव या कथित आत्मा और उनके स्वामी परमात्मा की सिद्धि  के क्या क्या उद्यम नहीं करते और   संग साथ रहने वाले देहधारियों से वैमनष्य पालता हैं। वर्चस्व के युद्ध लड़ता हैं मार-काट हिंसा फैलाते हैं। धर्म के लिए अधर्म करते हैं। सच कहे तो धर्म मत पंथ रिलिजन आदि अपनी अपनी प्रणालियों और पद्धतियों के लिए वचनबद्ध होते हैं। फलस्वरुप किसी दूसरी प्रणाली पद्धति के प्रखर विरोधी और द्वेषी हो जाते हैं।
   और सब होता है ईश्वर के नाम पर जिनका कही वजूद है भी या नहीं आज तक अज्ञेय है । इसलिए बुद्ध से लेकर गुरुघासीदास  जैसे प्रज्ञावान महापुरुषो ने उस कल्पित ईश्वर आत्मा परमात्मा उनके लोक परलोक  आदि के लिए भक्ति, उपासना, पूजा- कर्मकांड में फसे उलझे लोगों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के प्रति यहाँ तक पशु -पक्षी, वृक्ष आदि जीवधारियों के प्रति  प्रेम, परोपकार सद्भाव, सौहार्द जैसे सद्गुणों के व्यवहार करने की अप्रतिम सीख दी हैं। दोनो का दर्शन वास्तविक और सत्य है इसलिए इनके दर्शन को सत्य दर्शन या सच्चनाम / सतनाम दर्शन कहे जाते हैं।
    बुद्ध को उनके अनुयाई  सचलोचन या सच्चनाम  कहते हैं जबकि गुरुघासीदास को "सतनाम सद्गुरु" कहते हैं। 
    
                 

                                          -डाॅ. अनिल भतपहरी

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