Monday, May 28, 2018

स्वामी आत्मानंद

स्वामी आत्मानंद जी से हमारे आत्मीय संबंध रहें हैं ।वे प्रभावशाली व ओजस्वी वक्ता रहे हैं। उनके दर्शन लाभ विवेकानन्द आश्रम रायपुर स्थित  रामकृष्ण मंदिर के  संगमरमर फर्श से मढित परिक्रमा स्थल में हुई।  तब हमलोग १९८८-९३ तक गुरुघासीदस छात्रावास आमापारा में रहकर अध्ययन करते थे और  अक्सर प्रतिदिन सुबह या शाम पेपर पत्रिका आदि पढने आश्रम स्थित वाचनालय जाते इस दरम्यान उनसे मेल मुलाकाते हो जाते ... वे अक्सर शांत चित्त रहते और अल्प व मृदुभाषी थे। पर किसी भी कार्यक्रम में उनके संभाषण प्रेरक होते।१९९२ में  बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद देश भर मे  फैली सांप्रदायिक तनाव के चलते  जगह जगह सर्वधर्मसमभाव सभा का आयोजन होने लगे इसी समय हमारी आलेख  इलाहाबाद व रायपुर से छपी  "सर्वधर्मसमभाव व संत साहित्य "   आश्रम में आयोजन हुआ  हमलोग उस आयोजन के श्रोता समूह रहे ।पर प्रबुद्ध ख्यातिलब्ध वक्ताओं व समयाभाव या  अन्यान्न कारणों से वाचन तो  नहीं हुआ पर हमे डा देवकुमार जैन प्राध्यापक मिल गये जिनके व्यक्तव्य कि छत्तीसगढ़ के चारो दिशा में स्थापित शक्तिपीठों में जारी पशुबलि व नरबलि के विरुद्ध गुरुघासीदास का सतनाम जागरण व धर्म कर्म में सूचिता  लाने उनके प्रदेय प्रणम्य हैं। हमे  हमारा शोध निर्देशक मिल गये जिनके तलाश रहे ।कार्यक्रम के बाद उनसे मिला आशीष लिया परिचय दिया और फिर हमलोगो का कार्य आरम्भ हो गये ।
             स्वामी आत्मानंद के पिता श्री धनीराम वर्मा जो सत्तीबाजार में पुस्तक प्रतिष्ठान चलाते व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। (उनके पास मोतीलाल त्रिपाठी तो हरिठाकुर सुशील यदु  जैसे हस्तिया का भी दर्शन हो जाते  )  वहां आधी कीमत पर  पुरानी पुस्तकें लेते छत्तीसगढ़ी में बतियाते और छत्तीसगढ़ की शोषण हालात पर परिचर्चा ए करते ।उन्हे भी पता था कि गीत कविता कहिनी लिखने पढने की बिमारी मुझे हैं। जैसे उनके बेटे नरेन्द्र देव वर्मा को थे । वे  हर्षित भाव से कहते अरपा पैरी के धार ओखरे लिखे गीत आय ।
     स्वामी जी सहित उनके परिवार के अवदान छत्तीसगढ़ी जनता के लिए अविस्मरणीय हैं। 
स्वामी जी को सादर नमन ....

No comments:

Post a Comment