Monday, May 28, 2018

सतनाम धुन

मत विचार पंथ धर्म  दर्शन कला आदि सांस्कृतिक तत्व मानव के पेट भर जाने के बाद अनुशीलन  का विषय है।
     सबसे पहले पंगत फिर संगत तत्पश्चात अंगत की प्रथा सतनामियों में मिलती हैं। परन्तु दूर्भाग्यवश  इस विशिष्ट सतनाम संस्कृति को  लोग सही ढंग से समझ ही नहीं पाए ।न समझने के प्रयास किए बल्कि दूर के  ढोल सुहावने लगने के चक्कर में पडोस की आंगन में  बजते मधुर मांदर की थाप से  अनभिग्य होते गये ‌।परन्तु अलग छत्तीसगढ और छत्तीसगढ़ी की प्रतिष्ठित होते ही पुनश्च अंगना में घंट घुम्मर  मृदंग शंख बजने लगे साधु जोगी नाचने गाने लगे .....  आम जनमानस कब मगन  थिरकेन्गे ?

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