"सतनाम और स्वतंत्रता "
सतनाम और स्वतंत्रता दो अलग शब्द है पर दोनो के बडा ही रागात्मक संबंध है।परस्पर दोनो पूरक है।अर्थात जहा सतनाम होन्गे वहां स्वतंत्रता होकर रहेन्गे।एक अध्यात्मिक व धार्मिक शब्द है तो दूसरा सामाजिक व राजनैतिक शब्द ।
दोनो का व्याकरणिक विच्छेद कर निम्नवत शाब्दिक अर्थ देखे -
सतनाम -
स+ त+ न+ अ + म = पंचाछर
सत + नाम
सत = किसी का सार तत्व या मूल भाग ।
सत = द्रव्य तरल पदार्थ
सत = भाव
सत = गुण
सत = सत्य
इस तरह देखे तो सत सार तत्व भाग द्रव पदार्थ भाव गुण और सत्य और सच हैं। सत सात तरह के अर्थों को संग्या रुप में धारण किए हुए हैं।
और इन्ही बहुअर्थ वाली संग्या मे के साथ नाम जुडा है । नाम शब्द जुड जाने से सत सजीव स्वरुप में विशिष्ट नामबोध होने लगता है। उसे पौरुष रुप में लेकर और प्रकृति को नारी मानकर
सतनाम और प्रकृति के संयोग से सृष्टि का संचालन मना गया है। इस आधार पर सतनाम कलान्तर में सृष्टिकर्ता देव और प्रकृति देवी स्वरुप में पूजनीय हो गये।
सतपुरुष और सत्यवती नाम की मुग्धकारी साकार अराधना निराकार उपासना में पदार्पण करते जन मन को सदाचरण हेतु प्रेरणा देता हैं। इनसे आध्यात्मिक विकास संस्कार व मानव जीवन पद्धतियां विकसित हुई।अनेक तरह रोचक ग्यान वर्धक बोध कथाओ महाकाव्यो और वृतान्तो का प्रचलन होने लगा। सतनाम एक पंथ धर्म व जीवन पद्धति हैं जिनपर निष्ठा पूर्वक चलकर साधक सुखानुभूति अर्जित कर निर्वाण और परमपद को अर्जित किये जाते हैं।
स्वतंत्रता का उसी तरह विच्छेद व अर्थ करने पर हमे निम्नवत पता चलता है-
स्वतंत्रता = स्+ व + त+ न्+ त+ न्+ त+र्+ त+ अ
स्व= स्वंम
तंत्र = अधिनियम कार्यप्रणाली
अर्थात स्व तंत्र में आबद्ध यानि अपनी इजाद तंत्र के अधीन ।
परतंत्रता का सपाट अर्थ हैं दूसरों के अधीन जबकि स्व के अधीन होने के बावजूद स्वतंत्रता स्व बंधन के अलग तरह का अर्थ धारण किए हुए शब्द हैं। हम नियमो के जिसे हमारे अपने बनाते हैं के अधीन हैं।
स्वतंत्रता हमे अनुशासित करते हैं। राष्ट्र समाज और उनके संचालन हेतु बने नियमों के अधीन होना हैं। न कि सारे बंधन से मुक्ति या आजादी ।यह आजादी स्वेच्छाचारी होना हैं। जो स्वतंत्रता के विपिरार्थ है।
इस तरह देखे तो हमे अंग्रेज़ी सत्ता जो राजतंत्र ही थे और सात समुन्दर पार महारानी विक्टोरिया की राज से मुक्ति ही राजनैतिक स्वतंत्रता हैं। जो हमे १५ अगस्त १९४८ को मिली।
धर्म अध्यात्म समाज और राजनीति यह मानव कल्याण के निमित्त है ।इसलिए साहित्य और संस्कृति मे सत्य और आजादी की बाते अधिकतर विचारक लेखक समाज सुधारक व प्रवर्तक करते आए है।
सतनाम हमे विकारो के बंधन से मुक्त करते है तो आजादी हमे दूसरों की गुलामी से मुक्त करता है।
अब सवाल उठता है कि कैसे हम अपनी विकारो से मुक्ति पाए और जीवन को सुखमय करे ।उसी तरह हम दूसरो की गुलामी चाहे वह धार्मिक राजनैतिक मानसिक व शारीरिक गुलामी और उससे मिल रही यंत्रणाओ से मुक्ति या आजादी कैसे प्राप्त करे पर विचार विमर्श होनी चाहिए।
सतनाम तो व्यक्ति को स्वच्छंद करता है यह स्वच्छंदता पूरी मानवता का कल्याणकारक है।क्योकि तब व्यक्ति पहले सद्गुणी होते है।उनके तमाम विकार मुक्त हो गये होते है। ऐसे व्यक्ति स्व और जगत दोनो का उद्धार चाहते है।इसलिए सतनाम के सच्चा अनुयाई स्वच्छंद होकर भी स्वेच्छारी नही है।परन्तु आजादी के बाद. अधिकतर लोग स्वेच्छाचारी हो जाते है ।और उनके ऊपर जब कोई नियंत्रण न हो तो वे कलान्तर मे विनाशकारी भी हो जाते है।
कमोबेश स्वतंत्रता के नाम पर लोग ऐसे ही होने लगे है।
यह अजाद ख्याली ही अराजकताऒ की जननी है।
इसलिए स्वतंत्रता मे सतनाम संभवत: न मिले भले सतनाम मे स्वतंत्रता मिल जाय।
देश मे आजादी के बाद यहा के सामंत व सुविधाभोगी व कुछ प्रतिनिधी स्वतंत्रता का इस्तेमाल कुछ इसी तरह से करते आ रहे है। फलस्वरुप वर्गवाद जातिवाद छेत्रवाद भाषावाद नस्लवाद अलगाव वाद इत्यादी प्रवृत्ति तेजी इन ७० वर्षो मे पनपने लगे है।
स्वतंत्रता को सतनाम की तरह इस्तेमाल करने होन्गे और बढ रहे आर्थिक असंतुलन , धर्म जाति सम्प्रदाय की स्वेच्छाचारिता पर संवैधानिक रुप से अंकुश लगाने होन्गे।
तब स्वतंत्रता सतनाम की तरह कायम होन्गे।
इधर लगातार प्रभावी मार्गदर्शक के न होने पर सतनाम भी कुछ अलग तरह के या कुछ कुछ आजादी की स्वच्छंदता की तरह इस्तेमाल होने लगे है। जिससे यहा भी उसी तरह के अराजकता परिलछित होने लगे है।
मौजुदा दौर स्वतंत्रता और सतनाम दोनो को व्यवस्थित करने के है। दोनो की ज्योतिर्मय प्रकाश से मानव समाज और देश में तेजी व्याप्त हो रहे तमस व कलुषता मे प्रग्यावनों द्वारा उसी तेही से सद्गुण सद्वयहार के लिए सतनाम की उजियारा फैलाने को है।
सतनाम
डा अनिल भतपहरी
जुनवानी ,रायपुर छत्तीसगढ़
९६१७७५१४
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