गुरुघासीदास शोध पीठ पं र.शु. वि.वि. रायपुर द्वारा आयोजित "संत -साहित्य में गुरु घासीदास जी का योगदान" विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी में गुरुघासीदास के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विद्वान वक्ताओं द्वारा प्रकाश डालते सारगर्भित विचार प्रकट किए गये।स्वागत भाषण शोध पीठ के अध्यक्ष डा जे आर सोनी ने दिए एंव अतिथियों और दोनो प्रमुख वक्ता को सेतवसन व श्रीफल से सम्मानित किए । तत्पश्चात् उद्बोधन में कुलपति महोदय ने गुरुघासीदास की अमृतवाणी पर विचार विमर्श करते किन परिस्थितियों में कही गई और उनका तत्कालीन समाज पर क्या प्रभाव पडा पर काम करने की आवश्यकता पर बल दिए । इनके लिए एक एक अमृतवाणी पर संगोष्ठिया कराने की आवश्यकता हैं कहे। वरिष्ठ साहित्यकार डा सुशील त्रिवेदी जी ने संत -साहित्य और खासकर छत्तीसगढ़ की उपेक्षा पर ध्यान आकृष्ट कराते कहे कि गुरुघासीदास की सिद्धान्त ,अमृतवाणी, उपदेश में व्यक्त बाते जन साहित्य हैं। जो काव्य शास्त्र की परिपाटी से पृथक हैं, जिनकी मूल्यांकन आवश्यक है कहे।
स्वामी विवेकानंद पीठ के प्रमुख व दार्शनिक विचारक ओम प्रकाश वर्मा जी ने सतनाम दर्शन को वेदान्त और उपनिषद के समकक्ष रखते गुरुघासीदास को ऋषि परंपरा के संवाहक बताये।स्वामी प्रत्युतानंद जी ने स्वामी विवेकानन्द का प्रसंग सुनाते कहे कि हमे गुरु की सीख से जनमानस के बीच रहकर काम करते संतत्व के बल पर लोक जागरण करना है।गुरुघासीदास पहले से ऐसा कर आर्दश स्थापित कर चुके है उनके अनुशरण करना है।वे निर्गुण संत के रुप में ख्यातिमान रहे।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति के छरण पर मधुर काव्यपाठ के लिए चर्चित ख्याति नाम कवि मीर अली मीर ने समाज सापेक्ष नंदा जाही सहित अन्य काव्यपाठ किए।
ख्यातिनाम व्यंग्यकार व साहित्यकार गिरिश पंकज जी ने गुरु घासीदास पर अपनी शीध्र प्रकाश्य उपन्यास सत्यान्वेषी पर चर्चा करते उनकी उपदेशों को कवि कर्म घोषित कर मानव को श्रेष्ठतम चीजों का सौगात देने तथा गुरु के जगह गुरु की माने कह उनके सिद्धांतों को वर्तमान परिवेश में प्रासंगिक बताते गुरुघासीदास को छत्तीसगढ़ के कबीर कहे।
तत्पश्चात विषय पर केन्द्रित डा .अनिल भतपहरी ने अपनी व्याख्यान में कहे कि इसी विषय पर हमारी शोध कार्य हैं । गुरुघासीदास का कार्य युगान्तरकारी हैं। केवल आदर्श ही नहीं यथार्थ के धरातल पर वे वर्ग विहिन जातिविहिन समाज की संरचना करके समानता को संस्थापित किए।उनकी सतनाम सिद्धांत अमृतवाणी एंव उपदेश जो कि मूलतः छत्तीसगढ़ी में हैं।उससे यहां के लोकजीवन में सरलता व सहजता आए। उनकी साहित्य को वैश्विक पटल पर स्थापित करना यहां के प्रग्यावान लेखकों- विचारको और हम सबका दायित्व हैं ।
वरिष्ठ साहित्यकार दादूलाल जोशी ने संत -साहित्य की विशेषताएओं को रेखांकित करते गुरुघासीदास निःसृत वाणियो उपदेशों को परिगणित करते उनकी ४२ अमृतवाणियों का पाठ किए।
अंत में सभी व्यक्तव्य का सार निरुपण करते राजभाषा आयोग के अध्यक्ष व मुख्यातिथि गुरुघासीदास के प्रदेय को मानव कल्याणकारी बताते इनके संरक्षण व संवर्धन हेतु आवश्यक पहल करने तथा शोधार्थियों को संत- साहित्य खासतौर पर छत्तीसगढ़ में गुरुघासीदास के ऊपर कार्य करने हेतु मार्गदर्शन किया और कहे कि 'निर्गुण सगुण नही कछु भेदा 'तथा' लोक च वेद च ' की अवधारणा संपुष्ट करने कहे।
डा डी एन खुन्टे ने अभ्यागतों के आभार प्रदर्शन किए और कार्यक्रम का संचालन डा . सोनेकर जी ने किए। कार्यक्रम में आध्यापकगण शोधार्थी छात्रगण व साहित्यकार व प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे।
डा. अनिल भतपहरी
Wednesday, May 30, 2018
संत साहित्य में गुरुघासीदास का योगदान
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