" गीत"
तन के तिजउरी म मन के रतन भरे हे
किन्जरत गली- खोर म साधू अउ चोर
सबके नंजर गडे हे
त कइसे बचाव
उन ल कइसे भरमाव
कोनो उक्ति बताव ...
जब ले चढे हे ये बइरी जुवानी
जीव के जंजाल बड होवय हलकानी
कोनो सुध्धर जुगती मढाव ...
गहना गढाय न दान पुन जाय
धरखन काकर कहे न कछु जाय
बउरे बिन जिनिस महगी फेकाय...
खिरत हे उमर रतन पैरावट कस
गंजाय
मय मुरख एला सकेव न भंजाय
थकत हे जान्गर कोनो रद्दा मुक्ति के बताव....
- डा. अनिल भतपहरी
१८-५-१७ ९ बजे रतिहा बिरसपत ।ऊंजियार- सदन।
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