Wednesday, May 30, 2018

तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम

"तपोभूमि गिरौदपुरी सतधाम"
सतनाम धर्म ( पंथ) का प्रवर्तक गुरुघासीदास की जन्मभूमि गिरौदपुरी सतनामियो की सबसे बडा व महत्वपूर्ण  तीर्थस्थल के रुप मे विश्वविख्यात है। राजधानी रायपुर से उत्तर पूर्व दिशा मे १३५ कि मी दूर महानदी एंव जोगनदी ( जोकनदी) के मध्य मनोरम वनाच्छादित पर्वतीय परिछेत्र हैं। यहां आने पर सुकून एंव  शांति की अनुभूति होती है। और लोग इन्ही
आकर्षण मे प्रतिदिन दिन हजारो की संख्या मे खीचे चले आते हैं ।
     समीप सोनाखान जंगल मे स्थित छाता पहाड मे छ: माह की कठोर अग्नि तपस्या उपरान्त गुरुघासीदास को आत्मग्यान प्राप्त हुआ उस ग्यान के आधार पर उन्होने उपस्थिति विशाल जनसमूह को सप्त सिद्धान्त व अमृतवाणियो की उपदेशना कर  सतनाम धर्म का प्रवर्तन किया।इसलिए उन्हे स्मृत करने प्रतिवर्ष   फागुन शुक्ल पंचमी छटमी एंव सप्तमी को यहां १२-१५ लाख लोगो की विशालकाय मेला लगता हैं। जहां देश- विदेश से अनुयाई एंव सैलानी उपस्थित होकर सहज योग  ध्यान चिन्तन मनन एंव  गुरुवाणियों के श्रवण कर कृतार्थ होते हैं।
   फागुन  पंचमी को मेला परिसर स्थित बडा जैतखाम मे गुरु वंशज धर्मगुरुओं द्वारा धर्मध्वज पालो चढाकर (फहराकर)  मेला का शुभारंभ करते हैं। और
सप्तमी को मुख्य मंदिर एंव  परिसर स्थित जोडा जैतखाम में  धर्मगुरुओ द्वारा धर्मध्वज पालो फहराकर मेला का समापन करते हैं। इस दरम्यान अनवरत पंथीनृत्य- गीत , मंगल -भजन ,साधु -अखाडा , सत्संग प्रवचन एव सहज योग समाधि ध्यान गुरुगद्दी दर्शन पूजन   की क्रिया चलते रहते हैं।
प्रमुख दर्शनीय स्थल - वैसे संपूर्ण गिरौदपुरी परिछेत्र जो १५-२० के दायरे मे विस्तारित हैं। श्रद्धालूगण इन ३-५ दिनो तक  पैदल पंचकोशी  परिक्रमा करते हैं।परन्तु गुरुघासीदास बाबा के संबंधित निम्न स्थलों का  दर्शन महत्वपूर्ण हैं-
१ जन्मस्थल - गिरौदपुरी बस्ती के उत्तर पूर्व मे स्थित झलहा मंडल के प्राचीन दुतल्ला  घर से लगा मिट्टी एंव खपरैल से बनी  एक छोटी सी कछ मे गुरुघासीदास बाबा का जन्म हुआ।यह स्थल लाखो अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल हैं। जहां अखंड सतनाम जोत प्रज्ज्वलित हैं। यहां आकर मन्नत आदि मांग श्रद्धालु कृतार्थ होते हैं। यहां से मुख्य मंदिर ३ कि मी  तक भु इय्या नापते जाने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होते हैं। ऐसा जन विश्वास हैं। लाखों की संख्या में नर -नारी  हाथ पर नाडियल रखे  जमीन पे लोटते मेला स्थल  देखे जा सकते हैं। इनके लिए मेला कमिटी अलग से व्यवस्था करते हैं।

३ कुंआबाडी -  गोपाल मंडल के घर स्थित कुंआ बाडी जहां पर युवा अवस्था मे गुरुघासीदास ने भटा के जगह मिर्च तोडे एंव महिमा दिखाए ।

२ बाहराडोली - ग्राम से लगभग १ कि मी दूर प्रसिद्ध पांच एकड  का बहराडोली जहां गुरुघासीदास ने युवाकाल मे नागर महिमा दिखाए व पांच मुठ्ठी धान को बोकर वहाँ प्रचलित अंध विश्वास कि यह खेत बलि लेता हैं को मिटाए...

३बछिया जीवन दान स्थल -  ग्राम से लगा सफुरा समाधि तालाब के समीप ही बछिया जीवन दान स्थल है- कहते हैं जब गुरुघासीदास ने सिद्धी उपरान्त सफूरा को पूछे तो उन्हे मृत बताकर दफना दिए थे।गुरु बाबा उन्हे भाव समाधिस्थ बताकर उन्हे जागृत करने कहे तो लोग उनकी ग्यान  परीछण हेतु मृत बछिया को जिलाने कहे।संयोग वश गुरुघासीदास के उपचार व अमृतजल देने से जीवित हो उठी और पास ही पानी जिसे गंगा कहते हैं। का सोता फूट पडा।इसलिए  यह स्थल दर्शनीय हैं।

४ सफुरामाता समाधि स्थल - कुछ दुर ही तालाब मे गुरुघासीदास बाबा जी की धर्मपत्नी सफुरामाता समाधि स्थल हैं। जहां उन्हे गुरुघासीदास ने समाधि से जागृत कर नवजीवन प्रदान किए।यह भी प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

५ शेरपंजा  व गुरु चरण चिन्ह मंदिर -
  यह समतल चट्टान मे शेर के पंजा और गुरु के चरण चिन्ह स्पष्ट देखे जा सकते हैं।
कहते हैं कि बाबा जी साथ यदा कदा  शेर  दिखाई पडते  थे ।यही शेर उन्हे खाने के असफल प्रयास किए बाद मे उनके पुत्र अम्मरदास को उठाकर सुन्दरवन के खोह मे ले गये जो कलान्तर मे युवा अवस्था मे तेलासी पुरी धाम मे सिद्ध संत के रुप मे गुरुघासीदास व सफुरामाता से आकर मिला।
कहते हैं। शेर रुप मे उन्हे साछात सतपुरुष दर्शन देते थे।
६  बडा जैतखाम -
विशाल भूभाग मे विस्तारित मेला परिसर मे स्थापित संसार की सबसे ऊंची (२७७ मीटर ) जैतखाम स्थापित हैं। जहां अन्दर लगे सीढियों एव लिफ्ट से ऊपर स्थापित जैतखाम जहां  फागुन पंचमी को धर्मध्वज धर्मगुरुओ द्वारा एकत्र लोगो के समछ  पालो चढाकर गिरौदपुरी मेला का शुभारम्भ करते हैं।
 
७ मुख्यमंदिर गुरुगद्दी -
पूर्वाभिमुख स्थित मुख्य मंदिर मे सूर्योदय की पहली किरण गुरुगद्दी को संस्पर्श करती है। जहां अनवरत धी के  सतनाम जोत जल रहे हैं। समीप ही चांदी की गुरु आसन एंव गुरु की चरणपादुकाए है।इन्ही के दर्शनार्थ लोग देश विदेश से आकर मनोवांछित फल पाकर हर्षित होते हैं। दुःख कहल एंव मानसिक संताप से मुक्त होते हैं। यहा प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। माथा टेकते है। और गुरु कृपा प्राप्त करते हैं।
मंदिर परिसर के भीतर ही  प्राचीन औरां - धौरा वृछ जिनके नीचे बाबा जी तपस्या करते थे ।और विशाल तेन्दु का वृछ जिनके नीचे बैठकर आत्म चिन्तन करते थे।लोगो को उपदेशना और उनके दु: ख -पीडा  के शमन हेतु कुछ उपचार व मार्गदर्शन करते थे।
यह सभी दर्शनीय हैं। अनुयाई अपने जीवन काल मे एक बार जरुर आते हैं और पुण्यलाभ अर्जित करते हैं।
८ गुरुगद्दी - मुख्य मंदिर स्थित गुरुघासीदास की गद्दी या आसन बिराजमान है।यह काष्ट से निर्मित चांदी से मढित हैं। जिनके समझ सतनाम जोत कलश अखंड जलते आ रहे हैं। कहते है इनकी ज्योति को स्वयं गुरुघासीदास बाबा ने जलाए हैं। जिसे यहां स्थापित किए गये हैं। यह ग्यान ज्योत है। जो लोगो के अंदर व्याप्त अंधकार को प्रकाशमान करता है।
      श्रद्धालु बडी ही श्रद्धा भक्ति से इस गद्दी और ज्योत का दर्शन कर कृतार्थ होते हैं। सच्चे मन विश्वास से जो मन्नते मागी जाती है वह पूर्ण होते हैं। तत्पश्चात् पुन: श्रद्धालु आकर मत्थे टेकता है।
   इस गुरुगद्दी का सतनामी समाज बडी ही महत्व है। और लगभग अन्य धर्म या मतावलंबियो के पूजा स्थल जैसा ही इनका महत्व है। इसी गद्दी की ज्योत ले जाकर अन्यत्र ज्योत और गद्दी स्थापित करने की विशिष्ट परंपरा है।
    
९चरणकुंड - मुख्य मंदिर की पीछे नीचे की ओर सीढी हैं। वह सीधा चरण कुंड तक जाते हैं। कहते हैं यहाँ  बाबा अपनी पैरों को धोए तो वह जगह पर जल का सोता फूट पडा।यह प्राकृतिक जलस्रोत हैं। जो कभी सूखता नही।
   पहले यहाँ  लोग स्नान करते और अपने शरीर पर जल परछन करते थे।

१० अमृतकुंड - चरण कुंड से आगे सधन वन व पहाडियों के तलहटी मे विद्यमान मीठे स्वच्छ जल श्रोत हैं। जिनके स्वाद नाडियल जल सदृश्य हैं। इस कुंड का नाम अमृतकुंड है। इनके पानी अमृत सम हैं। गुरुघासीदास बाबा जी को सिद्धी उपरान्त इसी कुंड से अमृत जल  मिला ।जिसके द्वारा वे बछिया व सफुरामाता को जिलाए।
   अमृतकुंड के जल का अतिशय महत्व है। यह कभी खराब नही होता ।और इनका अनुप्रयोग प्रत्येक धार्मिक कार्यो मे होता है।
लोग बांस की पोंगरियों बाटलो  गैलनो मे भर भर कर श्रद्धा पूर्वक अपने अपने घर ले जाते हैं। यहां तक कि अपने  खेतों मे छिडकाव करते हैं। जिससे फसलों मे व्याधि कीट पतंग नही आते और अधिक उत्पादन मिलते हैं। यह जनमानस मे दृढ विश्वास हैं।
चरण कुंड अमृत कुंड जैसे पहाड की तलहटी व मनोरम जगह  मे भी मंदिर निर्मित हैं। जहां सुबह शाम कुंड की आरती व भजन संकीर्तन चलते रहते हैं।

११ जोगनदी का  हाथीपथरा - जोकनदी (जोगनदी ) के मध्य मे स्थित हाथी जैसे आकार वाले  चट्टान  है  । यह दर्शनीय है। जनश्रुति है कि नदी के  उसपार स्थित सोनाखान जमीन्दार राजा रामराय का मतवाला हाथी हैं। जो गुरुघासीदास को कुचलने भेजे गये थे ।पर गुरुघासीदास के तपबल से वह बीच नदी को पार करते वही पत्थर मे तब्दील हो गये ।
   यहां लोग आते हैं। जोगनदी के शीतल स्वच्छ  प्रवाहमान जल मे स्नान करते हैं। और नदी तट पर भोजनादि बनाकर सधन वन में २-३ दिन प्रकृतस्थ जीवन जीते हैं। श्रद्धा भक्ति सहित यह प्रकृति के सानिध्य मे कलकल करती नदी जलधारा सधन मे कुछ पल या दिनो का साधनामय  जीवन बहुत आनंदमय प्रेरक व उपयोगी  होते हैं।

  १२ छातापहाड सतलोकी गुफा-
गिरौदपुरी से महराजी संडी ग्राम के आगे से छाता पहाड जाने का पंगडंडी था जहा ऊंची ऊंची विशालकाय साल वृछ के  घनधोर बीहड  जंगल हैं ।गिरौदपुरी मुख्य मंदिर से ८- १० कि मी पहाड़ी धाट वाली मार्ग से गुजरना स्वत: प्रकृति से जुडना होता है। जहां नदी पहाड जंगल प्राकृतिक जल कुंड विद्यमान है। वन्य जीवों पंछियों  से भरा यह  सुरम्य वन मनमोहक हैं। पैदल छाता पहाड तक जाना बेहद रोंमाचकारी है। वर्तमान मे  सडक बन चुके हैं जिससे सुगमतापूर्वक लोग आ जा सकते हैं।
   इसी सधन वन जहां आज भी सूर्य की रौशनी नही जा पाती वहाँ पर एक विशाल चट्टान है जो चारो ओर से मधुमक्खी के छत्ते जैसा आकार के हैं। इसलिए भी इनका नाम छाता पहाड पडा। इस पहाड पर ऊपर चढने के लिए एक मात्र इमली का पेड था उसके सहारे बाबा जी ऊपर चढकर एकान्त वास कर तपस्या किया  साधना व सिद्धी हासिल की।
    लोग उस पहाड के इर्द गिर्द तपस्या के भभुति लेने जाते हैं।
इनकी चारो ओर परिक्रमा करते हैं। और आसपास जानकर लोग वनौषधिया तलाश कर साथ गुरु कृपा समझ कर वापस आते हैं।

१३ सतलोकी गुफा छाता पहाड - वहा विद्यमान एक गुफा है जिसे सतलोकी गुफा कहते हैं  यह निरंतर बढ रहे है विगत ३० सालो से हमलोग वहा जा रहे हैं। और वहा के होते बदलाव को महसूस करते है।जनश्रुति है कि इसी गुफा मे गुरुघासीदास ने अपने एकान्तवास मे आकर अछप ( अन्तर्ध्यान )  हो गये। विशाल शिला तीन भागों मे विभक्त हो ग ई। यह विभाजन स्पष्टतः देखे जा सकते हैं ।
  श्रद्धालुगण छाता पहाड की सात बार परिक्रमा कर अपनी यात्रा को सफल मान कृतार्थ होते हैं।
१४ पंचकुंडी -
   छाता पहाड जाने वाले  मार्ग में दो कि मी दूर पंचकुंडी व सुन्दरवन जाने का मार्ग हैं ।यह भी सघन वन और डारबी ग्रीन मार्ग हैं। रास्ते मे विभिन्न जीव जन्तु चिडिया मोर बन्दर हिरण आदि यदाकदा मेला के अवसर पर भी दृष्टिगोचर हो जाते हैं।
    पंच कुंडी अर्थात पाच कुंडो का समूह हैं समीप ही मंदिर व सराय निर्मित है। यह  प्राकृतिक जल सोता हैं। जो परस्पर जुडे हुए है। जल घारा  धवल दुग्धधारा सदृश्य प्रात: नजर आते है ।ऊपर विशाल पर्वतमाला है जिसके शिखर पर जैतखाम स्थापित हैं।

१५ सुन्दरवन - इससे आगे बीहड जंगल है जहां पहुच मार्ग नही बमुश्किल पगडंडियो से नीचे तराई तक जाए जा सकते है।यह निर्जन ग्राम विहिन घनधोर जंगल है जहां गुरुपुत्र अम्मरदास जी साधना किए।यह सुन्दरवन के नाम से जाने जाते हैं।
     वर्तमान समय मे यहा साधक साधु संत यदाकदा तप साधना करते दिखाई पडते हैं।

  इस तरह देखा  जाय तो भारत के हृदय स्थल मे स्थित  छत्तीसगढ का यह पावन स्थल अपनी प्राकृतिक सौन्दर्य और सतनाम धर्म के प्रवर्तक गुरुघासीदास के जन्मस्थल तपोभूमि पर विश्व की सबसे ऊंची जैतखाम का भव्य निर्माण यहां की प्राकृतिक सौन्दर्य में अभिवृद्धि करते हैं।ऊपर चढकर गिरौदपुरी की सुरम्यवादियों के साथ साथ  मेला परिसर एंव दूर दूर तक फैले लाखो जनसमूह के क्रिया कलापों   पर  विहंगम दृष्टिपात किए जा सकते हैं।

डा. अनिल भतपहरी 9617777514
सी- 11 ऊंजियार-सदन आदर्श नगर ,सेन्टजोसेफ स्कूल के पास अमलीडीह ,रायपुर छत्तीसगढ

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