Thursday, May 24, 2018

सतनामी एंव ब्राह्मण जाति नहीं एक संवर्ग हैं।

एक मान्यता हैं कि साध महात्मा सतनामी और पुरोहित पुजारी ब्राह्मण  परस्पर वैचारिक दृष्टिकोण से पृथक -पृथक मान्यताओं वाले वर्ग हैं दोनो जातियां नही है बावजूद जाति के नाम पर चिन्हाकित किए गये । एक जन्मना  जात -पात  विरोधी व समानतावादी हैं जबकि दूसरा  जनमना जात -पात ऊंच -नीच भेद -भाव के सर्जक व समर्थक हैं। एक प्रवर्तनवादी तो दूसरा यथास्थिति वादी हैं।
        कलान्तर में श्रमिक जातियां जो चौथे वर्ण में रहे सतनामियो की मानवतावादी एंव  समानतावादी सिद्धांत के आकर्षण  चलते सतनामी  बनते गये। जबकि कोई कितनी ऊचाई व सात्विकता को अर्जित करे ब्राह्मण नहीं बन सकते । जबकि  पतित व्यक्ति गुरु शरण में आकर सतनामी होकर उत्थित हो जाते हैं। इस तरह भारतवर्ष में एक नवीन संस्कृति का सनातन संस्कृति के समनान्तर ही प्रवर्तन हुआ। जो अलग तरह से रेखांकित हुई।
सतनामियों में भारतीय समाज के अनेक जातियों का समागम है। इस तरह जातिविहिन समुदाय के नाम से यह सर्वत्र विस्तारित होने की ओर अग्रसर हैं।

   डा. अनिल भतपहरी

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