पद्म श्री श्रीदेवी
श्री देवी ९० की दशक की हिरोइन थी और हमलोग उस समय किशोर थे ।पर उनकी दिलकश और चुलबुली अदाओं के चलते हमारे समवयस्क हिरोइने जुही माधुरी आदि सलवार या स्कर्ट आदि में पता नही क्यों उनके समछ नहीं भाते! महाविद्यालयीन या समकालीन कन्याएँ सलवार शुट में ही रहती पर उस समय हम जैसे लोगों के रचना कर्म और जेहन में श्री देवी और जयाप्रदा की साड़ी और कमर तक गजरे युक्त वेणी वाली सौन्दर्य की मल्लिका की ही राज चला करती ..
तब हमारे एक छत्तीसगढ़ी गीत मित्रों में व कार्यक्रमों बार बार फरमाइश की जाती रही हैं .. मै उसे सस्वर जब भी पढता हूं अब भी तो बरबस
मुझे तोहफा , चांदनी, जाग उठा इंसान की नायिका ममन मंदिर की दरवाजे पर हाथ में गजरा वाली वेणी धुमाती रहस्यमय मुस्कान लिए खडी नजर आती- और मै बेसुध गाने लगता ....
गोरी तोर लाली फून्दरा कनिहा म झूलत हे
संग संग ओकरेच संग मन हमरों झुमरत हे
बड नीक लागय मोला गोरी तोर सुघराई
करत हे करेजा ल चानी रानी तोर मुस्काई
कनेखी देख क इसे ... क इसे मुस्की ढारत हे ...
गीत श्रीदेवी के पुष्पमंजित सुवासित वेणी के मांनिन्द लम्बी हैं ..पर उनकी मधुर स्मृति में पोष्ट लिखते न जाने क्यो आत्मियता पूर्वक कंठावरोध होने लगा ...यह गीत किशोर मन की कल्पना की ऊपज उनकी रजत पट की मुग्धकारी सम्मोहित छवि से हुई ...और जब युवाकाल में जबलपुर की ६४ योगनियों की प्रतिमाएँ देखते .. और नायिका भेद पढते यह अप्सरा सदृश्य नायिका हर समय कही न कही स्मृति पटल पर प्रकट हो भारतीय नारी के पावन सौन्दर्य से हमें अभिभूत करती .....
उनके न रहना अब उनके रहने से अधिक मन को विह्वल करने लगा है..इस गीत से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि प्रकट करते हैं वे कला जगत में सदैव स्मृत हो अमरत्व को अर्जित करे... सादर श्रद्धांजलि सत सत नमन ..
डा. अनिल भतपहरी
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