समनान्तर का आशय पृथक पृथक दो तट जैसे नदी के होते हैं। जिस पर विचार रुप जल का प्रवाह होते हैं। साथ हैं पर मिलते नहीं .... ब्राह्मण और सतनामी दोनो में विचार और दर्शन हैं। भले कोई अधिक स्थापित व मान्य हो या ऐसा न हो ।
बौद्ध नाथ सिद्ध साध सिख सतनामी सभी सत्योपासक सतनामी ही हैं।जो सतसंगी व गुरुमुखी हैं। जबकि पुजारी पुरोहित ब्राह्मण बैरागी आदि कर्मकांडी व ईश्वरोन्मुखी हैं।
श्रेष्ठता या निकृष्टता की कोई बात नहीं ।यह वृत्ति और प्रवृत्ति गत तुलनात्मक विश्लेषण हैं।
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