अइटका मेला / परब
सतनाम- धर्म संस्कृति में असाढ़ पूर्णिमा को अ इटका मेला परब के रुप में तेलासी भंडारपुरी परिक्षेत्र में बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाते आ रहे हैं।
सतनाम पंथ का यह प्रथम सार्वजनिक महोत्सव है। इसकी नींव गुरुघासीदास ने तेलासी में रखा।
गुरुघासीदास के संतत्व प्रवृत्ति और उनके सहज सरल नव जीवन पद्धति को लोग बड़ी तेजी से अंगीकृत करने लगे। पंथ प्रचार करते गुरुघासीदास माता सफूरा पुत्री सहोद्रा बालकदास आगरदास सहित तेलासी में आकर रामत करने लगे ।इसी समय उनके बिछुडे ज्येष्ठ पुत्र गुरु अम्मरदास अपने माता - पिता को तलाशते तेलासी ग्राम में आए! और देखते ही भावविभोर हुए !
माता पिता के पुत्र का अभूतपूर्व मिलन देख ग्रामीण जन अभिभूत हुए और इस परिवार को वही रहने निवेदन किए । गुरुघासीदास आसपास के ग्रामों खासकर जुनवानी देवगांव अमसेना कोडापार भंडारपुरी भैसमुंडी गैतरा डूम्हा आदि ग्रामों में परिभ्रमण करते धर्मोपदेश करते और अपनी चिकित्सीय गुण के कारण असाध्य बीमारियां जैसे कुष्ठ ,त्रिजरा आदि के निदान करते लोग श्रद्धा पूर्वक दान दक्षिणा करते। इन ग्रामों में आज भी सतनामियों का बसाहट सर्वाधिक है इन्ही ग्रामों के सहयोग से आगे चलकर भव्यतम गढी भंडार मे बनाए गये और मोती महल गुरुद्वारा जुनवानी के पत्थर कारीगरों से बनाए गये जो दर्शनीय हैं।
तेलासी मे नित्य गुरु घासीदास का जी सत्संग चला करता था उनके पूर्व गुरु अम्मरदास उनके उपदेश व सिद्धांत के आधार पर मंगल भजन गाते व भाव विभोर होकर लोग पंथी नृत्य करते वर्तमान सतनाम मंदिर के आगे विशाल मैदान के पास ईमली वृक्ष के नीचे यह आयोजन चलते रहते थे आज भी वह पेड़ विद्यमान हैं। र इसी बीच दो लोगों में किसी बात से विवाद होने लगे उन्हें अपनी सूझबूझ और आत्मिक संबोधन से गुरु पुत्र ने सुलझाया।
यह देख कर गुरुघासीदास ने उनकी प्रशंसा किए और लोगों को आशीष प्रदान किए उनकी प्रिय वाणी व गुरु परिवार की सदाशयता व नित्य योग साधना जीवन से प्रेरित होकर वहां के लोग सतनाम पंथ में समागम करने लगे।
गुरुघासीदास ने वहाँ के निवासियों जिनमें तेली रावत लोहार मरार ढीमर केवट नाई धोबी लोधी मेहर आदि जातियों को सतनाम पंथ की दीक्षा देकर सतनामी बनाए और अपने पुत्र अम्मरदास के जन्म दिन उन सबको एक ही पात्र से बने तस्मई खिलाकर " अइटका परब " की शुभारंभ किए।
अ इटका शब्द एकता के परिचायक है और यह बौद्ध विहार जगन्नाथ में सबको बिना भेदभाव से प्रदान करने वाले चावल दाल के खिचड़ी महाप्रसाद थे जिन्हे लोक भाषा में खाने से गले में अटकने का आभाष होते तो "अइटका" कहे गये । जगन्नाथ के भात को सबै पसारे हाथ जैसे लोकोक्ति भी प्रचलन में हैं।
( जगन्नाथ बुद्ध का नाम है बुद्ध को प्रज्ञा भी कहते है ।
इस तरह प्रज्ञा के साथ करुणा और शील मिलकर पुरी के बौद्ध में प्रतीकात्मक मूर्तियाँ यक्ष स्वरुप में रखे गये।
उसी को रथयात्रा के रुप में त्रिदेव स्वरुप प्रज्ञा करुणा शील रथ पर सवार होकर जगतपति होते हैं। )
बहरहाल गुरुघासीदास ने चावल दूध गुड़ मिलाकर एक विशिष्ट मीठा पकवान तस्मई बनवाए और समस्त जनमानस को एक ही पात्र से परोसवाकर एक साथ खान पान रहन सहन को बढावा दिए। क्योंकि गुरुघासीदास जगन्नाथपुरी यात्रा में उक्त विशिष्ट प्रथा देखे थे और उन्हें सार्वजनिक भोग भंडारा समानता स्थापित करने के एक बडा सूत्र उन्हें लगा उसे वह नव कलेवर देकर विषमताओ से भरा समाज में प्रचलित किया।
तेलासी पुरी धाम के अ इटका खाने गुरु उपदेश सुनने पंथी नृत्य लीला भजन सुनने दूर दूर लोग एकत्र होने लगे। दान दक्षिणा देने लगे तेलासी में बाडा बनवाए गये और सतनाम पंथ के बेहतर संचालन किए जाने लगे। कलांतर में भंडारपुरी में बस जाने के बाद
बाद में वहाँ अनुयाई भव्य सतनाम मञदिर बनाए गये जो दर्शनीय है। यह सतनामी समाज का प्रमुख तीर्थ हैं।
अ इटका मेला में भी गुरु गोसाई दर्शन देते हैं और लोगो को धर्मोपदेश करते हैं।
बारिश की महिना होने और सहजता से आने जाने में परेशानियाँ होने के कारण आसपास के ग्रामों में जैतखाम व सतनाम भवन में तस्म ई बनाकर अ इटका परब मनाने लगे ।
इस तरह एक विशिष्ट परब का प्रचलन सतनाम पंथ में हुआ । अब समाज प्रमुखों गुरुओ महंतो संस्थाओं व प्रबुद्ध जनो का उत्तरदायित्व है इस महान अ इटका पर्व को आयोजित कर समता पर आधारित मानव समाज का निर्माण करने में विशिष्ट योगदान दे।
कोरोना काल में लाकडाउन और सार्वजनिक उत्सव प्रतिबंधित हैं। अत: इस वर्ष अपने -अपने घरों में तस्मई बनकार आरती मंगल भजन ध्यान आदि कर सादगी पूर्ण मनावें
।।सतनाम ।।
-डा. अनिल भतपहरी
चित्र - गुरुघासीदास के पुत्र गुरु अम्मरदास,तेलासी बाडा , जुनवानी के पत्थर व कारीगरों के सहयोग से निर्मित भव्यतम इमारत व गुरुघासीदास मंदिर तेलासी ।
Impressive and knowledgeable
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