।।मनखे मनखे एक ।।
सुनार की सौ टक टक लुहार की होते एक
ऐसे ही संतो की बानी जे पड़त कलेजे छेक...
काले हो या गोरे देश के हो या परदेश
कहे गुरु घासीदास मनखे -मनखे एक...
एक चाम एक मल मुतर कौन भला कौन मंदे
उनके सब बंदे कहे नानक नूर-ए-उपजे एक...
माला फेरत जुग गया न गया मन का फेर
कबीर कहे मनका डारिके फेर मनके एक...
ऐसा राज चाहु मै मिले सबको सम अन्न भाव
कहियो रैदास रहियो सदा मन चंगे एक...
जो तु तु मै मै करता फिरता मानुष मुरुख मन
कहत साई परसन होवै मालिक सबके एक...
-डाॅ. अनिल भतपहरी
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