।।सतनाम संस्कृति में गौ संरक्षण ।।
सतनाम धर्म- संस्कृति में गुरुघासीदास के सतनाम सप्त सिद्धान्त में एक प्रमुख गौ संरक्षण रहा हैं। गिरौदपुरी के पावन घरा पर सुप्रसिद्ध नाड़ीवैद्य मेदनीराय गोसाई के पुत्र महंगू बाबा के घर अघ्घन पून्नी १७५६ जन्म के कुछ दिन बाद अमरौतिन माता के निधन के बाद गुरुवर गाय के दुध पीकर ही पले- बढ़े थे। साथ ही कृषि संस्कृति के रीढ़ गो धन ही हैं। संभवतः इसलिए प्रमुखतः गोसंवर्धन पर उनकी शिक्षा केन्द्रित रही हैं। वे अपने दादा के नक्शे कदम पर चलकर पीडित मानव और मूक पशु की दु: ख- पीड़ा के शमन हेतु अभूतपूर्व कार्य किए ।
गुरुघासीदास के समय से ही भंडारपुरी धाम में गोवंश आबाद हैं। मोती महल गुरुद्वारा के पीछे विशालकाय गोशाला स्थापित हैं। तेलासी बाडा में पशुधन का विराट बरदी ही रहते जिनके पहट चराने पहाटिया लगते । कृषि वृत्ति वाले सतनामी घरों में गोवंश संरक्षित व संवर्धित हैं।
गुरु घासीदास के अप्रतिम सिद्धान्त व अमृतवाणी इस संदर्भ में दर्शनीय है-
१ मुरही गाय ल झन दुहव न ओकर गोरस पियव
२ गाय अउ भैंसी ल नागर अउ गाड़ी मं झन फांदव
हमारे नित्य सतनाम आरती में बड़ी श्रद्धा भक्ति से यह गान करते हैं-
सुरहिन गइया के गोबर मंगाये
चारों खूंट अंगना चउक पुराये
रतन पदारथ हीरा - मोती
सरधा के आरती जगमग जोती
सोन कलश जेमा गंगा जल
हिरदे सफ्फा मन रहे निश्छल...
इस तरह गुरु के सीख उपदेश कलान्तर में युगान्तरकारी प्रवर्तन के रुप में प्रतिष्ठित हुआ। उनके अनन्य अनुयाई सतनामियों ने भारत में सर्वप्रथम गोरक्षा आन्दोलन १९२०-२२ में राजमहंत नयनदास महिलांग के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित करमन डीह ढाबा डीह का बुचड़खाना बंद करवा कर किया गया। ज्ञात हो कि निपनिया भाटापारा रेल्वे स्टेशन से इन बुचड़खाना से प्रतिदिन हजारों टन गो मांस बाम्बे कलकत्ता दिल्ली निर्यात होते थे। बलौदाबाजार और किरवई दो बडे मवेशी बाजार से लाखो रुपये राजस्व ब्रिटिश सरकार के खाते में जमा होते थे।
इस गोरक्षा आन्दोलन की ख्याति पुरे देश भर में फैली फलस्वरुप गुरु गोसाई अगम दास सहित ७२ महंतों को तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन कानपुर में गांधी नेहरु डा मुंज व मालवीय जी ने आमंत्रित कर सम्मानीत किए। और उन्हे राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जोडे ।
बाद में महात्मा गाँधी जी छत्तीसगढ़ प्रवास पर आए और सतनाम संस्कृति से बेहद प्रभावित हुए। इसलिए ही वे रायपुर से बलौदा बाजार तक सतनामी बाहुल्य व तीर्थ क्षेत्र की यात्रा भी किए ।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य जो कृषि प्रधान राज्य है में गो संवर्धन हेतु महत्वाकांक्षी " गोधन न्याय योजना" लाए है तब उक्त ऐतिहासिक घटनाक्रम का महत्वपूर्ण स्थान हैं। गोभक्त महंत नयनदास महिलांग को स्मृत करने उनके नाम पर इस योजना का नामकरण होना चाहिए और इस योजना में जो व्यक्ति या संस्था कार्य करे उसे गोसपूत महंत नयन दास सम्मान से सम्मानित करने की नीति निर्धारण होना चाहिए।
।। जय छत्तीसगढ़ ।।
डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514
🏳️ सतनाम
ReplyDelete