तेरी तरह
तेरी तरह कोई तो बसी हैं मन में
पर क्यूं कुछ खाली सा हैं जीवन में
आग लगी और पानी भी बरसा
कुछ असर नहीं जलन-भींगन में
ये मस्तानी शाम और रुहानी रातें
थकान मिटती नहीं कोई सीज़न में
माना कि फासलें हैं हमारी दरम्यान
तस्लीम की चाह किसे नहीं जेहन में
अब तो तड़फ की लत सी लगी हैं
बिन इनके मज़ा क्या है जीवन में
- डाॅ. अनिल भतपहरी/9617777514
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