Wednesday, July 29, 2020

तेरी तरह

तेरी तरह 

तेरी तरह  कोई तो बसी हैं मन में 

पर क्यूं कुछ खाली सा हैं जीवन में

आग  लगी और  पानी भी बरसा 

कुछ असर नहीं  जलन-भींगन में 

ये मस्तानी शाम और रुहानी रातें

थकान मिटती नहीं कोई सीज़न में

माना कि फासलें हैं हमारी दरम्यान 

तस्लीम की चाह किसे नहीं जेहन में 

अब तो  तड़फ की  लत सी लगी हैं

बिन  इनके  मज़ा क्या  है जीवन में  

     - डाॅ. अनिल भतपहरी/9617777514

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