अंग्रेज और उनकी शिछा नीति के चलते ही आधुनिक भारत का अभ्युदय हुआ।अनेक कुरीतियों को कानून बनाकर रोके।और देश में नवनिर्माण किया।सडक पुल रेल संचार व शहरों का विकास इनके देन है केवल उपनिवेश और शोषण के यह उनके अस्त्र हैं। कहकर उन्हें नकारा नही जा सकता।शिछा का द्वार सबके लिए खोलकर एक युगान्तरकारी कार्य किया जो इन सवा, डेढ सौ साल में भारत आज वैश्विक पटल पर खडा नजर आता है। हालाँकि ईसाई करण हुआ पर आज वे आदिवासी व वंचित समुदाय ईसाई बनकर जो ख्याति मान सम्मान अर्जित किए है ,शायद वह हिन्दू होकर कर पाते?
जो धर्म मान सम्मान व अभिमान न दे उसे वैसे त्याग कर देना चाहिए जैसे तुलसी के अनुसार हरिविमुख स्वजन लोगों का परित्याग विभिषण और भरत करते हैं। एक बडे भ्राता को दूसरे माता को त्याग दिए तो शर्मनाक अशोभनीय व गलत मान्यताओं का परित्याग क्यो नही?
अपमान तिरस्कार सहकर भी जो कथित धर्मध्वज थामे हुए है वह मृत शिशु को चिपकाए मूढ बंदरिया के समान है।
कथित सनातन धर्म के संरछण के चलते हालांकि कुछ सुधारवादी आन्दोलन चले पर आगे चलकर कबीर पंथ खालसा पंथ और सतनाम पंथ उसके समनान्तर खडे हुए।आनन फानन में आर्य समाज आर एस एस जैसे संगठन बने आज वह एन केन प्रकरेण सत्ता द्वारा इसे कायम रखना चाहते है। मानव मानव में समानताए स्थापित होना चाहिए जात पात व ऊंच नीच संवैधानिक प्रक्रिया के तहत खत्म होना चाहिए। परन्तु उसे खारिज कर कथित रुप से समरसता बनाए रखना चाहते है ताकि साप चलता भी रहे और लाठी इधर उधर लहराते रहे ।
पर क्या यह संभव है?
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