चिंतन २
।।अनीश्वरवादी स्वर ।।
कल तुम्हे ईश्वर बनना है , प्रकृति तुम कितनी बेरहम हो ,स्वाभिमान का सुगंध , कहे- माने जैसी हमारी कविताएँ हो या चाणक्य अप्रासंगिक ,आह्वान (अ)धर्मानुरुप राजनीति , अम्बेडकर और हिन्दू बनाम इस्लाम जैसे अनेक आलेख यह हमारी वर्षो पुरानी रचनाएँ हैं। जो देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित व चर्चित हैं।
इन सबमें अनीश्वरवाद का स्वर अनुगूंजित है। तब न कोई कोरोना थे न कोई अन्य महामारी का डर -भय था।बल्कि देश भर में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद धार्मिक उन्माद में ईश्वरीय भक्ति खुदाई इबादत का लहर था। महाआरती महाअजान शोभायात्रा जुलूस का अभूतपूर्व मंजर था। देश में भजन कीर्तन सत्संग का बहार था और शीध्र सतयुग आने की उम्मीद में लोग घर घर शाम दीप प्रज्ज्वलित कर प्रतीक्षारत व्यग्र हो रहे थे। इस बीच जरुर लातुर के भीषण भूंकप हो था और एक बार फिर लोग अपने अराध्यों के अराधना करते उनके साथ जमींदोज हो गये थे। ऐसे में बुद्ध ,गुरुघासीदास नीत्से,और मार्क्स के विचार जेहन में जरुर रचे -बसे थे। तीस वर्ष पूर्व जब हम २० वर्ष के थे तो मेरी कविता नवभास्कर रायपुर १९८९ ( अब दैनिक भास्कर ) में "कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं" प्रकाशित हुआ तब भी ईश्वर वादियों की कटु आलोचनाएँ सहना पड़ा ।
और अब भी सहने पड़ते हैं।
तो इन सब आलोचनाओं के आदत विगत ३० वर्षों से हैं। नवभारत में हमारी विचारोत्तेजक आलेख चाणक्य अप्रसांगिक १९९२ साहित्यिक व बौद्धिक जगत उद्वेलित हो गये थे तब टीवी में चाणक्य सिरियल चल रहा था और शिक्षक समुदाय चाणक्य रथ चला रहे थे।
इसी तरह एक लेख के चलते एक महिने गांव में संपादक के निर्देश पर गुमनाम अंडर ग्राऊण्ड रहे। अनिल आशांत तब से शांत हो वह उपनाम हिन्द महासागर में डुबो दिए। फिर पीड़ित मानवता के लिए राहत के प्रार्थनाएँ करने वाले स्वर निःसृत कर सुकून पाने लगे।इस बीच अतिवाद और अराजकताएं व वर्जनाओं के विरुद्ध स्वर मुखर व प्रखर ही रहे।
क्योंकि जो सच हैं उनके उद्धाटन में लगे रहते हैं। और यही हमारा ध्येय व प्रयोजन हैं-
अर्थ नहीं धर्म नहीं मोक्ष नहीं
आत्म प्रशंसा,यशादि व्यर्थ सही
जो है उसे साफ कहने आया हूँ
सोये रहोगे कब तक जगाने आया हूँ ...
यह तो १९८९ में ही तय हो चूका था।पर जब २००७ में कब होही बिहान काव्य संग्रह सद्य: प्रकाशित हुई तो उसमें संगृहीत हुए।
हालांकि हमारी इन प्रयास में तथाकथित सच प्रेमी भी उद्वेलित होकर यदा कदा जिन्हे समझ नहीं आते या प्रायोजित ढंग से आलोचक हो जाते हैं। या फिर यु ही कीर्तिमान होते देख समव्यस्क सहज ईर्ष्या भाव के चलते प्रतिकार कर बैठते हैं । फिर लंबी क्षमा याचना या नजर न मिलाने के कारण दूरियाँ बना लेते हैं।
बहरहाल इन सबसे बेफ्रिक हम बिना यश --कीर्ति के चाह लिए अपनी विवेक और स्वाध्याय लेखन पर रत रहते हैं। इस दरम्यान कही -कही प्रशंसित व सम्मानित भी हो जाते हैं। जो और हमें भी बेहतर करने प्रेरित करते हैं।
कोरोना का कहर से मुक्ति हेतु हमारे चिकित्सकों की ईलाज व सलाह और शासन -प्रशासन द्वारा बरते जा रहे सावधानियां व उपाय जिनमें लाकडाउन कर्फ्यू क्वारंटाइन को कडाई से अपनाते माक्स, ग्लब्स का इस्तेमाल और बार बार सेनेटाइराईज़ करते रहना ही आवश्यक व प्रभावी बचाव हैं। न कि कल्पित मिथकीय अलौकिक शक्तियों के ऊपर अंध श्रद्धा व भक्ति ।
श्रुतियों व मान्यताएँ नहीं अपितु ज्ञान -विज्ञान और सही संज्ञान चाहिए।
-डा. अनिल भतपहरी 9617777514
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