Friday, April 24, 2020

आगी गुंगवात हे ...

"आगी गुंगवात हे "

रीस तरपंउरी के माथा मं चढ जात हे
अंतस भीतरी मं आगी गुंगवात हे....

कइसन समे आगे सच बोले न सुहाए 
देख करतुत छलियन  के मन कठुवाए 
निंदा चारी अउ लबारी हर ममहात हे ...

किसान के फसल सस्ती  देख जी कौव्वाय 
बैपारी के फेसन मांहगी हाथो -हाथ बेचाय 
लहु पसीना गारे जिनिस सड़क मं  फेकात हे..

जेन जातिस जेल ओ मगन बइठे रचे खेल
चुलका के चुलकाहा मन घुरवा मं देहे ढकेल 
चाल बइरी के समझो लिख-लिख लिगरी लगात हे....

तोर ददा के मालपानी , मोर ददा के माटी ये 
तोर बियाज बनिज त हमर  धनखर पुरखौती ये 
तोरेच लुक मं रे बसुन्दरा हमर खरही  लेसात हे ....

पीरा लुस के  देखव सुख लुसइय्या लबरामन  
बड़का पागा पारे किदरे ओ दिन के नंगरामन 
बिन फूले डोहड़ी डार मं अइलात हे.... 

डा. अनिल भतपहरी‌ 
९६१७७७७५१४
ऊंजियार- सदन 
अमलीडीह ,रायपुर

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