सतनामी व सनातनी
सतनामी और सनातनी दोनो सर्वथा अलग है। और प्रवृत्ति गत तो बिल्कुल विपरितार्थ भावयुक्त है।हालांकि
दोनो समश्रुत शब्द हैं और प्राचीन भी।परन्तु सतनामी एक सत्यनिष्ठ समानता व मानवतावादी प्रकृतस्थ व सदैव गतिमान समाज हैं। जबकि सनातनी भेदभाव युक्त वैदिक व शास्त्रीय मान्यताओं वाले रुढ-मूढ समाज हैं।
जो अपेक्षित बदलाव के लिए भी तैय्यार नही रहते और परंपरा व प्रथा के नाम पर यथावत जीते आ रहे हैं।
तथागत बुद्ध वचन -अत्तदीपोभव में सच्चनाम की अराधना करते स्वत: प्रकाशवान होने की अप्रतिम संदेश हैं। यदि महात्मा
कबीर की तरह कहे तो -" तु कहता कागद के लेखि ,मंय कहता आखिन की देखि " में सतत उद्यम की बाते हैं
और गुरुघासीदास की स्थापना कि - "तोर भगवान बहेलिया आय अउ मोर धट म बिराजे हे सतनाम" कह अपन धट के देव मनाने सदकर्म करते अनंत यात्रा पर निकल जाने होते हैं।
मनखे मनखे एक समान
अब सवाल यह हैं कि वर्ण जाति भेद युक्त "सनातन" या समानता पर आधारित "सतनाम" आप किसे अपनाते या स्वीकृत करते हैं।
।।सच्चनाम सतनाम सत्यनाम ।।
डा- अनिल भतपहरी
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