Wednesday, April 1, 2020

औंरा- धौंरा तेंदू वृक्ष महात्मय

गुरुघासीदास जंयती के पावन अवसर पर गुरुघासीदास शोध पीठ  पं र शु वि वि एंव गुरुघासीदास साहित्य संस्कृति आकादमी द्वारा आयोजित शोध संगोष्ठी में सतनाम धर्म संस्कृति में औरा -धौरा और तेंदू पेड़ की महत्ता  एंव उनके तले  गुरुघासीदास की आध्यात्मिक साधना पर आधार व्यक्तव्य देते हुए ....

हमारे सुधि पाठकों हेतु शोध पत्र का सारांश -

"औरा-धौंरा वृछ तले ध्यानरत  गुरुघासीदास" 

छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर सुदुर वनांचल में सतनम जागरण के अलख जगाते गुरुघासीदास ने  सतनाम पंथ का प्रवर्तन किए ।
     इनके पूर्व वे सोनाखान के बीहड़ वन एंव छाता पहाड़ में कठोर अग्नि तपस्या किए।
सतनाम ग्यानोदय और अभीष्ट सिद्धि के उपरान्त वे गिरौदपुरी वापस आए .. उनके आगमन की सूचना का बेहतरीन वर्णन मि चूशोल्म ने बड़ी ही अलंकारिक शैली मे किए है ... 
 हजारो लोग इस तपस्वी को देखने सुनने उमडने लगे और लाखो लोगो मैदान मे एकत्र हुए ।
फागुन शुक्ल सप्तमी को वे सतनाम की दिव्य सप्त संदेश देते छत्तीसगढ़ की धरा पर सतनाम पंथ जो स्वतंत्र धर्म सदृश्य था का प्रवर्तन किए ...
  तदुपरान्त वे इसी विशाल प्रांगण के समीप पहाड़ी में स्थित तीन पेड़ के झुरमुट के पास ध्यानस्थ होकर नित्य दर्शन को आकांछी जनमानस को उपदेशना देने लगे ...
  यह ३ सौभाग्यवती पेड़ थे औंरा धौरा और तेंदू ।
औंरा - हिन्दी मे इसे आंवला कहते है संस्कृत मे अमृता अमृत फल पंचरसा कहते हैं।
अंग्रेज़ी में एंब्लिक माइरीबालन कहते हैं। वैज्ञानिक नाम रिबीस युवा क्रिप्सा नाम है।
औषधीय गुण आयु वृद्धि काया कल्प मेधा यौवन  वीर्यवर्धक है। 
 ऋषि च्यवन ने कभी इसी के आधार पर च्यबन प्राश बनाकर मानव हितार्थ दिव्य औषधि का निर्माण किए ।आवला हरण और बहेरा यह त्रिफला आयुर्वेद की त्रिदोष कफ पित्त वात नाशक है ।इसके यह प्रमुख धटक है।

धौरा- यह बहुपयोगी व औषधि गुणो से युक्त पौधे हैं। इनका वैज्ञानिक नाम  एनोजेसीस लैटी फोलिया है ।जो १८-२० फीट की ऊचाइ वाले सधन पत्ते दार सफेद तने वाला पेड है। इस कारण यह धौरा नाम पडा । 
जिनके चपाचय हमारे अंदर आहार निद्रा और आंतरिक जैविक धड़ी को नियंत्रित करते हैं। तनाव और ब्लड प्रेशर को इनके छांव मे बैठने मात्र से राहत मिलते हैं। आत्।हीना खत्म हो आत्मसंबल बढता है। मन मे दृढता व संकल्प बोध आते है। इनके गोंद बनते हू और प्राकृतिक रुप से इनके पत्ते में रेशम कीट पलते हैं तथा उच्च स्तर के टसर यानि  कोसा सिल्क मिलते हैं। इनमें वस्त्र आदि बनाकर मानच सभ्यता के दो डग भरे ।

औषधीय गुण चपाचय गर्भ प्रसव सर्दी खासी  मे राहत ल्युकोरा टानिक कृषि उपकरण चारकोल निर्माण ...मे 
 तेंदू - अनेक औषधीय गुणो के खान और एंटीबायोटिक फल तथा डायबिटीज़ के राम बाण फलमीठा और कसैला का स्वाद अप्रतिम स्वाद लिए यह विलछण  पेड़ हैं। जो भीषण गरमी मे लहलहाते है। 
  जब सूर्य की  प्रचंड ताप से वनप्रातंर झुलसते है तब अ
यह गहन छाया व डारबी ग्रीन पत्ते से दूर से सुकुन पहुचाते है।
 यह मध्यम आकार १५-२० फीट की ऊंचाई वाले यह पेड आकर्षित करते हैं। 
  इनका वैज्ञानिक नाम डायोसपायरस मेलैनोआक्सीलन है। 
   इनकी पत्ते की बीडी बनाकर लोग पीते हैं बाबा जी ने इनके संरछण और व्यसन रोकने के लिए संदेश कहे कि "चोगी झन पिहा ।
 ताकि तेंदू पेड़ संरछित रहे । फलस्वरुप जो व्यसन न त्याग सके कलान्तर में चोगिया सतनामी के रुप में चिन्हित किए गये।और फिर वे घीरे घीरे व्यसन त्याग सात्विक सतनामी हुए ।
 यह फल  कुपषित जनता को पोषण दे यह चेतना भी इनके पीछे भी नजर आते है।यह मल्टीविटामिन से युक्त आहारी फल है।कच्चे तेदू के बीच को चावल की भात की तरह खाकर पेट भर सकते हैं। 
  फल को सुखाकर रखते है और जब चाहे तब इसे सूखे मेवे की तरह खाए जाते हैं।
    इस तरह देखे तो इन बहुगुणी पौधे जो प्रकृति ने एक जगह विशिष्ट प्रयोजन हेतु  उगाए थे को बाबा जी अपना आश्रय बनाया ।
  आज यह पेड़ और उनके परिसर विश्व में पवित्रतम स्थनो मे शुमार है।जहां प्रतिदिन हजारो लोग आस्था से सर झुकाते है। 
  फागुन शुक्ल सप्तमी  को विश्व का सबसे बड़ा ग्राम के रुप मे तीन दिन तक परिणत हो जाते हैं।
     जहां १२-१५ लाख लोग स्व नियंत्रित प्रकृतस्थ साधनात्मक जीवन यापन करने की प्रेरणा लेते हैं और अपने मार्गदर्शक गुरु के सानिध्य प्राप्त करते हैं। 
 औरा धौरा पेड के उडत हे शोर 
तेंदू के तीर ह छागे अंजोर 
 सतनाम जपइय्या हवय ग मोर बाबा ।...

     डा अनिल कुमार भतपहरी 
        सहा प्राध्यापक 
    शा. बृजलाल वर्मा महाविद्यालय पलारी 
    9098165229

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