Friday, June 13, 2025

जाति न पूछो

#anilbhattcg 

सद्गुरु कबीर जयंती पर 

"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।" 

भारतीय समाज वर्ण जाति व्यवस्था से युक्त हैं ।भले यहां साधु यानि सज्जन, ज्ञानी,सिद्ध लोगों की जाति नहीं पूछने की कबीर साहब की नसीहत हैं। परंतु बिना जाति पूछे दो अनजान लोगो के बीच न जान पहचान  होते न ही लोकाचार!  शादी ब्याह और जीवन निर्वाह तक भी नहीं होते। लेकिन इसी जातिप्रथा और वर्ण व्यवस्था के कारण सदियों से दमन शोषण भी जारी हैं। 
   आजादी के 75 वर्ष बीत जाने और प्रभावी संविधान के बाद भी जाति से उत्पीड़ित वर्ग के हितार्थ उन्हें लाभान्वित करने जाति जनगणना हो रहे हैं इससे अपेक्षित बदलाव की संभावना हैं। नि:संदेह साधु से ज्ञान ही पूछिए पर मतदाता और हितग्राहियों से जाति पूछना ही पड़ेगा तभी तो उनके ऊपर न्याय कर पाएंगे क्योंकि अब तक जाति न पूछने के कारण कोई दूसरा उसका लाभ लेते आ रहे हैं। 

तो भैये कबीर साहब से बिना क्षमा याचना किए कि उनकी बातें शत प्रतिशत सत्य हैं ,हम ज्ञानियों से जाति नहीं पूछेंगे बल्कि  जाति विहीन समुदाय की ओर अग्रसर हैं। लेकिन जो जाति के नाम पर छल प्रपंच करके किसी के हक अधिकार को छीन रहे हैं।  कोई जाति के दर्प में तो कोई शर्म से जीते आ रहे हैं। जन्मना जाति गत उच्च नीच की खाई बनी हुई है। भेदभाव परिव्यप्त हैं ऐसे में समानता लाने कुछ दशकों तक प्रयोग करके नवाचार करे और जाति जनगणना कर ले कोई हर्ज नहीं। देर आए दूरस्थ आए टाइप इस कार्य का स्वागत होना चाहिए।
  सद्गुरु कबीर जयंती की हार्दिक बधाई।
            सत कबीर,सतनाम

Sunday, June 8, 2025

डॉ अनिल भतपहरी सचिव राजभाषा आयोग

डॉ अनिल कुमार भतपहरी सहायक संचालक उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ शासन को  सचिव,छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग  के पद पर  संस्कृति विभाग में तीन वर्षों की प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ किया गया था।
इन तीन वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने कोरोना काल में लगभग हाशिए पर चले आयोग को पुनर्स्थापित किया। हालांकि इस दौरान राजभाषा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की मनोनयन नहीं हुआ। परन्तु वे राज्य के साहित्यकारों कलाकारों प्राध्यापको ,के साथ और मंत्री जनप्रतिनिधि एवं विभाग के अधिकारी से समन्वय बनाकर जो भाषाई और साहित्यिक क्षेत्र में कार्य किया वह महत्वपूर्ण और रेखांकित करने योग्य हैं।

खासतौर पर आयोग का कार्य को प्रमुखता से तीन भागों में विभाजित कर एक्शन प्लान बनाया और उसे जिला समन्वयकों की उपस्थिति में चरणबद्ध तरीके से  शेड्यूल के अनुसार संस्कृति मंत्री  और संचालक के संज्ञान  में  कार्यालय स्थापना दिवस 14 अगस्त 2022 अनुमोदित करवाकर प्रकाशन प्रशिक्षण और आयोजन का त्रिस्तरीय कार्यक्रम का पूरा ढांचा तैयार किया गया।

1आयोजन: 

 फिर तत्क्षण सुदूर जशपुर से बीजापुर और रायगढ़ से डोंगरगढ़ तक राज्य के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र से लेकर मध्य भाग में खासकर  जशपुर, रायगढ़, बीजापुर, अंबिकापुर बालोद, महासमुंद, जगदलपुर जिला संभाग स्तरीय  साहित्यकार सम्मेलन कराया। गया जिसमें संबंधित जिला/संभाग के अधिकतर साहित्यकारों ने स्वस्फूर्त भाग लिया और उनमें नवीन उत्साह का संचार हुआ। विशिष्ट कार्य किए हुए वरिष्ठ साहित्यकारों को आयोजन में सम्मान करवाकर उन्हे विशिष्ट महत्ता प्रदान किए।

A त्रिदिवसीय राज्यस्तरीय सम्मेलन 
जनजातीय भाषा एवं साहित्य के विविध आयाम शहीद स्मारक भवन रायपुर 2021

B त्रिदिवसीय लोक साहित्य समारोह साइंस कॉलेज रायपुर 20 22

C सातवें प्रांतीय सम्मेलन होटल इंटरनेशनल बेबीलोन रायपुर 2023
   
उक्त तीनो राजकीय सम्मेलन में 1500 साहित्यकारों की गरिमामय उपस्थिति रही हैं। यह तीनो कार्यक्रम अत्यंत सफल और लोकप्रिय रहा। इनके स्मारिका भी प्रकाशित किए गए है।

2प्रकाशन:

   छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास और संवर्धन हेतु उन्होंने राज्य के लगभग 100 से अधिक साहित्यकारों की पुस्तक को संवाद से प्रकाशित करवाकर और उन्हें राज्य के जिला ग्रन्थालय और महाविद्यालय में निःशुल्क भेजकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। इस तरह छत्तीसगढ़ी पुस्तक राज्य के प्रायः सभी जिला ग्रंथालयों में उपलब्ध हुआ। इसके साथ ही उन्होंने। राजभाषा आयोग के गतिविधि और राज्य के सभी बोली भाषा को प्रश्रय देने हेतु त्रैमासिक " सुरहुत्ती" नामक संग्रहणीय पत्रिका आरम्भ हुई जो आगे चलकर शोध कार्य के लिए महत्वपूर्ण होगी।

3प्रशिक्षण:
आयोग के उक्त दो महत्वपूर्ण कार्यों के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी को राजकाज में व्यवहृत करने हेतु जिला मुख्यालय के अधिकारी कर्मचारी एवं महानदी भवन मंत्रालय एवं संचालनालय  इंद्रावती भवन में चरण बद्ध तरीके से प्रतिवर्ष प्रशिक्षित किया गया। जिसके अधिकारी कर्मचारी की उपस्थिती एवं उत्साह महत्वपूर्ण रहा। राजनांदगांव , बेमेतरा, बालोद, कोंडागांव, मानपुर मोहला। कांकेर जैसे जिला में अधिकारी कर्मचारी को प्रशिक्षित किया गया।

4   सम्मान: 
राज्य स्तरीय मुख्यमंत्री सम्मान छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ अन्य राजकीय भाषा बोली सदरी लरिया कुड़ुख हलबी भतरी गोंडी आदि विकास और साहित्य सृजन हेतु महत्वपूर्ण साहित्यकारों को मान मुख्यमंत्री के हाथों उनके निवास पर सम्मानित किए गए।
राजकीय रामायण समारोह में छत्तीसगढ़ी और राज्य के अन्य भाषा बोली में लिखे गए रामकथा के महाकवियों और साहित्यकारों का राजकीय सम्मान आयोग के सौजन्य से संस्कृति विभाग द्वारा किया गया।

5मानक शब्दकोश एवं व्याकरण निर्माण समिति का गठन 

राज्य के विभिन्न लब्ध प्रतिष्ठित 12 सदस्यीय भाषा विंदो और साहित्यकारों की समिति बनाई गई और 13 13 अक्षरों को बताकर वृहत्तर शब्दकोश निर्माण कराए जा रहे है। प्रथम चरण पूर्ण हो चुका है और पांडुलिपि प्राप्त हो गई है जिसका टाइपिंग भी आरम्भ हो चुका है। 
जब मानक शब्दकोश और वृहत्तर व्याकरण बन जाएगा तब नियमानुसार आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी को शामिल करने की दावा भाषा निदेशालय में प्रस्तुत किया जा सकेगा। इन सबके लिए पहली बार गंभीरतापूर्वक कार्य किया गया। और उसके अपेक्षित परिणाम आने लगा भी था।छत्तीसगढ़ी पहले से अधिक शहरी और शैक्षिक संस्थानों और कार्यालयों में व्यवहृत होने लगें हैं। 


इस तरह तीन वर्षों के कार्यकाल उपलब्धि से भरा रहा।

Saturday, June 7, 2025

सत्यदर्शन

रविवारीय चिंतन  

    ।।सत्यदर्शन ।।
        
   प्राण तत्व को आत्मा और उसे परमात्मा का अंश तथा वे  जहाँ से वह आते हैं उसे परलोक स्वर्ग जन्नत हैवन आदि कहे गये हैं। इस हिसाब से जहां आत्मा की बात हुई कि वह आत्मवादी दर्शन में यानि कि ईश्वरवाद के अन्तर्गत हो जाते हैं।
       अनात्मवाद में आत्मा जैसी किसी चीज पर यकीन नहीं करते और वे अनीश्वरवाद में आते हैं।
मनुष्य या प्राणियों में जीवन होते हैं। ये जीव या प्राण हैं ,इसे ही आत्मवादी आत्मा कहकर तमाम मायाजाल फैलाए हुए है। इसी में प्राय: लोग उलझे हुए है जबकि वह ऐसा है नही, यह सब कल्पना मात्र है । यह प्राण या जीव  संयोग से उत्पन्न व क्षय होते हैं। इनका अस्तित्व देह से है ,इनसे परे इनका कोई अस्तित्व नहीं  है। 
      धर्म, मत ,पंथ, दर्शन मान्यताएँ प्राणियों अर्थात् जीव धारी देह के लिए हैं  खासकर मानव  प्रजाति के लिए  ।जिनके मन और मस्तिष्क होते हैं  जो सोचते विचारते है न कि‌ निर्जीव या विदेह के लिए ( इसमें पशु पक्षी को भी रखे जा सकते हैं बावजूद उनमें किंचित मात्र गुण धर्म होते हैं)। न ही जीव या प्राण के लिए, क्योंकि यह तो एक तरह से  ऊर्जा या  अदृश्य यौगिक तत्व है। जो अदृश्य अकर्ता व निरपेक्ष या तटस्थ पदार्थ की तरह है। पर इसी के नाम पर अनेक तरह के भ्रम फैला हुआ। व्यक्ति कितने भ्रमित है देह की जतन चिंता छोड़ प्राण जीव या कथित आत्मा और उनके स्वामी परमात्मा की सिद्धि  के क्या क्या उद्यम नहीं करते और   संग साथ रहने वाले देहधारियों से वैमनष्य पालता हैं। वर्चस्व के युद्ध लड़ता हैं मार-काट हिंसा फैलाते हैं। धर्म के लिए अधर्म करते हैं। सच कहे तो धर्म मत पंथ रिलिजन आदि अपनी अपनी प्रणालियों और पद्धतियों के लिए वचनबद्ध होते हैं। फलस्वरुप किसी दूसरी प्रणाली पद्धति के प्रखर विरोधी और द्वेषी हो जाते हैं।
   और सब होता है ईश्वर के नाम पर जिनका कही वजूद है भी या नहीं आज तक अज्ञेय है । इसलिए बुद्ध से लेकर गुरुघासीदास  जैसे प्रज्ञावान महापुरुषो ने उस कल्पित ईश्वर आत्मा परमात्मा उनके लोक परलोक  आदि के लिए भक्ति, उपासना, पूजा- कर्मकांड में फसे उलझे लोगों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के प्रति यहाँ तक पशु -पक्षी, वृक्ष आदि जीवधारियों के प्रति  प्रेम, परोपकार सद्भाव, सौहार्द जैसे सद्गुणों के व्यवहार करने की अप्रतिम सीख दी हैं। दोनो का दर्शन वास्तविक और सत्य है इसलिए इनके दर्शन को सत्य दर्शन या सच्चनाम / सतनाम दर्शन कहे जाते हैं।
    बुद्ध को उनके अनुयाई  सचलोचन या सच्चनाम  कहते हैं जबकि गुरुघासीदास को "सतनाम सद्गुरु" कहते हैं। 
    
                 

                                          -डाॅ. अनिल भतपहरी

Thursday, May 15, 2025

शास्त्रीय संगीत छत्तीसगढ़ी महक

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।।शास्त्रीय संगीत में छत्तीसगढ़ी सुरभि।।

    छत्तीसगढ लोक संगीत  में समृद्ध हैं पर शास्त्रीय संगीत  प्रायः नगण्य है,हैं भी तो छत्तीसगढ़ी पन से कोसों दूर हैं।यह एक विडंबना ही हैं कि भारतवर्ष  या कहें एशिया महाद्वीप में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़  छत्तीसगढ में प्रथम हैं। परंतु शास्त्रीय गायन, वादन, नृत्यादि में छत्तीसगढ बंदिश, गीत, वाद्ययंत्र और वेश भूषा आदि का कोई प्रचलन नहीं  और न ही छत्तीसगढ़ी से कोई रिश्ता नाता है । गांव, कस्बा शहरों में लोक कलाकारो की अगणित संख्या होने और रायगढ़ घराना होने के बावजूद भी लोक में शास्त्रीय संगीत लोकप्रिय नहीं हो सका हैं। इस दिशा में कोई गंभीरतापूर्वक  प्रयास  भी आजतक नहीं हों सका ना ही कलाकर, जनप्रतिनिधि, इच्छुक हैं फलस्वरूप शासन प्रशासन का ध्यान भी आकृष्ट नही हो सका हैं।
      जहा जहा घराने हैं उनकी शैली में उस राज्य की भाषा,वेशभूषा लोक संगीत भी उनमें घुलामिला हैं।
बनारस, किरना, जयपुर, ग्वालियर, कर्नाटक, रविन्द्र संगीत , वाद्य मे घटम, नाद स्वरम , सारंगी आदि नृत्य में कत्थक, ओडीसी, भरतनाट्यम, कुचीपुड़ी, मोहिनीअट्टम आदि के वेशभूषा में उस राज्य की पहनावे ही उन्हें विशिष्ट बनाई है।तो छत्तीसगढ मे गायन में छत्तीसगढ़ी गीत बंदिश ख्याल ठुमरी क्यों नहीं? कत्थक की रायगढ़ घराने में छत्तीसगढ़ी वस्त्राभूषण क्यों नहीं और कुछेक लोक वाद्य को सहायक वाद्य के रुप में सम्मिलित कर छत्तीसगढ की शास्त्रीय संगीत को छत्तीसगढ़ी सुरभि से सुवासित क्यों नहीं किया जा सकता? 
     हालाकि कमलादेवी महाविद्यालय में डा अरुणसेन डा अनीता सेन स्वरचित छत्तीसगढ़ी  गीतों को अध्ययन के समय हम विद्यार्थियों के साथ रागों के साथ गाते भी थे। दुर्गा महा मे हमारे गुरुदेव गुणवंत व्यास ने गुरतुर गाले राग द्वारा चुनिंदे रचनाकारों की छत्तीसगढ़ी  रचनाओं को विविध रागों में आबद्ध कराए। वर्तमान में कृष्ण कुमार पाटिल जी गायन कर रहें हैं। पर यह चंद  शौकिया शुरुआत मात्र हैं इसे प्रोत्साहित करने की नितांत आवश्यकता हैं। अब छत्तीसगढ़ी जनता भी शिक्षित और शिष्ट रुचि के होने लगें हैं और क्लासिक संगीत हिंदी में सुनने के लिए बेताब भी रहते हैं तो क्या उन्हे उनकी अपनी मातृ भाषा छत्तीसगढ़ी और वेषभूषा वातावरण में उपलब्ध करा सकते हैं,उन्हें कब तक वंचित रखें ?

   इन्हीं प्रश्नों और मुद्दों पर पद्मश्री डॉ ममता चंद्राकर कुलपति इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, पूर्णश्री राउत सुप्रसिद्ध ओडीसी नृत्यांगना, एवम् डेविड निराला लोक संगीत शिक्षक के साथ गंभीरतापूर्क सफल खुशनुमा उत्साहित चर्चा हुई कि ऐसा किया जा सकता हैं।

Sunday, May 11, 2025

नसीहत

#anilbhattcg 

नसीहत 

धर्म मज़हब जाति पर 
कत्लेआम मानवता का 
दंभ के प्रमाद पाले हुए 
कृत्य  दानवता का 
भड़कते धार्मिक भावना
उकसाते रहे सदा 
कट्टरपंथियों की सत्ता मोह का 
यह कैसी विकट दुर्दशा 
होम करते जलाए हाथ
ये अपढ़_ कुपढ लोग 
उस्तरा बंदरों के हाथ में 
खून से लथपथ लोग 
क्या पता इनकी ढिठाई 
से कुछ बड़ा हो जाते 
रखें हुए दोनों के 
अणु बम खड़ा हो जाते  
    *       *       *
कायरों की कायराना हरकत 
पहलगाम की चोटिल चोट 
पता हैं उनकी फितरत 
फिर मच गई अनायास होड़ 
करते हवाले हमारे 
उन आतंकी को 
यूं शत्रु नहीं मानते किसी 
आम पाकी को 
पर ऐसी कुछ बात नहीं 
एक दूसरे पर विश्वास नहीं 
साबित करने अपने को 
असली मर्द का बच्चा 
छीनते एक दूसरे की 
अस्मत का कच्छा 
सदा बाली सुग्रीव सा द्वंद्व 
इनके जड़ में वहीं धर्म तत्व 
*             *                    *
समझ कर बिगडै़ल बच्चा 
नाराज़ हो गए बड़े अब्बा 
कान उमेठ कर दोनों के 
कर दिए गोल डब्बा 
करो सेवा पीड़ित मानवता की 
सक्षम राष्ट्र गढ़ों 
यूं ही धर्म मज़हब के नाम
व्यर्थ न लड़ कट मरो 
जन न हो तो निर्जन स्थान 
कोई राष्ट्र नहीं 
जन सेवा ही राष्ट्र सेवा है 
इनसे बढ़कर कोई धर्म नहीं
भले समझो उसे तुम 
नीरा मांस की मंडी 
पर वहीं से बुझी आग 
लपटें हुई ठंडी

Wednesday, May 7, 2025

रक्त सिंदूर

मित्रों सुनिए हमरी छकड़ी 

रक्त सिंदूर 

भारत मां की चरणों में चढ़ाकर के सिंदूर 
संकल्प लिए है शत्रु को करने  चकनाचूर
करने चकनाचुर दुश्मन को  हमने ठाना है 
एक के बदले में सौ मुंड  काट कर  लाना है 
निभाते रहे दस्तुर और चले प्रेम भरी वचनों में‌
परअब रक्त सिंदूर चढेगा भारत मां की चरणों में‌

बिंदास कहे  डा.अनिल भतपहरी / 7-5-2024

Wednesday, April 30, 2025

सामयिक विमर्श

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         ।।सामयिक  विमर्श  ।।

निजीकरण और ठेका प्रणाली से  देश की अकूत संपदा को राजतंत्र की तरह लूटा जा रहा हैं। पहले राजा -प्रजा था अब मालिक -नौकर. ऐसा लगता है कि इन नये नवेलों मालिकों के इशारे पर तीनों पालिकाएं‌  चल रही हैं।  
   दूर -दूर तक इनके उन्मूलन का कोई सोच नही ।उल्टा सार्वजनिक उपक्रमों में बड़े पदो पर बैठे उच्च वर्गीय लोग कमीशन खोरी कर बीमारु उद्योग बना रहे है !फिर बहाना- बाजी कर उसे निजीकरण कर दिये जा रहे हैं।‌यह खेल विगत दो तीन दशकों से जारी है ।इसलिए भी सकल जनसंख्या की बमुश्किल  20% आबादी नियमित आय वर्ग मे आज तक सम्मलित नही हैं। कोई  भूखे से न  मर जाय  इसलिए  मुफ्त राशन बाटने की योजनाए चला रहे हैं। जो कि अव्यवहारिक हैं। क्या ऐसे ही आत्मनिर्भर भारत बनेगा ? आय का स्तर में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है जो इस महादेश के लिए उचित नही हैं।
  निम्न मध्यम वर्ग के युवाओं की बेरोजगारी और  ऊपर से खाली दिमाग शैतान घर टाईप  इनकी  फौज खड़ी हो गई ।उसे कह रहे है  "रोजगार मत मांगो , बल्कि  रोजगार  दो।"पर किसे दे ,क्या दे यही उसे पता नही। स्वरोजगार के महकमे और बाजार में चंद लोगों की कब्जा है वहां आसानी से प्रवेश नही है । इन्ही लोगो की हाथ में देश की  आर्थिक तंत्र है । 
     फलस्वरुप दिशाहीन युवा वर्ग और बेरोजगारों को धार्मिक रैली शोभायात्रा पर लगा दिये गये हैं‌। कथावाचकों की बाढ़ सी आ गई है ।  जहां -तहां देखो भोग -भंडारा ब्लेक मनी का वारा न्यारा। भीड़ का नेतृत्व कर आयोजक लोक नेतृत्व की ओर आ रहे हैं।  

  एक समय महाविद्यालय की छात्रसंघ नेतृत्व की नर्सरी थे अब कथा आयोजन , व्रत त्योहार शोभायात्रा जुलुस आदि के  आयोजन नर्सरी  में बदल गये हैं।जहां से छुटभैये नेता आ  रहे हैं। और वही लोग एक -दूसरे के आयोजन को सही- गलत ठहराकर गला -काट प्रतिस्पर्धा कराते आम जनता को आस्था -श्रद्धा के नाम पर लामबंद कराते वोट बैंक भी बना रहे हैं। जिससे देश मे रह रहे अनेक धर्म  मत मजहब पंथ रिलिजन के लोग परस्पर द्वेषी होते जा रहे हैं।यह राष्ट्र ‌के लिए घातक हैं। 

  सबसे बुरी बात तो नव धनाड्यो द्वारा शहरों में कालोनी कल्चर है जहां अपने अपने समुदाय , खान -पान की स्तर देख प्लाट और फ्लेट्स बेचे जा रहे हैं ।जो आदिम बर्बर जाति वाद का ही नव वर्जन हैं। इस सब पर प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है।
                जब किसी एक धर्म की बातें ज्यादा की जाएगी किसी जाति को अधिक महत्व व बढावा मिलेगा तो स्वभाविक है दूसरे धर्म जाति के लोगों में वैमष्यता आकर ही रहेगी ।पशु पंछी , कीट पतंगों को छेड़ते है तो वे प्रतिकार करते है तब किसी मनुष्य को छेड़ेगें को बवाल छिड़ेगा ही। धीरे धीरे देश के अनेक भागों से वर्ग संघर्ष साम्प्रदायिक तनाव की आये दिन खबरें बेचैन करने वाली हैं । 
        ऊपर से  मासुम सैलानियों  के ऊपर  धर्म आदि पूछ कर कायराना आतंकी हमला और उनका कनेक्शन सीमा पार से होना बहुत ही निन्दनीय है। इसका तो मुंह तोड़ जवाब हमारी सेना देगी .परन्तु  ऐसे गमगीन महौल में देशवासियों के मध्य ही साम्प्रदायिक तनाव का फैलना और एक -दूसरे को शक- सुबहा से देखना ! उसके लिए मिडिया जगत के माध्यम से प्रायोजित महौल बनाना क्या सही है? ऐसे मे कैसे  मिडिया को चतुर्थ स्तंभ कहां जाय भला ?

Thursday, April 24, 2025

वतन पर मिटने के आदि है लोग

#anilbhattcg 

वतन पर मिटने के आदि हैं लोग 

जिन्दगी के भाग-दौड़ से 
थके-ऊबे लोग 

जीवन संघर्ष में उतरने को
व्याकूल लोग 

आते हैं हसीं वादियों में बिताने 
सुकूं के कुछ पल लोग 

इनके बदौलत ही जीवन जीते 
यहां हसी-खुशी लोग 

पर किसी को अमन पसंद नही 
है कैसे कायर लोग 

गर साहस हो तो आओ सामने 
पीठ पीछे करते फायर  लोग 

दूध से जला छाछ फूंक न सका  
बेफिक्र गफलत में रहे लोग 

व्यर्थ नही जाएगी जन की कुर्बानियां 
वतन पर मिटने के आदि हैं लोग 

मत भूलों कि वार नही होगा 
अपने आकाओ के गोद में बैठे लोग 

कुछ चूहे घुसे है बिल मे कब तक 
किंग कोबरा छोड़ दिये है लोग 

हमाम में सब नंगे कह रहो मुगालते में 
यहां तो नागाओं का फौज पाले है लोग 

- डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Friday, April 18, 2025

सतनामियो की प्रवृत्ति और उनसे व्यवहार

सतनामियों की प्रवृत्ति और उनसे हुए व्यवहार 

सतनामियों में ऋषि गौत्र, उनके अनुरुप जीवन वृत्त, कृषि संस्कृति,गोपालन आज पर्यन्त जारी हैं.महाभारत कालीन 
कुछ प्रथाएँ जैसे युद्धअभ्यास, द्युत क्रीड़ा,रहस, पंड़वानी पंथी नृत्य मलखम नाचा  मनोरंजनार्थ प्रचलित हैं. सत्य के प्रति अटूट आस्था और   किसी भी बुराइयों और कुप्रथाओ के विरुद्ध  जन जागरण  आंदोलन में उत्साह पूर्वक भाग लेना मूल प्रवृतियाँ हैं.

भारत वर्ष में प्रथम गौ रक्षा आंदोलन सतनाम पंथ के चतुर्थ उत्तराधिकारी  गुरुअगमदास गोसाई और महंत नयनदास महिलाँग के नेतृत्व में 1915 से चला. तब लम्बे संघर्ष और आंदोलन से ब्रिटिश बुचड़ खाना कर्मनडीह ढाबाडीह बलौदाबाज़ार छत्तीसगढ़ बंद हुआ.
सतनामी कृषक और गोपालक समुदाय हैं. घी के व्यवसाय करने वाले घृतलहरे गौत्र धारी ऋषि घृत मंद परम्परा से मेदीनीराय गोसाई मथुरा क्षेत्र के वासी थे. औरंगजेब से संघर्ष उपरांत वे 1662 में छतीसगढ़ में आ गए. फिर तीन पीढ़ी बाद 1756 में गुरुघासीदास का अवतरण हुआ.

कुछेक ऋषि गौत्र दर्शनीय हैं -

भारद्वाज - भट्ट, भतपहरी, भारती
मरकंडेय - मारकंडे, माहिलकर, महिलांग 
टंडन - टांडे 
जन्मादग्नि - जांगिड़ जांगड़े 
अंगिरा-  ओगर,अजगल्ले 
परासर - पात्रे 
कणव - कुर्रे करसाइल कुरि 
चतुरवेदानी सोनवानी इत्यादि....
      बहरहाल छत्तीसगढ़ में सतनामी बड़े जोत वाले कृषक हैं. और सैकड़ो जमींदारी मंडल गौटियां रहे हैं. मैदानी क्षेत्र में कुर्मी तेली और सतनामी ही बड़े भू स्वामी हैं. बाकी सेवादार पौनी पसारी जातियाँ इनके अधीन जीवन यापन करने वाले समुदाय हैं.परन्तु एक जगह एक भाषा एक संस्कृति के बाद भी इनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार से ऐसा लगता हैं कि ऐ लोग मुग़ल बादशाह औरंगजेब से संघर्ष कर आव्र जित समुदाय हैं. शाही फरमान कि सतनामियों को चुन चुन कर ख़त्म कर दिया जाय उनके वजूद को नेस्तनाबूत कर दिया के चलते भयवश असैनिक व सीधे  लोग इस समुदाय से दूरी बना लिए. जिसे  देखकर अन्य प्रान्त से लाये बसाए  मालगुज़ार,पंडित और व्यापारी लोग जो शहरों  में रहे वही लोग इनसे जानबूझकर दूरी बनवाये ताकि फुट डालो राज करो की नीति से वे लाभ उठा सके.
गुरुघासीदास के सतनाम पंथ और उनसे हुए  जन जागरण से लोग प्रभावित  हो बड़ी तेजी से धर्ममांतरित   हुए तो उसे रोकने भी अस्पृश्यता व्यवहार करने लगे. इसे देख अनु जाति वर्ग में सम्मलित किये गए.
अन्यथा डा अम्बेडकर लिखित पुस्तक " अछूत कौन और कैसे? में  जितने भी प्रमुख बिंदु दिए हैं उनमे एक लक्षण भी सतनामियों में नहीं मिलते -
अछूत होने के कारण 
1 अस्वच्छ पेशा होना - सतनामी बड़े कृषक और तेली कुर्मी से होड़ लेता हुआ. कृषि कार्य अस्वच्छ पेशा नहीं हैं.
3 गाँव से बाहर  दक्षिण दिशा में निवास होना, कच्चे मकान या झोफड़ी-   सतनामियों के प्रायः बाड़ा नुमा बड़े  पटाउहा वाला दो तल्ला घर, कुआ बाड़ी,बारी ब्यारा कोठार युक्त घर. बीच गाँव में घर या पूर्व दिशा में बसाहट हैं.
4 गाय बैल पशुधन नहीं. सतनामी बड़े गोपालक हैं उनके घर राउत और पहटिया लगते हैं.बकरी मुर्गी पालन जैसे कोई कार्य आज भी नहीं हैं.
5 गोमांसाहार - सतनामी प्रायः शाकाहारी हैं वे मांस क्या उनके साहिनाव तक को नहीं खाने वाले समुदाय हैं. नारनौल मथुरा क्षेत्र से आयतीत समुदाय दूध दही घी  उत्पादक खाने और बेचने वाले समुदाय हैं.
6भूमिहीन - यह बड़े कृषि जोत वाले हैं मालगुजार मंडल गौटिया होते हैं. पौनी पसारी जातियों राउत लोहार कुम्हार चमार ( मोची मेहर  ) के पालक हैं.
7 कुरूप / निर्धन असभ्य - सतनामी सर्वांग सुंदर दर्शनीय, सम्पन्न भिक्षावृत्ति से रहित परिश्रमी समुदाय हैं.

 तो फिर अस्पृश्य होने का कारण क्या हैं?
1 ब्राह्मण वाद को नहीं मानना 
2 मूर्तिपूजा नहीं करना 
3 शाक्त मत का प्रबल विरोध 
4 बलि प्रथा का विरोध 
5सभी  अछूत सछूत जातियों के  साथ सम व्यवहार और उसे अपने में मिला लेना.
6 गुरुप्रथा 
7 कठोर परिश्रम और स्वालंबी होना.

इन सब तथ्य के बावजूद सतनामियों के साथ कुछ अन्य प्रान्त से आये और नगरीकरण होने से बसे लोगों ने मैदानी क्षेत्र में साथ साथ बसे तेली कुर्मी लोधी अघरिया जातियों के प्रतिद्वन्दी बना दिए ताकि इनमे सामाजिक धार्मिक एकीकरण न हो सके और इनके बीच पलने वाले सेवादार जातियाँ नाई, धोबी, राउत, मोची मेहर  मेहतर गाड़ा लोहार कुम्हार कहार मरार आदि भी अपने अपने ठाकुरों अर्थात भू स्वामी किसानों के बीच बटा रहे.
आजादी के पूर्व और बाद में बड़े ग्रामो क़सबो शहरों में बसे  व्यापारी  मारवाड़ी, गुजरती मराठी सिंधी,पंजाबी और सरयूपारी  ब्राह्मण आदि लोगों ने किराना, और जरुरत की चीजें बेचने दुकान खोले और महाजनी देशी बैकर बनकर आर्थिक शोषण किये वही लोग तेजी से धनाढ्य हो लघु और बड़े उद्योग लगाकर  पुरी तरह छत्तीसगढ़ की  आर्थिक तंत्र पर नियंत्रण कर लिए गए. तथा सामाजिक धार्मिक  एवं राजनैतिक रुप से पुरी छत्तीसगढी जनता पर राज करने लगे.
आदिवासी बहुल राज्य भी बास्तर सरगुजा क्षेत्र में गोड़ कंवर बिंझवार भुजियाँ मुरिया माड़िया उरांव पहाड़ी कोरबा बैगा भैंना के रुप में सांस्कृतिक रुप से विभाजित और अंग्रेजो द्वारा ईसाई धर्ममांतरित हो परस्पर बटे हुए हैं. इन पर भी पर प्रांतिक लोगों का नियंत्रण हैं. और वे शहरी लोग अपनी लाभ के लिए एकजुट होकर छत्तीसगढी समुदाय को बाटकर शक्तिहीन कर उस पर राज कर रहे हैं. उनकी अपनी बोली भाषा कला संस्कृति और स्वायत्ता पर नियंत्रण हो चूका हैं.

शेष आगामी अंक में

संपादकीय म ई 2025

संपादकीय ....

सतनाम धार्मिक स्थलों-बाड़ो का रखरखाव व प्रबंधन  हेतु "सतनाम संपदा समिति" का गठन  हो ! 


अप्रेल का महिना सतनाम धर्म- संस्कृति में महत्वपूर्ण माह है। 
इस माह में  राजा गुरु बालकदास जी के कर्मभूमि बोड़सरा धाम मेला का महिना हैं। जहां शौर्य पराक्रम के साथ -साथ श्रद्धा भक्ति  के लिये भी जाने जाते हैं। ज्ञात हो कि शिवनाथ नदी के उस पार रतनपुर राज्य में  बिल्हा तहसील जिला बिलासपुर में कुआ बोड़सरा धाम स्थापित है। जहां से रतनपुर राज के सतनामी समाज जुड़े हुये थे और वहां से समाज का संचालन होते थे। सुप्रसिद्ध तेलासी बाड़ा जैसे ही हुबहु यह महत्वपुर्ण  निर्माण है। 

 भीषण अकाल के समय गुरु वंशज समाज हितार्थ जमीन बाड़ा आदि को गिरवी रखे।
 तत्कालीन महाजनों का हड़प नीति और चक्रवृद्धि ब्याज ,मुड़कट्टी बाढ़ही डेढ़ही से अनेक मालगुजार मन्डल गौटिया और कृषक अपनी भूमि और गांव से बेदखल हो गये या संपदा और मिल्कियत को मुकता नही सकने की लज्जा या हिकारत से छोड़ दिये । फलस्वरुप शहरों में बसे अंग्रेजी सत्ता से संरक्षित गैर प्रांतिक मूल के  व्यापारी / ठेकेदारों ने मिली भगत कर उन्हे कुर्क नीलाम करवाकर या चुपचाप कागच पत्र बनवाकर या कूट रचकर हथिया लिये ।

 जिसमे तेलासी बाड़ा , बोड़सरा बाड़ा , रायपुर स्थित गुढियारी  रायपुर के साहेब बाड़ा, जवाहर नगर के मांगड़ा बाड़ा मोवा बाड़ा  प्रमुख है। इनमे मोवा के गुरुबाड़ा को छोड़ शेष गिरवी में डूब गये ।
    मोवा बाड़ा में गुरु अगमदास गोसाई  मिनीमाता जी रहती थी और स्वतंत्रता आन्दोलन को संचालित करती थी।जहां पर प नेहरु के विश्वस्त बाबा रामचंद्र रहते थे और यहां की जानकारी और रणनीति बनाते थे। वर्तमान मे विजय गुरु / रुद्रगुरु साहेब लोगो का निवास स्थल हैं।

उनमे सबसे चर्चित  तेलासी बाड़ा मुक्ति आन्दोलन देश भर में चर्चित रहा । गुरु आसकरनदास साहेब एंव राजमहंत नैनदास कुर्रे के नेतृत्व में 103 सत्याग्रहियों की तीन दिनों की जेल यात्रा से प्रदेश का महौल गर्मा गया और देश भर मे चर्चा हुई । फलस्वरुप तत्कालीन मुख्यमंत्री  मोतीलाल वोरा की सरकार ने सभी सत्या ग्रहियों को 6- 10  अप्रेल 1986  को   नि: शर्त रिहा कर तेलासी बाड़ा को  गणेशमल लुंकड़  जैन से 27 अप्रेल को  मुक्त करवा कर समाज को सुपुर्द किया ।तब से इसी तिथि को तेलासी बाड़ा मुक्ति दिवस मेला धूमधाम से मनाये जाते हैं। पर बाड़ा खंडहर हो कभी भी जमींदोज हो सकता है। इनके पुनर्निर्माण की नितांत आवश्यकता हैं। 
इसी तरह बोड़सरा बाड़ा की मुक्ति आन्दोलन कई दशकों से जारी है पर मामला न्यायालय में लंबित होने से  आज पर्यन्त लाखों श्रद्धालुओं को बाड़ा का दर्शन नही हो पाता। यह दु:खद  है हालांकि बाड़ा मे विगत कई दशको से कोई नही रहते और खंडहर सा जीर्ण - शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है। 

बोड़सरा गांव में  नाले के पास मैदान में  मन्दिर व जैतखाम और सतनाम भवन बना हुआ है ,वहां प्रतिवर्ष   चैत्र शुक्ल पंचमी से सप्तमी ( 2-4 अप्रेल  )को त्रिदिवसीय विशालकाय मेला  भरता है जो कि गरिमामय  सम्पन्न हुआ।‌
गुरुघासीदास जयंती समारोह के प्रवर्तक मंत्री  नकूल देव ढ़ीढ़ी  जयंती  12 अप्रेल को  उत्साह एंव धुमधाम से मनाई गई । महासमुन्द ,भोरिंग , बैहार आरंग सहित क ई जगहों पर जयंती आयोजन की खबरें हैं। 
  इसी तरह  आमापारा में सतनामी समाज को आबंटित भूमि जिसमें छात्रावास आश्रम और धर्मशाला बनना था वहां पता नही तत्कालीन प्रबंधक समिति अध्यक्ष कन्हैलाला कोसरिया , रामाधार बंजारे  आदि ने बिल्डर्स विमल जैन से मिलकर किस सेवा शर्त द्वारा व्यवसायिक परिसर गुरुघासीदास प्लाजा 5 मंजिला भव्यतम  निर्माण करवाया ।दुकाने बाट या बेच दी गई । करोड़ो की संपदा से समाज और होनहार छात्रों का भला होता वह आज चंद लोगो के पास जा रहे है। वर्तमान प्रंबधक लोग महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब कर दिये गये है  या न्यायालय में विचाराधीन है इस तरह की भ्रामक जानकारियां देते है या वास्तविक तथ्य छुपाते है जबकि निर्माण 30 से अधिक हो चुके है परन्तु आज तक समाज को बिल्डर  जैन द्वारा सुपुर्द ही नही किया हैं  कितने वर्ष के लीज है यह भी सार्वजनिक नही करते । जो कि चिंतनीय है। समाज के प्रभावशाली लोगो को प्लाजा मुक्ति हेतु अभियान चलाना चाहिये ।कही यह भी बोड़सरा बाड़ा जैसा न हो जाय । अब समय आ गया है कि सतनाम धर्म स्थलों और बाड़ो के रख रखाव और संरक्षण के लिये  "सतनाम संपदा  समिति"  गठित किया जाय ।जैसे वक्फ और मठ मंदिरों की संपदा के लिए संस्थान गठित हैं। ताकि वहां पर  सतनाम धर्म  संस्कृति से संदर्भित विविध आयोजन सम्पन्न किया जा सकें। दान दाताओं द्वारा उचित फोरम या संस्थान नही होने से दुसरे धर्मों के मठ - मन्दिर या धर्म स्थल  में दान करते हैं  (जैसे बोईरडीह पलारी का  एक‌ निसंतान कृषक  अपनी पुरी खेत दुधाधारी मठ को चढा दिये।) वह यहां कर सकें और उनका सही ।उपयोग होते देख समझ सकें। उनके बुढापा में संस्थान में काम भी आ सकें।

    संविधान निर्माता और आधुनिक भारत के शिल्पी भारत रत्न डा अम्बेडकर  की 14 अप्रेल को जयंती मनाकर उनके प्रदेय को स्मृत किया गया। 

समाज में सार्वजिक रुप से आदर्श विवाह और युवक युवती परिचय सम्मेलन का दौर चल ही रहा है  इसमें न्युनतम आय वर्ग के लोग सक्रियतापूर्वक मजबुरी या जरुरत के हिसाब से सक्रिय है आयोजक वर्ग सम्पन्न और नौकरी व्यवसायी व समाज सेवक साधन सम्पन्न वर्ग है ।परन्तु इस आदर्श विवाह मे उनके परिजनों की सहभागिता नही होती जबकि इसमे भी साधन सम्पन्न वर्ग सम्मिलित होकर गरिमामय और भव्य रुप दे सकते है इस दिशा में सार्थक पहल होनी चाहिये।
     महाविद्यालयीन / स्कूली छात्रों का परीक्षा  परिणाम और प्रवेश और हमारे कृषक बन्धुओं का खरीफ फसल हेतु खाद- बीज  कृषि यंत्र क्रय हेतु  ग्रामीण या अन्य बैकों से ऋण आदि की प्रक्रिया जारी है ।सामर्थ्य अनुसार खर्च करे और जरुरत पड़े तो ऋण ले ।नशा , जुआ और व्यर्थ शान प्रदर्शन की होड़ से बचे और सादगीपुर्ण मितव्ययता से जीवन निर्वहन करें इस अपील के साथ अभी यदा कदा सतनाम सद्ग्रंथ , सतनामायन , आयोजन भी 3-5-7 दिवसीय हो रहें है। अभी अभी खबर आई कि सतनाम भवन भिलाई में त्रिदिवसीय आवासीय  सतनाम सत्संग आयोजन दि ..... से हो रहें हैं।
 इस तरह ग्रीष्मकालीन समय का सार्थक सदुपयोग कर रहे संत समाज को यह अंक सादर समर्पित हैं। पढ़े- पढावे और समाज विकास हेतु सार्थक परिचार्चाए करें  संस्थानों को यथायोग्य आर्थिक सहयोग दे ताकि बेहतरीन आयोजन होते रहें। जितना आयोजन होगा समाज सुसंगठित और सुव्यवस्थित होगा। 
जय सतनाम 
डा. अनिल भतपहरी / 9617777514
प्रबंध संपादक 
सतनाम संदेश 
सतनाम भवन न्यू राजेन्द्र नगर रायपुर छत्तीसगढ़

Tuesday, April 15, 2025

बोरे बासी

बोरे बासी 


ठंडा मतलब बोरे बासी ये डायलाग सनीमा के नोहाय भलुक सिरतोन आए। ते पाए के जुड़ के दिन मे बासी नई खाय जाय अऊ गरमी के दिन होय या असाढ या कुंवार कुहकुही होय आम जनमानस बिकटेच बासी दमोरथे। 
      सैकमा भर बासी बोकेव
      खांध म कांदी के कावर बोहेव 
आवत हव छिरहा खार ला 
 आगोर लेबे साजा रवार मे 

  यह बासी का ही असर है की दो बोझा कांदी  जो बहुत ही वजनी होते हैं को दोपहर लहकते धूप मे भी ददरिया गाते सपरिहा घर आते हैं। बासी की  ठंडक ताशीर के कारण ही यह डायलॉग लोगों के सर चढ़ कर बोला।
   बहर हाल बासी चावल उत्पादक राज्यों की सबेरे की लोकप्रिय खाद्य सामग्री हैं। नाम भले बासी हैं पर यह हिंदी की बासी वाली शब्द के विपरीत हैं। बचे हुए अनुपयोगी वस्तु बासी या बेकार हैं। इसे प्रायः  पशुओं को खिलाए जाते हैं ।
  जबकि बासी को  ताजे गरम भात  में पानी डालकर बनाएं जाते हैं। जिसे एक आधे घंटे के भीतर खाए जाते  यह बोरे हैं। और सुबह के लिए ज्यादा मात्रा में चावल बनाकर भात में पानी डालकर सुबह सुबह खाए जाते हैं।  यह केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि सभी चावल उत्पादक राज्यों की सबसे लोकप्रिय खाद्य पदार्थों में शुमार हैं।
   हालाकि आधुनिक जीवन और पाश्चात्य खानपान तथा शासकीय नौकरी और एकल परिवार के चलते बासी बनाकर खाने की प्रवृत्ति शहरों और नौकरी व्यवसाई समाज में खात्मे की ओर हैं। जबकि बासी सही पोषण देने वाले पारंपरिक और वातावरण के हिसाब अनुकूल खाद्य पदार्थ हैं।
      बर्गर पिज्जा सेडविच मैदा को सड़कर खमन उगाकर ब्रेड बनाते है। मोमोज मे भी मैदा है उसमें गर्म तासीर की साग या चिकन मटन डाल कर कुशली जैसे बनाए जाते है यह ठंड पदेश की खाद्य हैं साथही साथ  गर्म प्रदेशों की इडली डोसा ढोकला थेपला जैसे दक्षिण और पश्चिमी इलाके/ राज्यों के खाद्य पदार्थ जिसे सडकार बनाएं व खाएं जाते हैं।
   लेकिन मध्य छत्तीसगढ़ जहा धान की बम्फर खेती हैं चावल आधारित ताजी खाना खाना खाए जाने की विशिष्ट परंपरा हैं। यहां अनाज को बिना सडाये या कहें खमन उठाए खाने की परंपरा हैं।
    बासी को मंडल गौटिया सहित राजा भी शौक से खाते थे। बासी खाने की बटकी होते थे।
कहीं कही सकीमा भी कहते है जिसमें बासी रखे जाते है 
एक लोकप्रिय ददरिया हैं 
बटकी मा बासी आय चुटकी मा नून 
मैं गावत हव ददरिया तय कान दे के सुन 

  क्योंकि ऐसा ही समझकर इसकी अनादर व हिकारत किए जाने लगे हैं। जबकि यह मल्टी विटामिन से युक्त सुपर फूड हैं।  इसे अनेक संस्थान द्वारा प्रमाणित भी किए गए हैं। बीपी गैस यहां तक कि सुपाच्य होने से शुगर के लिए भी उपयुक्त माना गया हैं।
   अपेक्षाकृत शारीरिक परिश्रम न करने वाले लोग बासी की महत्ता से अनभिज्ञ हैं। फिर इनसे समय संसाधन की बचत भी तो हैं। कभी कभी कम चावल की भात मे पानी छाछ दही डालकर भी अतिरिक्त लोगों की क्षुधा मिटाई जा सकती हैं।
   तो इस तरह से किसी भी राज्य देश खान पान रहन सहन के ऊपर हिकारत या उपेक्षा भाव नहीं रखना चाहिए। क्योंकि सबकी अपनी अपनी दार भात, साग भाजी, खाई खजेना, हाट बाजार, खेती बाड़ी, कपड़ा लता, गहना गोठी, चूरी चाकी, छठी बर बिहाव मरनी हरनी गीत भजन नाचा लेखन , हंसी मजाक कू काहिनी होथे जोन संस्कृति के अभिन्न अंग हे। इन्हीं के भरोसे अभाव मय जीवन मे सभाव भरते  लोग जीवन निर्वहन करते आ रहें हैं।
  बासी बिकती नही और यह व्यवसायिक नही है इसलिए मिलावट से कोसों दूर हैं।शायद इसलिए पौष्टिक हैं। जिस दिन यह बिकने लगेगी शायद तब उनकी गुणवत्ता पर प्रश्न उठेगी। इसे तो बस घर मे बनाव  खाव और ज्यादा हुवा तो अपने साथ टिफिन मे अपने कार्य स्थल खेत बाड़ी आफिस दुकान ले जावे। व्यस्त मस्त और स्वस्थ रहे। जय छत्तीसगढ़ जय भारत

Monday, April 14, 2025

गुलमोहर का पेड़

#anilbhattcg 

गुलमोहर का पेड़ 

हबीब तनवीर साहब के अभिन्न मित्र सेवानिवृत स्टेशन मास्टर सी एल डोंगरे साहब की संस्मरणात्मक एवं मार्मिक आलेख गुलमोहर का पेड़ कृषक युग / सबेरा संकेत के दीपावली विशेषांक 1994  मे प्रकाशित और चर्चित हुई. वो मेरे पास ज़चवाने लाये थे मैंने व्यवस्थित कर उन्हें पत्रकार मित्र नयन जनबंधु को दिया था.उसी अंक में मेरी कविता "प्रणय "प्रकाशित हुई थी. सच में 30-32  वर्ष  वह आलेख कथेतर साहित्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
डोंगरे साहब बांसुरी बजाते थे और छिटपुट लिखते भी थे पर वे प्रकाशन और प्रचार -प्रसार सें कोसो दूर थे. बहुत ही विनम्र और तनवीर जी के प्रशंसक थे.वे उनकी अंग्रेजी में लिखी अंतर्देशी पत्र दिखाते कहते कि साहब जैसा कोई नहीं. सच में हमलोग "जिन लाहौर नहीं देख्या कुछ नहीं देखा  " देखने रंग मंदिर रायपुर आये पर वापसी में कार पर सवार हबीब को देख लौट आये ट्रेन लेट हो जाने सें मंच का लाहौर नहीं देख पाए और पचपन के कगार पर हैं  अबतक पासपोर्ट भी नहीं बनवा सकें हैं. ससुरी किस्मत में विदेश जात्रा का जोग ही नहीं हैं का? 

बहरहाल डोंगरगढ के छोटी बमलेश्वरी मंदिर के आगे पहाड़ की तलहटी में एक आश्रमनुमा प्रांगण हैं जहाँ तनवीर साहब अपने नाटकों का रिहर्सल करते थे. रेलवे टिकट, होटल इस जगह के चयन सें लेकर भोजनादि के प्रबंध डोंगरे साहब के साथ डोंगरगढ इप्टा के  मनोजगुप्ता आदि मित्रगण करते थे.मैं भी उसमें सम्मलित हो जाता और फिर घंटो हबीब साहब के सानिध्य पाते उनके कलाकारों सें बातचीत और रोचक संस्मरण भी सुनते. मैने हबीब साहब को बताया कि हमलोग भी पिता श्री सुकालदास भतपहरी गुरुजी के निर्देशन में चोहल चरनदास चोर खेलते हैं. वे पाईप पीते कहें अच्छा अच्छा... आप क्या बनते थे जी पहले  उजागर ?  ये कैसा पात्र.? जी यह निर्धन भूखऊ के  बालक.का नाम ... स्टोरी अलग हैं? जी हाँ...कई दृश्य हैं दरभंगा बिहार वाली लीला टाइप... तब तक गोविन्द निर्मलकर जी आये साहब सें कुछ कहें क्योंकि वो सिटी तरफ जा रहें थे... उसके बाद चेला अब गुरु. अच्छा चरनदास कौन प्ले करता हैं? जी पिता श्री...अच्छा अच्छा..अभी भी शो करते हैं जी अब प्रायः बंद हो गये....करो चालू करो कई चीजें हैं उनपर काम करों...और वे व्यस्त हो गये.

कार्यशाला स्थल के किनारे साजिदों ने.हारमोनियम ढोलक के थाप दिए तो  खनकती सुर और नृत्य  पूनम की  - "देखो आज बन की रानी कहाँ सोई हैं"... गूंज उठी...रात्रि के 8 बजने वाले थे. बायसान हार्न दंडामि माड़िया की नृत्य अभ्यास और बांस वादन के साथ सफ़ेद कुर्ते पजामे में  झूमते तनवीर को उनकी अधेड श्रीमती, बुजुर्ग डोंगरे साहब और यह नवयुवक अनिल हसरत भरी निगाह सें देख रहें थे जैसे कोई सुरलोक में देव या गंधर्व थिरक रहें हैं!  स्याह रंग में लिपटा माँ बम्लेश्वरी पहाड़ की गोद में ठीक हजारों वर्ष पूर्व "सीता बेंगरा" जैसे  प्राचीन "नाट्य शाला " साकार हो उठी हो.
.   अब तो वह सब  देव सदृश्य कलावंत नहीं रहें पर जो हैं और थिएटर प्रेमी हैं उनकी खातिर डोंगरगढ़ की वह सुरम्य स्थली जिस जगह  पद्मविभूषण हबीब तनवीर साहब कई -कई दिन नाटकों के रिहर्सल में बीताते उसे स्मारक के रुप में सरकार प्रतिष्ठित करें.और उनके  प्रिय एवं अभिन्न मित्र सी एल डोंगरे साहब के गुलमोहर का पेड़ जरुर रोपित कर उक्त सुरम्य स्थल को रंग जगत के लिए संरक्षित करें.
.   
- डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, April 7, 2025

हस्तक्षेप

सड़क उकरेच ददा के 
जेमन उहचे डेरा डारे हे 
नाचत -कूदत रइथे
जुलुस तिहार मनाथे  

हम तो उहि दिन 
जेवनी ले डेरी गयेन
त मोटर म 
रेतावत बाचेन

का कहँव ये दे 
पुलुस धर लिस
रुपया पैसा नोहर हे
तभेच तो बेडागेन

हमन मनसे नोहन 
जिनावर संग राहत
सित्तो जंगल म 
जिनावर होगेन...

सुनब म आथे 
संसद सड़क होगे 
अउ सड़क संसद 
फेर हमन कहुँचों
हबरे नई सकन 

आजकल तो सर्कस 
घलाव नंदागे 
मोगली टार्जन
चेंदरु तको हजागे

येती पंडुम ओती बम 
रिलो बार उजरगे
आँगा कछान
जात्रा मड़ई झरगे

पहाड़ ओदरत हे
जंगल उजरत हे 
अगास म मैना नहीं
लोहा चिरई उड़त हे.


धर्म नहीं पंथ ही उत्कृष्ट और व्यवहारिक हैं.

#anilbhattcg 

धर्म नहीं पंथ ही व्यवहारिक और सर्वोत्कृष्ट है.
आजकल  हिन्दू मुस्लिम बौद्ध ईसाई धर्म के स्थान पर मानव धर्म की बातें की जा रही है. जो कि
किसी के साथ " धर्म " शब्द लगना अव्यवहारिक है. 

.   असल में  भारतवर्ष में  व्यक्ति के लिए "धर्म " कभी रहा ही नहीं वह शैव शाक्त वैष्णव  जैन,बौद्ध  धम्म,मत पंथ ही था जिसे 100-150 वर्ष ही हुए है भारतीयों के लिए  (बौद्ध धर्म को क्योंकि यह देश में जमीदोज हो चूका था इसलिए इसे छोड़कर डॉ अम्बेडकर नें उसे 1956 में पुन:प्रवर्तन किया) सभी मत पंथ आदि जिसमें आदिवासी भी हैं को सामूहिक रुप सें "हिन्दू "कहें गये और उसे ही धर्म मान लिए गये !  जबकि  हिन्दू शब्द स्थान बोधक हैं  यह शब्द किसी भारतीय  भाषा में भी नहीं हैं न ही धर्मशात्र में  हैं. मुस्लिम मजहब हैं,ईसाई रिलीजन हैं.

.  खैर बात  धर्म शब्द की हैं जैसे धर्म किसी वस्तु या व्यक्ति या प्राणी में मिलने वाली  गुण- अवगुण प्रवृत्ति उदा. पानी का शीतल, आग का तपिश, हवा का बहना, धातु का कठोर,शेर का हिंसक मांसाहारी , गाय शाकाहारी, सांप का विषैले होना आदि है जिसे वह अपने में धारित कर रखा है वहीं उनका धर्म हैं . इस तरह यह मनोवृत्ति सूचक धर्म शब्द, पंथ के आगे का हैं या एक धर्म में अनेक मत पंथ की बातें तो और भी अधिक अव्यवहारिक व अप्रसांगिक हैं.तो स्थान बोधक हिन्दू हिन्दूस्तनी भारतीय  या अमेरिकी या पाकिस्तानी धर्म कैसे हो जाएगा? 

असल में समुदाय के मत मजहब पंथ  रिलीजन प्रणाली पद्धति लिखित /अलिखित होते है जिसके अनुरुप जीवन निर्वाह किए जाते है.यह परिवर्तनीय और ऐक्छिक भी है.
नाहक धर्म जो गुण अवगुण आदि को इन के साथ मिलाकर भ्रम फैलाये गये है. धर्म शब्द को व्यक्ति के सामूहिक पहचान के प्रयोग में लाना ही नहीं चाहिए इसे प्रतिबंधित भी कर देना चाहिए.क्या गाय हाथी शेर चींटी मछली चिड़िया जैसे प्राणी और पेड़ फूल टेबल टीवी मोबाईल कार बाइक आदि का कोई  मत पंथ  है? नहीं उनके गुण होते जिसे वह धारित किए होते है.ठीक मनुष्य भी अच्छे बुरे गुण को अन्य प्राणियों की तरह धारित करते है. तो नीरा मनुष्य नामक प्राणी का धर्म हिन्दू मुस्लिम सीख ईसाई आदि क्यों? 
.   हाँ वह समूह में रहता है तो उस समूह समुदाय का मत पंथ मजहब रिलीजन जरुर होते है. उसे ही हम उक्त नाम सें और उनकी कुछेक क्रियाये वेशभूषा आदि सें पहचाने जाते है.बाहरहाल मत पंथ भी गुरु घासीदास जी के कथनानुसार होना चाहिए -

"अवैया ल रोकन नहीं जवाइयां ल टोकन नहीं."

जबरिया किसी पर  मत पंथ विचार को थोपने और जो है उसे जबरिया उनमें बांध कर रखने की आवश्यकता भी नहीं. क्योंकि यही सब चीजें ही सारी फसाद की जड़ है.
परम सत्य ही इस तरह भ्रम जाल और अज्ञानता रूपी तमम को काट कर  ज्ञान का आलोक फैलाते है.

. इस तरह विचार करें तो मनुष्य के लिए  धर्म सें अधिक  पंथ ही उत्कृष्ट और व्यवहारिक है.जो सतत प्रवाह मान और जीवंत या बुद्ध की वाणी में कहें तो " एतो धम्मों ( पंथ  )  सन्नतनो " है. अर्थात जीवन जीने यह धम्म या मार्ग सनातन हैं.
.    सनातन शब्द यहॉं विशेषण हैं जो धम्म मत पंथ की विशेषता को व्यक्त करते हैं. अतः ज्ञानियों प्रज्ञावानो विचारकों को चाहिए कि देश और समाज  में  पंथ मत और धर्म की वास्तविकता को जनमानस को अवगत करावें और उन्हें अनेक तरह के भ्रम और सड्यंत्र सें सावधान भी करावें. ताकि इस उपमहाद्वीपिय महादेश मे विविधतापूर्ण संस्कृति अक्षुण बनी रहें और परस्पर सदभाव और सौहार्द सें अमन चैन क़ायम रहें.

. डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, April 5, 2025

सतनाम सदग्रन्थ का आयोजन

संपादकीय 

सतनाम सदग्रन्थ का आयोजन और उनका सामाजिक प्रभाव 

 सतनाम धर्म संस्कृति एक तरह सें उत्सव धर्मी संस्कृति हैं.जहाँ वर्ष भर कार्यक्रम चलते रहतें हैं.मानव समुदाय में जो विषमताएं  और अभाव ग्रस्त जीवन हैं उनमें  यही सांस्कृतिक आयोजन की समता और सभाव को भरता हैं फलस्वरूप सुखी और संतोषप्रद जीवन जी पाते हैं.
सोचिये आज सें 50-60 वर्ष पूर्व कितनी असुविधाएं और कष्टमय जीवन रहा फिर भी हमारे परिजन बिना बिजली सड़क स्कूल अस्पताल नदी में नाव के सहारे जीवन व्यतीत किया. इन सबके पीछे गाँव -गाँव में गठित बाल समाज,  तीन तरिया भजन, निर्गुण भजन,  पंथी दल, चौका आरती,पंडवानी,रहस बेड़ा, सतनाम संकीर्तन, गुरु घासीलीला मंडली, आल्हा, भरथरी, गोपीचंद,ढोला मारु जैसे गीत भजन गाथा गायन का अनुष्ठानिक और मनोरंजनिक कार्यक्रम रहा हैं.
 खेतों खलिहानों  के  कठोर श्रम को हरने शारीरिक और मानसिक पीड़ा का शमन करने इस तरह के आयोजन करते थे. तब समाज सुगठित और संत,महंत पंच पटेल न्याय कर लेते थे. पुलिस थाने कोर्ट कचहरी का हस्तक्षेप नग्नय या कम था.  आपराधिक प्रवृत्तियाँ जुआ शारब   नशे पान मांसाहार जैसे व्यसनों सें  समाज कोसो दूर होते थे. और यदि किसी के प्रति जानबा होते तो दण्डित होते थे.अनेक ऐसे महंत गुरु थे जिनका प्रभाव  व्यापक स्तर पर था.नैतिक स्तर बहुत ही उच्च होते.सादा विचार और उच्च जीवन ही जीवन का ध्येय था.परन्तु आज गाँवों में यह सब बुराइयां जड़ जमा चूके हैं. और लोगों का जीवन स्तर रूपये कमाने और पर्याप्त आय के बाद भी निम्नतर होते जा रहें हैं.टीवी वीडियो के आने ख़ासकर मोबाईल आने सें सांस्कृतिक आयोजन लगभग खत्म सा हो गये. गाँवो का सामाजिक उत्सव और आयोजन खात्मे की ओर हैं.अब उँगुली में गिने जाने वाले गाँव बचे हैं जहाँ पंथी दल या कोई कला मंडली होंगे.लगभग सभी चीजें व्यवसायिक हो चले हैं और सेवा समर्पण कम होने लगे हैं. 
 एक समय शहर धोखा धड़ी चोरी उठाई गिरी छल प्रपंच के अड्डे थे वह सुविधाओं और सुकून का जगह बन गये हैं.ऐसा क्यों हुआ? इन पर विचार करने की जरुरत हैं.लोग अपना  एकड़ में खेत बेचकर शहरों में 500/700 फ़ीट का लाखों में घर खरीद कर फ्लेट लेकर ख़ुशी और समृद्धि की मृग मरिचिका तलाशते शहरों,क़स्बों में भटक रहें हैं.शिक्षा स्वास्थ्य के निजीकरण हो जाने और प्रतिस्पर्धा के युग हो जाने सें अंधी दौड़ में सब शामिल हो बिना मंजिल तय किए भाग रहें हैं.
.  ऐसे में विगत कुछ वर्षों सें समाज में सदग्रंथ आयोजन सतसंग प्रवचन का 3-5-7  दिवसीय सुविधाजनक आयोजन समाज को पुनः सामाजिक उत्सव की ओर ले जाने और नई पीढ़ी के लोगों में सामाजिक और धार्मिक भावनाओं का बीजारोपण करने का उपक्रम अत्यंत सराहनीय हैं.
समाज में राजनैतिक चेतना गुरुघासीदास के समय सें ही रहा जब उन्होंने अपने सुपुत्र गुरु बालकदास को राजा बनवाया.अनेक संत -महंत को जमींदारी मिली. कलांन्तर उन्ही महंतों में सें 72 संत महंत गुरुआगमदास और राजमहंत नयनदास महिलाँग के नेतृत्व में 1915 में गोरक्षा आंदोलन चलाकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. दूसरी ओर मन्त्री नकुल ढीढी एवं महंत नंदूनारायण भतपहरी मिलकर गुरु घासीदास जयंती के माध्यम सें सामाजिक क्रांति की शंखनाद  अनगिनत लोग जेल की यन्त्रणा सहे और आत्म न्योछावर किए.फलस्वरूप देश को आजादी मिली. शिक्षा और रोजी रोजगार मिले शहरों में बसते गये सत्ता में थोड़ी बहुत सहभागिता मिली. पद -प्रतिष्ठा का मोह बढ़ा तो अनेक दलों में बिखराव होने लगे.  फिर  सचेतक समाज नेतृत्व शून्य हो राजनैतिक रुप सें इस्तेमाल होने लगा.  लोगों में राजनैतिक चेतना बढ़ती हुई दीखता तो हैं पर यह दिशाहीन हैं.इसके कारण बड़ी तेजी सें समाजिक ताने- बाने बिखरते जा रहें हैं. सांस्कृतिक चेतना की दिशा में काम नहीं हो पाने सें नैतिक स्तर में गिरावट आना शुरु हुआ. अतः उन्हें रोकने और नई पीढ़ी को दिशाबोध करने कराने हेतु सदग्रंथ समारोह, सांस्कृतिक जागरण और बौद्धिक क्रांति लाने की दिशा में क्रन्तिकारी पहल हैं.
विचारवान लेखक कवि कलाकारों का साझा सम्मेलन और उनके सम्बोधन प्रबोधन काव्य प्रस्तुतियाँ विचार विमर्श इत्यादि आगे चलकर समाज में नई इबारत लिखेगा ऐसी उम्मीद हैं.इसलिए इस तरह के आयोजन सर्वत्र हो इस दिशा पर हमारे आयोजकों, संगठनों और राजनायिको को सार्थक पहल करना चाहिए. 

असम प्रान्त में मिनीमाता जन्म स्थल चिकनी पथार, दौलगांव में नवनिर्मित मिनीमाता स्मृति भवन के लोकार्पण पर एक वृहत राष्ट्रीय सतनामी सम्मेलन सम्पन्न हुआ.
3 एवं 5 दिवसीय सदग्रंथ आयोजन का सिलसिला भी खरोरा,रहंगी सहित पलारी बलौदाबाजार सहित अनेक क्षेत्रो में हो रहें हैं समाज प्रमुखो और महापुरुषों की जयंती समारोह भी हो रहें हैं.बोडसरा धाम मेला गरिमामय सम्पन्न हुआ.  सतनामी समाज में बलौदाबाजार जिला एक तरह गुरु घासीदास धाम यानि बाबाधाम के नाम विगत कई सालों सें लोगों के जुबान में चढ़ चूका हैं वह नाम शीघ्र शासन प्रशासन के जुबान सें उच्चरित होंगे और इस तरह के रचनात्मक आयोजन  शासन प्रशासन के सहयोग सें समाज को नई दिशा मिलेगी और सुनियोजित ढंग सें  नशा  मांसाहार और साम्प्रदायिक गतिविधियों में हमारे युवजनो की बढ़ती रुझान या इस्तेमाल को यथा संभव रोक पाएंगे इस उम्मीद के साथ यह अंक समाज को सादर सम्पर्पित हैं.

जय सतनाम 

डॉ अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514
ऊँजियार सदन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ़

Saturday, March 29, 2025

विनोद कुमार शुक्ल और उनकी रचनाएँ

#anilbhattcg 

विनोद शुक्ल जी और उनकी रचनाएँ 

.     सरल शब्द विन्यास और कविताएं सर्व साधारण के लिए होते हैं जैसे मंचीय कवि एक साथ हजारों तक अपनी बातें पहुंचा कर मनोरंजन और ज्ञानार्जन भी करा देते हैं.हालांकि उन्हें कवि कम स्टेण्डप कामेडियन कहना अधिक न्याय संगत हैं जैसे के.के. नायकर, राजू  श्रीवास्तव,जानी लिवर,शेखर सुमन इत्यादि. 
परन्तु  कवि विनोद शुक्ल जी  की शब्द विन्यास और कविताएं सरल होते हुए भी उनमें विशिष्ट भाव व्यंजित होते हैं, उसे समझने के लिए समझ की जरुरत पड़ती हैं.सर्व साधारण के लिए यें नहीं जान पड़ते. इसलिए उनकी कविताएं मंच के अनुकूल नहीं बल्कि क्लास रुम के लिए हैं.

शुक्ल जी की हस्ताक्षर नुमा  उनकी प्रसिद्ध कविता देखिये क्या इसे किसी गणेश, नवरात्रि  या  मेले- मड़ाई के मंच सें पढ़ी जा सकती हैं? 

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था 
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था। 
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया 
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था

इसलिए उनकी कविताएं सरल होते भी आसानी सें समझ न वाली भाव सें अनुगुंफित हैं उसे वेद उपनिषद की ऋचाओ, कबीर की उलट बासी या केशव की क्लिष्टता या गीतांजलि की रहस्यमी पंक्ति, अज्ञेय,मुक्तिबोध की असाध्य वीणा,अँधेरे मे जैसी कविताओं की तरह टीका या व्याख्या की जरुरत पड़ती हैं.

बहरहाल हम आधुनिक होने की कितना भी दम्भ भर लें पर 
21 वीं सदी मे भी  रंग लिंग जाति भेद भाव  मानव प्रजाति  मे किस तरह भयावह हैं यह  सुदूर बस्तर मे  देखें जा सकते हैं.जहाँ उनके लोगों सें इतर बाहरी आदमी चाहे वह उनके लिए ही व्यापार या  काम के हो कैसे वह शोषण और जुल्मादि को अंजाम देते हैं.
एक अकेली आदिवासी लड़की को
घने जंगल जाते हुए डर नहीं लगता
बाघ-शेर से डर नहीं लगता
पर महुवा लेकर गीदम के बाजार
जाने से डर लगता हैं

क्योंकि बाजार मे तरह तरह के लोग हैं और आज भी आदमी के लिए अजनबी आदमी ही सबसे बड़े दहशत का कारक हैं.चाहे स्त्री हो या पुरुष.

 उनकी कविता  'जंगल के उजाड़ में जरुरतमंद के घर जरुरत की चीजें आना कितना दुश्वार हैं बल्कि प्यासा कुआँ के पास जाना चाहिए जैसे नियम शर्त हैं और उसी आधार पर  जटिल कठिन जीवन जिसे सदियों सें लोग ढ़ोते आ रहें  हैं.चाहे गाँव हो या शहर.
कांदा खोदते खोदते 
भूख से बेहोश पड़े 
आदिवासी के लिए 
कौन डॉक्टर को बताएगा? 

इसका जवाब देते वे उपस्थित हैं-
जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे' की कुछ पंक्तियां देखिए: 

जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे
मैं उनसे मिलने उनके पास चला जाऊंगा
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी
मेरे घर नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊंगा
कुछ तैरूंगा और डूब जाऊंगा

उफनती नदी का बिम्ब और प्रतिमान को समझे बिना क्या कोई उक्त पंक्ति का सहज अर्थ कर सकते हैं? और फिर क्या वे उफनती नदी देखें भी हैं? 

कविता की तरह ही हाथी पर बैठेंगे क्या? मे उनकी रम्य गद्य रचना देखिये - 
    
   
    रघुवर प्रसाद ऑटो का रास्ता देख रहे थे। दूर से रघुवर प्रसाद ने हाथी को आते देखा। रघुवर प्रसाद को लगा यहां खड़े होने से जैसे चार ताड़ के पेड़ दिखाई देते हैं। उसी तरह यहां खड़े होने से हाथी भी दिखाई देता है। फर्क इतना था कि ताड़ के पेड़ वहीं खड़े होते जबकि हाथी आता दिखाई देता था। आता हुआ हाथी सामने रुक गया। साधु हाथी की पीठ पर बंधी रस्सी के सहारे उतरा। रघुवर प्रसाद को लगा कि साधु पान की दुकान से तंबाकू-चूना लेने आया हो या चाय की दुकान पर चाय पीने। वह साइकिल की दुकान नहीं जाएगा। ऐसा नहीं था कि हाथों के पैर की हवा निकल गई हो। हवा भरवाने की उसको मंशा नहीं होगी। साधु तंबाकू मलता हुआ रघुवर प्रसाद के पास खड़ा हो गया।
.   कोई कह भी सकता हैं कि हाथ पैर की हवा निकल गई बाल सुलभ सा वर्णय क्यों? 
और अंत मे क्या सचमुच कवि और हम सब आदमी या मनुष्य को जान समझ पाए हैं?

जो कुछ अपरिचित हैं
वे भी मेरे आत्मीय हैं
सब अत्मीय हैं
सब जान लिए जाएँगे मनुष्यों से
मैं मनुष्य को जानता हूँ।

तब एक ही रास्ता बचता हैं संतो की तरह पारस सम समदर्शी हो जाना. वो बधिक के लोहे के कटार और मंदिर के लोहे की घंटे को भी सोना बनादे. सबसे प्रेम  करो भले आपसे कोई करें न करें. सबको आत्मीय समझो पर आजकल कौन  हैं जो सबको ऐसा समझ रहें  हो?

.     भले सर्व साधारण की बातें उनकी रचनाओं में शामिल होते हैं.पर बिम्ब और प्रतिमान उन्हें असाधारण कर देते हैं.जैसे चेंदरु जंगल का लड़का हैं वन्य पशु पक्षी के सहचर हैं पर यही फिल्मांकित होकर असाधरण हो गये.या वन कन्याये महुये की टोकरी उठाई किसी पेंटिंग में बेशकीमती हो जाती हैं.

बहरहाल  शुक्ल जी मुक्तिबोध परम्परा के कवि हैं और उन्ही की तरह नये बिम्ब,प्रतिमान सें युक्त उनकी कविताएं प्रेरक, उदात्य और अकादमिक स्तर का हैं इसलिए उन्हें ज्ञानपीठ मिला हैं. हम जैसों का सौभाग्य हैं कि उन्हें छात्र जीवन सें अब तक उन्हें देखने,सुनने और समझने का अवसर मिलते रहा हैं.

 कविवर को बधाई एवं स्वस्थ, सुखी रहने हेतु मंगलकामनाएं

डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

Thursday, March 20, 2025

धर्म नहीं मत पंथ महत्वपूर्ण हैं

मानव के साथ हिन्दू बौद्ध जैन मुस्लिम ईसाई धर्म लगना भी अव्यवहारिक है.
असल में इस नाम सें कोई धर्म रहा नहीं न ही रहना चाहिए..हाँ यह सब मत धम्म पंथ मजहब रिलीजन मात्र हैं जिसे धर्म का पर्याय मान लिए गये हैं या माना जा रहा हैं जोकि गलत हैं.
धर्म किसी वस्तु या व्यक्ति या प्राणी में मिलने वाली गुण- अवगुण प्रवृत्ति है जिसे वह धारित कर रखा है.
असल में मानव समुदाय के मत मजहब पंथ  रिलीजन प्रणाली पद्धति लिखित /अलिखित होते है जिसके अनुरुप जीवन निर्वाह किए जाते है.यह परिवर्तनीय और ऐक्छिक भी है.नाहक धर्म जो गुण अवगुण आदि को इन के साथ मिलाकर भ्रम फैलाये गये है. धर्म शब्द को व्यक्ति के सामूहिक पहचान के प्रयोग में लाना ही नहीं चाहिए इसे प्रतिबंधित भी कर देना चाहिए.क्या गाय हाथी शेर चींटी मछली चिड़िया जैसे प्राणी और पेड़ फूल टेबल टीवी मोबाईल कार बाइक आदि का कोई धर्म है? तो नीरा मनुष्य नामक प्राणी का धर्म क्यों? हाँ वह समूह में रहता है तो उस समूह समुदाय का मत पंथ मजहब रिलीजन जरुर होते है.
मत पंथ भी गुरु घासीदास जी के कथननुसार होना चाहिए -
अवैया ल रोकन नहीं जवाइयां ल टोकन नहीं. जबरिया किसी पर थोपने और जो है उसे जबरिया बांध कर रखने की आवश्यकता भी नहीं.

Wednesday, March 19, 2025

सतनाम रावटी दर्शन यात्रा

#anilbhattcg 

सतनाम रावटी दर्शन यात्रा 

सतनाम रावटी नौ धामों का हुआ दर्शन ।
कृपा सद्गुरु की पाकर मन हुआ पावन।।
इन रमणीय जगहों पर किया गुरु ने रमन ।
जन को‌ नाम-पान देने इनका किया चयन ।।
करे सभी नर-नारी इन पावन धामों का दर्शन।
मिले सुख शांति उन्हे अरु हो धन्य यह जीवन ।।

                  ।।सतनाम ।।
          डा. अनिल भतपहरी
नौ सतनाम रावटी धाम निम्नवत है - 
१ चिरईपदर २ दंतेवाड़ा ३ कांकेर ४ पानाबरस ५ डोंगरगढ़ ६ भंवरदाह गंडई ७ भोरमदेव ८ रतनपुर ९ दल्हापहाड़ अकलतरा ।
      इ‌न जगहों पर परिजन व इष्टमित्र सहित चारो धाम या हज यात्रा सदृश्य परिभ्रमण करना चाहिए ताकि सतनाम धर्म संस्कृति का सर्वत्र व्यापक प्रचार प्रसार हो सकें नई पीढ़ी इन ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के बारे में वास्तविक रुप सें जान - समझ सकें।

Monday, March 17, 2025

सहोदरा जस पचरा

माता सहोदरा झांपी दर्शन मेला के पावन अवसर मं 

माता सहोदरा पचरा 

पिता गुरुघासीदास माता तोर हे सफरा 

जोर जस गावन सुघ्घर माता सहोदरा 

दाई ददा के दुलौरिन बेटी तहु सतधारी 
दुनो कुल के नाव रोशन करे शक्ति नारी 
दु मन आगर गावन तोरेच जस पचरा ...

ससुरार सुकली गांव बुधु देवान घर 
बसाए कुट कुट के कुटेला गाँव जबर 
हांका परगे दसकोसी मनखे बड़ अचरा ...

जुलुम रोके सेती नारी जागरन चलाये 
होरी जराई बंद कराके मंगल भजन कराये 
अड़ताफ होवन लागे तोर अबड़ चरचा ...

बोड़सरा बाड़ा सिरजे अठगंवा सुख धाम 
जिहां चले तोर हुकुम शोर उड़े सतनाम 
 तोर महिमा अपरंपार माता सहोदरा 

भागवंती दाई सहोदरा तोर  महिमा हे अपार 
राखे जतन के झांपी गुरु खड़ाऊ अउ कंठ हार 
काचा कलश बारे करे जग म ऊजियारा ...

      -डा. अनिल भतपहरी

Thursday, March 13, 2025

लड़की

#anilbhatpahari 

महिला दिवस (8 मार्च) पर 
 
"लड़की"

महुएँ की फूल है 
न जाने कब टपक पड़े 
ख़ानाबदोश है 
कब कहाँ डेरा पड़े
सच कहें तो
शीशी है इत्र की 
ढीली हुई डॉट 
कि गंधाती उड़ पड़े 
दहलीज़ फांदते ही 
ऊग आतें हैं 
असंख्य पर 
उड़ना चाहती हैं
वह भी 
स्वच्छंद आकाश पर 
पर...
पर कतर दी जाती हैं
कहकर कि तुम 
घर की इज्जत हो 
तुम्हारे बाहर जाने से
किसी से युँ ही
हँस बोल लेने से 
या किसी को शक्ल 
दिख -दिखा जाने मात्र से  
वह चली जाएगी 
जिसे पुरखों ने 
वर्षों प्रखर पराक्रम से 
अर्जित किया हैं
भले पुरुष 
और उनके परिवार
उसे भुनाते समृद्ध हो
किसी के इज्ज़त  
से खेलते रहे 
मान मर्दन कर 
अट्टहास करते रहें
पौरुष प्रदर्शन कर
उपहास करते रहे
हास- परिहास करते रहे
ऊपर से यह सूक्ति 
गज़ब की यह युक्ति 
बिन राग-रति,रंग के 
भव में बुड़े
और संग इनके 
भव से तरें  
पाते पुरुष मुक्ति 
नरक द्वार से 
गूंजते सुदूर कही 
यत्र नार्यस्तु पुज्यंते  
रमन्ते तत्र देवता  !
तब मासूम सा 
एक सवाल 
कि देवी कैसे,
और कहाँ रमती है? 
तलाशती फिरती
सकल ब्रम्हाण्ड 
जारी है यात्रा...

दहलीज़ भीतर  
मुगालते में बाहर 
खाट पर बैठें 
लटकते ताले सदृश्य 
कठोर पुरुष 
भले वे हो लुंज -पूंज
घुत्त नशे में 
या हो अशक्त 
वृद्धा कोई जो 
कोमलांगी तो है 
पर ओढ़े हुए पौरुष
ढ़ोते हुए भार 
कठोर- कुरुप 
बेचारी लड़की
औरत बेचारी 
बेचारी नारी ..!!!

पिता ,पति- पुत्र 
के अधीन सदा 
नारी तेरी अधीनता 
रही है मर्यादा 
और यही है 
नारी की अस्मिता 
नारी की गौरव गान 
बालबिल कुरान गीता
गाई गयी असीम महिमा 
पर कहीं न कहीं 
है एक घड़ा रीता 
तलाशती स्वयं अपनों में 
अपनी ही अस्मिता 
द्रौपदी रुक्मणी राधा 
सीता अहिल्या सूर्पनखा   
लोई आमिन यशोधरा 
मरियम रजिया सफरा 
मिनीमाता राजमोहिनी इंदिरा 
नर्गिस मीनाकुमारी दिव्या 
सुरुज तीजन आशा लता 
कल्पना किरण सुषमा 
ऊषा मेरीकाम माया ममता 

बनकर माँ बेटी बहन बहु 
पुत्र पुत्री में हैं एक ही लहू 
तब भेद क्यों अलग किनारा 
उतरना हैं पार एक ही सहारा 
नर नारी हैं परस्पर पूरक 
एक दूजे का सहयोगी उद्धारक 

-  डॉ.अनिल भतपहरी/ 9617777514

चित्र -जीवन संगिनी श्रीमती अनीता भतपहरी (उसे ही समर्पित यह कविता । )

Wednesday, March 12, 2025

पानी नइये

"पानी नइये" 

का कहव संगी मय  का सुनब संगी तय 
कहे सुने के अब तो कहानी नइये 
तोर मोर बीच गाथा  सुहानी नइये
बस गरजना हाबे बादर म पानी न इये 

मारत  फुटानी टूरा बरा भजिया ल खाथे
फेर काबर करर्स लें काचा मिरचा ल चाबे 
चिरपुर बड़ देख बिचारा कइसें कलबलागे 
हद होगे होटल म पानी नइये बोतल म पानी नइये ...

असनादे खुसरे समारु अपन नहानी घर म 
चुपरत साबुन मगन गावे गीत सुहानी घर म 
आंखी मं परे गेजरा नल पोछत पंछा म चेहरा  
बाल्टी मं पानी नइये डोलची म पानी नइये ...

लगिन के नेवता भेजे हवे समयदास 
जिहा दार भात उहा पहिदे माधोदास 
दमकाते साठ थारी भात रेन्गे बाहिर सोज्झी घाट 
नरवा म पानी नइये तरिया म पानी नइये ...

हमर पारा के पंचू भाई बनगे हवे पंच 
फटफटी म किंदरत हे मंदहा सरपंच संग 
मंत्री साहेब मन संग चलत हवे परपंच
मुड़ी कटइय्या जनता बर कोनो राजा रानी नइये ...

चल बने टूरी मन होवत हे टूरा मन ले आघु 
फेर उकर करसतानी ले इकर करसतानी आघु 
चुंदी नइये न फूंदरा अउ हवे मुड़ ह उघरा 
बराबरी के चक्कर मं करे काम अलकर 
बरदानी ओकर आचर फेर निरलजई होत काबर
आंखी मं अब तो पहली कस  लाजवानी नइये 
जवानी तो हे फेर जवानी के रवानी नइये ...

का कहंव संगी मंय का सुनब संगी तंय 
कहे-सुने के कोन्हों कहानी नइये
अब तोर-मोर गाथा सुहानी नइये 
बस गरजना हवे बादर मं पानी नइये ...
अब तोर मोर बीच गाथा सुहानी नइये 
बस गरजना हवे बादर मं पानी नइये

डा अनिल भतपहरी
९६१७७७७५१४

होरी सें होरा

#anilbhattcg 

होरा से होरी

ख़रीफ फ़सल आई घरद्वार
उससे मिली खुशियाँ आपार
प्रकृति में भी  छाई हैं  बाहर
युवा हृदय मे जगनें लगे प्यार
जगति तल में यही तो हैं  सार
प्रेम -रंग हीन यह जीवन बेकार

-डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

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Saturday, February 22, 2025

लोक नाट्य एवं नाचा गम्मत की दुर्गति

#anilbhattcg 

प्रदेश की समृद्ध नाचा गम्मत और नाट्यकला की दुर्गति 

छत्तीसगढ़ में अभिनय कला की समृद्ध परम्परा रहीं हैं.
संभवतः देश की सबसे प्राचीन नाट्य शाला सीता बेंगरा सरगुजा हमारे प्रदेश में हैं.जिसे कलात्मक ढंग से बनाये गए है. देखा जाय तो प्रत्येक बड़े ग्रामों में बड़ा चौरा होते थे जिस पर चाँदनी लगाकर ओपन थिएटर या opera hause जैसा रात -रात भर मनोरंजक और ज्ञान वर्धक  नृत्य गीत नाट्य अभिनय युक्त नाचा कार्यक्रम होते थे. हमारे खरीखा दाड़ विशाल एंटीबायटिक मैदान हैं जहाँ कबड्डी खोखो और करमा पंथी  सुआ जैसे सामूहिक नृत्य गान होते मड़ाई  जगाते रहस बेड़ा सजाते हैं.इस तरह से देखें तो हर गाँव में नाचा गम्मत के रूप में मनोरंजक और प्रेरक पंडवानी भरथरी आल्हा रसालू, बांस गीतों अहिमन,केवला,कुंवर अछरिया, लोरीकचंदा, बड़ी बड़ी कथानक हैं  रात रात भर चौदस पुन्नी में मंगल भजन साधु अखड़ा चौका आरती थे जिससे लोक जीवन  तमाम आभाव और साधन विहीन हो सुखी एवं समरिद्ध थे .लगभग 50 वर्ष पूर्व सुदूर ग्राम्य अंचल में हमनें ढोला मारु,शीत बसंत,दौना मांजर,चंदैनी से लेकर नाचा गम्मत में गुरु बटवारा,परीक्षा,अनेक प्रेम और सत्यकथा पर आधारित कौमिक कथाओ का मंचन दानी दरुवान, जेठू पकला, हीरा राजू चम्पा बरसन मते लखन कनकी,रायखेड़ा, फुडहर नाचा साज, चंदैनी गोंदा कारी चरणदास चोर,  एवं पिताश्री सतलोकी सुकाल दास भतपहरी के नवरंग नाट्य कला मंच से हाय रे नशा,राह के फूल,गवाईहा,मोला गुरु बनई लेते,चांदी के पहाड़ जैसे देखें और खेलते बड़े हुए हैं.1990 के  बाद TV वीडिओ वीसीआर,CD आने गाँव में नाचा / लोक मंच लगभग महगी बजट और अनेक तरह के झंझट के चलते खत्म हो गए.  छत्तीसगढी गीतों से सजी आर्केस्ट्रा लोक मंच पर चला पर tv ,video ki अश्लीलता  के चलते लोकमंच आर्केस्ट्रा में  द्वी अर्थी गीतों और फुहड़ता चलने लगा इसलिए भी राम -कृष्ण लीला,रामायण,भागवत कथाएँ जो उप बिहार से आयातीत  हैं इन सबका चलन बढ़ गया. सतनामयन कबीर सत्संग प्रवचन  भी चलने लगा. भले धर्म कर्म हो न हो पर इन्ही में अब मनोरंजन,भोग भंडारा आदि होने लगा और उत्सव धर्मी लोग इनमें उन्मत्त भी हो गए.इस तरह यहॉं की इस विशुद्ध लोकरंजन नाट्य गम्मत कलाएं के धार्मिक आयोजन नें जगह लें लिए हैं.आज सुविधाएं और आर्थिक समृद्धि के बाद भी निरुत्साह और व्यक्ति एकान्तिक तनाव ग्रस्त हैं.राजनीति द्वेष भाव और धर्म कर्म की प्रदर्शन में होड़ और प्रतिस्पर्धा नें तनाव ग्रस्त और दुःखी कर दिए हैं.सबकी होठों से निश्छल हसीं गायब हैं चंद शातिरों की कुटील मुस्कान और अट्टहास नें छीन लिए हैं.क्या इसी तरह सुखी एवं समृद्ध समाज और राष्ट्र बना पाएंगे?
.      देखें तो दुःख में कटटल के हसने हसाने का मौका देने वाले नाचा गम्मत और नाटक लगभग बिदा हो गए हैं.केवल शासकीय आयोजन में एक आधा घंटे के लिए प्रस्तुति रह गए और वे भी अनुदान के भरोसे से चल रहें हैं.कोई आयोजक नहीं और न ही कोई दर्शक श्रोता रह गए.मोबाईल नें सार्वजनिक प्रदर्शन कला को बुरी तरह खत्म कर दिए हैं. शासन  प्रशासन के साथ -साथ आयोजको सभा समितियों  और हमारे कलावंत बुद्धिजीवियों,रंगकर्मियों, लोक कलाकारों को प्रदेश की समृद्ध नाचा गम्मत,नाट्य रंगमंच को बचाने सार्थक पहल करना चाहिए.

डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, February 15, 2025

जातिवाद संप्रदाय वाद से गुजरता भारतीय समाज

जातिवाद और  साम्प्रदायिक कट्टरपंथ से होकर गुजरता  भारतीय समाज

वर्तमान समय सर्वाधिक संक्रमण काल से गुजर रहा है। भले देश में  डेढ़ दशक से अधिक पूर्ण बहुमत वाली सरकारें हैं लेकिन बहुत तेजी से गैर हिन्दू जानता असुरक्षित महसूस कर रहें हैं। 
आज़ादी के बाद भी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े पार्टी और विचारधारा की सत्ता रही । उस समय विजनरी नेतृत्व थे फलस्वरूप देश के नव निर्माण में आधारभूत औद्योगिक इकाईयों की स्थापना आधुनिक तीर्थ के रुप में हुईं और उन जगहों पर लधु भारत बसते गए जैसे भिलाई,कोरबा, राउरकेला, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, टाटानगर, भोपाल, बोकारो, गुरुगांव ईत्यादि। यहॉं की कालोनी कल्चर ने मिलीजुली संस्कृति ने राष्ट्रवाद को पोषण किया।  लोगों की जीवनशैली ने समृद्ध भारत की मिशाल पेश भी की।  नगरीकरण में सांस्कृतिक समन्वय भाव था भले वहां ग्रामीण और एक जातिय एक धर्मीय गाँव वाली आत्मीय भाव न रहें हों। 
      
 इस बीच ग्रामीण क्षेत्रों में नगरी और कस्बाई संस्कृति पनपी लोगों की जरुरत पूर्ति हेतु महाजनी संस्कृति ने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को बुरी तरह जकड़ लिऐ। कृषक समुदाय सूदखोर सेठ साहूकार महाजनों के कर्ज तले दब गए उनके उन्मूलन हेतु सहकारिता ग्रामीण बैंक की स्थापना हुई। प्रधानमंत्री इंदिरागंधी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम चलाकर सेठ साहूकार द्वारा चलाए जा रहें देशी बैंकर्स का उन्मूलन किया। फलस्वरूप यहीं तबका अपने अस्तित्व रक्षा हेतु धर्म कर्म के सहारा लेकर नई पार्टी गठित कर अनेक सांस्कृतिक धार्मिक इकाईयां गठित कर संवैधानिक रुप से धर्मनिरपेक्ष देश और समाज को दिग्भ्रमित कर कट्टरवाद और चरमपंथ को बढ़ावा दिया। इन वर्गों के पास देश की अकूत संपदा,शिक्षा व अन्य प्रतिभाएं रही फलस्वरुप असल राष्ट्रवादियों के हाथों से सत्ता फिसलती ,भटकती हुई अंततः इन्ही धार्मिक कट्टरपंथियों के हाथों चली गईं। फलस्वरुप हर तरफ धार्मिक उन्माद और जातिवाद का विकृत रुप दिखाई पड़ने लगी हैं।
ऐसा लगता हैं कि 
भाषण और साहित्य सृजन से जातिवाद कभी खत्म नहीं होगा क्योंकि ऐसा तो बुद्ध से लेकर डा अंबेडकर तक हजारों वर्षो से प्रभावी हस्तक्षेप होते हैं। अंध विश्वास, पाखंड आदि संस्कृति और परंपरा के नाम पर चलाएं जा रहें हैं उनके प्रतिरोध  करने पर राष्ट्र विरोधी घोषित कर दिए जा रहें हैं ।संगठित गिरोहों का आक्रमण और अन्य कार्यवही करने की भय हैं । जातिवाद और वर्णवाद का इनसे पोषण हो रहा हैं। ऐसे में इनके उन्मूलन हेतु कठोर एक्शन लेने वाली राजनैतिक ईच्छा शक्ति वाले कोई दल भी दूर दूर तक दिखाई नही दे रहें हैं। ऐसे में सवाल हैं किस दल और सत्ता पे यह दम हैं कि देश और समाज से जातिवाद और कट्टरपंथ का पूर्णतः उन्मूलन कर सकें? जबकि यह पता हैं कि राष्ट्र रुपी वृक्ष में यही तत्व दीमक हैं। जो भीतर से खोखले करते जा रहें हैं।
     कटु सत्य हैं कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद नगर निगमों और सरकारी आफिसों मे सफाई कर्मी के नाम पर भर्ती ब्राह्मण कर्मी से ओबीसी अधिकारी यहां तक दलित अधिकारी तक काम नहीं करा सकते। उनसे अन्य दफ्तरी काम लेते हैं या वें किसी किसी सफ़ाई कामगार जाति को मजदूरी देकर काम करवा लेते हैं।शासन _प्रशासन में घोर अघोषित जात _पात विद्यमान हैं, तो समझिए आम जन जीवन में क्या हालत होगी? कल ही मान सुप्रीम कोर्ट का कहना हैं कि जाति आधारित कामकाज ऑफिस से मंदिर तक चल रहा हैं ऐसे में जातिय उन्मूलन कैसे हो पाएगा?
 वर्तमान में तो धर्म_ कर्म उफान पर हैं हिंदू _मुस्लिम के खेला मे अब ईसाई उद्वेलित हो रहें हैं। मणिपुर तो जल ही रहें हैं,कुकी मैताई का जातिय संघर्ष की चिंगारी बस्तर और सरगुजा तक फैलती जा रहीं हैं। यहाँ आदिवासी और ब्रिटिश काल में धर्मान्तरित ईसाईयों के बीच गाँव गाँव में साम्प्रदायिक तनाव आसानी से देखें जा सकतें हैं.घर वापसी जैसे कार्यक्रम और ईसाई मिशनरियों के मध्य आए दिन झड़पे की खबर मिलते ही रहतें हैं.

इसी छत्तीसगढ़ में 18 वीं सदी में गुरु घासीदास प्रवर्तित देश का प्रथम जातिविहीन "सतनाम पंथ" अपनी  मनखे मनखे एक वाली समानता भाव नें मध्यकालीन भक्ति या निर्गुणवाद उपासना से आगे सामाजिक क्रांति और अनीश्वरवाद के कारण आरम्भ से ही  बहिष्कृत हैं। कुछ पढ़े _लिखें लोग कुछेक दशकों से समझने लगें हैं पर जो ग्रह्यता आज़ादी के पूर्व थी अब लोग भूले -भटके प्रेम विवाह या जातिय बहिष्कार के कारण जीवन निर्वाह हेतु ही सतनाम पंथ को अंगीकार कर रहें हैं। यह सुखद तों हैं पर न्यूनतम होने से नक्कार खाने में विलीन होती तुती की तरह  हो हैं.इस  मानवता वादी स्वर की संरक्षण बेहद जरुरी हैं.
    इधर जैन ,फारसी, वणिक वृति से अर्जित अकूत संपदा को बड़ी धार्मिक स्थल बनाकर शान समझ जनकल्याण से विमुख जान पड़ते हैं और यथास्थितिवाद के ही पोषक हैं। नव बौद्ध दलित हैं और केवल पेटबिकली से उबर नहीं पाए हैं कुछेक संपन्न वर्ग सवर्ण होने की ओर अग्रसर अपने वर्गों से ही दूरी बनाकर रहने मे भला समझते हैं । सिख भोजन भंडारा मे ही मगन ही नहीं  उन्मत हैं,जबकि हरित क्रांति और 1 रुपए चावल से जनमानस भूख से उबर चुके हैं.उसे भोजन से अधिक मान सम्मान चाहिए.रैदास पंथी  भी परस्पर जात पात,रैगर,जाटव, चमार, महार दुसाध, आदि में बिखरे हैं। अनु जाति और पौनी पसारी से जुड़े श्रमिक जातियां नाई धोबी 
मेहतर गाड़ा घसिया केवट कोस्टा कुम्हार कलार लोहार सोनार आदि अपनी पुश्तैनी पेशा मे मग्न  यथास्थिति के ही पोषक हैं।
   आदिवासी के शिक्षित और युवा वर्ग ईसाई धर्मांतरण के इतर अपनी प्राचीन मान्यताओं के आधार पर गोंडी सरना धर्म की ओर बढ़ रहें हैं । छत्तीसगढ ही नही शैन शैन देश भर में धर्म और जात पात के नाम पर लामबंद हो रहें हैं , कट्टरपंथ बढ़ चूके।बहुसंख्यक  शूद्र (ओबीसी) ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य की युति ही हिंदू हैं जबकि हिन्दू धर्म सूचक शब्द नहीं स्थान बोधक हैं। इसलिए सनातन शब्दों का प्रचलन होने लगे हैं और यह शब्द भी बौद्ध धर्म से आयातित हैं। बहरहाल जैसे तैसे विगत एक दशक देश हिंदू राष्ट्र की ओर राजनैतिक शक्ति अर्जित कर बढ़ रहें हैं वर्तमान सत्तारूढ़ दल और उनके मातृ संस्थान धार्मिक संगठन द्वारा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और भव्यतम लोकार्पण हिंदू राष्ट्र के प्रतिकार्थ के जानबूझकर जाने समझें लगने लगे हैं।
 कोरोना काल में धार्मिक स्थलों के पट बंद हो गए थे कथित सर्व शक्तिमान लगभग असहाय हो चूके थे.विज्ञान के अविष्कार टीका  और औषधियों के द्वारा उनपर नियंत्रण पाए गए.पर उसके बाद फिर से ढोंग पाखंड युक्त बड़े बड़े आयोजन,समारोह बेतरतीब होने लगे.भगदड़ में कुचलें गये और उन्हें धर्म प्रेमी मोक्ष अधिकारिणी घोषित कर हास्यास्पद ढंग से सांत्वना प्रकट किए जा रहें हैं.धर्म के प्रति उत्सर्ग और बलिदान माने जा रहें हैं.
अल्पसंख्यकों में भी इसी तरह के अनुशरण होगा आखिर कही न कही सब एक दूसरे के प्रेरक - उत्प्रेरक  हैं. 
एक तरह से धर्म -कर्म में कट्टरपंथ और उन सब में अपनी अपनी लकीर खींचने की मनोवृति  ही तीक्ष्ण मतभेद की जननी हैं. फलस्वरूप  समरसता विखंडित हो रहीं हैं. और संविधान का धर्म (पंथ )निरपेक्ष  पंथ राष्ट्रवाद  तेजी से शक्तिहीन हो रहें हैं। पास -पड़ोस में धर्म आधारित राष्ट्र होने से यहां भी बहुसंख्यक लोग धार्मिक देश बनाने की झांसे में आते जा रहें हैं। उन्हें पता नहीं कि ऐसे में अखंडता कैसी क़ायम रहेगी.
  जब देश दुनियां धर्म कर्म में लामबंद हैं चर्च मस्जिद मौलाना पादरी में उलझे हैं तब  भारत भी मंदिर -मूर्ति, पंडे -पुजारी मे ही उलझा हैं तो कोई भला क्या कर सकता हैं? कुछेक देश नास्तिक या पंथ मत रहित हो मानववादी हो रहें हैं उनसे हम कब प्रेरित होंगे कह नहीं सकतें.
   
 बाहरहाल जातिविहीन समुदाय  होने की अवधारणा आरम्भ से हैं और उसे ही प्रज्ञावान संतों, गुरुओं नें आगे बढ़या पर राजतंत्र और उनके पोषक तत्वों नें जाति वर्ण नें शास्त्र और ईश्वरीय विधान घोषित कर इसे समाज और देश में थोप दिए हैं फकस्वरूप अमानवीय और बर्बर रुप आधुनिक ज्ञान विज्ञान के शिक्षा और समझ के बाद भी जनमानस में प्रायः देखने में मिलते हैं. भारतीय संविधान भी मौलिक अधिकार में धार्मिक स्वतंत्रता देकर और धर्म पंथ निरपेक्ष कह अघोषित रुप में यथास्थितिवाद के ही पोषक जैसा लगते हैं इसलिए इतने वर्षों बाद भी अपेक्षित परिणाम आना तो दूर अब जातिय और धार्मिक संगठन सत्ता प्राप्ति और उनके बाद उसे ही सुदृढ़ करने के कारक होते जा रहें हैं.

   इस बहाने यदि प्राचीन संस्कृति को पुनरस्थापित करना हैं तब भली भांति उसे ही समझ ले.मज्झिम निकाय के अनुसार तथागत बुद्ध के समय कंबोज यवन क्षेत्र में दो ही वर्ग थे_अमीर और गरीब।यह व्यवस्था नैसर्गिक हैं और सदा रहेगा। कमोबेश मध्य देश दक्षिणापथ में आर्य_अनार्य  से पृथक सत्यवंत लोगों में भी कोई जाति वर्ग व्यव्स्था नहीं थीं और वे लोग सत्य के अनुगामी स्वेत ध्वज वाहक प्रकृति उपासक समुदाय थे।
        पर आर्य अनार्य संघर्ष में सत्यवन्त प्रजाति टीक नहीं पाई और इन दोनों संस्कृति में समाहित हों गई। पर यह बात रेखांकित करने योग्य हैं कि इसी भूमि में हजारों वर्ष के बाद जब जात_ पात, ऊंच _नीच का मकड़ जाल फ़ैला और इंसानियत खतरे में पड़ी तो समानता के लिऐ सतनाम पंथ का उद्भव हुआ।
   यह भारतवर्ष का युगांतरकारी घटना हैं कि " मनखे मनखे एक" जैसे दिव्योक्ति के साथ सतनाम पंथ धर्म होने की ओर अग्रसर हैं।
  भारत में जितने भी धर्म और पंथ हैं वें सभी कहीं न कहीं जाति वर्ग के रुप में विभाजित हैं। आधुनिक शिक्षा और लोकतंत्र गणराज्य हो जानें के बाद हर पांच वर्ष के चुनाव ने लोकतंत्र मजबूत जरुर किया पर वोट बैंक ने धर्म और जात पात को पूर्व के अपेक्षा और अधिक सुदृढ़ की हैं।
कुछेक विचारक मानते हैं कि यह जो दिख रहा हैं वह जातिय नहीं बल्कि वार्गिक चेतना हैं। 6 हजार जातियों में विभक्त विराट हिंदू धर्म के अंतर्गत संविधानिक रुप से समान्य, ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रुप में चिन्हाकित कर इनके ही हितार्थ योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। फलस्वरुप यह वर्ग के अंतर्गत आने वाली जातियां अपने अपने समुदाय में वर्चस्व हेतु पहले से अधिक सचेत और सुदृढ़ होने लगे हैं।
    कुछ माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि अनुजाति वर्ग में क्रीमी लेयर लाकर अति पिछड़े समुदाय को लाभ दिया जाय जैसे कि ओबीसी वर्ग में हैं। इस पर देश भर में तीखी बहसे हुई और यह बात सामने आई कि यह वर्ग अब भी मुख्यधारा में नहीं हैं न ही समाजिक धार्मिक प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी हुई तब एक वर्ग के विभिन्न जातियों को ही परस्पर प्रतिद्वंदी बनाना हैं। यह बातें व तथ्य समझी गई और मामला विचाराधीन हुईं हैं पर ख़त्म हुई नहीं।

.   मान न्यायालय की टिप्पणी पर महीन दृष्टि समाजिक सरोकार से लगाई जा रहीं हैं कि इनका दूरगामी परिणाम और प्रभाव क्या होगा? क्या चार वर्ग फिर से जातियों तक चली जाएगी और देश में जातिय गणना की उठती मांग से क्या दशा निर्मित होंगी इन पर विचार और परिचर्चाये की  जा सकती हैं। यह मामला थमी ही नही कि एक ध्यानाकर्षण टिप्पणी अभी- अभी सुप्रीम कोर्ट से आई कि जेल में निरुद्ध अपराधियों के जाति देखकर कार्यों की बटवारा है । यह तो अपराधियों के मामले हैं सोचो जो बाहर विभिन्न शासकीय अशासकीय निगमों मंडलों में  भृत्य ,सफ़ाई कर्मचारी के रुप में उच्च जाति के लोग पदस्थ हैं उन्हें उनके मूल कार्य न लेकर अन्य दफ्तरी कार्य लिऐ जाते हैं। मतलब जन्मना जातिय श्रेष्ठता/ निम्नता बोध का कार्य शासन- प्रशासन में ही चल  रहा हैं।
 ऐसे में  छतीसगढ़ की भूमि सें 18 वीं सदी में समानता पर आधारित जातिविहीन सतनाम पंथ की दर्शन और बातें " मनखे मनखे एक" कितना प्रासंगिक हैं, इसे समझकर दिग्भ्रमित लोगों को समझाये  जा सकते हैं। 
 हालांकि इस महादेश में ऐसी चेतना का प्रचार- प्रसार स्कूल कालेज के पाठ्यक्रमों और प्रज्ञावान  प्रवाचकों और शासन प्रशासन की दृढ़ता से ही संभाव्य हैं पर वोट बैंक और उनसे मिलती सत्ता राष्ट्रवाद और अखंडता का नारा या जुमला भर लगा सकती हैं. यदि ऐसे ही और एक दूसरे से होड़ और श्रेष्ठता निकृष्टता की बातें चलती रहेगी तों आगे चलकर बहुत ही घातक परिणाम भुगतने पड़ सकतें हैं.उनकी अंदेशा  और आहटें सर्वत्र  / सुनाई दिखाई पड़ रहें हैं.

जय भारत 
   
    

  डॉ अनिल कुमार भतपहारी/ 9617777514

ऊँजियार सदन, सेंट जोसफ टाऊन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ़ 492001

Monday, February 10, 2025

जोग महानदी तट पर आबाद मानव सभ्यता एवं उनके अनुष्ठान

जोंक महानदी के तट पर आबाद मानव सभ्यता एवं संस्कृति का केंद्र 

  नदियां मानव सभ्यता की जननी हैं या फिर हम ऐसा भी कह सकते हैं कि नदियों के तट पर ही मानव प्रजातियों का उद्गम और विकास हुआ हैं। आरम्भ से लेकर अब तक इनकी तट पर ही मानव बस्तियां पाई गई हैं। उनके घर खेती और व्यवसाय  स्थल रहा है और सदियों तक रहेगा। वें नदियों के गोद में ही अनेक उपलब्धियों को अर्जित करते यहां तक की यात्राएं तय कर सका हैं।
    हालांकि मानव निवास स्थल के अवशेष गुफाएं  आदि हमें पर्वत की ऊंचाई में भी मिलती है लेकिन वह सुरक्षागत कारणों से है। असल में जलश्रोत जहां रहा, वहा मानव की बसाहटे हुईं। भले निस्तार हेतु पानी उपर तक ले गए
पर मानव समुदाय  पर्वत के नीचे या समतल जगहों पर स्थित कुंड या प्रवाहित जलधार के पास आए।
  प्रायः पर्वत ही नदियों के जनक हैं पर समतल मैदान में भी पाताल फोड़ कुआं और जल स्त्रोत मिलती हैं ,जिसे छत्तीसगढ़ी मे "चितावर "और "चुहरी "कहते हैं वहा से भी नदियों का उद्गम होते हैं। इन्हें लेकर रचे गए लोकगीत दर्शनीय है  _
 
 चितावर में राम चिरई बोले 
तोला कोन बन में खोजंव 
मैना मंजूर जोही मोला तार लेबे रे दोस ...

 चितावर/ चुहरी के आसपास जरुर  पहाड़, पर्वत, पठार पाए जाते हैं  जिसके ऊंचाई या तराई भाग में जलकुंड होते हैं ।जहां से जल प्रवाहित हों नदी का स्वरुप ग्रहण कर लेती हैं। यह जल स्रोत सदनीरा या मौसमी भी होते हैं।
   भारत वर्ष में कुंड पोखर सरोवर जलस्रोत वंदनीय हैं तो वहा से प्रवाहित होती नदियां पूज्यनीय हैं। हमारे यहां गंगा, यमुना, नर्मदा चंबल ,बेतवा,गोदावरी, कावेरी महानदी, इंद्रावती ,सतलज, व्यास, रावी, गोमती ,तीस्ता ,सोन भद्र ,ब्रम्हपुत्र  आदि के तट पर ही नगरी और उन्नत सभ्यता का विकास हुआ हैं। देश के दो महत्वपूर्ण प्रदेश उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा कही जाने वाली महानदी प्राचीन काल में चित्रोत्पला गंगा के नाम से जानी जाती रही हैं और गंगा जैसी ही पावन मोक्षदायनी मानी गई हैं। क्योंकि इनकी उद्गम सिहावा पर्वत छत्तीसगढ़ से होकर बंगाल की खाड़ी में चिल्का झील बनाती ठीक गंगा की तरह हिमालय पर्वत से निकल कर सुंदरवन मे झील बनाती बंगाल की खाड़ी सागर में समाहित हो जाती हैं।
      अपने तट पर अनेक धार्मिक वाणिज्यिक और प्रदेश की राजधानी बनाती हुई लाखों हैक्टर कृषि भूमि को सिंचित करती करोड़ों जन जीवन के लिए अन्नोत्पादन कराती उनके पेयजल की भी आपूर्ति कराती हैं। इसलिए मानव समाज के लिए ये नदियां वरदान हैं।
  महानदी की सहायक नदी जोक नदी भी मानव सभ्यता के केंद्र रहें हैं। उड़ीसा सरकार द्वारा अनेक तरह से अनुसंधान इस संदर्भ में किए गए हैं और कार्य अनवरत जारी है हैं। लगभग 25000 साल पहले इनकी तट पर मानव इतिहास के अवशेष मिलती हैं। 
    उड़ीसा के नुआपाड़ा जिले के सुना बेरा पठार से निकलने वाली और महासमुंद जिले के बागबाहरा के छाती गांव में छत्तीसगढ़ प्रवेश करने वाली नदी के किनारे किए गए अन्वेषण में मानव इतिहास के पहले आरंभिक औजार निर्माता से लेकर आधुनिक काल तक के साक्षी मिलेंगे।  प्रागतिहैसिक औजारों की बड़ी संख्या में खोज से पता चलता है कि इस घाटी में 25000 साल पहले आदिमानव निवास करते थे।
 छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति और पुरातत्व निदेशालय की टीम द्वारा किए गए सर्वेक्षण का नेतृत्व करने वाले गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय संबलपुर के इतिहास स्कूल के प्रमुख डॉक्टर अतुल कुमार प्रधान ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि जोंक नदी घाटी छत्तीसगढ़ में मानव इतिहास का उद्गम स्थल है। 
प्रागैतिहासिक औजारों में हजारों वर्षों के फ्लैग ब्लैक पॉइंट और कर शामिल है सेंड भट खुरमुरी डूंगरी पाली रीवा नीलेश्वर उधर लाल में परेशानी डूमरपाली बालदी डीह लीलेसर चंदन थरगांव , कुशगढ़ , नितोरा से भी बड़ी संख्या में प्रागैतिहासिक स्थल खोजे गए हैं यह औजार 25000 से लेकर के  6000 साल पुराने जान पड़ते हैं ।अन्वेषण से कसडोल के अमोंदी  ग्राम में एक बड़ी प्रारंभिक ऐतिहासिक बस्ती भी प्राप्त हुई है । कुछ प्रारंभिक ऐतिहासिक स्थल में बर्तनों के टुकड़े, कटोरे ,बेसिन, भंडारण  जार, मोती काठी के बर्तन और भौतिक एवम संस्कृतिक वस्तुएं मिली है।
   जोंक नदी की सहायक नदियों में भंडार, कोलार ,मैच का चिराग बाग भैया भूसा का में लहर जैसे की छोटी बड़ी सहायक नदियां इसमें जाकर मिलती है। यह नदी उत्तर दिशा में बहती है और कल 215 किलोमीटर क्षेत्र को कर करती है छत्तीसगढ़ उड़ीसा के बीच एक अंतर राज्य सीमा बनाती है यह नदी कहानी छोटी बड़ी पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरती है  नुआपाडा पहाड़ी श्रृंखला के एक संकीर्ण चट्टानी चैनल से बहने के बाद श्री नारायण के पास महानदी में समागम हो जाती है  गिरौदपुरी सोनाखान रेंज की पहाड़ियों में स्वर्ण भंडारण प्राप्त हुई है। इस क्षेत्र से नदी गुजरती है और मिट्टी और चट्टानों के कटाव के द्वारा अपने साथ सोने के बारीक कारण प्रवाहित करके महानदी की रेत में प्रवाहित करके ले जाती है। इसलिए महानदी की रेत में गिरौदपुरी   शिवरीनारायण से लेकर से लेकर के  हीराकूद बांध तक नदी के दोनों और सोनझरिया जनजाति निवास करती हैं। जो महानदी की रेत से पारंपरिक रुप से सदियों से स्वर्ण कण निकालते आ रहें हैं। सतनाम  संस्कृति में जोंक को  जोगनदी कहीं जाती है क्योंकि इनकी पावन तट पर गुरु घासीदास ने जोग यानि तपस्या किया एवं सतनाम पंथ का प्रवर्तन किया।
   जोग नदी में हाथी पथरा घाट में फागुन पंचमी से सप्तमी स्नान कर पुण्य अर्जित करने की सांस्कृतिक अनुष्ठान है। कहते है कि सोनाखान राजा के मतवाला हाथी को गुरु घासीदास ने अपने तपबल और जोग विद्या से पत्थर के बना दिए यह आकृति जनमानस में श्रद्धा के केंद्र हैं।
सुरम्य तट और स्वच्छ जलराशि श्रद्धालुओं और पर्यटकों के मन को पवित्र और आकर्षित करती है  फलस्वरूप लाखों लोग स्नान हेतु एकत्र होते है और बारहों माह दर्शन स्नान हेतु आते रहते हैं।
महानदी और जोगनदी के मध्य ही सतनामियों की बसाहट है जो कृषक और मेहनती कौम है। कहते है यह परिक्षेत्र प्राचीन सत्यवंतो का स्थल है इतिहास में जो सतवहन वंश और सहज्यानी बौद्ध लोग है वर्तमान सतनामी समाज हैं। जिसमे प्राचीन मान्यताएं और उनकी भाषा व्रत त्यौहार जिसमें प्रकृति पूजन,धनाई माता पूजन, हरेली, पोला,सुरहुत्ति  होली  आदि निर्बाध चला आ रहा : 

छत्तीसगढ महतारी के करधन 
जिसमे भरा हैं अपार स्वर्ण कण 

  यह स्वर्ण कण जोंक  नदी ही प्रवाहित कर महानदी में मिलती है इसलिए इस नदी का ऐतिहासिक आर्थिक सामाजिक धार्मिक रूप से  मध्य भारत में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान हैं । यह उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की सीमारेखा और जीवनरेखा भी हैं।

 यदि मानव बसाहट पहाड़ पर्वत पठार पर हो तो भी जल के लिए जलकुंड या  वहा से प्रवाहित जलधार क्षेत्र नदी के तट पर उनको आना ही होता है!  थे विश्वकी विश्व की अनेक बड़ी सभ्यताओं का विकास या बड़ी नगरों का विकास नदियों के तट पर ही हुआ है चाहे वह नील नदी हो अमेजॉन हो या ब्रह्मपुत्र हो गंगा हो गोदावरी हो या महानदी हो इन सभी नदियों में हमें मानव सभ्यता के विकास का चिन्ह दिखाई पड़ता है। 
    छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुंद जिले और रायपुर जिले से होकरबहती हुई बहती हुई सोना बेड़ा पत्थर से शुरू होती है और
जोक नदी का प्रवाह क्षेत्र 2480 वर्ग मीटर है जिसमें विविध प्रकार के वनस्पतियां के नदी पर्वत वन पर्वत इत्यादि और विभिन्न पशु पक्षी आबाद है यह नदी दर्शनी और धार्मिक दृष्टिकोण से भी का तीसरा महत्व है गिरोधपुरी के समय यहां इसके तट पर लाखों लोग स्नान कर दर्शन कर पुण्य अर्जित करते है। अन्य नदियों की तरह इनपर भी अनेक काव्य और प्रेरक साहित्य रचे गए हो जो उनकी विशेषताओं को  प्रकट करती हैं।

" जोगनदी पलाशिनी "

जोगनदी पलाशिनी 
अमृत जल वाहिनी
है बहु व्याधि हरिणी 
मन की विकार नाशिनी 
इनकी तट पर पावन तपोभूमि 
गिरौदपुरी सत्घाम है विराजती 
धन्य वन प्रांतर हुआ महिमामय 
घासीगुरु के तपबल से गरिमामय 
 लाखो नर- नारी कर स्नान 
अर्जित करते  पुण्य कर आचमन 
प्रकृति से पल भर होते मिलाप 
 मिटते दु:ख सब क्लेश संताप
जीवन प्रवाह में द्वीप सा कठोर भार 
विगलित करते सत्संग जड़ता विकार 
जल मध्ये प्रकृतस्थ हस्ति प्रतिमा
मन मैगल प्रक्षालित चमके चंद्र पूर्णिमा 
यहां केवल मेल मिलाप नही 
हाट बाजार व्रत उपवास नही 
होते यहां सभी जन सत साधक 
 बनकर आते वे सबके लायक 
 संत सेवक अरु सत्यानुरागी 
संकल्पित मन में बनु सतगामी 
पंगत संगत का अनुठा महा पर्व 
तट पर सम्पन्न अनुष्ठान यह सर्व 
भरते हृदय में उमंग अरु उत्साह 
पावन सतनाम सरित प्रवाह 
गाकर जस प्रफूल्लित हुआ अनिल
सुर मे ताल मिलाकर हर्षित इनकी सलिल ...


 डॉ अनिल कुमार भतपहरी 
       सहा प्राध्यापक( प्र .श्रे.)
    उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़

Sunday, January 26, 2025

गणतंत्र पर्व में राजपथ पर रामरामी

#anilbhattcg 

||गणतंत्र पर्व में राजपथ पर रामरामी ||

.   रमरमिहा जिसे रामरामी और अब रामनामी कहें जाने जाने लगे हैं इनका अस्तित्व 1890-1900 के आसपास हुआ. एक वैष्णव बैरागी द्वारा बोतलदा पहाड़ रायगढ़ में साधना करते हुए राम नाम का प्रचार करने की ईच्छा सें हुई.साथ ही पुस्तक छपाई की मशीन सें जब "रामचरित मानस " प्रकाशित हुई तब उनके प्रचारक उत्तर प्रदेश सें बांसुरी और गुटका लेकर शिवरीनारायण क्षेत्र में आये.समीप चारपारा,ओड़काकानन के सम्पन्न कृषक परशुराम भतपहरी (भारद्वाज ) और उनके मितान को विश्वास में लेकर उनके मस्तक में रामराम लिख कर सतनाम धर्म में रामरामी पंथ का प्रवर्तन कराया गया.ताकि सतनाम के साथ रामराम का मणीकांचन युति हो सकें.परन्तु संकीर्ण विचारों और साम्प्रदायिक मान्यताओं नें इसें पल्ल्वित - पुष्पित नहीं होने दिया. पूर्वर्जो की देन और जो स्थिति हैं उसी में जीवन वृत्त की चाह नें इन्हें बचाकर रखें हुए हैं.

.      गुरु घासीदास प्रवर्तित सतनाम धर्म के वृहत प्रभाव सें राम चरित मानस के राम "रामराम " होकर निर्गुण स्वरुप में  इन लोगों के आराध्य हो गये.सादगी पूर्ण जीवन शैली और हर कार्य व्यवहार में " रामराम "का सम्बोधन इस मत की विशेषता हैं. इनके धार्मिक अनुष्ठान में गाये जाने वाली भजन ,घूँघरु की मधुर धुन सें विधुन नृत्य सें एक अलग तरह की भाव भक्ति वाली संस्कृति  प्रचलित हुई . पर यह नवाचार रामभक्त हिन्दुओं को पसंद नहीं आई न सतनामियों  को  फलस्वरूप इनके जाति प्रमाण पत्र नहीं बन सकें और शासकीय सुविधाओं सें वंचित भी रहें. मुख्यतः कृषि वृति वाले दो तीन ब्लॉक में रहने वाले अनुयाई सतनामियों के मध्य मानवता वादी दृष्टिकोण के ही कारण न्यूनतम रुप में अस्तित्वमान हैं. भले यह समुदाय दो पाटन के बीच में पीसाते आ रहें हैं.मुझे तो बचपन सें विगत 50 वर्षों सें इनके बीच रहते और इनके जिजीविषा को जानने समझने का अवसर मिला हैं.

वर्तमान में नख -शिख  वाले सर्वांग रामरामी केवल गिनती 250  के आसपास ही बचें हैं.1992 में बाबरी मस्जिद ढहने और राम मंदिर राष्ट्रीय मुद्दा बन जाने तथा भाजपा एवं बसपा के अभ्युदय सें  इस समुदाय को महत्व मिलने लगा.नई पीढ़ी के लोग रामरामी चादर ओढ़कर वर्ष में दो -दो बार भजन मेला और अन्य कार्यक्रम करनें लगे है. पत्रकारों रचनाकारों और शोधार्थियों का ध्यान भी आकृष्ट हुआ और छिटपुट लेखन आरम्भ हुआ.
.     गणतंत्र दिवस समारोह में प्रथम बार सम्मलित होने सें रामरामी पंथ को देश भर में जाने जायेंगे.शासन -प्रशासन भी इनकी सुधि लेंगे और अनेक तरह की समस्याओं सें घिरें समुदाय का भला होगा, ऐसी उम्मीद कर सकतें हैं.

विगत वर्ष रामरामी लोगों के प्रतिनिधि मंडल के साथ कुछ पल व्यतीत किए और उनके संस्मरण फेसबुक में पोष्ट किए अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं.

।। रामनामी ।।

      छत्तीसगढ़ की विविधतापूर्ण संस्कृति में रमरमिहा यानि रामनामी सम्प्रदाय का विशिष्ट योगदान हैं। इनकी उपस्थिति और इनके कर्णप्रिय मधुर नुपुर ध्वनि युक्त भजन की प्रस्तुति अनुपम हैं।
         कलियुग नाम आधारा  सदृश्य सतनाम भजन , रामराम भजन या हरे राम हरे कृष्ण संकीर्तन भजन महानदी तट के इर्द- गिर्द विकसित सुमरिन भक्ति अनुष्ठानिक आयोजन हैं। शिवरीनारायण सांरगढ़ सरसीवा परिक्षेत्र के अनेक ग्रामों में इनके बसाहट हैं। अपनी विशिष्ट उपसना पद्धति व जीवन शैली से यह समुदाय पृथक ढंग से पहचाने जाते हैं।वर्तमान में यह अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं।
       
          "निर्गुण निराकार रामराम का उपासक समुदाय  अपने साकार शरीर को ही मंदिर सदृश्य बनाकर अपने अराध्य रामराम को‌ हृदय में बसाकर शांतिप्रिय जीवन निर्वाह करते आ रहें हैं।"इनकी सादगीपूर्ण जीवन शैली रहन- सहन एंव संस्कृति  पर अनुसंधान व अकादमिक काम करने देश- विदेश से अनुसंधाता आते रहे  हैं। 
        रामनामी  समाज  प्रमुख गुलाराम रामनामी का कहना है कि " देश भर से  अनेक शोधार्थी  एंव लगभग 25 देशों से लोग  मिलने आ चूके हैं।अनेक डाक्युमेंट्री बनाये व  साक्षात्कार  आदि लिए गये हैं।राममय देश में आज पर्यन्त यह लोग मुलभूत समस्याओं से वंचित हैं।  परस्पर चंदा बरार कर यहां तक जमीन आदि बेचकर बड़े भजन मेला व अपना धार्मिक व  सांस्कृतिक आयोजन करते आ रहे हैं। कोई विशिष्ट धार्मिक स्थल सामुदायिक भवन या ईमारत आदि नहीं हैं।"
   वर्तमान में सर्वांग यानि नख शिख रामनामी गिनती‌ के बचे हैं। न ई पीढ़ी सर्वांग रामनामी नही बन रहे हैं।
    इनके उद्गम भूमि चारपारा गांव है जहां के  गौटिया परसराम भारद्वाज जी ने  1900 के आसपास इस सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया । ओड़काकानन नामक गांव भी‌ रामनामियों का केन्द्र हैं  इन जगहों का  समुचित विकास कर‌ इस विलुप्त होती संस्कृति का संरक्षण किया जा सकता हैं।

डॉ.अनिल भतपहरी / 9617777514

Sunday, January 12, 2025

मया के मोटरी

असम से छत्तीसगढ़ आया 
 "मया के मोटरी "


वर्ष भर  गाँव- घर, शहर -पहर समाज के बीच रहकर अपने दायित्यों का निर्वहन तो करते ही हैं इसी  बीच कुछ दिन अवकाश लेकर इन चीजों सें दूर देश- दुनियाँ को जानने- समझने की चाह नें गैर अनजान गुमनाम सा  क्षेत्र के लोगों की भाषा,कला संस्कृति,प्रकृति और प्रवृत्ति को करीब सें देखने का सौभाग्य मिलते है जो हम जैसों के लिए अमूल्य निधि हैं. उसी को अर्जित करने की चाह पिता श्री ने बाल्यकाल से  लगाया फलस्वरूप पर्यटन में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित किया और इनके कारण तों अब पर्यटन के  लत ही लग गये है. जब जब अवसर मिलता है सुदूर जगहों पर  जन जीवन को जानने - समझने निकल पड़ते है. 
हालाँकि  अभी अनेक दायित्वों के कारण रमता जोगी बहता पानी जैसी स्थिति नही है और प्लान से जाना होते है.परन्तु 2023 में देश के पूर्वोत्तर राज्यों खासकर  पश्चिम बंगाल और सिक्किम की यात्रा में एक वाक्या हुआ कि गन्गटोक से  दार्जिलिंग जाने के रास्ते जाम हो गया हमें यात्रा रद्दकर वापस कोलकाता था. अब तो हमलोग बिना समय गवाए रमता जोगी बहता पानी जैसे निर्णय ले लिए कि अब सीधा  असम गौहाटी जाना है और वहाँ से सीधा रायपुर  .  सुखद संयोग बना कि दो दिन के समय को असम में निवासरत अपने लोगो के बीच बिताया जाय. श्रीमती जी तो अभी यात्रा में मेरी छाया जैसी ही है भले  घर में...तुरंत हामी भरी..इसी बहाने कामख्या देवी की दर्शन हो जायेगी. और हाथ जोड़ प्रणाम की मुद्रा में आ गई! 

हमारे निर्देशक हज़ारों किमी दूर परवरिम  गोआ  में IIHH पढ़ने गये  मिलिंद बेटे ने गूगल से सर्च करते आसान कर रहे थे. उन्होनें कलकत्ता से रायपुर का टिकट कैसिल करवाकर गौहाटी से रायपुर करवाकर हमलोगों की यात्रा को तनाव मुक्त सुखद कर दिया हालांकि कुछेक हजार अतिरिक्त भार आया पर असम के सुप्रसिद्ध और ऐतिहासिक कौरी पाथर और बसबेरा गाँव के निवासियों के स्नेहिल प्रेम और सितारा होटल से अधिक सुविधायुक्त ठहरने और भोजन की उत्तम व्यवस्था से जो सुखनुभूति हुआ वह वर्णनातीत हैं.

 तो हमलोग वापस सिलीगुड़ी के बस स्टेण्ड में आकर गौहाटी जाने वाले स्लीपर बस के टिकट ले लिये यह काम भी टैक्सी ड्राइवर नें फोन करके करवा दिए और उस बस के टिकट काउंटर के पास लाकर में हमारे बैग रखवाकर निश्चिन्त कर दिए.
रात्रि 8 बजे बस तब तक हमलोग खाना वगैरह खाकर आराम से स्लीपर कोच में सोते सोते अलसुबह 5 बजे बस स्टैंड गोहाटी पहुँच गये..
सुबह सुलभ में निवृत होकर चाय नास्ता लेकर 7 बजे चल पड़े गतंव्य की ओर मन में हजार सपने लेकर उछाहित 150 वर्षों से आव्रजित और हजारों कि मी दूर भाषा,लिपि, संस्कृति और प्रवृत्ति विरुद्ध जनों के बीच या निर्जन वन प्रांतर में कालापानी सदृश्य दुर्गम जगहों पर बसे परिजनों से मिलन भेट रोमांचित और पुलक प्रकट कर रहा था.

मेरे मोबाईल में जो नये सेट था में डॉ जितेन्द्र जांगड़े जी का नंबर था जिसकी बेटी असम निवासी मिलन बंजारे से ब्याही गई हैं का नंबर था और दूसरा मानवशास्त्री श्री युत अशोक तिवारी जी का  जो कि इन प्रवासी जनों के मध्य अनेक वर्षों से काम करते आ रहें हैं. उन्होंने 2018 में असम  निवासी मदन सतनामी जो असम प्रान्त का अध्यक्ष हैं के घर में बैठे मुझसे बात करवाए तब मैं शा महाविद्याल पलारी के बीए भाग तीन में जनपदीप भाषा साहित्य छत्तीसगढ़ी पाठ मुकुंद कौशल साहब के गज़ल "मुड़ उठाये करगा कस... पढ़ा रहा था.
 मदन सतनामी जी का भाव विभोर कर देने वाला अभिवादन ... सतनाम साहेब श्रवण किया और फिर अनुनय आग्रह कि दर्शन देहु गो...आज वह 5 साल बाद हो पा रहा हैं.
इस बीच हमलोग कई बार मिले तिवारी जी के पहल से छत्तीसगढ़ मूल के प्रवासी असमियों का प्रतिनिधि  सम्मेलन संस्कृति विभाग के सभागार में हुआ जहाँ पर मेरा प्रबोधन और एक परम्परिक सतलोकी मंगल भजन जो कि आकाशवाणी रायपुर से मानसिंह टंडन के स्वर में  चिकारा के साथ बजते आ रहें हैं - "अपन करम के भागी हो नरतन " को सुनाया और गला भर आया. उसी कार्यक्रम में मदन जी और संस्कृति विभाग के वित्त अधिकारी साहनी साहब के करमा प्रस्तुति भी समा बाँधा था.आगे चलकर साहनी साहब के साथ उच्च शिक्षा विभाग में साथ काम करने और उनके भांजा फ़िल्म स्टार संतोष सारथी के गुरतूर स्टूडियो से साथ में मेरे गीत -"चलो जुर मिल के अपन गाँव ल सरग बनाई " गाये. उस कार्यक्रम 30 प्रतिनिधि मंडल जिसमें महिलाए भी थी वो सबसे मेल भेंट हुआ और उनके यहाँ भी जाने की बातें हुईं. इस तरह मो न वाट्सअप और ग्रुप बने बनाये गए और छत्तीसगढ़ असम परस्पर जुड़ना आरम्भ हुआ.इन सबका श्रेय आद तिवारी जी के सतत प्रयास और संस्कृति विभाग के सौजन्य से हुआ.तिवारी जी से मेरा परिचय और मुलाक़ात 2015 से था ज़ब उनके सूचना और अनुग्रह में " आध्यात्मिक अनुष्ठान पंथी नृत्य " और सतनामी परंपरा में "रहस बेड़ा " पर सहपीडिया नई दिल्ली के लिये प्रलेखन और फिल्माकन किया. वहीं स्नेहिल संबंध मुझे पुनश्च आदेशित किया कि अनिल भाई तय असम गे हवस तब उहाँ के संस्मरण झटकुन 3-4 दिन में लिख के दे एक आयोजन मे ओमन ल पुस्तक छपवा के विमोचन करवाना हे..बड़े भैय्या के आदेश सर आँखों पर...
मैं रात के बस के खिड़की ल झाँक झाँक के सोनीतपुर देखत जावत हव कि असम के धरती के सुघरई कइसन हावय. तिस्ता नदी के तीरे तीरे ज़ब सिक्किम आयेन गायेन कहु उहि रकम के जंगल पहाड़ नदी नाला उच्च नीच सर्पिल सड़क तो नहीं...?

पर ऐसा कुछ नहीं बिलकुल सपाट मैदान बिना हिचकोले खाये बस चली जा रही हैं पर हसरते भरी मन में और आँखों में नींद नहीं... अचानक डीजल पेट्रोल का गंध बस में भर गये सोचा कहीं लीकेज तो नहीं...थोड़ी देर के लिये बस रुकी तो सांसे अटकी सी कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं...झटके से उठा क्या क्या हुआ...कंडेक्टर बोले कुछ नहीं किसी यात्री को लघुशंका के उतरना हुआ...बाहर  बाहर पेट्रोलियम रिफाइनरी हैं उसी गंध भरा हुआ हैं...मैं भी मत चूको चौहान टाइप इस धरती को प्रणाम करनें उतरा..थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी...
रास्ते में मिलन सतनामी जी नें दीपचंद जी का मो न दे दिए थे वे लोग सोनीतपुर बसबेरा जाने के मार्ग पर थैलामारा बस स्टेण्ड  आकर प्रतीक्षा कर रहें थे.नें बस कंडक्टर से मेरे मोबाईल पर बात किया कि सर इन लोंगो को तेजपुर मोड़ पर उतार दीजये..हमलोग निश्चिन्त हुए और रायपुर से हजारों कि मी दूर वहाँ उतरे जँहा पूर्व परिचित शिक्षक दीपचंद सतनामी जी एवं उनके मित्र सड़क किनारे बस के दरवाजे के समक्ष ही फुलान गमक्षा लिये स्वागतार्थ खड़े हुए मिले.
जैसे ही बस से उतरे स्वागत किया.कंडेक्टर एयर बैग निकाले और हमलोग वाहन में बैठकर महाकवि मनोहरदास नृसिंह जी के जन्म स्थान बसबेरा की ओर चल पड़े.बिलकुल मैदानी सड़क और आसपास का महौल मुझे कोसरंगी के बंगाली पारा जैसे लग रहें थे.पता नहीं क्यों अजनबी अनजाना पन लगा ही नहीं.महज 15 मिनट में हमलोग बसबेरा के भारती होटल पहुचे वहाँ भी हमारा स्वागत भौंन सतनामी,खैमराज दिगंतो भारती नें किया और स्वल्पाहार परोसे . पता चला कि होटल संचालक हमारा गोत्रज  भाई हैं और विगत अनेक वर्षों से इस व्यवसाय में लगे हैं.वहां की प्रसिद्ध मिठाई लौंग लता और कलाकंद लिये पैसा नहीं ले रहा था पर जबरदस्ती दिया वे केवल 200 रूपये लिये और 300 वापस कर दिए. मिठाई उस घर के लिए ले गए जहाँ हमें ठहरना था.
  होटल से महज एक कि मी दूर शानदार आधुनिकतम घर जहाँ अनेक पुष्प केला,पपीता आम और सुपाड़ी के पेड़ लगे हुए थे.खुला आँगन और मध्य में अलंकृत जैतखाम जो 18 दिसंबर को पालो चढ़े थे नाड़ियल और गेंन्दे के फूल से सजे मनमोहक लग रहें थे.सामने से प्रणाम किया और वहीं खड़े रहें तभी साध्वी सी माथे पर तिलक चंदन लगाए गृह स्वामिनी लोटा में जल लेकर आई और हमारे परक्षन की...हमलोग ऐसा अभ्यस्त नहीं थे  पहली किसी नें ऐसा स्वागत की कि हमारी श्रीमती जी बेहद गहराई से प्रभावित हुईं और तत्क्षण कहीं - ऐसा मैं पहली बार देख रही हूँ.वो हर्षित और चकित रह गई.
हालांकि मैं  जानता था और सरगुजा अंचल में ऐसा स्वागत सत्कार पा चुका था.उन्हें और सभी को कहाँ कि यह हमारी छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति हैं जिसे आपलोग सम्हाल कर रखे हैं. क्या हमारे आगमन के कारण ही ऐसा हैं कि कोई पहुना आते हैं उन सबका ऐसे ही सहज भाव से पाव पखांरते हैं.वो बोली जी इहाँ अभी चलतेच हवे नंदाय नइहे.आवव सुवागत हे...लम्बी यात्रा से हुईं थकावट यहाँ की मनभावन हरियाली स्वागत सत्कार और अपना पन के स्नेह से कपूर की मानिंद उड़ गए और मन में उत्साह उमंग भर आया...स्नान भोजनपरान्त दोपहर विश्राम कर दोपहर 3 बजे पहुनाई में पूरा पारा किंजरने निकले प्रायः 7 घर गए बातचीत चाहा पानी और पान सुपाड़ी से हमलोगों का अभिनव स्वागत सत्कार हुआ..

 शाम 7 बजे  1875 के आसपास स्थापित सतनामघर में आरती पूजा और भजन कीर्तन हुआ.जहाँ गाँव भर से प्रमुख गण महिला बच्चे उपस्थित रहें.वहाँ पर हमदोनो का खोराई, झापी खुमरी टोपी और फुलान गमछा से स्वागत सत्कार हुआ..फिर सोसल मीडिया से युवा लोगो को पता था तो वे लोग मेरे सम्बोधन के समय आग्रह किए कि पंथी भजन गाइये.मैंने पंथी और मंगल भजन गाया मेरे साथ भजन मण्डली गाये और युवा उत्साही गण पंथी नर्तन किए...कार्यक्रम में केशव सतनामी,दीपक,खैमराज,सुनहर,ओमप्रकाश चंड्रा बिशाखा,प्रमिला,मोहर लीलावती, पार्वती,बेनु रत्नसेर,धन सतनामी,दीपांकर चौधरी,भोलाराम रौटियां.लखन रोहित बिशाल,अज़ला,सुमन,जैसे युवा महाविद्यालियन छात्र छात्राएं भी सम्मलित रही और प्रश्नोत्तर क्रम भी चला.
रात्रि भोजन समीप नाम घर समीप महाकवि मनोहर दास नृसिंह परिवार के प्रतिष्ठित शिक्षक तुलेश्वर सतनामी के घर हुआ. जहाँ राजधानी रायपुर,बेलासपुर के विकास और गिरोदपुरी, सिरपुर राजिम शिवरीनारायण तीर्थं की बातें बस्तर की चर्चाएं होती रही...इस बीच लोरीक चंदा, नाचा, भरथरी जस जवारा भोजली की भी बातें चली लोग कौतुक वश पूछ रहें थे और मैं आधे -अधूरे ही सही इनसाईकलोपीडिया टाइप युवाओं बुजुगों के उत्तर देते छतीसगढ़ की महानतम संस्कृति का आस्वादन कर भी रहा था...
रात्रि विश्राम दीपचंद भैया के घर हुआ जहाँ पर सतनाम साधिका नर्मदा भाभी से आध्यात्मिक चर्चाएं हुईं.वे गुरु घासीदास आसन परिवार से जुड़ी हुईं अपने घर गुरुगद्दी स्थापित की हैं और नित्य सुबह शाम आरती ध्यान करती हैं.समय समय पर सत्संग प्रवचन भी.वे वहाँ समाजिक रुप से चर्चित और प्रतिष्ठित हैं उनकी बेटी डॉ पनीता एवं पुत्र विप्लव सतनामी भारतीय नौसेना में कार्यरत हैं.मायका वाले बलौदाबाजार के आसपास के गाँव हैं तो एक तरह से और भी आत्मीय बड़ी दीदी जैसी लगी क्योंकि मैं भी बालौदिया  हूँ जबकि ससुराल पक्ष रायगढ़िया हैं.
. सुबह चीला और मिर्च पाताल चटनी की नास्ता से मन तृप्त सा हुआ पान सुपाड़ी खाकर जैसे ही निकले की एडवोकेट लिखेश्वर सतनामी जी अपनी मारुती डिजायर लेकर हाजिर हों गये.काजीरंगा नेशनल पार्क से लगा सतनामी बाहुल्य गाँव कौरी पाथर जाने के लिये जँहा मिनीमता स्मृति भवन बन रहें हैं.. रास्ते में हरी- भरी वादियों से गुजरते जा रहें थे और  मेरे मोबाईल से ब्लूटुथ से मेरे ही छत्तीसगढ़ी गीत भजन सुनते हुए बीच बीच में सतनाम संस्कृति और असम में सामाजिक/ धार्मिक गतिविधियों पर बातचीत करते रोमांचक यात्रा ...यहाँ करीब 13 लाख से ऊपर छत्तीसगढ़ मूल के लोग निवासरत हैं.रामेश्वर तेली सांसद और राज्य मंत्री हैं अनेक जिला जनपद और निगम मंडल के सदस्य हैं.बगनियाँ लोग के नाम से चिन्हित और जाने वाले प्रवासी छत्तीसगढियों में सामाजिक सौहार्द हैं और परस्पर रोटी- बेटी भी हैं. ये लोग छत्तीसगढ़ी के कारण आत्मीय भाव से जुड़े हुए है परन्तु तेजी से युवाओं में छत्तीसगढ़ी विलुप्ति की ओर हैं यह दुःखद हैं इसके लिये छत्तीसगढ़ सहित असम प्रान्त में भी काम करने की अत्यंत आवश्यकता हैं अन्यथा पुरी संस्कृति समाप्ति की ओर चली जाएगी क्योंकि भाषा ही संस्कृति की संवाहिका हैं. मैंने कहाँ कि छत्तीसगढ़ के शहरों में सिंधी गुजरती मारवाड़ी पंजाबी व्यापारी हैं और विगत100-150 वर्षों से बसें हुए पर वे लोग अपनी भाषा संस्कृति खान- पान,रहन -सहन को यथावत रखे हुए हैं. हमलोगों को भी चाहिए कि उन लोगों का अनुशरण कर अपनी भाषा -संस्कृति को सहेज रखें...पर हमारे ही पढ़े -लिखे लोग उदासीन ही नहीं विरोधी नज़र आते हैं यह विडंबना हैं.
.   असम और पूर्वोत्तर की लाइफ लाईन ब्रम्हपुत्र नदी का दर्शन हुआ.पुल पार करते हुए मैंने रुकने और फोटो खींचने का आग्रह किया. प्रतिबंध के बाद भी सुबह ट्रेफिक कम होने से एक मिनट दो -तीन पोज के लिये किनारे कार रोके...सदानीरा ब्रम्हपुत्र का दर्शन से मन हृदय पुलकित और रोमांचित हुआ.
.   सतनाम धर्म के गुरुमाता और छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद मिनीमता जी के जन्म स्थान  जहाँ पर भव्यतम स्मारक हैं जो कि काजीरंगा नेशनल पार्क से लगा खोखन जूरी के पास ही मनोरम ग्राम "चिकनी पाथर "के बारे में चर्चा करते हुए पहुंचा .हमलोगों की आगमन स्वागत की सूचना और वीडियो फोटोग्राफ असम ग्रुप में डाले जा चूके थे फस्वरूप हमलोग को राजकीय अतिथि और गुरुगोसाई जैसा अकल्पनीय सम्मान मिला...हमारी श्रीमती जी तो बहुत ही गौरवान्वित और आल्हादित हुईं जा रहीं थी क्योंकि यह सब वो पहिली बार देख और महसूस कर रही थी.मुझे तो दो चार बार का अनुभव भी था. बहरहाल हमलोग 12 बजे पहुँचे ब्रिटिश जमाने का स्कूल परिसर से लगा कोलियाबार के चिकनी पथार गाँव में छत्तीसगढ़ की सांसद छाया वर्मा जी द्वारा प्रदत्त 20 लाख राशि और सामाजिक सहयोग से अत्यंत सुंदर  मिनी सतनाम भवन निर्मित हैं उसी के प्रांगण में हमारी कार रुकी...महिलाए बच्चे बड़े बुजुर्ग आरती थाली नाड़ीयल और फूल मलाए लिये स्वागत में खड़े थे...हमलोगों को परघाकर और पाँव पखार कर सभागार में ले गये जहाँ माता जी की छायाचित्र लगे हुए थे.हालांकि भवन पूर्ण हों चुका था पर उद्घाटन नहीं हुआ था...एक तरह से स्वागतार्थ पहला कार्यकम उस भवन में हुआ जो हमारे लिये सौभाग्य ही है.
.  वहां स्वागत सत्कार उपरांत एक कार्यक्रम सा ही हुआ.सुदूर छत्तीसगढ़ की कथा कहिनी जैसे मधुर यादें और यहाँ की जीवन संघर्ष के बारे में बातें की गई मिनीमाता और आगमदास गोसाई की संस्मरण भी सुनाये गये.मैंने सचिव छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की हैसियत से आग्रह किया कि अपनी संस्मरण को छत्तीसगढ़ी हिंदी में या कोई रचनाकार लेखक कवि हों तो उनकी रचनाओं का पाण्डुलिपि जो छत्तीसगढ़ और असम केंद्रित हो को आयोग भेजिएगा निःशुल्क प्रकाशित कराएँगे और राज्य की जिलों में भेजेंगे लेखक साहित्यकार का सम्मान भी करेंगे...इसका प्रचार -प्रसार भी करें.ऐसा आव्हान भी किया.कार्यक्रम में दाऊराम,नामदास,बिमल सतनामी ,संजय ठाकुर, अमरदास पनिका,भोलाराम रौटिया, दुर्गा दहरिया,प्रियंका,गुणवान्ति,जुगत,इंदल मानदास,कृष्णा कुर्रे सहित अनेक महिलाए बच्चे उपस्थित रहें.

 सेवनिवृति की ओर अग्रसर शिक्षक दादूराम सतनामी की वयोंवृद्ध माता जी नें मिनीमाता की संस्मरण सुनाई बहुत गोरी चिट्टी और रानी जैसी थी.वो यहाँ आती थी हमलोग बचपन में देखी हैं मैं भी वैसी थी तो मुझे प्यार दुलार भी की...बुजुर्ग माता जी सचमुच में गौरवर्णी और मधुर भाषिणी थी. वो बताई कि सामने जो पेड़ दिखाई दे रहा हैं वहां गुरु अगमदास जी का हाथी बंधया था.जिसपे वो लोग चढ़ कर आते थे.यहाँ बहुत जंगल और रास्ता नहीं था पैडगरी था.मोर ददा बड़का महंत रहिस.वो आग्रह कर अपने घर ले गई  खुलाआँगन ढेकी,जाता जैतखाम और छत्तीसगढ़ के किसी महंत गौटिया के घर जैसा ही लगा... मैं तो ढेकी कूटा और अनीता जाता दर कर देखी.उनकी बहुये और बाल गोपाल हमलोगों की हर्ष से स्वागत  स्नेह पूर्वक भोजन कराई...पान सुपाड़ी जो प्रायः हर घर उगाई -खाई जाती हैं यहाँ की संस्कृति बन गई हैं,खिला कर विदाई की.
.       बहुत सी ऐतिहासिक बातें जंगल साफ कर गाँव बसाने और  खेत बनानें की दास्तां सुनते गये इधर परिश्रमी और साहसी लोग धनाढ्य भी होते गये अनेक बड़े हैसियतदार भी हों चूके हैं.कुछ लोगों की बड़े बड़े चाय बगान भी हैं...
हमारी कार दौलगांव की ओर तेजी से बढ़ती जा रही थी क्योंकि वहाँ मिनीमाता स्मारक का दर्शन करना था.बार -बार लोंगो का आग्रह रहा कि कुछ दिन रुकिए आराम से जाइएगा.मदन सतनामी शंकर साहू जी का भी आग्रह था पर छुट्टी नही था.कैसे वक़्त पल में बीतते गया पता ही नहीं चला...शाम 6 बजे तक गौहाटी पहुंच कर निलांचल पर्वत में स्थापित सुप्रसिद्ध कामाख्या दर्शन भी करना था क्योंकि प्रातः ही रायपुर के लिये प्लेन था.
.  रास्ते में एक संपन्न सतनामी कृषक ट्रेक्टर से धान मिसाई कर रहा था सड़क से लगा ब्यारा का राचर था.कार रुकी... साहेब सतनाम हुआ.हवेली नुमा घर देख अच्छा लगा उससे पता चला चाबीदार वहीं स्मारक में प्रतीक्षा कर रहा हैं...कार चालक मित्र बताये यंहा भी सतनामी बाहुल्य पढ़ा लिखा सम्पन्न लोग हैं और बरार कार माता जी की स्मारक बनवाये हैं..वहाँ पंहुचा और भव्य सुंदर अस्मिस वस्तुशिल्प के अनुरुप स्मारक बने हैं सामने जैतखाम भी  जहाँ कुछ दिन पूर्व ही भव्यतम रुप से गुरु घासीदास जयंती पर रंग रोगन और पालो चढ़ाये गये हैं.दर्शन कर कृत्य कृत्य हुआ. कलांतर में यह स्थल  सतनाम धर्म के पुर्वोत्तर भारत में स्थापित यह प्रमुख तीर्थ के रुप में जाने जायेंगे...इस मंगलकामनाओ के साथ  हमलोग थैलामारा बस स्टेण्ड की ओर चल पड़े थोड़ी देर बाद बस स्टेण्ड पहुँचे सामने से आधी भरी खाली बस आई... आराम से सीट मिल गये!  दोनों जोड़कर अभिवादन में खड़े हाथ हिलाते और आइयेगा के आग्रह भाव और फुलान गमछा गोल टोपी खुरई,सुपाड़ी,चाय की ताजी पत्ती सहित अगाध प्रेम भाव से पगी हुईं "मया के मोटरी " बांधे हर्षित हृदय,पुलकित मन  में यह विचार करते बस में बैठे गंतव्य की ओर बढ चले...
ज़ब सोसल मीडिया और पर्यटन प्रेम के चलते 2000 कि मी सुदूर छत्तीसगढ़ी जनता  से जोड़ने क्यों दोनों राज्य की महत्वपूर्ण कड़ी मिनीमाता जी के नाम से दुर्ग या रायपुर से डिब्रुगढ़ या गोहाटी तक सीधा रेल सेवा आरम्भ हों. ताकि सुगमतापूर्वक परिजन आ जा सकें सगे -संबंधी जुड़ सकें. सांस्कृतिक धार्मिक व्यापारिक संबंध भी बेहतर हों सकें इनके लिये केंद्र और दोनों राज्य के प्रतिनिधि गण मिलकर सार्थक पहल कर सकतें हैं. 
. इस तरह अविस्मरणीय रोमांचक, ज्ञानवर्धक, सुखद और प्रेमल यात्रा सम्पन्न हुआ.


जय छत्तीसगढ़ जय असम जय भारत 

.  डॉ. अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514
 सत श्री ऊँजियार सदन 
सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ़