बोरे बासी
ठंडा मतलब बोरे बासी ये डायलाग सनीमा के नोहाय भलुक सिरतोन आए। ते पाए के जुड़ के दिन मे बासी नई खाय जाय अऊ गरमी के दिन होय या असाढ या कुंवार कुहकुही होय आम जनमानस बिकटेच बासी दमोरथे।
सैकमा भर बासी बोकेव
खांध म कांदी के कावर बोहेव
आवत हव छिरहा खार ला
आगोर लेबे साजा रवार मे
यह बासी का ही असर है की दो बोझा कांदी जो बहुत ही वजनी होते हैं को दोपहर लहकते धूप मे भी ददरिया गाते सपरिहा घर आते हैं। बासी की ठंडक ताशीर के कारण ही यह डायलॉग लोगों के सर चढ़ कर बोला।
बहर हाल बासी चावल उत्पादक राज्यों की सबेरे की लोकप्रिय खाद्य सामग्री हैं। नाम भले बासी हैं पर यह हिंदी की बासी वाली शब्द के विपरीत हैं। बचे हुए अनुपयोगी वस्तु बासी या बेकार हैं। इसे प्रायः पशुओं को खिलाए जाते हैं ।
जबकि बासी को ताजे गरम भात में पानी डालकर बनाएं जाते हैं। जिसे एक आधे घंटे के भीतर खाए जाते यह बोरे हैं। और सुबह के लिए ज्यादा मात्रा में चावल बनाकर भात में पानी डालकर सुबह सुबह खाए जाते हैं। यह केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि सभी चावल उत्पादक राज्यों की सबसे लोकप्रिय खाद्य पदार्थों में शुमार हैं।
हालाकि आधुनिक जीवन और पाश्चात्य खानपान तथा शासकीय नौकरी और एकल परिवार के चलते बासी बनाकर खाने की प्रवृत्ति शहरों और नौकरी व्यवसाई समाज में खात्मे की ओर हैं। जबकि बासी सही पोषण देने वाले पारंपरिक और वातावरण के हिसाब अनुकूल खाद्य पदार्थ हैं।
बर्गर पिज्जा सेडविच मैदा को सड़कर खमन उगाकर ब्रेड बनाते है। मोमोज मे भी मैदा है उसमें गर्म तासीर की साग या चिकन मटन डाल कर कुशली जैसे बनाए जाते है यह ठंड पदेश की खाद्य हैं साथही साथ गर्म प्रदेशों की इडली डोसा ढोकला थेपला जैसे दक्षिण और पश्चिमी इलाके/ राज्यों के खाद्य पदार्थ जिसे सडकार बनाएं व खाएं जाते हैं।
लेकिन मध्य छत्तीसगढ़ जहा धान की बम्फर खेती हैं चावल आधारित ताजी खाना खाना खाए जाने की विशिष्ट परंपरा हैं। यहां अनाज को बिना सडाये या कहें खमन उठाए खाने की परंपरा हैं।
बासी को मंडल गौटिया सहित राजा भी शौक से खाते थे। बासी खाने की बटकी होते थे।
कहीं कही सकीमा भी कहते है जिसमें बासी रखे जाते है
एक लोकप्रिय ददरिया हैं
बटकी मा बासी आय चुटकी मा नून
मैं गावत हव ददरिया तय कान दे के सुन
क्योंकि ऐसा ही समझकर इसकी अनादर व हिकारत किए जाने लगे हैं। जबकि यह मल्टी विटामिन से युक्त सुपर फूड हैं। इसे अनेक संस्थान द्वारा प्रमाणित भी किए गए हैं। बीपी गैस यहां तक कि सुपाच्य होने से शुगर के लिए भी उपयुक्त माना गया हैं।
अपेक्षाकृत शारीरिक परिश्रम न करने वाले लोग बासी की महत्ता से अनभिज्ञ हैं। फिर इनसे समय संसाधन की बचत भी तो हैं। कभी कभी कम चावल की भात मे पानी छाछ दही डालकर भी अतिरिक्त लोगों की क्षुधा मिटाई जा सकती हैं।
तो इस तरह से किसी भी राज्य देश खान पान रहन सहन के ऊपर हिकारत या उपेक्षा भाव नहीं रखना चाहिए। क्योंकि सबकी अपनी अपनी दार भात, साग भाजी, खाई खजेना, हाट बाजार, खेती बाड़ी, कपड़ा लता, गहना गोठी, चूरी चाकी, छठी बर बिहाव मरनी हरनी गीत भजन नाचा लेखन , हंसी मजाक कू काहिनी होथे जोन संस्कृति के अभिन्न अंग हे। इन्हीं के भरोसे अभाव मय जीवन मे सभाव भरते लोग जीवन निर्वहन करते आ रहें हैं।
बासी बिकती नही और यह व्यवसायिक नही है इसलिए मिलावट से कोसों दूर हैं।शायद इसलिए पौष्टिक हैं। जिस दिन यह बिकने लगेगी शायद तब उनकी गुणवत्ता पर प्रश्न उठेगी। इसे तो बस घर मे बनाव खाव और ज्यादा हुवा तो अपने साथ टिफिन मे अपने कार्य स्थल खेत बाड़ी आफिस दुकान ले जावे। व्यस्त मस्त और स्वस्थ रहे। जय छत्तीसगढ़ जय भारत
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