Thursday, May 15, 2025

शास्त्रीय संगीत छत्तीसगढ़ी महक

#anilbhattcg 

।।शास्त्रीय संगीत में छत्तीसगढ़ी सुरभि।।

    छत्तीसगढ लोक संगीत  में समृद्ध हैं पर शास्त्रीय संगीत  प्रायः नगण्य है,हैं भी तो छत्तीसगढ़ी पन से कोसों दूर हैं।यह एक विडंबना ही हैं कि भारतवर्ष  या कहें एशिया महाद्वीप में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़  छत्तीसगढ में प्रथम हैं। परंतु शास्त्रीय गायन, वादन, नृत्यादि में छत्तीसगढ बंदिश, गीत, वाद्ययंत्र और वेश भूषा आदि का कोई प्रचलन नहीं  और न ही छत्तीसगढ़ी से कोई रिश्ता नाता है । गांव, कस्बा शहरों में लोक कलाकारो की अगणित संख्या होने और रायगढ़ घराना होने के बावजूद भी लोक में शास्त्रीय संगीत लोकप्रिय नहीं हो सका हैं। इस दिशा में कोई गंभीरतापूर्वक  प्रयास  भी आजतक नहीं हों सका ना ही कलाकर, जनप्रतिनिधि, इच्छुक हैं फलस्वरूप शासन प्रशासन का ध्यान भी आकृष्ट नही हो सका हैं।
      जहा जहा घराने हैं उनकी शैली में उस राज्य की भाषा,वेशभूषा लोक संगीत भी उनमें घुलामिला हैं।
बनारस, किरना, जयपुर, ग्वालियर, कर्नाटक, रविन्द्र संगीत , वाद्य मे घटम, नाद स्वरम , सारंगी आदि नृत्य में कत्थक, ओडीसी, भरतनाट्यम, कुचीपुड़ी, मोहिनीअट्टम आदि के वेशभूषा में उस राज्य की पहनावे ही उन्हें विशिष्ट बनाई है।तो छत्तीसगढ मे गायन में छत्तीसगढ़ी गीत बंदिश ख्याल ठुमरी क्यों नहीं? कत्थक की रायगढ़ घराने में छत्तीसगढ़ी वस्त्राभूषण क्यों नहीं और कुछेक लोक वाद्य को सहायक वाद्य के रुप में सम्मिलित कर छत्तीसगढ की शास्त्रीय संगीत को छत्तीसगढ़ी सुरभि से सुवासित क्यों नहीं किया जा सकता? 
     हालाकि कमलादेवी महाविद्यालय में डा अरुणसेन डा अनीता सेन स्वरचित छत्तीसगढ़ी  गीतों को अध्ययन के समय हम विद्यार्थियों के साथ रागों के साथ गाते भी थे। दुर्गा महा मे हमारे गुरुदेव गुणवंत व्यास ने गुरतुर गाले राग द्वारा चुनिंदे रचनाकारों की छत्तीसगढ़ी  रचनाओं को विविध रागों में आबद्ध कराए। वर्तमान में कृष्ण कुमार पाटिल जी गायन कर रहें हैं। पर यह चंद  शौकिया शुरुआत मात्र हैं इसे प्रोत्साहित करने की नितांत आवश्यकता हैं। अब छत्तीसगढ़ी जनता भी शिक्षित और शिष्ट रुचि के होने लगें हैं और क्लासिक संगीत हिंदी में सुनने के लिए बेताब भी रहते हैं तो क्या उन्हे उनकी अपनी मातृ भाषा छत्तीसगढ़ी और वेषभूषा वातावरण में उपलब्ध करा सकते हैं,उन्हें कब तक वंचित रखें ?

   इन्हीं प्रश्नों और मुद्दों पर पद्मश्री डॉ ममता चंद्राकर कुलपति इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, पूर्णश्री राउत सुप्रसिद्ध ओडीसी नृत्यांगना, एवम् डेविड निराला लोक संगीत शिक्षक के साथ गंभीरतापूर्क सफल खुशनुमा उत्साहित चर्चा हुई कि ऐसा किया जा सकता हैं।

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