Tuesday, July 15, 2025

चंदन के सुगंध

चंदन के सुगंध बगरइया चंदन गुरुजी के गीत कविता के महमइ

जइसन नाव तइसन गुन के धनी गाँव गवई  में गुजर बसर करत लोक जीवन के सुघरई अउ महमइ सकेलत गोकुल प्रसाद बंजारे "चंदन "  गुरुजी हर बड़ गुणवंता शिक्षक आय। तेकरे सेती उन ल हमर देश के राष्ट्रपति जी से सम्मान मिले हवय । ये तरा से उन मन समाज अउ के राज के रतन आय।  उनकर रचना हर  संदेश परक श्लोगन सरीख हवे _

लाज सरम ल छोड़ अपन ।
मन के कुंठा ल तोड़ अपन ।।

कहत जनचेतना के संचार करथय। सरल सहज संत सुभाव  वाले गुरुजी हर लोक चितेर कवि अउ गीतकार घलो आय। ओमन साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजन में सरलग आवत जावत रहिथे।ते पाय के बदलत जमाना अउ फैशन के हिहाव उकर शब्द चित्र ल थोरकिन देखव- 

निकले हवय जींस पैंट पहिन 
चप्पल अउ पनही
हमर खेती खार काम म
ओ कइसन बनही 

कहत  ओमन प्रकृति अउ प्रवृति के ऊपर  पोठलगहा सवाल उचाथे.

प्रकृति के बात आइस तब उकर 
सुघराई गाँव खेत_ खार  हर जगा बगरे हे कवि देख मोकाय बानी लिखथे- 

लाली गुलाली परसा फुलगे
दुल्हिन संग म करसा खुलगे
अउ आघु 
आमा मउरे कहर महर महके 
कोन हर  कति डहर लहके 


कहत मनसे, जीव जन्तु  के ऊपर परत प्रभाव ल लिखथे.

 ओमन अपन अन्तः करण म उमड़त भाव ल आखर म भर के गीत कविता के पाग म बांध के लोगन के आगु मयारुक  ढंग से सस्वर सुने म बड़ मीठ बिहतरा लाडू  खाय कस मन अघा जथे.अइसन सुग्घर  उनकर छत्तीसगढ़ी  रचना संसार हवे-

राजभाषा बनगे बोली छत्तीसगढ़ी  जी 
इही  म होही  सरकारी लिखा पढ़ी जी 
हमर पुरखा मन के सपना होगे सकार ग
गाँव गली खोर बगरही  मया पीरित  दुलार ग 
चलव बिना डरे झिझके दरबार चढ़ी जी  

    उनकर करु -कसा भाव तको मंदरस कस मीठ हवे. काबर कि गुरु बाबा कहें हे -"मंदरस के सुवाद ल जान डरे त सब ल जान डरे " 
गुरु बाबा के परम् भक्त चंदन जी हर गुरु भाव अउ असीस उत्तराधिकारी हवय तेन पाय के उकर काव्य म सबोझन बर मंगलकामना करत उदगरित होय हवे -

कभु लबारी झन मार बेटा न चुगरी न चारी.
सुख-दुःख म तय हासत रहिबे 
जइसे सुरुज चंदा उजियारी.

शिक्षा अउ साक्षरता संबंधी कतकोन रचना हवे फेर बंजारे चंदन गुरुजी के भाव सबले अलगेच हवे - 
मोर कहु हो जातिस बहिनी आखर संग मितानी.
मुड़ ऊचा के महूँ रेंगतेंव गुनतेंव आनी बानी 

शिक्षा पाए ले कइसे समझ आथे अउ उनकर परभाव कतेक होथे एकर सुग्घर वर्णन हवे.
उनकर गीत कविता हर शिल्प विधान के दृष्टि ले भले कमती हो सकत हे काबर कि उन आखर- मतरा के गुना -भाग मे उलझें नइहे भलुक उकर जाला -बंधना ल हवा कस झकोरत अउ भाव जगत ल नदिया कस धार फिजोवत  ममहावत बोहथे - 

सुख म हो खर्चा त बने दिन पहाथे
नंदिया म ख़ुशी के ग जिनगी ह नहाथे 
सब आजेच उड़ाहु तब काली कइसे आही.
आफत अउ बिपत ले भला कोन बचाही.
जइसे सरल-सुगम फेर प्रभावी डाड़ हर सुरता राखे के लाइक हे.
गाँव खेती बारी तीज त्यौहार धरम  करम मेला मड़ई  शिक्षा, साक्षरता, स्वास्थ्य ग्रामीण प्रशासन जइसे विषय के ऊपर उकर लेखन अउ शब्द चयन मन बड़ सेहरौनिक हवे. सच मे ओकर रचना संसार मे जाय ले,  कवि संग साघरों करें ले चंदन के पावन महमही जनाथे.ते पाय के उनमन मोरे महसूस करें भाव ल लेके अपन कविता गीत संग्रह के नाव चंदन के सुगंध नाव धरे बर झटकुन सहमत होगिन.
   ऐ रचना बर चंदन गुरुजी ल बधाई देवत आस करत हवन कि येला छत्तीसगढ़ी संसार मे एक मन आगर सुवागत करें जाही.अउ पाठक शिक्षक शोधार्थी मन बर उपयोगी होही.

जय जोहार, जय छत्तीसगढ़

प्रो. डॉ.अनिल कुमार भतपहरी ( 9617777514)
प्राध्यापक हिंदी 
उच्च शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन

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