Saturday, April 5, 2025

सतनाम सदग्रन्थ का आयोजन

संपादकीय 

सतनाम सदग्रन्थ का आयोजन और उनका सामाजिक प्रभाव 

 सतनाम धर्म संस्कृति एक तरह सें उत्सव धर्मी संस्कृति हैं.जहाँ वर्ष भर कार्यक्रम चलते रहतें हैं.मानव समुदाय में जो विषमताएं  और अभाव ग्रस्त जीवन हैं उनमें  यही सांस्कृतिक आयोजन की समता और सभाव को भरता हैं फलस्वरूप सुखी और संतोषप्रद जीवन जी पाते हैं.
सोचिये आज सें 50-60 वर्ष पूर्व कितनी असुविधाएं और कष्टमय जीवन रहा फिर भी हमारे परिजन बिना बिजली सड़क स्कूल अस्पताल नदी में नाव के सहारे जीवन व्यतीत किया. इन सबके पीछे गाँव -गाँव में गठित बाल समाज,  तीन तरिया भजन, निर्गुण भजन,  पंथी दल, चौका आरती,पंडवानी,रहस बेड़ा, सतनाम संकीर्तन, गुरु घासीलीला मंडली, आल्हा, भरथरी, गोपीचंद,ढोला मारु जैसे गीत भजन गाथा गायन का अनुष्ठानिक और मनोरंजनिक कार्यक्रम रहा हैं.
 खेतों खलिहानों  के  कठोर श्रम को हरने शारीरिक और मानसिक पीड़ा का शमन करने इस तरह के आयोजन करते थे. तब समाज सुगठित और संत,महंत पंच पटेल न्याय कर लेते थे. पुलिस थाने कोर्ट कचहरी का हस्तक्षेप नग्नय या कम था.  आपराधिक प्रवृत्तियाँ जुआ शारब   नशे पान मांसाहार जैसे व्यसनों सें  समाज कोसो दूर होते थे. और यदि किसी के प्रति जानबा होते तो दण्डित होते थे.अनेक ऐसे महंत गुरु थे जिनका प्रभाव  व्यापक स्तर पर था.नैतिक स्तर बहुत ही उच्च होते.सादा विचार और उच्च जीवन ही जीवन का ध्येय था.परन्तु आज गाँवों में यह सब बुराइयां जड़ जमा चूके हैं. और लोगों का जीवन स्तर रूपये कमाने और पर्याप्त आय के बाद भी निम्नतर होते जा रहें हैं.टीवी वीडियो के आने ख़ासकर मोबाईल आने सें सांस्कृतिक आयोजन लगभग खत्म सा हो गये. गाँवो का सामाजिक उत्सव और आयोजन खात्मे की ओर हैं.अब उँगुली में गिने जाने वाले गाँव बचे हैं जहाँ पंथी दल या कोई कला मंडली होंगे.लगभग सभी चीजें व्यवसायिक हो चले हैं और सेवा समर्पण कम होने लगे हैं. 
 एक समय शहर धोखा धड़ी चोरी उठाई गिरी छल प्रपंच के अड्डे थे वह सुविधाओं और सुकून का जगह बन गये हैं.ऐसा क्यों हुआ? इन पर विचार करने की जरुरत हैं.लोग अपना  एकड़ में खेत बेचकर शहरों में 500/700 फ़ीट का लाखों में घर खरीद कर फ्लेट लेकर ख़ुशी और समृद्धि की मृग मरिचिका तलाशते शहरों,क़स्बों में भटक रहें हैं.शिक्षा स्वास्थ्य के निजीकरण हो जाने और प्रतिस्पर्धा के युग हो जाने सें अंधी दौड़ में सब शामिल हो बिना मंजिल तय किए भाग रहें हैं.
.  ऐसे में विगत कुछ वर्षों सें समाज में सदग्रंथ आयोजन सतसंग प्रवचन का 3-5-7  दिवसीय सुविधाजनक आयोजन समाज को पुनः सामाजिक उत्सव की ओर ले जाने और नई पीढ़ी के लोगों में सामाजिक और धार्मिक भावनाओं का बीजारोपण करने का उपक्रम अत्यंत सराहनीय हैं.
समाज में राजनैतिक चेतना गुरुघासीदास के समय सें ही रहा जब उन्होंने अपने सुपुत्र गुरु बालकदास को राजा बनवाया.अनेक संत -महंत को जमींदारी मिली. कलांन्तर उन्ही महंतों में सें 72 संत महंत गुरुआगमदास और राजमहंत नयनदास महिलाँग के नेतृत्व में 1915 में गोरक्षा आंदोलन चलाकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. दूसरी ओर मन्त्री नकुल ढीढी एवं महंत नंदूनारायण भतपहरी मिलकर गुरु घासीदास जयंती के माध्यम सें सामाजिक क्रांति की शंखनाद  अनगिनत लोग जेल की यन्त्रणा सहे और आत्म न्योछावर किए.फलस्वरूप देश को आजादी मिली. शिक्षा और रोजी रोजगार मिले शहरों में बसते गये सत्ता में थोड़ी बहुत सहभागिता मिली. पद -प्रतिष्ठा का मोह बढ़ा तो अनेक दलों में बिखराव होने लगे.  फिर  सचेतक समाज नेतृत्व शून्य हो राजनैतिक रुप सें इस्तेमाल होने लगा.  लोगों में राजनैतिक चेतना बढ़ती हुई दीखता तो हैं पर यह दिशाहीन हैं.इसके कारण बड़ी तेजी सें समाजिक ताने- बाने बिखरते जा रहें हैं. सांस्कृतिक चेतना की दिशा में काम नहीं हो पाने सें नैतिक स्तर में गिरावट आना शुरु हुआ. अतः उन्हें रोकने और नई पीढ़ी को दिशाबोध करने कराने हेतु सदग्रंथ समारोह, सांस्कृतिक जागरण और बौद्धिक क्रांति लाने की दिशा में क्रन्तिकारी पहल हैं.
विचारवान लेखक कवि कलाकारों का साझा सम्मेलन और उनके सम्बोधन प्रबोधन काव्य प्रस्तुतियाँ विचार विमर्श इत्यादि आगे चलकर समाज में नई इबारत लिखेगा ऐसी उम्मीद हैं.इसलिए इस तरह के आयोजन सर्वत्र हो इस दिशा पर हमारे आयोजकों, संगठनों और राजनायिको को सार्थक पहल करना चाहिए. 

असम प्रान्त में मिनीमाता जन्म स्थल चिकनी पथार, दौलगांव में नवनिर्मित मिनीमाता स्मृति भवन के लोकार्पण पर एक वृहत राष्ट्रीय सतनामी सम्मेलन सम्पन्न हुआ.
3 एवं 5 दिवसीय सदग्रंथ आयोजन का सिलसिला भी खरोरा,रहंगी सहित पलारी बलौदाबाजार सहित अनेक क्षेत्रो में हो रहें हैं समाज प्रमुखो और महापुरुषों की जयंती समारोह भी हो रहें हैं.बोडसरा धाम मेला गरिमामय सम्पन्न हुआ.  सतनामी समाज में बलौदाबाजार जिला एक तरह गुरु घासीदास धाम यानि बाबाधाम के नाम विगत कई सालों सें लोगों के जुबान में चढ़ चूका हैं वह नाम शीघ्र शासन प्रशासन के जुबान सें उच्चरित होंगे और इस तरह के रचनात्मक आयोजन  शासन प्रशासन के सहयोग सें समाज को नई दिशा मिलेगी और सुनियोजित ढंग सें  नशा  मांसाहार और साम्प्रदायिक गतिविधियों में हमारे युवजनो की बढ़ती रुझान या इस्तेमाल को यथा संभव रोक पाएंगे इस उम्मीद के साथ यह अंक समाज को सादर सम्पर्पित हैं.

जय सतनाम 

डॉ अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514
ऊँजियार सदन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ़

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