Sunday, August 2, 2020

शिष्ट साहित्य के प्रणेता

"छत्तीसगढ़ी शिष्ट साहित्य के प्रणेता गुरुघासीदास "
      छत्तीसगढी लोक साहित्य पोठ हवय।मझोत मैदानी भाग जोन समतल मैदान अ उ खेतखार वाले ठ उर आय जिहा सबसे जादा मनसे मन के रहवास हवय उकर  परब  उत्सव सब के सब कषि सन्सकृति पर आधारित हे।अकती बिजबोनी , हरेली, भोजली तीजा -पोरा ,देवारी माथे मड ई जयन्ती  छेरछेरा होरी, जवारा परब अउ बर बिहाव करत फेर बिजबोनी अकती तिहार हबर जाथे।
     ये हर बछर बहुरत रथे।
ये जम्मा परब म गीत भजन नाचा  खेल रोटी पीठा पहनन ओढन के सुध्धर चलागन हवय।
    उत्तर सरगुजा अ उ दछिन म आदिवासी सन्सकृति म सरहुल करमा बार रीलो दसरहा जगार जात्रा के तको चलागन हवय जेमा
   लोक जीवन अपन जिनगी नाचत गावत हासत कुलकत कत्कोन अभाव पीरा ल झेलत पहावत हवय।उन्कर मीत मितान म मनसे ल कोन कहय पशु पछी जन्गल पहाड रख राई तको हवय।अब तक के विशिष्ट प्रयोजन म सिरजे साहित्य जेन ल शिष्ट साहित्य कथन ओमा सबले प्राचीन वैदिक साहित्य ल माने जाथे।फेर उनकर कतकोन प्राचीन ये लोक साहित्य हवय जोन नदियां के धार कस फरियर कलकल करत लोक कन्ठ ले बोहात चले आत हवय।
     साहित्य अ उ ससन्कृति हर  बोहात कहु ठहर जाथे त उन म कतकोन विकरिती तको आ जथे।ते पाय के उन म हलचल करे खातिर या नव धारा पनकाय खातिर समे समे म परवरतक अवतरथे।छग म ओ समे दुर्गम बीहड जन्गल म गुरु घासीदास के अवतरन होइस।जोन नवधारा बोहवाइस।अ उ लोक जीवन जोन असमंजस म ठहर रबक अ उ ठोठक गे रहीन त उनखर बर नवा रद्दा (सतनाम पन्थ )चत्वारिन येकरे परचार परसार बर उन छग के चारो कोन्हा म ९ जगा किन्दर बुलत रामत रावटी करिन ये जगा आय १ चिर ई पहर २ दन्तेवाड़ा ३ कान्केर ४ पानाबरस ५ डोन्गरगढ ६ भवरदाह ७ भोरमदेव ८ रतनपुर ९ दल्हापहाड।
      दल्हा पहाड म ।ये जगा म रीति नीति सन्सकृति  धर्म दीछा सन्सकार दिन मन्गल पन्थी भजन सत्सन्ग प्रवचन लोक गाथा दृटानत द्वारा जन मानस ल सिखोय पढोय गिस । आज. ये जगा सत्धाम बन गय हवय।
       छग म यदि प्रयोजन मुलक शिष्ट साहित्य सिरजिस ओमा १७. वी सदी म गुरु घासीदास के सतनाम सिद्धान्त उपदेश रीति नीति सन्सकृति  गीत कथा दृटान्त मन्त्र नाम पान आदि  मूल  छत्तीसगढी म  रहीस।बाबा जी हर मनखे के असल दुख पूरा ल बड तप कर के बुद्ध कस समझी। अ उ उन ल दुर करेब जनमानस के मझोत आके नव जागरण के सन्देश दिस जो।सत के उपर आधारित रहिस।
    उन हजारो हजार शिष्य साटिदार भन्डारी सन्त महन्त मन  कन्ठस्थ करिन

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