विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासियों की भूमि से -
।। बस्तर के मंगलमय गान ।।
आम्र मंजरी चार मौर महुएं फूल का
मादक महक चहुंओर परिव्याप्त हैं
सरई -सागौन से सजा -धजा बस्तर
बांस की झुरमुट से झाकता हरित आफ़ताब हैं
पावन परब लक्षमी तीजा जगार
ककसाड़ मेले -मड़ई की बाहर हैं
गांव -गांव में सल्फी लांदा संग
मुरगा लड़ाई और ढोल की ताल है
लया -चेलिक की खिलखिलाहट
इंद्रावती जलधार कलकल निनाद हैं
आलोकित हो कुटुमसर परलकोट हो मुक्त
निहारते गुंडाधूर भूमकाल का महानाद हैं
मधुर गाती मैना - मंजुर थिरकते हिरण सा
सीखे माड़िया -भतरा की नृत्य -नाट गान है
पलाश सेमल से दमकता लाल रंग चहुं ओर
बस्तर की प्रेम त्याग का अनोखी शान हैं
दंतेसरी की कृपा चितालंका की रावटी
गूंजे चिरई पदर से नित सतनाम हैं
शंखनी -डंकनी सी मिले झिटकू -मिटकी
सदा प्रेम भरा जनजीवन में अनुराग हैं
कांकेर की कथा रुपई -सोनई की गाथा
ढोलकन बारसूर की मनोहर भाग हैं
जीवन संगीत झरे तिरथगढ़ से निकल
चितरकोट की झरना तक प्रवाहमान हैं
रत्न गर्भा धरती का दिन बहुरे हो सदभाव
सौहार्द्र रहे कायम यह मंगलमय गान हैं
खाकर मेवे सा कंद -मूल तेंदू कोसम आदि
पुष्टिवर्धनम् मन तन सबल भरे स्वाभिमान हैं
-डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514
चित्र- कुटुम्बर गुफा, तिरथगढ़ जलप्रपात तेंदू बेचती आदिवासी महिला और राजमहल जगदलपुर
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