Saturday, August 8, 2020

सतनाम संस्कृति में बहुदिवसीय आयोजन

सतनामी समाज अभी ठीक से व्यवस्थित नहीं हुआ हैं वह अनेक रुप में विभक्त है। तकरीबन १०-११ तरह के विभेद  है उनमे ५-६ प्रकार तो स्पष्ट नजर आते हैं। और न ही जनजीवन बौद्धिक रुप से  परिपक्व हैं। छोटी- छोटी बातों में वाद- विवाद और  लडाई- झगडे हैं। प्रायः सभी गांवो में पांघर है। और परस्पर लडते झगडते हैं। समाज की संपदा थाने कचहरी में यु ही लुटा रहे हैं।
      नशे जुए और परस्पर छद्म प्रतिस्पर्धा और दिशाहीन राजनैतिक गलियारे में हमारी एनर्जी नष्ट हो रहे हैं। और तो और हम दूसरों की  धार्मिक मान्यताओं की आलोचना करते अपनी मान्यताओं के संबंध में जरा भी नहीं जानते समझते फलस्वरुप हमारे समाज की छवि केवल निंदक के हो कर रह गये हैं।
   महज साल में एक दिन जयंती और उसमे में नाच पेखन। दूसरे दिन  उसनिंधा काटने  शराब मांसाहार हमे धार्मिक कम केवल उन्मादी उत्सवी बना कर रख दिए हैं।
     अतएव जैसे सन १९८५-८६ में पलारी बलौदाबाजार परिक्षेत्र में  दस दिवसीय गुरु गद्दी पुजा महोत्सव (क्वार एकम से दसमी तक ) और जन से जून के बीच सुविधा अनुसार ३-५-७ दिवसीय सतनामायण समारोह सार्वजनिक रुप से मनाए जाते हैं। वैसे ही सर्वत्र आयोजन होना चाहिए। ज्ञात हो कि इसी परिक्षेत्र से १९३८ से गुरुघासीदास जयंती उत्सव  दिन मे सतनाम संकीर्तन प्रवचन के साथ  और रात्रि ज्ञान वर्धक  / मनोरंजक चोहल  से नाच  के साथ आरंभ हुआ था ।जो शैन शैन सर्वत्र फैल गये। भजन कीर्तन के जगह रात्रि में  केवल छैला व फूहड आर्केस्ट्रा ही रह गये हैं। फलस्वरुप १९८५ -८६  से नये तरह के आयोज‌न लाए गये 
      
     इस तरह  वर्तमान में  बलौदाबाजार पलारी आरंग परिक्षेत्र सांस्कृतिक नवजागरण का प्रभाव नजर आते हैं।राजधानी से लगे होने और गंगरेल सिचाई परियोजना के चलते आर्थिक व सांस्कृतिक व शिक्षा नौकरी आदि के  रुप से यह क्षेत्र समृद्धशाली भी है।
   अब तीजा में बेटिया लिवाई नहीं जाती बल्कि गुरुगद्दी पूजा या नामायण सामारोह में घर घर बेटिया लिवाई जा रही है व रिश्तेदार आ -जा रहे हैं। 
   यह दोनो बडा उत्सव हिन्दू समाज में कौतुहल का विषय है और वे लोग भी श्रद्धा पूर्वक कार्यक्रम में सम्मलित होने लगा है। 
      बिना कोई आयोजन और प्रतिबद्धता के कोई स्थाई प्रभाव नहीं पड़ता अत: गांव गांव में युवा वर्गो को आयोजन समिति गठित कर व्यवस्थित स्वरुप देने होन्गे।
        आप लोगों को यह बताते गर्वानुभूति होते हैं कि हमारे ग्राम से ही इस आयोजन की शुभारंभ हुआ। और हम  विगत २० वर्षो से पलारी कालेज में प्राध्यापक है और उधर अधिकतर ग्रामों में हमारे विद्यार्थियों के माध्यम से आयोजन समिति गठित करवाकर गांव -गांव में हंसा अकेला सत्संग प्रवचन करते आ रहे हैं। फलस्वरुप सैकड़ो  भजन टोलियां धीरे धीरे बनते गये। उनका असर न इ पीढी के बाल बच्चों में देखने मिलता है। 
   अन्यथा यही वह पलारी क्षेत्र है जिसे छत्तीसगढ़ का चंबल कहा जाता था ।और यह केवल सतनामी बाहुल्य और उनके बीच दर्दान्त अपराध वृत्ति के कारण रहा था। आज वह क्षेत्र सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर हैं।

    डाॅ. अनिल भतपहरी

No comments:

Post a Comment