।।आदमी का बच्चा ।।
"मनुष्य दिनो-दिन संवेदनाओं से रहित होते जा रहे हैं! रोज-रोज की करुणिक समाचार, कइयों को भीतर से कठोर करते पत्थर दिल बना रहें हैं।"
प्रो. साहब सेमीनार में सहभागियों ,शोधार्थियों और छात्रों के मध्य उत्तर आधुनिकता की बातें करते- करते कातर हो हांफने लगे और तो और रुंधे गले से घिघियाने लगे-
"ऐसी विकास हमें नहीं चाहिए ,जहाँ मनुष्य को केवल सामाग्री या संसाधन समझा जाए ! "
इस तरह वे श्रोताओं में मानवतावादी दृष्टिकोण वाले किसी परम संत सदृश्य लगने लगे ।उन्हें भी इनकी भाव बोध हुआ और पल भर में वे आत्ममुग्धता से ग्रसित हो गयें।
खूब आव भगत व मान- सम्मान से लदे -फदे कार की पीछे सोफेवाली सीट पर धम्म से पसर गयें। उन्हें अब भी प्रशंसक हाथ जोड़कर / हिला कर अभिवादन कर रहें हैं...
थोड़ी देर बाद रेड सिग्नल के समीप सड़क किनारे रुके ड्राईवर को आदेशित करते कहे -
"मिरर चढाओं ! देखों उधर , दो- तीन ,मैले -कुचैले बच्चें भिक्षाटन हेतु इधर ही लपक रहे हैं। "
अपनेआप बुदबुदाने लगा -'ये सामाज की विद्रुपताएं हैं ।इनकें तो बाप तक का पता नहीं !हरामी !नाली के कीड़े ! यह भी उत्तर आधुनिकता के प्रोडक्ट हैं।' प्रकट्य - "इनसें संक्रामक रोगों का इंफ्केशन बढ़ते हैं। ये बीमारी फैलाने वाले वायरस हैं। इनसे बच के रहो।"
तभी ड्राईवर ,डोर की मिरर चढ़ाते हुए पोली जगह से एक रुपये का सिक्का गिराते कहे -
"जी सा' ब ! आख़िर आदमी का बच्चा हैं।"
-डाॅ.अनिल भतपहरी / 9617777514
सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर छ ग
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