Sunday, May 23, 2021

सतनाम संस्कृति में रहस भागवत पंडवानी

सतनाम संस्कृति में रहस  भागवत व पंडवानी 

        संदर्भ - प्रथम पंडवानी गायिका सतलोकी लक्ष्मी ‌ बाई बंजारे एंव साथी ।

  पंडवानी सत्य की जय गाथा हैं । पांच पांडव पंच कर्म इंद्रियाँ हैं। पंच ज्ञान इंद्रिय पांञ्चाजन्य हैं। जिसे मन को मोहित करने वाले सर्वगुण सम्पन्न साधक और नायक  मोहन अनुगूंजित कर जय घोष करते हैं।सौ कौरव सहित नव अक्षौणियों का कल्मष से धर्मयुद्ध करते विजय श्री होकर "जैतखाम"  गड़ाकर सत्य ध्वज "पालो "फहराते हैं। 
        सतनाम संस्कृति में रहस भागवत पंडवानी गायन आरंभ ‌से रहा हैं और इसे ये लोग नारनौल दिल्ली मथुरा से अपने साथ लाए हैं। छग के सतनामियों  में रहस भागवत और पंडवानी एक धार्मिक अनुष्ठान हैं। इसे मांगलिक कार्य एंव मनोवांछित फल प्राप्त करने  बदना के रुप में आयोजन करते आ रहे हैं। प्राचीन समय में पं सुखीदास , तुलम तुलाई ,  पं साखाराम बघेल , भिक्षु रामेश्वरम ( जो डा अम्बेडकर /मंत्री नकूल ढी ढी के प्रभाव से बौद्धिष्ट हो गये )  पं रामचरण भतपहरी , लक्ष्मी बाई ‌, तोरन बाई जुगा बाई , राम्हीनबाई इत्यादि ।
     वर्तमान में सतनाम  पंडवानी की साधकों में कन्हैया लाल , समेशास्त्री देवी, ऊषा बारले, शांति बाई चेलक सक्रिय व लोकप्रिय हैं।
    रहस पंडित में पं जगमोहन टंडन ,पं सिताबी , शास्त्री जी कोनारी वाले , पं लक्ष्मी प्रसाद , पं कदम जी    मा‌नदास टंडन , पं विश्राम प्रसाद , सहित अनेक कलावंत साधक हैं। सुश्री भारती जी अभी बेहद चर्चित भागवत कथा वाचिका  हैं। 
    रहस , भागवत ,पंडवानी में कृष्ण एंव कौरव पांडव -गाथा के साथ -साथ सतनाम मंगल भजन व गुरुघासीदास चरित गायन का विशिष्ट परंपरा हैं। इसमें कलावंत सादगी पूर्ण श्वेत वस्त्राभूषण एंव कंठी चंदन  तिलक से युक्त संत मंडली होते हैं जो बेहद प्रभावशाली प्रस्तुतियां देते ह हैं। इनके वाद्य भी विशिष्ट प्रकार के होते हैं। तंबुरा चिकारा हुड़का खंजेरी करताल  घंट घुम्मर   मृदंग शंख तुरही ।वर्तमान में हारमोनियम तबला बैंजो पेड सेंथेसाईजर जैसे आधुनिक वाद्य से प्रस्तुतियां होने लगी हैं।
    ऐसा लगता हैं कि अट्ठारहवीं सदी में गुरुघासीदास के अभ्युदय और उनके युगान्तरकारी पंथ प्रवर्तन के प्रभाव के चलते सतनामियों की रहस व पंडवानी परंपरा में गुरुगाथा व सतलोकी भजनों का समाहार हुआ। इस तरह  हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति में एक नई समन्वयकारी लोक कला का विकास हुआ जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है। 
     अध्येताओं को इस विशिष्ट लोक कला मंच और उनसे  साधकों की प्रवृत्तियों और जनमानस में पड़ते प्रभाव का अनुशीलन करना चाहिए ।

निम्न‌ लिंक पर आप लक्ष्मी बाई बंजारे  जी की पंडवानी देख सकते हैं-

https://www.facebook.com/groups/1948616105381097/permalink/2989212977988066

                   धन्यवाद 
    -डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

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