Thursday, May 27, 2021

मनखे मति‌ के भेदा

।।मनखे मति के भेदा ।। 

कचलोइहा काया 

अउ कोवर मन मं 

समाही कइसे 

पथरा ढेला कस 

निच्चट टांठ कठोर  

गहिर गुरु गियान 

अउ तो अउ 

पारद के समान 

धराही किसे

नान -नान कन 

होवय नहीं उज्जर 

कपसा कस मन 

कौखनेच हो जही 

समदरसी बावरा मन 

ते पाय के 

लरिकई अउ जुवानी मं

सुहावय नहीं 

नीत -धरम के गोठ 

धराय नहीं धियान 

मगन खेलई - कुदई 

मया मं अरझई 

बोधात रहिथे 

दंदोरत दुनियादारी मं 

फदके पेट बिकारी मं

पद प्रतिष्ठा पंचैती मं 

संगे संग लिगरी चारी मं

तन मन हो जथे चेम्मर 

झेलत सुख -दु:ख जबर

थक जाथे तन  

फाट जाथे मन 

तभेच भाव भक्ति डहन 

लगथे धियान

अउ सुहाथे 

गहिर गुरु गियान 

भटकत अंधियार मं

खोजत  अंजोर 

गाँव गली खोर 

जब के आमा तब के लबेदा 

समझव मनखे मति के भेदा 

अकरस नागर मं 

बियासी नइ होय 

सावन के झड़ी मं

बोवई नइ होय 

संसो मं हसई नइ होय 

तीज तिहार मं 

रोवई नइ होय 

धीर-थीर रहनी मं

सित्तो सब सजथे 

समे मं सब फबथे 

बुढ़त काल के मया 

 जवानी के जटा 

देख दुनियां हसथे  
                  - डाॅ. अनिल भतपहरी 
             सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर‌ छ ग

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