Friday, May 14, 2021

गुरुघासीदास

गुरु घासीदास के ऊपर ओकर  अज्ञातवास 1850 जेन ल जनश्रुति अउ सतनाम संस्कृति मं  अछप ( अन्तर्धयान) कहे  जाथे ओकर ठीक 19  -20 बछर बाद संउहात ओकर संग किदरे बुले ओकर कारज ल देखे परखे मनसे मन सो पुछ पाछ के साक्षात्कार ले  के अंग्रेज विद्वान मन से लेखन होय हवे।   अउ तो अउ गुरु पुत्र बालकदास के षडयंत्र पूर्वक  हत्या 28 मार्च  1860 के ठीक 9 साल बाद लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक    अंग्रेज लेखक अफसर मन लिखना शुरु करिन जेन म हैविट 1869 ,चीश्लोम  1870, शैरिंग 1872, इब्तेसन 1881 ,नेसफिल्ड 1885 , बोस 1890 नेल्सन 1909 रोज 1911 , रिजले 1915 रसेल 1916 ब्रिग्स 1920 एल्विन 1946 तक लिखते रहिन ।
भारतीय अउ छत्तीसगढ़ी लेखक कवि मं 1907 से गुरुघासीदास पुराण सन्दरलाल शर्मा , पं सुखीदास कलकत्ता गुरुघासीदास चरित 1922 सतनामदास कृत सतनाम सागर 1925 वेलडियर प्रेस कलकत्ता से छप गे रहिस। गुरुघासीदास के प्रमुख शिष्य कवि रतिदास कृत सतनाम अथर्बल  ग्रंथ भी महत्वपूर्ण हवे।
   महाकवि मनोहर दास कृत विराट  महाकाव्य गुरुघासीदास नामायण 1968 में आइस तेकर पाछु  दस से अधिक महाकाव्य आइस जेन‌ म सत्यायण  ,  समायण. सतनाम पोथी , सतसागर , बटकी चाकर , सहित अनेक समीक्षात्मक अकादमिक  ग्रंथ आना शुरु होगे । वर्तमान में सैकड़ों ग्रंथ किताब उपलब्ध हवय। 
      गुरुघासीदास व सतनाम पंथ लेखन के पहिली  दु- चार ग्रंथ किताब मन ल  का पढ लेना चाही  या फिर सतनाम धर्म संस्कृति के अनेक जनश्रुति कार कडिहार  चौका पंडित संत महंत भंडारी व गुरु जन हमारे आसपास विद्यमान हवय  उकरो से  पुछ परख कर लेना चाही ।  
   खैर , खोजबे त पाबे कहि जाथे अटान टप्पु सुने सुनाय या अपन छुद्र मनो मस्तिष्क के भरोसा कोन्हो भी धर्म मत पंथ के बारे म टीका टिप्पणी अनुचित हे।
    खास तौर से गुरुघासीदास अउ सतनाम पंथ के ऊपर अक्सर एक  पृष्ठ के लेख तक मं विवादस्पद स्थिति निर्मित हो जथे।
 या कोनो मन से जाने अनजाने तको हो जथे एकर पीछू अनभिज्ञता ह प्रमुख कारण आय।
      गया प्रसाद साहू जी लेख ल पढेव त ओकर मुल प्रयोजन हे कि गुरुघासीदास हर अपन समुदाय बर काम करिन तभो ले उन म ल भगवान मत मानव । अउ ओकर अनुआई मन ल चाही कि ओमन ओला भगवान झन समझय।
   आजकल के नवा  नवा तथाकथित बाबा व स्वयं भू दूरदर्शनी कथावाचक संत बापु मन संग तको संघेर के उनमन अपन गहिर गंभीर अध्ययन ल तको गड़बड़ झाला कर डरिस।
    खैर एमा ओकर दोष न इये भलुक ओकर ए संदर्भ में अज्ञानता हवय । 
   गुरुघासीदास ह बुद्ध के परंपरा तत्वदर्शी पंथ प्रवर्तक  आय । ओहर मध्यकालीन संत परंपरा के  कथित अलौकिक ईश्वर (भगवान ) के  सगुण निर्गुण के गायक भक्त कवि नोहय। ओहर कोनो देव धामी के पुजा पष्ठ कर्मकांड  करोइया नोहय भलुक एमा चिभके फदके अउ अञध विश्वास म बुडे लोगन के तारनहार आय।
     गुरुघासीदास सफा सफा कहे हे कि तोर भगवान बहेलिया आय अउ मोर भगवान घट म बिराजे सतनाम हर आय।
   सतनाम का अर्थ किसी कल्पित सशीर धारी ईश्वर नहीं है न वह जन्मा है न रप रंग आकृति में हैं। ए पाय के उन ल निगर्ण वादी संत कह के ओकर विचार धारा  ल भ्रमित तको करे जाथे। 
   गुरुघासीदास ल अनुयाई मन कभु भगवान या ईश्वर न इ मानय ।भलुक सच्चा सतनामी मन तो मिथकीय भगवान यहाँ तक देबी देवता मन ल तको नी मानय । ते पाय के तको ए विराट समुदाय ल अलग चिन्ह उ होके एक स्वतंत्र पंथ के रुप में अस्तित्व मान हवय। हर धर्म मत पंथ में कट्टरपंथी अउ उदारवादी होथे ।
सतनाम पंथ म भी जहरिया अउ बहरिया हवय।
 जहरिया मतलब कट्टरपंथी जेन गुरु उपदेश अउ वाणी सिद्धान्त के अक्षरश पालन करथे । सादा सात्विक रहिथे मंद मास नशा पानी यहा तक लहसुन प्याज लाल भाजी मसुर तक के परहेज कर इया मिल जथे। अउ बहरिया तो सर्वत्र हवे।
      
     बहरहाल बुद्ध के मानिंद गुरुघासीदास ह अनीश्वरवादी महान  प्रवर्तक गुरु है वो अपने अनुआई को संत कहय ओहर संत समाज के संरचना करे हवय फेर ओहि ल संत कहिके ओकर विराट गुरु स्वरुप के अनदेख ई तको ईश्वर वादी मन करथे ।अउ मिथकीय देव धामी तीरथ धाम पंडा पुजारी दान दक्षिणा ठग  फुसारी के प्रखर विरोध करे के सेती ओला  अउ ओकर अनुयाई मन ल एमा जेकर गुजारा चलत रहिस ओमन उकर जाय के बाद अउ सक्षम प्रबंधन के अभाव के कारण मुख्यधारा से हाशिये डार दिन अउ अलिगाय दे गिन। तरा तरा के भ्रम फैलाए दे गिन । आज उही भ्रमित जिनिस ल मनखे मन उपरछावा जादा जानथे समझथे।  जोन ठोस अउ सच्चाई  हे ओकर से दुरिहा गय हे।
  डाॅ. अनिल भतपहरी

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