अवइया २८ नवंबर
।।छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अगोरा मं ।।
भाषा के ऊपर बिचार करब म ये तो डगडग ले चिनहउ हवे कि जुन्ना जनपदीय भाषा जेमा छत्तीसगढ़ी,गोंडी , कोसली, मागधी , मैथिली, अवधि ,बघेलखंडी अउ नवा सिरजे "हिन्दी "यानि की १८५७ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जेन ल स्थानीय राज राजवाड़ा मन के जेमा (छत्तीसगढ़ के वीर नारायण सिंग अउ राजा गुरु बालकदास तको रहिन वीर नरायण सिंग ल १८५७ मं दोषी करार के तोप से उडा दिन अउ जन नायक श्रद्धा के पात्र राजा गुरुबालकदास ल सडयंत्र पूर्वक भोजन करते १८६० में हत्या करवा दिए गये ) कुछेक सभिमानी राजा अउ ओकर सामंत मन सिपचाय रहिन ओमा भारतीय जनपदीय भाषा अउ उर्दू के बड सुघ्घर समन्वय रहिन जे न " हिन्दुस्तानी " तको कहे जाय उकर भाषा अउ आन आन जगा के लोगन के संपर्क भाषा के रुप म सिरजे "हिन्दी " के मूल उद्गम भाषा पाली अउ प्राकृत आय । अउ उर्दू अरबी फारसी के तको शब्द मिंझरे हवय।
छत्तीसगढ़ मं तो जतका जुन्ना शिलालेख हवे उनमन पाली भाषा के ब्राम्ही लिपि म हवय। फेर छत्तीसगढ़िया रचनाकार मन ओ लिपि अउ भाषा के कभु खियाल न इ करिस तेन पाय के सबकुछ छुटतेच गय । लेकिन धियान से उच्चरित ध्वनि ल देखहु त छत्तीसगढ़ी गोड़ी कोसली ह पाली अउ प्राकृत के कत्कोन शब्द निमगा ब उरत चले आत हवय।
पाली भाषा राजभाषा के संगे संग जनभाषा रहिस। जोन राजा बोलय ओला परजा समझय अउ जोन ल परजा बोलय ओला राजा ते पाय के प्राचीन भारत के श्रमण संस्कृति हर विश्व विख्यात रहिन तक्षशिला नालंदा विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात प्रतिष्ठा न रहिन जिहां हजारों साहित्यिक दार्शनिक नीतिपरक और राजकीय सामरिक धातु कार्मिक यांत्रिकी वैद्यकीय के अध्ययन अध्यापन होवय । नालंदा के ग्रंथागार के जलाय के आगी महिनो न इ बुझाय सके रहिन सोचोव कतेक साहित्यिक पांडुलिपियाँ नष्ट कर दिए ।
अउ त अउ लगभग ६-८ सदी के जतका खडहर ( पुरा अवशेष ) हवय जेमा सिरपुर राजिम मल्हार तम्माण डमरु तरीधाट गुंजी में मिले शिलालेख के भाषा पाली अउ लिपि ब्राम्ही हवय । ओमा बहुत भारी ज्ञान विज्ञान के बात हवय ओला सामने लाने के जरुरत हवे।
हमर साहित्यकार कलाकार मन ल चाही कि अपन जगा मिले जिनिस के मूल तत्व के स्थापना बर मिहनत करय। तब मौलिकता आही।
नहीं त अधिकतर छत्तीसगढ़ी साहित्य हर आन प्रांत के पटन्तर लगथय।
छत्तीसगढ़ी हिन्दी अउ पाली के बीच जो संबंध हवे उन हर खाल्हे लिखाय हवय-
पाली छत्तीसगढ़ी हिन्दी
अग्गि आगी आग
मनख्ख मनखे मानव
दुक्ख दुख दु: ख
सुरज. सुरुज सूरज
इस्सर इसर ईश्वर
खन्ध. खांध. कंधा
अमिय. अमरित. अमृत
अक्खर. आखर. अक्षर
इत्यादि
धियान से देखव हमर छत्तीसगढ़ी पाली के संग कतेक सुघ्घर मिलथे जब शब्द मिलथे त कला संस्कृति क इसे न इ मिलही ? ओ भुले बिसरे गाथा वृतांत. इतिहास ल खोजे ल परही।
असल में विगत २-३ सौ साल से हमन जब से स्कूली शिक्षा आय हे तब ले उप म प्र बिहार के लेखक कवि के रचना ल ही पढ लिख समझ के उही मं रच खप गय हन । अउ हमन अपन तीर तखार के जतनाय जिनिस डहन न सुर ले सकत हन ल शोर संदेश ।
रमैन महाभारत वेद पुरान के बाहिर कत्कोन अउ जिनिस हवय आपार पाली साहित्य ,सिद्ध साहित्य व संतो की निर्गुण बानी मन के पांडुलिपि हवय अउ प्रकाशित ग्रंथ पुस्तक तको हवय। अलेख अवस्था में हजारो लोकमंत्र मन बैगा गुनिया सिद्ध साधु संत मन कना मुखाग्र कंठस्थ रहय अउ अभी तक ओ चलागन पाठ पीढा ले दे के रुप मं चले आत हे । उन सब ल न पढे के ,न खोजे अउ समझे के न सख नइये न जोम हे ।ते पाय के हमर समृद्धशाली ऐतिहासिक गौरव के संगे -संग हमर अति प्राचीन छत्तीसगढ़ी भाषा के सही अउ ठोस स्थापना न इ कर सकत हवन। जबकि छत्तीसगढ़ी लोक गीत लोककथा अउ जनश्रुति मं हमर बड सुघ्घर संस्कृति कला इतिहास के जानकारी हवय ।फेर उन ल तियाग के औपनिवेशिक रुप से आजादी के बाद से, अब तक हिन्दी के कारण या कहे छत्तीसगढ ह म प्र मे संधरे से अध्ययन अध्यापन म हिन्दी अंग्रेजी संस्कृत त्रिभाषा फार्मूला के सेती उत्तर भारतीय संस्कृत निष्ठ भाषा के शिकार होत चले आत हन। हिन्दी के उर्दू और देशज सरुप तको आजकल नंदावत चले जात हे। अमीर खुसरो से ले के प्रेमचंद तक जोन हिन्दी रहिस आज नपता होगे हवे। येला जानबूझकर करत या करवाय जात हवय ।
खैर सच कहे त छत्तीसगढ मे आज ले भी संस्कृत निष्ठ हिन्दी जोन क्लिष्ट हे तेकर चलन बिल्कुल नइये। सरल सहज सरुप तीन चार अक्षर के मेल से बने लालित्य पूर्ण भावप्रवण शब्द छत्तीसगढ़ी म मिलथे जोन पाली प्राकृत के विशेषता रहीन ओ ज्यो के त्यो छत्तीसगढ़ी मं देखे जा सकत हे। एक हिसाब से देखे जाय त गांव- गंवई मं तो हिन्दी बोलइ ल "हमेरी" झाड़त हे कहे जाथे अउ अंग्रेजी तो कोनो भुल के तको नइ गोठियाय सकय। काबर कि जीभेच नइ लहुटय अंगरेज जमाना के कत्कोन मूल अंगरेजी शब्द रेडिया, सइकिल ,इसकुल ,मोटर कंडिल, बकसा , छत्तीसगढ़ी पुट दे के ज्यों के त्यों बौरात चले आत हे।
पांच आखर के शब्द ठीक बोले नी जा सके । समरसता ल समर +सता कहे जाथे । संयुक्ताक्षर के साफ उच्चारण न इये प्रहर ल पहर ही कहे जा सकथे अउ त अउ भगवान के नांव विष्णु ल तको बिसनू कहे जाथे।
त हमर सुधि पाठक मन सो गिलौली हवे कि उनमन थोरिक उप बिहार अउ हिन्दी संस्कृत के प्रभाव से मुक्त होके अपन मूल छत्तीसगढ़ी के उपर धियान केन्द्रित करके सच्चाई के स्थापना कर में अपन बल बुद्धि लगावय त छत्तीसगढ़ी सहित छत्तीसगढ़ के तको भला होही अउ फरिल जस तको तुहु मन ल मिलही । शासन- प्रशासन ल तको जुन्नटहा अउ जतनाय जिनिस मन ल खोजवाय छपवाय के उदिम करना चाही। एक अलग प्रभाग गठन करके छत्तीसगढ़ी मूल संस्कृति के संरक्षण बर ठोस उपाय करे के जरुरत हवय ।
।।जय छत्तीसगढ़ी जय जय छत्तीसगढ़ ।।
-डाॅ. अनिल भतपहरी
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