Friday, May 14, 2021

जैतखाम

[5/14, 19:58] anilbhatpahari: जैतखाम म‌ पालो पहरथे 
पालो धर्म ध्वज आय जोन चौकोन वर्गाकार सादा रंग के होथे ।एकर मतलब समानता से हवे। ये ‌पालो ल पुरखा मन  छग मे आव्रजन के समे  खुंखार बादशाही सेना से बचाय अउ ओकर पवित्रता ल राखे खातिर   चुल्हापाठ मं गाड़िन । काबर कि ये  शाही फरमान रहिस कि चुन- चुन कर सतनामियों का कत्लेआम कर नेस्तानाबुत कर दिया जाय।  अपन अस्तित्व रक्षा बर देश के आंतरिक और वनाच्छादित भाग में आव्रजन करके ओमन जीविकोपार्जन करे लगिस अउ अपन अस्तित्व के रक्षा करिन ।भाषा बोली पहनावा ओढावा सब तियाग के जैसा देश वैसा भेष में समाहित हो गय।
   तेकर  पाछु अंगना म निशाना सही तीन हाथ के खाम म सजा के रखिन । अइसे करत 1662-1795  तक करीब 150 साल तक एला सम्हारे रहिस अउ सतनाम सुमरत ओकर छत्र छाया अपन सुखमय  जिनगी जियत रहिन।
      बाद मं गुरुघासीदास द्वारा ओ पालों ल पहिली बार जमींदार  रामराय बिंझवार के गांव सोनाखा‌न के घर के आघु बीच गली मं 21 हाथ के स र ई के शानदार गोलाई वाले खाम गड़ा के फहराइस ।कहिथे कि एसन कर के राज म फैले धुका गर्रा हैजा बिमारी के रोकथाम करिन अउ बीमार नारायण सिंग के चिकित्सा करिन ।गुरु घासीदास हर  अड़ताफ म प्रसिद्ध  गिरौदपुरी के नाड़ी वैद्य गोसाई मेदनीदास के नाती हरय जोन अपन तपस्या  म बड़का गुन्निक  सिद्ध पुरुष हो गे रहि‌न ।
     माने जैतखाम पहली सोना खान म गडिस जेमा सतनाम पंथ के धर्म ध्वजा पहराय गे रहिन ।
    दुसर जैतखाम रतनपुर के दुलहरा तालाब म राजकुमारी  रत्नकुमारी के अनुग्रह से जैतखाम के स्थापना गुरुघासीदास जी हर करिन।
  तेकर पाछु सतनाम पंथ धर्म नगरी भंडारपुरी के चौखंडा  मोती महल के सामने चांद अउ सुरज नाव के दो जोड़ा जैत खाम सजिस ओमा पालों चढ़ा के गुरुद्वारा महल के उद्धाटन करे गिस ! अउ एला एक महोत्सव के रुप दे गिस धर्म ध्वजा फहरा के गुरु पुत्र राजा बालकदास अउ राजा आगरदास जी हाथी म सवार होके राजसी सरुप म शोभायात्रा निकाल के मैदान म एकत्रित लाखों जन समूह ल दर्शन दिस  । ये परब हर " गुरुदर्शन परब"  के रुप में स्थापित होगे जोन 1820 से सरलग चले आत हे एला भंडारपुरी दशहरा तको कहिथे।काबर कि येहा दशहरा के दूसरा दिन आयोजित होथे।जिहां लाखो नर नारी सकलाथे। ये मेला ह सतनाम पंथ प्रथम मेला अउ  सार्वजनिक महोत्सव आय।
         ये प्रमुख ४ जैतखाम आय जोन गुरुघासीदास के निर्देशन म गड़ाय अउ सजाय गे रहिस। 
    गुरुघासीदास जयंती के प्रणेता मंत्री नकूल ढी ढी व महंत नंदू नारायण भतपहरी ने 1936 में गाँव- गाँव  में जैतखाम स्थापित करवा के  सामाजिक नव जागरण  लानिस ।  तहा से  छत्तीसगढ़ के  प्रत्येक सतनामी गाँव के बीच गली में यह स्थापित होय लगिस । 
 जैतखाम  असल में जोतखाम आय  एला सेतखाम तको कहे जाथे। 
    साधना के समय जब कुंडलिनी जागरण होथे त ज्योत स्वरुप में ऊर्ध्व खाम सदृश सेत रंग में चमकीला पदार्थ खड़ा हो जाते हैं।  
तब साधक ल अतिशय आनंद सुखानुभूति होथे। ये व्यक्तिक आनंद ल उत्सव के रुप में परीणत करे गे हवय। एकर आध्यात्मिक महत्व हे। अनेक तरह व्याधि, कुदृष्टि ,नकारात्मक ,ईर्ष्या, द्वेष भाव आदि  जैतखाम अउ पालों हर संरक्षण देथे । ए मान्यता समाज में गहराई से परिव्याप्त हवे।
     सामाजिक विद्वान अउ जुन्ना सियान  जैतखाम के कांसेप्ट अशोक लाट अउ जगन्नाथ मंदिर के आघु गरुड़ स्तंभ से भी प्रेरित मानथे। 
 प्राचीन अशोक दशहरा का यथावत स्वरुप भंडारपुरी के दशहरा और शोभायात्रा में देखे मिलथे।
       सादा पताका  पालो के विशिष्ट भाव हे सत्य अहिंसा और आचरण में सदैव  सात्विकता व पवित्रता को आत्मसात करना । चुल्हापाट में स्थापित  / आंगन में स्थापित पालो में बिना आरती दीया किए सतनामी समाज  की महिलाए भोजन नहीं परोसती इनका नेम धेम से पालन प्रायः सभी परिवार चाहे ग्रामीण हो  शहरी करते आ रहे हैं। 
     जैतखाम पूजा केवल बाह्याचार आय  ।एकर से  केवल मन में पवित्रता व सात्विक भाव जागृत होथे अउ व्यक्ति में आत्मबल तको आथे ।  एक तरह से सकरात्मक ऊर्जा देने वाले प्रतिमान आय।
[5/14, 19:58] anilbhatpahari: गिरौदपुरी में नव निर्मित विशाल जैतखाम के ऊपर भी सादगी पूर्ण. पारंपरिक जैतखाम  21 हाथ का ही  जैतखाम हैं।  बाकी निर्माण  केवल  अलंकृत चबुतरा हैं।
[5/14, 19:58] anilbhatpahari: जैतखाम केवल सरई अउ साजा के बनथे ।
21 हाथ तीन चबुतरा तीन हुक पांच गठान बांस की डंडा और उनपर  नाडियल फल बाधा हुआ चौकोर पालो चढाय जाथे । इकरों मन के विशिष्ट अर्थ हवय सब ल लिखबे त अबड़ लंबा हो जही। मन इंद्रिय प्रवृत्ति वृत्ति चारिकाएं शील आदि इनमें समाहित हवय।
 जैतखाम ह असल में  जोतखाम आय जोन कुंडलिनी जागरण के समय साधक ल अनुभुत उर्ध्व ऊर्जा के स्वरुप आय जोन चमकदार जोत के समान नजर आथे। ए दृष्टिकोण से आध्यात्मिक अर्थ तको एमा हवे।
    ए दृष्टि से एकर अतिशय महत्व हवय। जोत स्वरुप होय के कारण गुरुघासीदास जी एकर नाम करण करिस सुरुज अउ चंदा । एखर से रात दिन कभु जीवन में अंधियारा न इ आ सकय।
  
ये जोड़ा जैत सतनाम संस्कृति में महत्वपूर्ण हवे।

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