इस गणतंत्र में
चंद क्रुरतम फैसले अंग्रेज तानाशाह द्वारा हुए भी हैं। उनकी आलोचना और सजा भी उनके मुल्क में होते रहे हैं। लायन आर्डर हर सत्ताधारियों के लिए आत्मरक्षक कम धातक अधिक होते रहे हैं।
ओवर आल वे हम पर राज करने आए और हमारे लोग ही उन्हें राज करने अवसर दिए।
हमें अपनी कमजोरी दूर करना चाहिए न कि सारे दोष उनपर मढकर पुनश्च तथाकथित प्राचीनतम प्रथाएँ जो अमानवीय रहा हैं को परंपरा के नाम पर ढोते रहें।
यह तो सच है कि गुलामी का सोना आजादी की मिट्टी के समक्ष कुछ भी नहीं । (बावजूद अंग्रेजी सत्ता की प्रशंसा बडे बुजुर्ग आज तक करते हैं कि इससे अच्छा तो वही थे।)
पर आजादी से पुनश्च स्वेच्छाचारी व जिसकी लठ्ठ उनकी भैस न हो जाए।
देश वर्तमान समय में लठ्ठ यानि पूंजीवाद व नीजिकरण की ओर बढ़ रहा हैं। जो आगे चलकर आत्मघाती कदम होगा। क्योंकि यह देश आरंभ से राज -रजवाड़ों की एक तरह से पूँजीवाद ही रहा है। जहां बहुसंख्यक जनता पशुवत जीवन जीने बेबश थे। शुक्र हैं आजादी के बाद उन रजवाड़ो का उन्मूलन कर संविधान के बनिस्बत कुछ बेहतरीन हो रहे हैं। पर चंद सुविधाभोगियो व नव धनाढ्यों को यह सब अच्छा नहीं लग रहा है। इस तरह की निकृष्ट मानसिकता देश के लिए अच्छा नहीं है। देशप्रेमियों को इनकी चिन्ता कर प्रभावी प्रतिकार करना चाहिए।
अंग्रेजों के ऊपर दोष मढकर बला टलना नहीं चाहिए और न ही जो ज्वलंत मुद्दा है उसे डायवर्ट करना चाहिए ।
इस गणतंत्र में आम नागरिकों को और अधिक सक्षम बनाने की जरुरत हैं ताकि देश सुदृढ़ व सक्षम हो।चंद राज + पाट व उद्यम करने वालों के लिए यह देश नहीं हैं। वे अपनी अपनी योग्यता व आवश्यकतानुरुप ही संप्रभुता उपभोग करे न कि देश विदेश में ऐशो आराम करते करोड़ो -अरबो गटरमश्ती करते फूके ! जिसके कारण लाखों- करोड़ो लोगों को फ़ाकामस्ती करते जीवन यापन करना पड़े ।
आय की इस तरह की बढ़ती विकराल खाई को पाटना कृषि सुधार व कृषकों का हित साधन को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि अब भी 75%80 जनता इससे सीधे जुड़े हुए हैं। देश में धर्मनिरपेक्ष स्थिति को कायम रखना युवा पीढ़ी को रोजी -रोजगार उपलब्ध कराना शिक्षा स्वास्थ्य को सुदृढ़ करना ही प्रथम ध्येय होना चाहिए।
-डाॅ अनिल भतपहरी 9617777514
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