Thursday, January 21, 2021

"सतनाम एक विशिष्ट संस्कृति व जीवन पद्धति हैं"

"सतनाम एक विशिष्ट संस्कृति व 
जीवन पद्धति हैं।"

    सतनाम आध्यात्मिक रुप से अन्तर्यात्रा हैं।  सदाचार अपनाकर जीवन में सुचिता और परस्पर मानव समुदाय में सद व्यवहार करते समानता स्थापित करना ही सतनाम का प्रमुख ध्येय हैं।  
आन्दोलन तो स्वतंत्रता आन्दोलन ,नारी मुक्ति आन्दोलन नशा मुक्ति आन्दोलन, मान सम्मान रक्षार्थ  आन्दोलन जुल्म सितम के विरुद्ध आन्दोलन या  मजदूर  श्रमिको का हक अधिकार हेतु आन्दोलन होते हैं। 
  सतनाम आन्दोलन ये नये गढे गये जुमले है। और इसके द्वारा जनमानस को दिग्भ्रमित भी किए जा रहे हैं।
 सतनाम आत्मबल और भीतर का यात्रा हैं। जिसके द्वारा धर्म -कर्म में व्याप्त रुढिवाद, अंधविश्वास और कर्मकांड व पुरोहिती का विरोध और उनके स्थान पर सहज योग साधना और सद्कर्म करते जीवन निर्वाह  करते खान- पान ,रहन -सहन ,जुआ ,शराब ,मांस ,मदिरा ,नारी सम्मान  कृषि कर्म एंव पशु प्रेम का मार्ग हैं।
 नाहक इस संस्कृति और धम्म को आन्दोलन कहकर इनके व्यापाक और उदात्य भावार्थ को संकुचित और सीमित किए जा रहे हैं। बिना बुद्धि लगाए बस सतनाम आन्दोलन सतनाम आन्दोलन कह रहे हैं।
  क्या सतनामी आन्दोलन कारी है। नारे बाजी करने वाले और अशान्ति फैलाने वाले कौम हैं?
   शब्दों के  वास्तविक अर्थ और भावार्थ को समझ कर  समकालीन समय में किन परिस्थितियों में हमारे गुरुओ संतो महंतो ने इस सतनाम संस्कृति को बचाकर संजोकर यहाँ तक लाए वह प्रणम्य है। 
  वर्तमान समय में सतनाम संस्कृति में चलकर बडी उपलब्धि हासिल करते सरल  जीवन यापन करते  सुकुन व  शांति हासिल एक बेहतर भविष्य आने वाले संतति को देना है। कल्पित स्वर्ग मोछ आदि के जगह अपने आसपास स्वर्ग सम वातावरण बनाकर पद निरवाना या परमपद अर्जित करना है।
  यदि आन्दोलन आदि होते तो गुरुबाबा  के सिद्धान्त और उपदेश तथा पंथी मंगल भजनो में  आन्दोलन करने के तौर तरीके वर्णित होते ।मोर्चा सम्हालने और कथित जुल्मो के लिए जुल्मियो को दंडित करने के तरीके और कुछ सफल आन्दोलन के वृतान्त होते पर दुर्भाग्यवश आन्दोलन आदि के कोई गीत भजन वृतान्त नही है।
  और तो और सतनाम संस्कृति में आन्दोलन कारी नही नजर आते बल्कि साधु संत उपदेशक भजन संकीर्तन पंथी करते संत सदृश्य पंथी हार नजर आते हैं। 
  और अपने जीवन में जो चीजे हैं। या विरासत में या अपने परिश्रम के एवज में जो मिला उससे संतुष्ट और सुखी समाज नजर आते हैं।
  इसलिए इस महान सतनाम संस्कृति में अनेक जातियाँ सम्मलित हुए।कुछ हद तक सतनाम प्रचार के अभियान आन्दोलन सदृश्य जरुर रहे हैं। पर यह सतनाम जागरण का एक अंग मात्र हैं। 
  एक प्राचीन पंथी गीत का स्वर और भावार्थ देखिए- 

 खेले बर आए हे खेलाए बर आए हे 
   दुनियां  म सतनाम पंथ ल चलाए हे 
      मनखे  मनखे ल एक गुरु ह बताए हे 
             चारो बरन ल एक करे बर आए हे 
       सन्ना हो नन्ना नन्ना  हो ललना 
                 सन्ना ना रे नन्ना नन्ना हो ललना 
  सना नना नना हो नना हो ललना ..
 ‌     क्या यह आन्दोलन है?या सांस्कृतिक नवजागरण हैं।या उदात्य सतनाम संस्कृति हैं।आन्दोलन कहने समझने वाले  स्वत: निर्णय करे। 
  ‌‌‌      सतनाम 

-डा अनिल भतपहरी

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