Narendra Bharti छुआछूत तो नहीं पर एक दूसरे जातियों में खान पान और रोटी बेटी प्रायः नहीं था।यह अशिक्षा असुरक्षा व धन आदि के दुरूपयोग को रोकने के निमित्त कबिलाई संस्कृति था। एक दूसरे जाति बड़ा छोटा मानते व समझते थे।
यहाँ तक एक जाति के फिरके या गोत्र तक में रोटी- बेटी नहीं चलते ।
जैसे छत्तीसगढ की सम्पन्न कुर्मी में वर्मा और चंद्राकर में अब भी रोटी- बेटी नहीं है।
इसी तरह सभी जातियों में थे।
सतनाम पंथ तो उसी जात -पात फिरके आदि के बंधन से मुक्त नया पंथ था। जहाँ कोई जाति+ पाति भेदभाव का प्रपंच नहीं थे। इसलिए तो इस पंथ के प्रभाव को रोकने सुविधा भोगियों ने घोर त्यज्य धोषित कर छुआछूत जैसे कुप्रथा लाया।
गुरुघासीदास के समय तो अनेक जातियों ने सतनाम पंथ में सम्मलित हुए। यदि पूर्ववत सतनामियों से छुआछूत होते तो कोई कैसे अछूत बनते ?
सतनामी अछूत बाद में घोषित जान पड़ते हैं। क्योंकि इस पंथ में तथाकथित भगवान और पंडे पुजारी मंदिर- मूर्ति आदि साकार पूजा का पूर्णतः निषेध था। फलस्वरुप द्वेषपूर्ण भेदभाव किया गया। ताकि उनके प्रभाव को रोका जा सके।
टीप -छत्तीसगढ़ सहित पुरे मध्यदेश में बुद्ध काल में केवल दो वर्ग थे स्वामी और सेवक ।यहां वर्ण जाति आदि था ही नहीं । जो बलवान गुणवान होते वह संपदा के स्वामी होते और जो अपेक्षाकृत कमजोर होते वह सेवक ।स्वामी और सेवक में सौख्या व प्रेम भाव भी होते ।नफरत धृणा आदि का कही कोई नामो निशान नहीं था।
यह बेहतरीन प्राकृत या सत व्यवस्था था।जो प्राचीन श्रमण व सत संस्कृति के कारण था।
आर्यों ने वैदिक व्यवस्था लाकर वर्ण और जात पात का प्रपंच बोए ।
देखिए बुद्ध वचन मझ्झिम निकाय।
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