छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ आबादी में सतनामी महज १५-१६% ही हैं। और मजे की बात सबसे अलग- थलग हैं। हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई आदिवासी किसी में सहज समाहित नहीं न सार्वजनिक रुप से आमंत्रित व सम्मानित हैं। भले सतनामी सबको सम्मान दे यह अलग बात हैं।
वैसे सतनामियों में भी क ई सांस्कृतिक विभेद है मोटे तौर पर सतनामी रामनामी सूर्यवंशी आदि। परिक्षेत्र गत विभाजन भी हैं। इनमें रोटी बेटी साधारणतः प्रचलन में नहीं हैं। एकीकरण के सारे प्रयास विफल हैं। या सही ढंग से होते नहीं ।
पार्टी गत विभाजन अलग हैं। ऐसे में केवल सतनामी वोट से सत्ता केवल दीवा स्वप्न मात्र हैं।
गुरुवंशज का विरोध व्यर्थ व अनुचित हैं। उन्हे गुरु घासीदास जैसा नहीं समझना चाहिए। वे उनके वंशज है इसलिए सम्मानीय है और बने रहेन्गे भले कोई माने या न माने । क्योंकि वंशानुगत परंपरा भारतीय संस्कृति में प्रत्यक्ष रुप में प्रचलन में हैं। इसे बदलने में वक्त लगेगा।
हां सतनामियों में बेहतर नेतृत्व पैदा करने होन्गे यह नेतृत्व कही से भी हो सकते हैं। गुरुओं में से ही होगा यह जरुरी नही है।
जो भी नेतृत्व होगा उसे सर्व समाज में विश्वसनीयता व स्वीकार्य करना होगा तब कही जाकर सतनामी मुख्यमंत्री की बात साकार हो सकता है। यह असंभव भी नही है। भविष्य में सबकूछ संभाव्य हैं।
बहुमत वाली पार्टी से समाज की विधायकों की संख्या के आधार पर सतनामी मुख्यमंत्री की मांग जरुर किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ की ९० मे से ५० सीटों पर हार जीत तय करने वाले सतनामी समाज से मुख्यमंत्री की मांग से शीर्ष नेतृत्व को अवगत कराना चाहिए।
इस आधार पर सहजता से मुख्यमंत्री बन सकते हैं।
वर्तमान में सबसे अधिक सतनामी विधायक है। पहला हक बनता तो हैं। लेकिन इस तथ्य को कौन और कैसे ऊपर तक पहुंचाए ?
इसके लिए समाज एकजुट होकर पहल करें।न कि गुरु विरोध नेता विरोध पार्टी विरोध में समय शक्ति व संसाधन नष्ट करते रहे ।हमारे अधि कर्मचारी व युवा वर्ग जो एन्ड्रायड धारी है वे अपनी गाढी कमाई से मोबाईल व नेट डाटा खरीदते हैं। वे केवल परस्पर लड़ने झगड़ने एक दूसरे के टांग खिचने में ही वक्त व संशाधन नष्ट करते आ रहे हैं ।
दिशाहीन समाज को दिशा देने सार्थक पहल की आवश्यकता हैं। बिना राजनैतिक हस्तक्षेप के सामाजिक रुप से एकीकरण व सुदृढ़ होना बेहद आवश्यक हैं। इनके लिए केवल गुरु वंशज का ही उत्तरदायित्व हैं। यह समझना या मानना सही नहीं है। हम सबका नैतिक दायित्व हैं।
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