Saturday, January 30, 2021

होरी गीत

खंधो लव रे अपन गड़ी 
नाचे बर रिलो बार 
नेवता करमा के झारे झार 
ये दे आवत हे फागुन तिहार ...

गाना गवैया अउ बाजा बजैया 
अनिल सरीख कोनो गीत लिखैया 
खंधो लव रे आवत हे फागुन तिहार ...

आमा म उरे अउ परसा फूलगे 
म उहा कुचियागे सेमर फूलगे 
देह ल सजा लव रे अपन घर दुवार ...

फुल डोहड़ी मन सब  छतरागे 
कहर -महर महके भौरा झुमरे 
मन मतावय रे जवानी के चढे झार...

Thursday, January 28, 2021

इस गणतंत्र में ...

इस गणतंत्र में 

चंद क्रुरतम फैसले अंग्रेज  तानाशाह द्वारा हुए भी हैं। उनकी आलोचना और सजा भी उनके मुल्क में होते रहे हैं। लायन आर्डर  हर सत्ताधारियों  के लिए आत्मरक्षक कम धातक अधिक होते रहे हैं।  
       ओवर आल वे हम पर राज करने आए और हमारे लोग ही उन्हें राज करने अवसर दिए।
      हमें अपनी कमजोरी दूर करना चाहिए न कि सारे दोष उनपर मढकर पुनश्च तथाकथित प्राचीनतम प्रथाएँ जो अमानवीय रहा हैं को परंपरा के नाम पर ढोते रहें।
    यह तो सच है कि गुलामी का सोना आजादी की मिट्टी के समक्ष कुछ भी नहीं । (बावजूद अंग्रेजी सत्ता की प्रशंसा बडे बुजुर्ग आज तक करते हैं कि इससे अच्छा तो वही थे।)
पर आजादी से पुनश्च स्वेच्छाचारी व जिसकी लठ्ठ उनकी भैस न हो जाए।
देश वर्तमान समय में लठ्ठ यानि पूंजीवाद व नीजिकरण की ओर बढ़ रहा हैं। जो आगे चलकर आत्मघाती कदम होगा। क्योंकि यह देश आरंभ से राज -रजवाड़ों की  एक तरह से पूँजीवाद ही रहा है। जहां बहुसंख्यक जनता पशुवत जीवन जीने बेबश थे। शुक्र हैं आजादी के बाद उन रजवाड़ो का उन्मूलन कर संविधान के बनिस्बत कुछ बेहतरीन हो रहे हैं।  पर चंद  सुविधाभोगियो व नव धनाढ्यों  को यह सब अच्छा नहीं लग रहा है। इस तरह की निकृष्ट मानसिकता देश के लिए अच्छा नहीं है। देशप्रेमियों को इनकी ‌चिन्ता कर प्रभावी प्रतिकार करना चाहिए।    
    अंग्रेजों के ऊपर दोष मढकर बला टलना नहीं चाहिए और न ही जो ज्वलंत मुद्दा है उसे डायवर्ट करना चाहिए ।
       इस गणतंत्र में आम नागरिकों को और अधिक सक्षम बनाने की जरुरत हैं ताकि देश सुदृढ़ व सक्षम हो।चंद राज + पाट  व उद्यम करने वालों के लिए यह देश नहीं हैं। वे अपनी अपनी  योग्यता व आवश्यकतानुरुप ही संप्रभुता उपभोग करे न कि देश विदेश में ऐशो आराम करते करोड़ो -अरबो गटरमश्ती करते  फूके ! जिसके कारण   लाखों- करोड़ो  लोगों को फ़ाकामस्ती करते जीवन यापन करना पड़े ।
              आय की इस तरह की बढ़ती विकराल खाई को पाटना  कृषि सुधार व कृषकों का हित साधन को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि अब भी 75%80 जनता इससे सीधे जुड़े हुए हैं।  देश में धर्मनिरपेक्ष स्थिति को कायम रखना युवा पीढ़ी को रोजी -रोजगार उपलब्ध कराना शिक्षा स्वास्थ्य को सुदृढ़ करना ही प्रथम ध्येय होना चाहिए।  

      -डाॅ अनिल भतपहरी   9617777514

Thursday, January 21, 2021

"सतनाम एक विशिष्ट संस्कृति व जीवन पद्धति हैं"

"सतनाम एक विशिष्ट संस्कृति व 
जीवन पद्धति हैं।"

    सतनाम आध्यात्मिक रुप से अन्तर्यात्रा हैं।  सदाचार अपनाकर जीवन में सुचिता और परस्पर मानव समुदाय में सद व्यवहार करते समानता स्थापित करना ही सतनाम का प्रमुख ध्येय हैं।  
आन्दोलन तो स्वतंत्रता आन्दोलन ,नारी मुक्ति आन्दोलन नशा मुक्ति आन्दोलन, मान सम्मान रक्षार्थ  आन्दोलन जुल्म सितम के विरुद्ध आन्दोलन या  मजदूर  श्रमिको का हक अधिकार हेतु आन्दोलन होते हैं। 
  सतनाम आन्दोलन ये नये गढे गये जुमले है। और इसके द्वारा जनमानस को दिग्भ्रमित भी किए जा रहे हैं।
 सतनाम आत्मबल और भीतर का यात्रा हैं। जिसके द्वारा धर्म -कर्म में व्याप्त रुढिवाद, अंधविश्वास और कर्मकांड व पुरोहिती का विरोध और उनके स्थान पर सहज योग साधना और सद्कर्म करते जीवन निर्वाह  करते खान- पान ,रहन -सहन ,जुआ ,शराब ,मांस ,मदिरा ,नारी सम्मान  कृषि कर्म एंव पशु प्रेम का मार्ग हैं।
 नाहक इस संस्कृति और धम्म को आन्दोलन कहकर इनके व्यापाक और उदात्य भावार्थ को संकुचित और सीमित किए जा रहे हैं। बिना बुद्धि लगाए बस सतनाम आन्दोलन सतनाम आन्दोलन कह रहे हैं।
  क्या सतनामी आन्दोलन कारी है। नारे बाजी करने वाले और अशान्ति फैलाने वाले कौम हैं?
   शब्दों के  वास्तविक अर्थ और भावार्थ को समझ कर  समकालीन समय में किन परिस्थितियों में हमारे गुरुओ संतो महंतो ने इस सतनाम संस्कृति को बचाकर संजोकर यहाँ तक लाए वह प्रणम्य है। 
  वर्तमान समय में सतनाम संस्कृति में चलकर बडी उपलब्धि हासिल करते सरल  जीवन यापन करते  सुकुन व  शांति हासिल एक बेहतर भविष्य आने वाले संतति को देना है। कल्पित स्वर्ग मोछ आदि के जगह अपने आसपास स्वर्ग सम वातावरण बनाकर पद निरवाना या परमपद अर्जित करना है।
  यदि आन्दोलन आदि होते तो गुरुबाबा  के सिद्धान्त और उपदेश तथा पंथी मंगल भजनो में  आन्दोलन करने के तौर तरीके वर्णित होते ।मोर्चा सम्हालने और कथित जुल्मो के लिए जुल्मियो को दंडित करने के तरीके और कुछ सफल आन्दोलन के वृतान्त होते पर दुर्भाग्यवश आन्दोलन आदि के कोई गीत भजन वृतान्त नही है।
  और तो और सतनाम संस्कृति में आन्दोलन कारी नही नजर आते बल्कि साधु संत उपदेशक भजन संकीर्तन पंथी करते संत सदृश्य पंथी हार नजर आते हैं। 
  और अपने जीवन में जो चीजे हैं। या विरासत में या अपने परिश्रम के एवज में जो मिला उससे संतुष्ट और सुखी समाज नजर आते हैं।
  इसलिए इस महान सतनाम संस्कृति में अनेक जातियाँ सम्मलित हुए।कुछ हद तक सतनाम प्रचार के अभियान आन्दोलन सदृश्य जरुर रहे हैं। पर यह सतनाम जागरण का एक अंग मात्र हैं। 
  एक प्राचीन पंथी गीत का स्वर और भावार्थ देखिए- 

 खेले बर आए हे खेलाए बर आए हे 
   दुनियां  म सतनाम पंथ ल चलाए हे 
      मनखे  मनखे ल एक गुरु ह बताए हे 
             चारो बरन ल एक करे बर आए हे 
       सन्ना हो नन्ना नन्ना  हो ललना 
                 सन्ना ना रे नन्ना नन्ना हो ललना 
  सना नना नना हो नना हो ललना ..
 ‌     क्या यह आन्दोलन है?या सांस्कृतिक नवजागरण हैं।या उदात्य सतनाम संस्कृति हैं।आन्दोलन कहने समझने वाले  स्वत: निर्णय करे। 
  ‌‌‌      सतनाम 

-डा अनिल भतपहरी

Wednesday, January 20, 2021

सतनाम पंथ के गुरु का प्रथम रियल कैमरा फोटोग्राफ

।।सतनाम पंथ के गुरु का प्रथम कैमरा  फोटो‌ ।।

जर्मन लेखक व फोटोग्राफर जे जे लोहर ने १८वी सदी  पूर्वाध( १८६० के आसपास ) में सी पी एंड बरार में परिभ्रमण कर    समकालीन समय में अपनी फोटोग्राफी व सांस्‍कृतिक तथ्य एकत्र करने में सतनामियो को इतना महत्त्वपूर्ण समझ कर सुदुर देश से आकर यह कार्य किया ।
उनकी प्रसिद्ध फोटोग्राफ युक्त  पुस्तक " A few pictures cp and barar "  १८९९ मे प्रकाशित हुई । उसी पुस्तक मे सतनाम धर्म  के विशिष्ट "चरणामृतप्रथा" का चित्र संकलित हैं। इसमें सतनाम धर्म के गुरु जो सशस्त्र सेनानियो से धिरे श्वेत वस्त्रधारी दाढी मूंछ से युक्त राजसी तेज से युक्त है।  क ई लोग इसे राजा गुरुबालक दास तो कोई इसे राजा गुरु आगरदास कह बता रहे है ।इस रीयल फोटोग्राफ जो कैमरे से उतारी ग ई है से  भी सतनामियो के  वैभव और उनकी विशिष्टता का पता चलता है। 
  अंग्रेज़ अधिकारियों लेखक व बुद्धिजीवियों ने अपने स्तर परचीजे महत्व समाज को दिए वह निसंदेह गर्व करने लायक हैं। उन सबके प्रति सदाशयता समाज की ओर से प्रकट भी क रते है। परन्तु  बाद में  जब आजादी के आन्दोलनों की पृष्ठभूमि बने सवर्ण नेतृत्व सामने आने लगे तब  सतनामियो के प्रति एक गहरी खाई भी निर्मित होने लगी। 
   गुरुबालकदास की  हत्या (१८६०) के बाद समाज नेतृत्‍व विहिन हो गये।  ६०-६५ वर्ष बाद १९२०-२५  के आसपास गुरु अगमदास  रतिराम मालगुजार नयनदास महिलांग  अंजोरदास कोसले सहित ७२ संत महंत गण  समाज के नेतृत्‍व शुन्यता को भेदकर मुख्यधारा में आने समकालीन नेतृत्‍व के साथ समन्वय स्थापित करने में और देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए । 
      परन्तु यही नेतृत्व या समझौते आदि के कारण समाज पुनश्च उसी हिन्दूत्व की ओर गतिमान हो गये जिससे बचाकर एक अलग तरह के स्वरुप में गुरुघासीदास व गुरुबालकदास जैसे समर्थ धर्मगुरुओं ने संगठित किया था। आगे जब अस्पृश्य जातियों की अनुसूची में समाज को रख दिए तो यह स्वतंत्र पंथ से जाति बन ग ई यह और यही एक  जातिविहिन वर्गविहिन  उन्नत समाज का अधोपतन आरंभ हुआ।चंद सुविधाओ के लिए हमने अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक तत्वों से दूर भागते गये। राजनैतिक  विचारधारा व प्रतिस्पर्धाओ के कारण समाज में बिखराव होने लगा जो निरंतर जारी हैं।
  जो धार्मिक व आध्यात्मिक चीजे इन बिखराव को  रोक सकती हैं। उसे हमलोग आजतक न ठीक समझ पाए हैं। न उनका सही इस्तेमाल कर पा रहे हैं। इधर कुछ तथाकथित वैज्ञानिक  और स्थापित मान्यताओं के 
विरुद्ध जन भावनाओं  को उद्वेलित करने वाले शक्तियाँ भी एकीकरण होने नहीं देती।भले अन्यत्र कूट कूट कर मिथकीय  अंध विश्वास भरा हो वह वहाँ जाकर गौरवान्वित होंगे, मानने लगेन्गेऔर यहाँ अवहेलनाएं व हिकारत करेन्गे। 
।।सत श्री सतनाम ।।
  डा. अनिल भतपहरी ,रायपुर

Sunday, January 17, 2021

सत्थनाम

वैसे तो हिन्दी में सामान्यतः सत, सत्य, सच, सच्च का अर्थ यथार्थ ( true)  होता है.  परंतु छत्तीसगढ़ी, पाली या मागधी मे 
सत - सौ (100) 
सत्त-सात (7) 
सत्थ -बुद्ध, गुरु, शिक्षक
सत्थनाम- बुद्ध
सत्थनामी-बुद्ध के अनुयायी, 
सत्थनाम को बोल चाल उच्चारण मे सतनाम मान लिया जाता है. 

यदि यकीन न हो तो डिक्शनरी देख लिजिए.

Saturday, January 16, 2021

सतनाम -बौद्ध संस्कृति

सिरपुर मेरा गांव है पुरखों की जमीन व घर अब भी विद्यमान है।  प्राकृतिक विपदा के पश्चात  नदी के पार  जुनवानी बरछा गोटी डीह उजित पुर  में भट्टप्रहरी वंश आबाद हैं। हमारे कुल देवता नाग और ठेंघादेव यानि शस्त्र देव  हैं।  जो कि हमारे पूर्वजों के किलानुमा घर के सामने नीम पेड़ पर स्थापित हैं। जिसकी पूजा अर्चना ग्रामवासी करते हैं। हमारे खेतों खलिहानों में प्राचीन महलों घरों के ईट पत्थर बिखरे पड़े हैं। पुरातत्व के अन्वेषक आकर यह सब देख -समझ सकते हैं। सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में परिक्षेत्र में बौद्ध संस्कृति प्रचलन में रहा है। ऐसा लोग कहते भी है।
  ( भट्टप्रहरी का अर्थ ही है राजवंश का शस्त्र धारक श्रेष्ठ रक्षक । अपभ्रंश में अब भतपहरी लिख रहे हैं। )
     गुरुघासीदास के गुरुद्वारा भंडारपुरी और सिरपुर महज १० कि मी हैं। जिसमें मध्य में हमारा ग्राम तेलासी जुनवानी हैं। यह दोनो ग्राम किलानुमा है ।तेलासी गढ़ तो जल दूर्ग ही हैं। जिसके मध्य में प्रसिद्ध  भव्यतम "सतनाम बाडा़" स्थापित है।  तपोभूमि गिरौदपुरी को सामंती आतंक के चलते  त्यागकर गुरुघासीदास बाबा जी यही आश्रय लिया हमारे पूर्वजों ने उसे बसाए हमारे गांव की पत्थरों व कारीगरों द्वारा ही  भव्यतम   मोती महल गुरुद्वारा बना।
   वहाँ के गुरुगद्दी आसन में पंच नाग फेन शिल्पांकित हैं। यह प्रसिद्ध लक्ष्मणी बुद्ध विहार ( लक्ष्मणदेवाला ) की बुद्ध प्रतिमा से ही प्रेरित है। ‌
क्योंकि पंच  नाग छत्र बुद्ध व सिद्ध महापुरुष जिनके कुंडली जागृत रहते हैं के ऊपर शिरोछत्र‌ होते   हैं।

बहरहाल  नीचे प्राचीन तथ्य पर ध्यान आकृष्ट कर 
वर्तमान सतनाम पंथ और प्राचीन श्रमण सत संस्कृति व बौद्ध धम्म पर अन्तर्संबंध स्थापित कर अध्ययन मनन चिंतन करे।
आर्यों और बुद्ध  पूर्व श्रमण सत  संस्कृति  में दो ही वर्ग थे ।  स्वामी और सेवक ।
   यह कोई भी हो सकता था। बुद्ध ने मझ्झिम निकाय में अस्लायन को संबोधित करते लिखा भी हैं।
    ऐतरेय में भी उल्लेख मिलता हैं सत्वंत प्रजाति जो न आर्य थे न द्रविड़ मध्यदेश के वासी प्रकृति पूजन श्वेत ध्वज वाहक हैं। 
    अत: सदवहन या सतवहन या सत्वंत लोग अरावली से सतपुड़ा तक सिन्धु से महानदी तक आबाद रहे हैं। यही मध्यदेश है जिनका जिक्र बुद्ध ने किया था जहां कोई जाति भेद नहीं था। और लोग सत्य विश्वास और परस्पर सहयोग से जीवन निर्वहन करते थे।
जो गुणवान व  बलवान होते थे वह सेवक और जो प्रमादी व कमजोर होते वह सेवक ।
  स्वामी और सेवक में भी सौहार्द भाव मिलते हैं।
 आज भी छत्तीसगढ़ के  गांवो में गौटिया मंडल सौजिया बनिहार में प्रेम विश्वास व सौहार्द भाव मिलते हैं। 
   जनजीवन में श्रमण सत संस्कृति का अवशेष दर्शनीय हैं। भेदभाव जात पात ऊच नीच यह आर्यन संस्कृति के सम्मिश्रण व प्रभाव से ही आया।
   छत्तीसगढ़ में यह माराठो भोसलों और उप बिहार मारवाड आदि   शरणार्थियों के कारण हुआ।

Friday, January 15, 2021

आव्रजन

"आव्रजन "

इन लोगों का काम है साहब 
चोरी और सीनाजोरी
चाहे वह संपदा चुराए या विचार
इधर वे लोग
जो संपदा या विचार ऊगाते है 
मुफलिसी में जीते 
रहते बेफिक्र निर्विकार
दु:ख तो तब है जब शातिर लोग
 उन्हें विचार विहिन कह 
उड़ाते है उपहास
बनाकर रखते आयें हैं 
जाहिल कृपण  दास 
शस्त्र,शास्त्र और आस्था से
अब निहत्थे -निरक्षर लोग 
विचार विहिन भेड़ सदृश 
समानता की पंगडडी 
चलते-चलते ही की  ईज़ाद  
तब मिटाकर कर उसे  बना रहे हैं 
ये लोग समरसता की राजपथ 
ताकि चल सके उपनिवेश की 
भारी वाहन  
सत्ता  की मद में होते रहे 
भव्यतम आव्रजन 
             - डां अनिल भतपहरी 
            रायपुर १६-१-२०१८

छत्तीसगढ़ी के दोहरे शब्द और उनके विशिष्ट अर्थ

छत्तीसगढ़ी में एक शब्द के दोहरे प्रयोग और उनके विशिष्ट अर्थ 

बोटोर बोटोर - आंखें फाड़कर देखना
मुटुर मुटुर- असमंजस से देखना
मटर मटर-आगे आगे आना
छरके छरके-दूरी बनाना
कुटूर कुटूर- कड़ी चीज चबाना
खुटूर खुटूर- धीरे धीरे खखटाना
फुटूर फुटूर-धीरे धीरे गिरना
चुटुर चुटुर-अधिक बोलना
सुटूर सुटूर-खामोशी से(चले जाना)
ढकर ढकर- गटागट पीना
लकर लकर-अधिक मेहनत
धकर धकर-कमजोरी
हकर हकर-कड़ी मेहनत
फसर फसर-गहरी नींद के लिए
फुसुर फुसुर-कानाफूसी
मुसुर मुसुर-छुपाकर(खाना)
हुरहा हुरहा-अचानक  अचानक 
ढोकर ढोकर के- दंडवत
खुड़ खुड़ ले-अच्छी तरह से सूखने का भाव
ढेंक ढेंक के- आर्तनादपूर्ण रुदन,विलाप 
महर महर-खुशबूदार
कोट कोट ले-भरपेट

मिलते जुलते दो शब्दों का प्रयोग
अलवा जलवा-साधारण
जांवर जिंयर -जुड़वा
सांगर मोंगर-हृष्टपुष्ट महिला
किलिर कालर- हल्ला गुल्ला
खिबिड़ खाबड़-झगड़ना
आका तुकी-अनफिट
खदर मसर-मिक्स  कर देना
लकर धकर-जल्दबाजी
छिदिर बिदिर-बिखरा देना
छर्री दर्री-टुकड़े टुकड़े
ओनहा कोनहा-कोना कोना
चितर काबर-रंग बिरंगा
फिसिर फासर- बिमार पड़ना
काँखत पादत-कष्ट से
हेल पेल-पर्याप्त जगह
डटटा खुट्टा-जगह की कमी
पेट अउ पाट-खाने और पहनने
झिलिंग झालंग-ढीला ढाला
चिट के न पोट के-बिल्कुल नही बोलना
मुरहा पोट्टा -लावारिस(बिना मां बाप का)
छकल बकल-खुले हाथ खर्च करना
लदर फदर- मोटे होने का भाव
लंदर फंदर-तिकड़म
लाटा फान्दा-उलझन
हाड़ा हपटा-अत्यधिक कमाना
बांटा खूंटा-बंटवारा
गुड़ गुड़ा-सीधे पहुंचना
बाटे बाट-रास्ते से
चिक्कन चांदो-साफ सुथरा

Thursday, January 14, 2021

बुद्ध कालीन समाज‌

Narendra Bharti छुआछूत तो नहीं पर एक दूसरे जातियों में खान पान और रोटी बेटी प्रायः नहीं था।यह अशिक्षा असुरक्षा व धन आदि के दुरूपयोग को रोकने के निमित्त कबिलाई संस्कृति था। एक दूसरे जाति बड़ा छोटा मानते व समझते थे। 
यहाँ तक एक जाति के फिरके या गोत्र तक में रोटी- बेटी नहीं चलते ।
जैसे  छत्तीसगढ की सम्पन्न कुर्मी में वर्मा और चंद्राकर में अब भी रोटी- बेटी नहीं है।  
    इसी तरह सभी जातियों में थे। 
सतनाम पंथ तो उसी जात -पात फिरके आदि के बंधन से मुक्त नया पंथ था। जहाँ कोई जाति+ पाति भेदभाव का प्रपंच नहीं थे। इसलिए तो इस पंथ के प्रभाव को रोकने सुविधा भोगियों ने घोर त्यज्य धोषित कर छुआछूत जैसे कुप्रथा लाया।
गुरुघासीदास के समय तो अनेक जातियों ने सतनाम पंथ में सम्मलित हुए। यदि पूर्ववत सतनामियों से छुआछूत होते तो कोई कैसे अछूत बनते ? 
     सतनामी अछूत बाद में घोषित जान पड़ते हैं। क्योंकि इस पंथ में तथाकथित भगवान और पंडे पुजारी मंदिर- मूर्ति आदि साकार पूजा का पूर्णतः निषेध था। फलस्वरुप  द्वेषपूर्ण भेदभाव किया गया। ताकि उनके प्रभाव को रोका जा सके।

टीप -छत्तीसगढ़ सहित पुरे मध्यदेश  में बुद्ध काल में केवल दो वर्ग थे स्वामी और सेवक ।‌यहां वर्ण जाति आदि था ही नहीं । जो बलवान गुणवान होते वह संपदा के स्वामी होते और जो अपेक्षाकृत कमजोर होते वह सेवक ।स्वामी और सेवक में सौख्या व प्रेम  भाव भी होते ।नफरत धृणा आदि का कही कोई नामो निशान नहीं था।
यह बेहतरीन प्राकृत या सत व्यवस्था था।जो प्राचीन श्रमण व सत संस्कृति के कारण था।
   आर्यों ने वैदिक व्यवस्था लाकर वर्ण और जात पात का प्रपंच बोए ।
देखिए बुद्ध वचन मझ्झिम निकाय।

Wednesday, January 13, 2021

मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी

#anilbtapahari 

।।सतनाम पंथ का विश्व प्रसिद्ध मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी ।।

    इस भव्य स्मारक को गुरुघासीदास मंदिर के नाम से भी  जाने जाते हैं। इसे जीर्णोद्धार / नव निर्माण के नाम पर  तीन दशक पूर्व ढहा दिए गये हैं। वहाँ केवल ढाचा मात्र है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि  पुरी एक पीढ़ी इस गौरवशाली दृश्यांकन व दृष्टान्त से वंचित हैं । जब देश भर में महत्वपूर्ण स्मारकों का जीर्णोद्धार व अनेक नव आस्था के नवनिर्माण जारी हैं। तब इसके लिए 
 कुछ भी पहल या हलचल न होना बेहद चिन्तनीय हैं।  
    देश भर के लाखों- करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र इस ऐतिहासिक ईमारत कब अपनी पूर्व स्वरुप में स्थापित होगा? इसका उत्तर संभवतः किसी के पास नहीं हैं। 
               ज्ञात हो कि इसका निर्माण १८२०-३० के बीच गुरुघासीदास के निर्देशन में राजा गुरुबालकदास ने एक दृष्टान्त के रुप में करवाया था ताकि इनके अवलोकन मात्र से सतनाम धर्म संस्कृति की जानकारी जन साधारण को हो सके।  यहाँ से ही पुरे छत्तीसगढ़ और उनके बाहर सतनाम पंथ का प्रचार -प्रसार हुआ। देश के कोने -कोने से श्रद्धालु यहाँ आते और मत्था टेक कर अपनी धार्मिक भावनाओं का इजहार करते थे ।अनुपम ज्ञान प्राप्त कर कृतार्थ होते थे। दूर से दर्शन मात्र से गुरु उपदेशना का भावबोध होता था।  शिखर के चारों कोने पर तीन बंदर और गरजते हुए शेर का शिल्पांकन से युक्त  चौखंडा महल का नीचे भाग तलघर था। संपूर्ण प्रखंड वास्तु व  काष्ठ कला की अनुपम कारीगरी रही हैं । यह मानव जीवन के चारो अवस्था का शानदार व्याख्या था।पुरातत्त्व की दृष्टिकोण से अतिशय महत्वपूर्ण इस ईमारत का राजनैतिक उठापटक ,शासन -प्रशासन की अनदेखी और उचित  प्रबंधन के अभाव में यह जमींदोज हो गया जो कि  अत्यन्त दयनीय व दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति हैं। 
           छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अस्मिता और ‌पुरे विश्व के मानव समाज को मानवता का संदेश देने वाली इस भव्य ऐतिहासिक  ईमारत की हुबहु प्रतिरुप में निर्माण अत्यावश्यक है।   
                इस पावन कार्य हेतु  गुरुदर्शन मेला  मे लाखों दर्शनार्थियों की उपस्थिति में प्रबंधन मंडल की ओर से उचित व सार्थक पहल करते हुए नव निर्माण की घोषणा होनी चाहिए।  खास तौर पर अनेक सामाजिक व धार्मिक संगठन है जो सतनाम धर्म संस्कृति के पैरोकार समझते हैं उन्हे चाहिए कि केवल जनप्रतिनिधी एंव गुरुवंशज ही उनके लिए उत्तरदायी नहीं है बल्कि उनके साथ साथ जन समर्थन व सहयोग  कैसे एकजुट हो ? इन पर गंभीरतापूर्वक चिंतन मनन व सकरात्मक  कार्य करें।
         जय सतनाम 
               
          -डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

एक -दो कविताएँ

एक-दो कविताएँ 

सीधी-सपाट कथन 
सहज -सरल जीवन 
की नही होती  चर्चा 
जिनकी हो न चर्चा 
समझो हो गये मुर्दा 
इसलिये  ज़िन्दा होने 
लोग हो रहे हैं बे़पर्दा 

×        ×            ×
ज़माना देखने-दिखानें का हैं
एक- दूसरे  को रिझानें का हैं
सीधाई में नहीं रहा अब रिझाई 
इसलिए तो  कह रहे हैं भाई 
रहो टे़ढ़े -मेढ़े ,करो आड़े-तिरछे
हर तरफ लगे हैं सी सी कैमरे 
जो होगा सीधा वही पकड़ा  जाएगा 
क्योंकि सीधाई को चोहल समझा जाएगा 

  - डॉ. अनिल भतपहरी 9617777514
सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर छग

चित्र- डाब के संग मजे में मैसूर की खूबसूरत गली

Tuesday, January 12, 2021

सतनामी समाज की अवस्था



छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ आबादी में  सतनामी महज‌ १५-१६% ही हैं। और मजे की बात  सबसे अलग- थलग हैं। हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई आदिवासी किसी में सहज समाहित नहीं न सार्वजनिक रुप से आमंत्रित व सम्मानित हैं। भले सतनामी सबको सम्मान दे यह अलग बात हैं। 
वैसे सतनामियों में भी  क ई सांस्कृतिक विभेद है मोटे तौर पर सतनामी रामनामी सूर्यवंशी आदि। परिक्षेत्र गत विभाजन भी हैं। इनमें रोटी बेटी साधारणतः प्रचलन में नहीं हैं। एकीकरण के सारे प्रयास विफल हैं। या सही ढंग से होते नहीं ।

 पार्टी गत विभाजन अलग हैं। ऐसे में केवल सतनामी वोट से सत्ता केवल दीवा स्वप्न मात्र हैं।
   गुरुवंशज का विरोध व्यर्थ व अनुचित हैं। उन्हे  गुरु घासीदास जैसा नहीं समझना चाहिए। वे उनके वंशज है इसलिए सम्मानीय है और बने रहेन्गे भले कोई माने या न‌ माने । क्योंकि वंशानुगत परंपरा भारतीय संस्कृति में प्रत्यक्ष रुप में प्रचलन में हैं। इसे बदलने में वक्त लगेगा।
   हां सतनामियों में बेहतर नेतृत्व पैदा करने होन्गे यह नेतृत्व कही से भी हो सकते हैं। गुरुओं में से  ही  होगा यह जरुरी नही है।
   जो भी नेतृत्व होगा उसे सर्व समाज में विश्वसनीयता व स्वीकार्य करना होगा तब कही जाकर सतनामी मुख्यमंत्री की बात साकार हो सकता है। यह असंभव भी नही है। भविष्य में सबकूछ संभाव्य हैं।
    बहुमत वाली पार्टी से  समाज की विधायकों की संख्या के आधार पर सतनामी मुख्यमंत्री की मांग जरुर किया जा सकता है।
  छत्तीसगढ़ की  ९० मे से ५० सीटों पर हार जीत तय करने वाले सतनामी  समाज से मुख्यमंत्री की मांग से  शीर्ष नेतृत्व को अवगत कराना चाहिए। 
     इस आधार पर सहजता से मुख्यमंत्री बन सकते हैं।
  वर्तमान में सबसे अधिक सतनामी विधायक है। पहला हक बनता तो हैं। लेकिन इस तथ्य को कौन और कैसे  ऊपर तक पहुंचाए ?
   इसके लिए समाज एकजुट होकर पहल करें।न कि गुरु विरोध नेता विरोध पार्टी विरोध में समय शक्ति व संसाधन नष्ट करते रहे ।हमारे‌ अधि कर्मचारी व  युवा वर्ग जो  एन्ड्रायड धारी है वे अपनी गाढी कमाई से मोबाईल व नेट डाटा खरीदते हैं। वे केवल परस्पर लड़ने झगड़ने एक दूसरे के टांग खिचने में ही वक्त व संशाधन नष्ट करते आ रहे हैं ।
  दिशाहीन समाज को दिशा देने सार्थक पहल की आवश्यकता हैं। बिना राजनैतिक हस्तक्षेप के सामाजिक रुप से एकीकरण व सुदृढ़ होना बेहद आवश्यक हैं। इनके लिए केवल गुरु वंशज का  ही उत्तरदायित्व हैं। यह समझना या मानना सही नहीं है। हम सबका नैतिक दायित्व हैं।  
 

स्वच्छंद

।।स्वच्छंद ।।

हमें स्वच्छंद वातावरण  
उनमें विचरते पक्षी  
झुमती मदमस्त  डालियां  
पत्तियाँ और  फूल 
क्रीड़ा करते 
भ्रमर वृंद पसंद हैं
लहराती बलखाती झरनें
कुलाचें भरतें 
मृग झुंड पसंद हैं।
सच कहें तो
हँसते- खिलखिलातें 
पुरुष और महिलाएँ 
संग बाल वृंद पसंद हैं  
यहाँ तक स्वच्छंद 
विचारधाराएँ और कविताएँ 
तक पसंद हैं
क्योंकि स्वच्छंदता ही 
मुक्ति के पट खोलते हैं

-डाॅ. अनिल भतपहरी

Saturday, January 9, 2021

शांत छत्तीसगढ़ में अशांति का बीजारोपण

#anilbhatphari 

।शांत छत्तीसगढ़ में अशांति का बीजारोपण ।।

छत्तीसगढ़ शांति व सौख्य की भूमि हैं। अनादिकाल से  जनजीवन श्रमण व सत संस्कृति का संवाहक हैं। लोग कर्मवादी है और" अपन भरोसा तीन परोसा खाकर " कृषि व  वनोत्पाद से संतुष्ट संतों- गुरुओं की सीख से सुखमय जीवन -निर्वाह करते आ रहे हैं। गाँवों में अनेक जातियाँ निवास करती हैं पर उनमें एक आत्मीय भाव भरे हुए होते हैं। परस्पर मीत- मितानी  आदि से भाई ,दीदी  कका- ममा आदि स्नेहिल रिश्तों से बंधे हुए होते हैं। क्योंकि उन्हें पता हैं संबंधों   की‌ शक्ति  ही सहयोग करते हैं। कोई ऊपरी या बाहरी शक्ति नहीं जो प्रत्यक्ष लाभ दे सकें। इस बात को बहुत ही सहज -सरल ढंग  हमारे गुरुओं संतों ने समझा दिए हैं।
     आजादी के आसपास पर प्रांतिकों के पलायन कर आगमन  और उनकी अपनी अपनी मान्यताए तथा अपने प्रभाव आदि के लिए अनेक सडयंत्रों से यहां जातिय दुराव और सांस्कृतिक विभेद की नींव पड़ी। इन सबके  बावजूद  ग्राम्य अंचल में तीज -त्यौहार में सभी उत्साह पूर्वक भाग लेते आ रहे हैं। और किसी पेड़ की टहनियों में अनेक घोसलें बनाकर जैसे पंछी बसेरा करते हैं। ठीक गांव ऐसे ही आबाद रहा है।  यहाँ बहुसंख्यक ७५-८०%  जनता सगुण परंपरा के  बहुदेव वाद ,प्रतीक -मूर्ति पूजा के साथ- साथ करीब २०-२५%  जनता निर्गुण पंरपरा के संवाहक है महात्मा कबीर व गुरुघासीदास का बेहद प्रभाव जनजीवन में विद्यमान हैं। इस तरह देखे तो छत्तीसगढ़ की आम जन जीवन सगुण- निर्गुण धारा में आबद्ध  साकार व निराकारोपसक हैं।  सगुण- निगुण नही कछु भेदा कह कर बेहतरीन समवन्य भी हमारे संतो ने किया हैं। 
    और एक- दूसरे की मान्यताओं आस्थाओं पर कोई हस्तक्षेप नहीं बल्कि सम्मान प्रकट करते आ रहे हैं।परन्तु  विगत कुछ वर्षों से प्रायोजित ढंग से निर्गुणोंपासक सतनाम पंथ  के धार्मिक स्थलों पर अतिक्रमण आदि आरोपित कर किताबों ,पत्र -पत्रिकाओं, व्याख्यानों में तथ्य हीन बातें लिख- बोलकर शांत छत्तीसगढ़ को उद्वेलित करने की नापाक  कोशिशें जारी हैं।यह घटना सामाजिक कम राजनैतिक अधिक  नजर आते हैं। 
      समय रहते इनका निदान आवश्यक हैं। अन्यथा इस तरह की  चिंगारी दावानल में कब  तब्दील हो  जाय ?कह नहीं सकते क्योंकि यह आस्था का मामला हैं।  लोग बड़ा- छोटा दिखाने प्रतिभा और विकास की ओर न जाकर शार्टकट धर्म- जाति पंथ की मान्यता रीति- नीति  पर आ जाते हैं।  और गाहे -बगाहे इन्हे छेड़कर महौल को अशांत व उद्वेलित करते हैं ,ताकि आगे चलकर मौके का फायदा उठाया जा सके । यही निकृष्ट मानसिकता के चलते ऐसे धटनाएं जानबूझकर किए जाते हैं। इनकी सुक्ष्म व निष्पक्ष  जांच कर इनके तह में कौन सी छद्म शक्ति काम करती हैं। उनका पर्दाफा़श व उन्मूलन  शासन- प्रशासन को करना चाहिए । घटना छोटी हैं ऐसा समझकर नजर अंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि घटनाएँ तो घटनाएं ही होते हैं। प्रचार तंत्र और मीडिया उन्हें जरुर छोटे बडे रुप देते हैं यह अलग बात है।
        वैसे  इस तरह की घटना के दोषी लोग  सहज ही चिन्हाकित भी होते हैं ,चंद मोहरे व गुर्गों की गिरफ्तारियां भी होती हैं।पर  जो  इनके असल मास्टर माइंड है उस तह तक  अनन्यान कारणों नहीं पहुँच पाते। इसके  चलते दोषियों को  कठोर सजा नहीं  होते फलस्वरुप  क्षतिपूर्ति  या कई छद्म सलाह व मौकापरस्त समझौते आदि  के कारण माफीनामा  आदि से मामले जरुर कुछेक माह या वर्ष के लिए दब सा जाते हैं। पर वह कहीं न कहीं पर  पुनश्च प्रकट हो जाते हैं। ऐसा करके विराट जन समुदाय मनोबल गिराने का  अप्रत्याशित कार्य और वोट या मत ध्रुवीकरण की राजनैतिक सडयंत्र भी प्रायः किए जाते हैं। प्रयोगवादी संस्थान इस तरह के नये नये हथकंडे अपना समाज का रुख जानने का प्रयोग करते हैं। देश या सामाज सेवा के नाम पर गठित दलें व संस्थान  इस तरह लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर इन  "आस्था की  स्थल को प्रयोगशाला बना रहे हैं"  जो कि बेहद  निन्दनीय है और चिन्तनीय है। इनसे न समाज का भला होगा न देश का । बल्कि कुछ दलों के लोगों को आक्रोशित और उन्मादित  लोगों का समर्थन जरुर मिल सकता हैं। पर ऐसे समर्थन से सत्ता हासिल  नही होगी अगर खुदा न खास्ता हो भी ग ई तो   ऐसी सत्ता से जनकल्याण  हो ही नहीं सकता। शांत छत्तीसगढ़ में अशांति का बीजारोपण कर नफरत -द्वेष का  फसल उगाने की नापाक कोशिशे हो रही हैं।  इन पर त्वरित प्रभावी नियंत्रण होना चाहिए। 
    बस्तर की नीरिह व साधनहीन  आदिवासी समुदाय जल जमीन जंगल के नाम पर आंदोलित ‌भटकने लगे हैं। कही वही परिस्थितियाँ यहां न पनप जाय इन पर बहुत ही गंभीरतापूर्वक विचार करते निर्णय लेना होगा। 
     बहरहाल चिंगारियां  आपस में सटे एक ही प्रजाति के वृक्षों की टहनियों के परस्पर रगड़ से भी निकलती हैं उन चिंगारी से जंगल जल कर खाक हो जाते  हैं। इसलिए चाहिए कि उनका  तत्क्षण उचित ढंग से शमन कर दिया जाय ... अन्यथा सिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं बचा रहेगा ?

-डाॅ. अनिल भतपहरी

Wednesday, January 6, 2021

विचार विन्यास

विचार विन्यास 

       नववर्ष की प्रथम सप्ताह में ‌भोजनोपरांत गुनगुनी धूप में  जुगाली करते यह विचार अक्समात जे़हन में कौंधा कि नववर्ष की स्वर्णिम किरणें  कोरोना से  मुक्ति के पट खोल रहें हैं यह अभिनंदनीय हैं। पहले दिन से ही रोज नई -नई वैक्सीन और उनके माक ड्रील/  ट्रायल का खबर से समाचार गुलज़ार हो रहे हैं। नित नये सकरात्मक समाचार से आमजन में तो नही कह सकते पर अपने में आत्मविश्वास व आत्मबल भी तेजी से बढ़ने लगा है ।हालाँकि अन्नदाता  किसान आन्दोलित हैं ,उन्हे तारिख उपर तारिख मिल रहे हैं। किसान होने के कारण थोड़ी नैराश्य भाव है कि कब इनके दिन बहुरेन्गे ? क्योंकि आजादी के बाद बेचारे अब भी अपनी उत्पाद की कीमत लगाने या बेचने की स्वतंत्रता नहीं पा सके है।
       बहरहाल बात  एक विचार के जे़हन में कौधने से आरंभ हुआ और वह बात -चित में कही ओझल होने को तत्पर हैं। अनगिनत विचार आते हैं और युं ही चले जाते हैं। कुछ व्यक्त होते हैं कुछ अभिव्यक्त  ,कुछ दफ्न हो जाते हैं। कुछ तो मनो -मतिष्क को  मथते रहते हैं।
    यह विचार व्यक्त नहीं हो पा रहा है न दफ़्न ! अपितु मथे जा रहे हैं  कि अब कोरोना काल के बाद आर्थिक विकास की दर क्या होगी?  धर्म -अध्यात्म का क्या हाल- चाल रहेगा ?  इनके आड़ में दान दक्षिणा से  पलने वाले वर्ग का क्या होगा ?  हमारे करुणा के स्त्रोत तलाशने व उद्गारने वाले कवि  लेखक कलाकार  उनका सार्वजनिक प्रदर्शन तथा उनसे उनकी रोजी- रोजगार  कैसे पटरी पर आएन्गे? और तो और हमारी शिक्षा पर्यटन तीर्थ मेले का क्या होगा ?  सरकारी कर्मचारी तो अपने बिना महंगाई भत्ते इंक्रीमेंट व एरियर वाली  वेतन में जी खा रहे  है।पर नीजि जगत में मंदी के चलते रोजगार विहिन लोग और इन उद्योगों में खप रहे मजदूर जो अपने गांव चले चले वे कब लौटेन्गे ? लाकडाउन में थमे जन जीवन गतिमान कैसे होन्गे ?
       सच कहे यह वर्ष संताप का रहा  बीस वाकिय में मानवता के लिए विष सदृश्य हो गये थे। सही प्रबंधन और व्यवस्थाओं के चलते  हालाँकि उबरे पर लोमहर्षक मंजर रोगटे खडे होने वाला भी रहा । जातिय व धार्मिक उपद्रव भी छिटपुट रहा है। राजनैतिक उठा पटक और रस्साकशी अपेक्षाकृत कमतर रहा पर शह मात का गेम बदस्तूर चल ही रहा है। 
    आम जन जीवन ठहरा सा हैं और उनमें हलचल जारी हैं। बहुत कुछ नई धारणाओं का  विकास हुआ है। खान -पान, रहन -सहन में तेजी से  बदलाव आया और लोगों में लापरवाही या बेफिक्री कम हुई हैं।
   एक बात स्पष्टतः दृढ़ हुई कि जीना महत्वपूर्ण है कैसे जीए यह महत्वपूर्ण नहीं हैं। फलस्वरुप फैशन और दिखावे की जगह अब स्वस्थ जीवन शैली विकसित होने लगा है। सेहत की चिन्ता अब सर्वोपरि हो गये हैं। शिक्षा आन लाइन होकर व्यक्तिक हो गये । सरकारी नौकरियां ही अब प्रथम प्राथमिकता नहीं रहा न मेरिट बल्कि इल्म हुनर और स्वरोजगार व नीजि संस्थान की ओर आकर्षण बढने लगा है हालाँकि यह प्रक्रिया एक दशक से जारी है पर कोरोना काल ने इसे बहुत अच्छी तरह प्रतिस्थापित किया है। 
     रचनाधर्मी लोग बाहर नहीं तो अपने मोबाईल के माध्यम से कक्ष के भीतर और चलते फिरते धुमते सक्रिय हो गये हैं। मोबाईल इस दारुण समय में पथ प्रदर्शक की ही तरह नहीं अपितु अभिन्न मित्र की तरह लोगों के जीवन में स्थान बना लिए हैं। इनके द्वारा वे हर तरह से अपडेट हो रहे हैं। और सतर्क भी।
     विचारों का  विन्यास इसी तरह फैलती जाती हैं भले उनपर अमल हो न हो ।मानव मन विचारों के अजायबघर हैं जहाँ मूर्त -अमूर्त  विचार सागर की  लहरों के मानिंद उठते हैं। झझकोरते हैं अशांत उद्विग्न होकर  उद्वेलित  करते हैं तो यदा कदा  शांत धीर गंभीर भी करते हैं । संतुष्ट असंतुष्ट भाव भी विचार प्रवाह में किसी कश्ती के मानिंद हिचकोलें खाते हैं।
   बहरहाल जो विचार कौंधा वह यह है कि "  अच्छे दिन आएन्गे या युं ही संधर्ष चलता रहेगा । संधर्ष से हार -जीत  मिलती हैं। पर सभी जीत से सुख शांति समृद्धि  मिले यह नहीं कह सकते ।अशोक कलिंग जीत कर अशांत हो गये ! और शांति के लिए सत्य या  बुद्ध के मार्ग का अनुशरण किया। उसी तरह कोरोना को जीत कर क्या व्यक्ति  सुखी होन्गे? हमें ऐसा नहीं लगता हां संकट से राहत जरुर मिलेगी । शांति तो उन्हे  प्राकृतस्थ जीवन यापन करने या सत्य या बुद्ध के मार्ग का अनुशरण से ही संभाव्य हैं। दावा नहीं ।अत एव   यह यक्ष प्रश्न  अनुत्तरित बचा रहेगा। 
     कुछ बचा रहता हैं तभी चक्र चलता हैं।  यह समय चक्र ऐसा ही हैं। उत्थान- पतन ,हार -जीत और  पाना- खोना यह नियति हैं। यह स्वभाविक भी इसलिए निरंतर श्रमण अवस्था में गतिमान रहे हमारी यात्रा गुफा कंदरा से  सैंधव काल की भव्यतम जीवन स्तर से अब पांच सितारा लाईफ तक आ चुके हैं। मैट्रोपोलिश सिटिज़ में सेवन स्टार कल्चर डेवलप हो चुके हैं। अनंत भोग और उनके अनंत आनंद के  पारावर  छलक रहे हैं।  बावजूद एक अतृप्त मन व्याकूल क्यो और किसलिए  हैं? 
           बहिर्यात्रा और अन्तर्यात्रा भी जारी हैं अनगिनत पथिक चल रहे हैं। एक ऐसी मंजिल की ओर जहाँ कुछ भी नहीं हैं। शुन्य गगन बीच बासा हो जहाँ सतनाम प्रकाशा हो कह कर हमारे संतों गुरुओं ने मार्ग निर्दिष्ट किया पर सवाल यह है कि वे लोग भी वहाँ पहुँच सकें ? वे बताए चेताए इसलिये बड़े बुजुर्ग की तरह अपनत्व भाव लिए पूज्यनीय हैं। उन्हे मिथकीय पात्र न बनावें। ताकि उनकी अमृतवाणी सागर मंथन में अमृत की मानिंद सुर- असुर की  झप्पटे और महामोहिनी की नर्तन आदाओं वाली बंटवारे में कही छलक या गिर न जाय ... फिर जुटते रहना तलाशने !  संगमों  के इर्द-गिर्द उन्मत्त । 
        भीड़ मन को रंजित करता हैं । पर भीड़ संक्रमित करने के कारण अब जमवाड़ा को विसर्जित करने होन्गे क्योंकि मनोरंजन से अधिक महत्वपूर्ण जीवन हैं। जीवन के मनोरंजन हेतु  नये विकल्प तलाशने होन्गे  सार्वजनिक सभा जुलुश यात्रा आदि अब सुखद नहीं दुखद और संकटग्रस्त हैं। यह देर सबेर सबको समझना ही होगा। क्योंकि केवल एक कोरोना नहीं है इनके पीछे  उनके अनेक कुनबा हैं । अति सर्वत्र वर्ज्येत या मध्यम मार्ग ही संत का सच्चा मार्ग हैं। यही सतपंथ हैं। सस्टनेलेबल डेवलपमेंट  कहे या संतुलित विकास या जीयो और जीने दो कह ले। हमे वर्चस्व वादी मनोविकार पर प्रभावी नियंत्रण करना ही होना यही असली वैक्सीन है जो दुनियां को केवल  बचाएगी ही नहीं बल्कि और भी खूबसूरत करेगी। 
             हमारी छत्तीसगढ़ी में एक हाना है "एक से एक्काइ हो" एक्काइस मतलब इक्कीस मतलब "एक आगर एक कोरी" इसका अर्थ हैं बरकत/ उन्नति होना ।हमसबके जीवन में  आशा की न ई किरण लाए सबकी उन्नति हो इनके  लिए मंगलकारी  मंगलकामनाओं के साथ नव वर्ष इक्कीस की  मंगलमय बधाई ।
   जय जय ...वंदे भारत !

डॉ॰ अनिल भतपहरी 
9617777514

Saturday, January 2, 2021

कलेचुप

#anilbhatpahari
।।कलेचुप ।।
जुड़जुड़हा जाड़ मं 
सुरुज उथे कलेचुप 
झुंझकुरहा झांकय 
झुंझकुर ले कलेचुप
ओढ़े कथरी खावय घी 
तापय रोनिया कलेचुप 
चुप सरिख सुख नहीं 
बतावय बुदुक कलेचुप
जतन के राखबे मया ल 
तोर अंतस म कलेचुप  
अल्हन जाड़ मं हाथ-गोड़
सकेले पहावय बेरा कलेचुप
     -डाॅ. अनिल भतपहरी

Friday, January 1, 2021

नव वर्ष की मंगलकामनाएं

मंगलकामनाएंं...

प्रात: नवल प्रभात 
आशा की किरण  
सी हुई प्रस्फुटित
महाव्याधि की हनक
अविश्वास की तमस  
वैक्सीन और विश्वास 
से मन मयुर मुदित  
वाणी हुए निःसृत
बीस तो  विष हुए 
इक्कीस हो अमृत 
सितम और संताप 
हो जेहन  से विस्मृत 
मंगलकामनाएं धरा हो 
सत्य प्रेम करुणा से संवृत  

       -डाॅ. अनिल भतपहरी

            ३१-१२-२०२१ शाम ६ .३० बजे

चाह

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

     ।।चाह ।।
नव वर्ष में नव उत्साह 
जगे जे़हन में नव चाह 
मिटें  क्लेश सब स्याह
संवेदनाओं का हो दाह 
एक -दूसरे पर हो  चाह 
सुगम-सरल हो सब राह

 बिंदास कहें डाॅ. अनिल भतपहरी