"नई सोच नई उमंग"
प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी जयंती हर्षोल्लास पूर्वक मनाएन्गे और रात्रि ४० कलाकारों से सजे -धजे सुप्रसिद्ध छालीवुड एएचआर्केस्ट्रा का आयोजन होगा।
मुख्य अतिथितत्व के लिए मंत्री को लाने की तैयारी जोरों से चल रहा है। और लगभग पूरी समिति आयोजन को सफल बनाने में लगे हुए हैं।
बस आप जैसे समाज के महत्वपूर्ण लोगों से सहयोग की अपेक्षा हैं। चंदा लेने आए दल के मुखिया बिना सांस रोके बोल गये।
सभी आगंतुकों के जल ग्रहण करने के उपरान्त
सौंप -ईलायची परोसते वे विनम्रता से कहने लगे - " अच्छी बात हैं आयोजन हो पर वह ज्ञान -वर्धक और प्रेरणीय हो तभी सार्थकता हैं। इस तरह ये नाच पेखन क्या धन और समय की बर्बादी नहीं हैं?"
नाच वाली कार्यक्रम में भी प्रेरक नाटक व प्रहसन मंचित किए जाते हैं।
" सो तो है ,पर अधिकतर द्विअर्थी बोल युक्त गाने तेज रोशनी में फूहड़ नृत्यादि एक महान प्रर्वतक के जन्मोत्सव में शोभा नहीं देता।"
थोड़ी दृढ़ता से वे कहें। पर उनसे लाउड और लगभग धमकाते उनमें से एक ने कहें - साफ कहो चंदा नहीं देन्गे ? यदि ऐसा हैं सोच लो !चार का निर्णय हैं नहीं मानोगे तो सामाजिक बहिष्कार झेलेने होन्गे!
गैर लोग भी उत्साह पूर्वक चंदे दे रहे हैं बल्कि कौन कौन से नाच होन्गे यह सुझाव भी दे रहे हैं।
वे तो कहेन्गे और एक के जगह दस देन्गे ।क्योकि ऐसा करके गुरु के संदेश को डायवर्ट करेन्गे और समाज की उच्च संस्कृति को भी विकृत करेन्गे ।
अच्छा सब जगह हो रहे हैं क्या उनको रोक सकते हैं? नही न तो यहाँ क्यो? फिर चलो समाज सुधारने मै स्वयं आपके साथ चलता हूं। कहते एकदम से उठ खड़ा कहे लगभग हाथ पकड़ खीचते कहा - चलो चले !
हतप्रभ सा उसने कहां - "भई जब जगों तब सबेरा !दूसरों को रोकने से पहले अपना तो रोक लो,यदि ऐसा हुआ तो उदाहण बनेन्गे । एक सदी बीत ग ई नाच पेखन करते और उनमें लाखो - करोड़ों गाढ़ी कमाई फूंकते । उसे बचाओं और समाज हित में उनका उपयोग करों। भाषण देते सा कहते हाथ लहराने लगे ।
कुछ लोगों को बातें समझ में आई और वहीं तय हुआ कि इस बार विशुद्ध धार्मिक कार्यक्रम भजन- कीर्तन' व संगत -पंगत ही होन्गे। शेष पैसे बैंक खाते में जमा करेन्गे। और उनका रचनात्मक कार्य करेन्गे ।
कुछ महत्त्वाकांक्षी छुटभैय्ये नेता टाईप लोग खुसुर- पुसुर करते कहने लगे कि मुख्य अतिथि हेतु मंत्री महोदय ... बीच में उनके साथी बात फाकते कहे - अरे भजन- कीर्तन सुनने लोग थोड़े आएन्गे? और मंत्री क्या खुर्सी टेबल को भाषण सुनाएन्गे ?
मतलब भीड़ एकत्र करने के लिए नाच पेखन एक प्रयोजन हैं। और इसीलिए इनके लिए अनुदान व सिफारिशें होने लगे हैं।
अरे भई सांस्कृतिक कार्यक्रम सरकारी अनुदान में आ रहे।वह भी गंवारा नहीं ... चलों भाई ।एक के कहने से हमारी वर्षों की परंपरा नही बदल सकती। ४-५ अलग हो लिए!
सरकारी अनुदान तो किसी दूसरे काम को मिलना चाहिए। ये नाचा -पेखन को अनुदान जो कला संस्कृति के नाम पर समाज में प्रदूषण फैला रहे हैं। और समाज इतना कृपण कि अपने मनोरंजन के लिए भी अनुदान मांगते फिरे।
आयोजकों की स्थिति बड़ी विचित्र सी हो गई दो फाड़ होने लगे । एक पक्ष कह रहा है। धार्मिक कार्यक्रम होन्गे दूसरा सांस्कृतिक कार्यक्रम ।
बस देखने और समझने का नजरिया हैं।
जहां देखे शामिल भजन और ददरियां हैं।
एक कवि दृष्टि पाए व्यक्ति कह उठे ।
उनके कहने से उत्साहित एक नवयुवक बिंदास बोले - "क्या भजन भाजन सब ढकोसला हैं। होगा तो डांस म्युज़िक नहीं तो कुछ नहीं ।"
बहरहाल वर्ष में एक बार जयंती मनाकर चंदे की हिसाब- किताब करते साल भर झगड़ने वाली आयोजन समिति में पद- प्रतिष्ठा पाने होड़ लगे हैं। और जो इस वर्ष नया अध्यक्ष बने हैं उनके प्रतिष्ठा का सवाल हैं। जो अध्यक्ष रहते चुका है,वह प्रतिरोध में हवा बना रहे हैं भले मांग जायज हो या नजायज ...
तभी वह व्यक्ति चंदे के नाम प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता पंथी नृत्य दल को देने घोषणा किए । उनके घोषणोरान्त एक ने द्वितीय पुरस्कार की धोषणा अपने ओर किए ... फिर ओ चंदे समिति में जोश आ गया ... तृतीय व सत्वना तक की स्व धोषणा हो गये।
अब केवल मंच और भोजन व्यवस्था की बाते रह गई । पर इनका भी शीध्र समाधान हुआ । शाम को सहभोज होगा मतलब किसी घर खाना बनेन्गे नहीं सो दो टाईम का खाने की चंदा ५०० रु प्रति परिवार। इस तरह ५००× ५०= ५०००० युं ही एकत्र हो जाएन्गे । इतना पर्याप्त हैं। फिर थोड़ा बहुत होन्गे वह सहज इन्तजाम हो जाएगा। एक न ई सोच व न ई उमंग लोगों को रोमांचित करने लगे। वे कहने लगे सोचों दो दिन लगातार सहभोग होगा और लोगों के भोजन नहीं बनेन्गे तो महिलाओं को कितना अच्छा लगेगा।पुरा गांव मोहल्ला आनंदोत्सव में मग्न रहेन्गे। भई वाह शानदार आइडिया हैं।
शानदार दो दिवसीय सहभोज और पंथी प्रतियोगिता बीच -बीच में गुरु वचन व संदेश। सामाजिक सौहार्द और परस्पर प्रेम भाव से रहने के अप्रतिम महाआयोजन
संगत - पंगत की नींव पड़ गई।
प्रात: मोहल्ले की शानदार मंजर देख सुखानुभूति हुआ - लोग दूने उत्साह से अपने अपने घर- द्वार एंव गलियों व जैतखाम परिसर की सफाई में जुटे हुए हैं।
कुछ प्रतिनिधि मंडल आस पास के गांवो के पंथी दलों को आमंत्रित सुबह सुबह निकल पड़े ।
जनमानस में जयंती महोत्सव को लेकर विगत वर्ष से एक अलग तरह के माहौल और उत्साह दर्शनीय हैं।
-डा. अनिल भतपहरी
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