काकर धन तेरा
बरसे बेरा कुबेरा
काकर धन तेरा
अजब हवे लुटेरा
सांझ का सबेरा
परे बिपत घनेरा
कुलुप बस्ती डेरा
शहर अंजोर तेरा
सुख लुटिन लुटेरा
हमर जिनगी अंधेरा
काकर हवे धनतेरा
ये जिनगी के फेरा
लीले सुख्खा कौंरा
भ इगे सरग निटोरा
सरकार कोंदा भैरा
बाचे हवय देवारी
कछु करय संगवारी
किसान रोवे हासे बैपारी
ऐसन बात नइये संगवारी
गलत सलत नियाव नीति
देखे बर दुख ओकरे सेती
झेलत हवय देश मंदी
ओखी के खोखी नोट बंदी
इंहा तो हवे सबके करलाई
बाढ़त हे सुरसा कस महगाई
लगे दु:ख पीरा के ओरी
कइसन ये देवारी
अउ काखर देवारी
-डा. अनिल भतपहरी
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