छत्तीसगढ़ के सतनाम संस्कृति से प्रभावित महात्मा गांधी जी
महात्मा गांधी जी का आगमन छत्तीसगढ़ में १९२० को हुआ।तब यहां के जनमानस जिनमें सतनामी समाज गोरक्षा आन्दोलन के साथ अपने हक अधिकार और मुख्यधारा में आने संधर्षरत थे साथ ही अन्य वर्गो से मिलकर कृषि कार्य आदि के लिए कंडेल नहर सत्याग्रह में सम्मलित रहे एंव आदिवासी समाज के साथ मिलकर जंगल सत्याग्रह चला रहे थे।ब्रिटिश सरकार और उनकी नीतियों से आक्रान्त समुदाय आन्दोलित थे।इसी माहौल में गांधी जी का छत्तीसगढ़ आगमन हुआ।वे सभी आन्दोलन रत समुदाय से और उनके नेतृत्व कर्ता से मिले और वस्तुस्थिति से अवगत हुए। गुरु अगम दास गोसाई के साथ ७२ सतनामी संत महंत के साथ उनकी परिचर्चा और उन्हे लखनऊ राष्ट्रीय अधिवेशन में आमंत्रित करना एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय व सामाजिक धटनाक्रम रहा है।
समकालीन समय में छत्तीसगढ़ को अशिक्षा (चूकि इनकी शुरुआत महज ३०-४० साल ही हुए थे और नव साक्षर जन ही नेतृत्व कर रहे थे ) और वन प्रातंर के रहवासी समझ आधुनिक विचारधारा से अनभिज्ञ मान लिए गये थे।में ऐसा स्वस्फूर्त आन्दोलन देख गांधी जी और समकालीन शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व को सुखद अनुभूति हुई।
अनेक तरह के जन जागरण का कार्य द्रूत गति से जारी था। इन आन्दोलन और व्यक्ति स्वतंत्रता के केन्द्र में गुरुघासीदास के सतनाम जागरण और उनके यशस्वी पुत्र राजा गुरुबालकदास के सतनाम आन्दोलन के महत्वपूर्ण भूमिका रहा है।
अगर सतनाम जागरण के प्रारब्ध में देखा जाय तो अशिक्षा और आधुनिक ज्ञान चेतना से वंचित यह प्रांत धार्मिक कर्मकांड तथा अनेक मत मतान्तर और पशुबलि - नरबलि जैसे कुरीतियों के केन्द्र स्थली रहा है। सतपूड़ा मैकल और दण्डकारण्य के मध्य तथा सरगुजा बस्तर के सघन वनप्रांतर लगभग शेष भारत से कटा हुआ था। जहां आदिम प्रवृत्तियां अपनी चरमावस्था में था। छोटे छोटे ३६ रियासतों और जमीन्दारी में फैले यह भूभाग सामंत पाडे परधान मोकरदम सिरहा बैगा पंडे पुजारी के आतंक तथा तांत्रिक मांत्रिकों के मकड़जाल से उलझा जात पात ऊच नीच छुआछूत से ग्रसित था।ऐसे वातावरण में सुदूर सोनाखान वनांचल के गिरौदपूरी ग्राम में गुरुघासीदास का अभ्युदय और उनका साधना सिद्धी उपरान्त मानव मानव एक की उद्धोष के साथ सतनाम जागरण यहां के जनमानस को भीतर तक उद्वेलित किए और बाह्य स्वरुप मे अपने हक अधिकार और कर्तव्य के जागृत किए। यही सब बाते आजादी के आन्दोलन की पूर्व पीठिका रही हैं।
सतनाम जागरण व सिद्धान्त से अनुप्राणित होकर अनेक प्रज्ञावान व समुदाय अपने हक अधिकार और कर्तव्य के लिए आन्दोलित होने लगे।
द्वितीय विश्वयुद्ध में हार के बाद ब्रिटिश शासन अपना औपनिवेशिक सत्ता जो अनेक देशों में फैले थे को को समेटने लगे थे ।फलस्वरुप वे लोग भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के पूर्व वहां की सामाजिक धार्मिक व राजनैतिक मसले को सुलझाने के लिए गोलमेज परिषद ( राऊंड टेबल कांफ्रेस) लंदन में आयोजित किए।इसमें भारतीय प्रतिनिधित्व कर्ता में महात्मा गांधी डा अम्बेडकर जिन्ना आदि सम्मलित हुए।ज्ञात हो कि तीनो काफ्रेंस मे डा अम्बेडकर सम्मलित हुए और अपनी बाते मनवाने कामयाब हुए कि भारत में अनु जाति वर्गों की हालात ठीक नही है।उन्हे उनकी हालात सुधारने विशेष अवसर प्रदान किया जाय।वे दो मताधिकार लेकर आए । इससे समकालीन उच्च वर्गीय नेतृत्व में आक्रोश फैला और इन्हे रद्द करने गांधी जी को आमरण अनशन करना पड़ा फलस्वरुप महात्मा गांधी और डा अम्बेडकर के बीच पूना पैक्ट हुआ। इसके बाद समाज सुधार व अस्पृश्यता निवारण हेतु कांग्रेस व गांधी जी अभियान चला ।इस सिलसिले में वह पुन: छत्तीसगढ के ५ दिवसीय प्रवास पर आये ।
अस्पृश्यता निवारण कार्यक्रम में गांधी जी आगमन और यहां उनके आगमन के पूर्व ही सामाजिक सौहार्द्र तथा अनुसूचित जाति के लोगो को पं सुन्दरलाल शर्मा जी द्वारा राजिम के मंदिर प्रवेश की कार्यक्रम प्रसिद्ध हो चूके थे।पं मिलऊ दास सतनामी कौंदकेरा निवासी व चमसूर निवासी सुन्दरलाल शर्मा की युति ने वह कार्य कर दिखाया जो शैष भारत में कही नही हुआ था।
उनकी इस कार्य को सुनकर महात्मा गांधी जी काफी प्रभावित हुए और कंकाली तालाब रायपुर के सभा स्थल में भरी सभा के मध्य सुन्दरलाल शर्मा जी को" गुरु" कह कर संबोधित किए।
उनकी यह बाते काव्यात्मक रुप में रेंखाकित हो गये -
गांधी काम ओखर आय ले पहिली होगिन सुरु।
भरे सभा मं सुन्दरलाल ल कहिन ओमन गुरु ।।
इसी तरह जब में रायपुर से बलौदाबाजार गये तो यह परिक्षेत्र सतनामी बाहुल्य है।और उसी अंचल में गुरुघासीदास व उनके पुत्र राजा गुरु बालकदास का संयुक्त अभियान सतनाम जागरण और आन्दोलन चला यह परिक्षेत्र उन के साक्षी रहा है।खान पान रहन सहन और सत्य के प्रति अटूट निष्ठा सतनामियों की देखते बनती गहै। उनके साथ गुरु संत महंत का काफिला चला और उनके जगह जगह पर स्वागत सत्कार होते गये। इस यात्रा में एक विधवा स्त्री प्रसंग रेखाकित करने योग्य है। पंक्तिबद्ध खडे उक्त महिला ने जब गाञधी जी को प्रणाम करना चाही तो गांधी जी यह कर मना किए कि पहले एक रुपये चंदा दो। वह तपाक से बोली कि अभी तो पैसे नही है।आप यही ठहरों मै घर से पैसे ला रही हूं। गांधी जी उनकी हाजिर जवाबी और उनकी सागदी सचाई व श्रदधा के कायल हुए।
उच्च वर्गीय हिन्दूओ का सतनामियों के प्रति इतनी धृणा और द्वेषपूर्ण व्यवहार और उनकी बहुलता के बावजूद शांति पूर्ण जीवन शैली से गाञधी जी बेहद गहराई से प्रभावित हुए।वे यह जानने कि कैसे इन वर्गों में सहनशीलता आई ।तब गुरु और महंत कहे कि सतनाम मर्मांतक पीड़ा को भी बर्दाश्त कर शमन लिए जाते है। क्योकि हमारे यहां गुरुघासीदास प्रणीत शिक्षा असत न सुने असत न कहे असत न देखे सतनाम जीवन दर्शन है। इनका शिल्पांकन उपदेश भंडारपुरी के मोती महल के कंगुरे में अंकित 3 बंदरों के शिल्पांकन से है।जो अनिहर्श संदेश प्रसारित करते आ रहे है।
जो बुराई या असत भाव है उसे यदि हम न देखे न सुने और न कहे तो हमें कोई फर्क नही पडने वाला। बल्कि जो ऐसा करते है उन्हे ही कष्ट होते है।
सतनामी समाज उक्त संदेश को आत्मसात कर सादगी पूर्ण सत्य निष्ठा से जीवन यापन करते आ रहे है।गांधी को यह बाते भीतर तक झकझोरे और उक्त दृष्टान्त को अंत:करण में बसाकर संतत्व भाव को ग्रहित किया।वे सतनामियों के गुरु और ७२ प्रतिनिधी मंडल को उनकी गोरक्षा आन्दोलन उनकी सादगी पूर्ण जीवन वृत्त के लिए सम्मानीत करने लख नऊ आमंत्रित किए।वहां मोतीलाल नेहरु स्वामी श्रद्धानंद आदि शीर्ष लोगो से मिले और जनेऊ संस्कार कर सम्मानित किए गये।
इस तरह देखा जाय तो गांधी जी के आगमन और उनसे प्रभावित यहा के जनमानस खासकर सतनामियों का जुड़ाव महत्वपूर्ण है।देश की स्वतंत्रता आन्दोलन में अपना सर्वस्व न्योछावर कर बड़ी संख्या में सतनामी सम्मलित हुए।
रायपुर मे १९२१ में सतनामी आश्रम की स्थपना हुई और इनके माध्यम से जन जागरण का कार्य आरंभ हुआ।जो आजादी के आन्दोलन मे परीणित हुआ। गोसाई बाडा गुढियारी साहेब बाडा और मांगडा बाडा जवाहर नगर से स्वतंत्रता आन्दोलन संचालित होने लगे इन में सतनामियों की भागीदारी सर्वाधिक हुआ। और ग्रामीण अंचल में विस्तारित हुआ। आजादी के साथ समाज के मुख्यधारा में सतनामियों मे यह स्वतंत्रता आन्दोलन जनान्दोलन के रुप में हुआ ।और इनके नेतृत्व कर रहे गुरु अगमदास गोसाई महंत नयन दास महिलांग अंजोरदास मालगुजार रतिराम आदि के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गये।
गांधी जी भी सतनामियों की जीवन शैली उनकी स्वतंत्रता आन्दोलन मे उनके सहभागिता व उत्साह देख प्रभावित हुए और वे तीन बंदर वाली दृष्टान्त को यहां से जाने के बाद रखने लगे ।वर्तमान में भंडारपुरी महल में स्थापित यह प्रतीक गांधी जी के तीन बंदर के नाम विख्यात है।
- डा.अनिल कुमार भतपहरी
सहायक संचालक
उच्च शिक्षा संचालनालय ,इन्द्रावती भवन अटल नगर नवा रायपुए
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