Monday, December 9, 2019

चारा चिन्ता

आपके वास्ते छकड़ी हमरी
       "चारा- चिन्ता "
जाड़ मं जुड़ाय पंखी सेकत रहिस  रोनियां
तापे बर महुं पहुच गेंव  बड़े बिहनियां
माढ़े रहय सुन्ता अउ काही चिन्ता मं कलेचुप
खातु -दवई सेती चारा नही, लाघन चुप चुप
मोर आरो पाके उड़ियागिन  फूर्र  फूर्र
संसो मं महु लहुटेंव पछतावत चुर चुर ...

बिंदास कहे डा. अनिल भतपहरी

   छत्तीसगढ़ी राज भाषा दिवस के बिक्कट बधाई

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