सहजयोग- सतयोग
।।सतनाम।।
सतनाम धर्म संस्कृति में सहज योग ध्यान आदि का अतिशय महत्व है। समाज में अनेक जल और भू समाधि साधक मौजूद हैं। अग्नि समाधि साधक गुरु घासीदास के सम्माFCCन के खातिर आज पर्यन्त कोई नहीं लेते।
बहरहाल जनसाधारण मेहनत कश कर्मयोगी हैं। सादा जीवन उच्च विचार और कम में संतुष्टि भाव सतनाम संतमत की विशेषताएँ हैं।
प्राचीन विरासत से ही सहजयोग और सतयोग की परंपरा विकसित हैं। गुरुवंशजों में कुछ गुरुओं एंव कुछ संत- महंत जिनमें दिव्य जी पुनीदास संतोष कुर्रे व मनोहर जी सहजयोगी हैं। और हमलोग भी सतयोग आरंभ किए हैं। इस वर्ष गिरौदपुरी मेले मे शिविर भी लगाए गये जहां अनेक साधु महात्मा आकर ध्यान व सतयोग की गुढ़तम बाते बताते है। एक साधक पिथौरा परिक्षेत्र का था वे सहजयोग व समाधि साधक थे। वे एकांत में अकेले रहते थे अपनी अद्भूत आपबीति संस्मरण सुनाए एक दिन उनकी कुटियां के बाडी में डोमी नाग सांप काट दिए। दो अवचेतन अवस्था विष बाधा से ग्रसित रहे ।वे अपनी विशिष्ट योग बल से बिना इलाज विषमुक्त हो बच गये ।वे इनका श्रेय अपनी योग विद्या को दिए। हमलोग श्रवण कर हतप्रभ हुए। यह सब अनुसंधान का विषय है।
बहरहाल गुरुवंदना केंद्र राजेन्द्रनगर रायपुर व अमलीडीह में इंजी गेन्दले सर एंव डा अनिल भतपहरी द्वारा सतयोग कार्यशाला का आयोजन किए जाते हैं। इच्छुक जन ९६१७७७७५१४ में संपर्क करे।
प्राचीन परंपरा का पुनर्जागरण करना ही हमलोगो का ध्येय हैं। दिव्य जी जैसे अनेक लोग सक्रिय हैं। और सोशल मीडिया में प्रचार प्रसार करते रहते हैं। वे सभी धन्यवाद के सुपात्र है।
।। सतनाम।।
Tuesday, December 10, 2019
सतनाम सहज योग व सतयोग
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment